Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
वंशे मोदलागि पृथ्विगळलं घम्मेयोळु पेदंते उदययोग्यप्रकृतिगळेप्पत्तारु ७६ ॥ असंयतगुणस्थानदोळु विशेषमंटदावुदे दोडे नरकानुपूर्योदय मिल्लेकें दोडे असंयतसम्यग्दृष्टिप्राग्बद्धनारकायुष्यनादोडं द्वितीयादि पृथ्दिगलो पुट्टनदुकारणदिदमा नारकानुपठवर्यमं तंदु मिथ्यादृष्टियो व्युच्छित्तियं माडुतं विरल मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळ दयव्य च्छित्तिप्रकृतिगळेरड २ ५ उदयप्रकृतिगळेप्पत्त नाकु ७४ । अनुदयप्रकृतिगळु । सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतियुं सम्यक्त्व प्रकृतियुमेंबेरडु प्रकृतिगळप्पुवु २। सासादन गुणस्थानदोलु एरडुगू डिदनुदयप्रकृतिगळु नात्कु ४ । उदयप्रकृतिगळेप्पत्तेरडु ७२। मिश्रगुणस्थानदोळ नाल्कु गूडियनुदयप्रकृतिगळे टवरोळु मिश्रप्रकृतियं कळेदुदयप्रकृतिगळो कूडुतं विरलनुदयप्रकृतिगळेळ ७ । उदयप्रकृतिगळरुवत्तो भत्तु ६९ । असंयत गुणस्थानदोळो दुगूडिदनुदय प्रकृतिगळे दवरोळु सम्यक्त्व प्रकृतियं कळेदुदयप्रकृतिगोळु १० कूडुतं विरलनुदयप्रकृतिगळेलु उदयप्रकृतिगलरुवत्तो भत्तु ६९ । यितु वंशादि षट् पृथ्विगळ मिथ्यादृष्ट्यादि नाल्कुं गुणस्थानंगळोळुक्तोदयव्युच्छित्ति उदयानुदयप्रकृतिगणे संदृष्टि :
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अनंतरं तिर्यग्गतियोदययोग्यप्रकृतिगळं पेळदपरु :
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वंशादिषु षट् पृथ्वीषु धर्मावत् षट्सप्ततिः उदययोग्याः । अयते नारकानुपूर्योदयो नहि प्राग्बद्धनरकाकस्यापि सम्यग्दृष्टेस्वत्रानुत्पत्तेः । ततः नारकानुपूर्व्येण सह मिथ्यादृष्टौ व्युच्छित्तिः द्वयम् । उदयः चतुः१५ सप्ततिः । अनुदयः सम्यग्मिथ्यात्वसम्यक्त्वप्रकृती । सासादने द्वयं संयोज्य अनुदयः चतस्रः । उदयः द्वासप्ततिः ।
मिश्रेऽनुदयः चतस्रः संयोज्य मिश्रप्रकृत्युदयात्सप्त, उदयः एकान्नसप्ततिः । असंयतेऽनुदयः एका संयोज्य सम्यक्त्वप्रकृत्युदयात् सप्त । उदयः एकान्नसप्ततिः ॥ २९३ ॥ अथ तिर्यग्गतावाह -
आगे द्वितीयादि पृथिवियों में कहते हैं
वंश आदि पृथ्वियों में घर्मा के समान उदय योग्य प्रकृतियाँ छिहत्तर । किन्तु असंयत २० गुणस्थान में नरकानुपूर्वका उदय नहीं होता, क्योंकि जिसने पूर्व में नरकायुका बन्ध किया है. ऐसा सम्यग्दृष्टी भी वंशा आदिमें उत्पन्न नहीं होता । इसलिए मिध्यादृष्टी गुणस्थानमें नुपूर्वीकी व्युच्छित्ति होनेसे दोकी व्युच्छित्ति होती है और उदय चौहत्तर तथा अनुदय सम्यक मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृतिका होता है । इन दोमें दोकी व्युच्छित्ति मिलानेसे सासादनमें अनुदय चारका और उदय बहत्तरका । सासादनमें चारकी व्युच्छित्ति में चारका २५ अनुदय जोड़ने से आठ होते हैं। इसमें से मिश्र प्रकृतिका उदय होनेसे मिश्रगुणस्थान में अनुदय सातका और उदद्य उनहत्तरका | मिश्र में एककी व्युच्छित्ति है उसमें सात मिलानेसे आठ होते हैं। इसमें से सम्यक्त्व प्रकृतिका उदय होनेसे असंयत में अनुदय सातका और उदय उनहत्तरका है ||२९३ ।।
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