Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
३६८
.
गो० कर्मकाण्डे
नाररिदं समच्छेदम माडि आदियनदरोळकळेद शेषनिदु । ८०६ । उपरितनगुणहालिगः समस्तधनमक्कुं। कूडिदुभयधनमिदु १५३४ यिदरोळगे अधस्तनगुण हानिगळोळु प्रविष्टऋणमनिनितं ११२ कळेदोड शुद्धद्रव्यप्रमाणमिदु । १४२२ । इन्तु “मज्झेमजीवा बहुगा उभयत्थविसेस
होणकमजुत्ता। हेट्ठिमगणहाणिसळावुवरि सळागा विसेसहिया ॥ एंदी गाथा सूत्रात्थं विशदं ५ गुणियं १२८ । २ । २ आदिविहीणमिति १२८ । १६-२ इदं सर्वऋणं गुणहानिगुणितचरमाधस्तन गुण हानि
विशेषेण हीनयवमध्यराशिमात्रं स्यात--
१६ । ऋ१६ । धन --
११२ १२८ । ४ । ३'
१२८ । ४।३ ४२२२२
ऋ१६
ऋ६४
१२
१२८ । ४।३ ४।२।२।२
ऋ १६
*
५६
घन१२८।४।३
४। २
२४
१२८ । ४ । ३ ४।२।२
१२८ । ४ । ३
४ । २
ovem
ऋ
।
ऋ३२
धन१२८।४।३
४।२।२
२८
१२८
४ । ३
११२ १२८
*
ऋ४
ऋण १६ गुणहानिके निषेकोंमें घटाये जानेवाले विशेषोंका प्रमाण, योगस्थानरूप निषेकोंमें जीवोंका प्रमाण, गुणहानिमें सर्वद्रव्यका प्रमाण, नीचेकी और ऊपरकी गुणहानिमें घटाये जानेवाले ऋणका प्रमाण ये सब दिखाने के लिए आगे यन्त्र लिखते हैं
इस यन्त्रका आशय इस प्रकार जानना
स पर्याप्त सम्बन्धी परिणाम योगस्थान बत्तीस कहे। उनमें ऊपरकी गुणहानिके प्रथम निषेकरूप जो योगस्थान हैं उनके धारक जीव एक सौ अठाईस हैं। उसको यवमध्य कहते हैं। उस स्थानसे पहले और पिछले दो योगस्थानोंके धारी जीव एक सौ
बारह, एक सौ बारह हैं। इसी प्रकार सब योगस्थानों में जीवोंका प्रमाण जानना । जैसे १५ अंकोंके द्वारा कथन दिखाया है वैसे ही यथार्थ कथन जानना।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org