Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 549
________________ ४९९ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ळय्दुगूडियनुदयंगळु पदिनय्दरोळु सम्यक्त्वप्रकृतियुमं हुंडसंस्थानाधष्टप्रकृतिगळ मंतु ओंभत्तं प्रकृतिगळं कळेदुवयंगळोळु कूडुत्तं विरलनुवयंगळारु ६ । उदयंगळेप्पत्त मूरु ७३ । संदृष्टि : वै० मि० योग्य ७९ • मि | साम अ उ ७ ८ ६९७३ अ १ १० षष्ठगुणवदाहारे आहारककाययोगदोलुदययोग्यप्रकृतिगर्छ प्रमत्तगुणस्थानदोळु पेळदेण्भत्तों दे प्रकृतिगळप्पुववरोळु स्त्यानगृद्धित्रितयमु.३ षंढवेदनु १ स्त्रीवेदमु१। दुग्गदिदुस्सरसंहदि ओरालदु चरिमपंचसंठाणं । ते तम्मिस्से सुस्सर परघाददुसत्थगदिहीणा ॥३१७॥ दुग्गतिदुस्वरसंहननौवारिकद्विक चरम पंचसंस्थानं । ताः तन्मिश्रे सुस्वरपरघातद्विकशस्तगतिहीनाः॥ अप्रशस्तविहायोगतियुं १ । दुःस्वरनाममुं १ । संहननषट्कमु ६ औदारिकद्विक, २। चरम- १० पंचसंस्थानंगळु ५ मितु विशतिप्रकृतिगळाहारककाययोगिप्रमत्तसंयतनोळु दयायोग्यंगळप्पुरिदमवं कळदोडे शेषमस्वत्तोंदु प्रकृतिगळुदययोग्यंगळप्पुवु ६१ । तास्तन्मिभे आहारकमिश्रकाययोगिप्रमतसंयतनोळा प्रकृतिगळरुवत्तो देयप्पुवरोळ सुस्वरमुमं १ परघातोच्छ्वासद्वितयमुमं २। प्रशस्तविहायोगतियु १। मनितु नाल्कुं प्रकृतिगळं कळेदोडे शेषप्रकृतिगळय्वत्तेळुदययोग्यंगळप्पुवु ५७॥ अनुदयः पंच मिलित्वा सम्यक्त्वप्रकृतिहुंडसंस्थानाद्यष्टकोदयात् षट् ६ । उदयस्त्रिसप्ततिः ७३ । आहारक- १५ काययोगे षष्ठगुणस्थानोक्तकाशीत्यां ८१ स्त्यानगृद्धित्रयं षंढवेदः स्त्रीवेदः नास्ति ॥ ३१५-३१६ ॥ अप्रशस्तविहायोगतिः दुःस्वरं संहननषट्कमौदारिकद्विकं चरमपंचस्थानानीति विंशतिर्नेत्युदययोग्याः एकान्नषष्टिः ६१ । तन्मिश्रयोगे ता एवैकषष्टिः सुस्वरपरघातोच्छ्वासप्रशस्तविहायोगत्यूनाः सप्तपंचाशद्भ ३. असंयतमें मिथ्यात्व और सासादनमें व्युच्छित्ति पाँच मिलकर अनुदय छह । क्योंकि यहाँ सम्यक्त्व प्रकृति और हुण्ड संस्थान आदि आठका उदय है । अतः उदय तिहत्तर । आहारक काययोगमें छठे गुणस्थानमें उदययोग्य इक्यासी ८१ में-से स्त्यानगृद्धि आदि तीन, नपुंसक वेद, स्त्रीवेद, अप्रशस्त विहायोगति, दुःस्वर, संहनन छह, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, अन्तके पांच संस्थान ये बीस उदय योग्य नहीं हैं। अतः उदययोग्य इकसठ । आहारक मिश्रयोगमें इकसठमें-से सुस्वर, परघात, उच्छ्वास, अप्रशस्त विहायोगतिका उदय न होनेसे उदययोग्य सत्तावन हैं ॥३१५--३१६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698