Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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प्पुत्रंतागुत्तं पोगि चरमाधस्तनगुणहानियोळु रूपोनाधस्तननानागुणहानिप्रमित द्विकंगळु भागहारं
गळ १२८४ । ३ ऋणमुं प्रथमाधस्तनगुणहानियोल निक्षिप्तऋणमं नोडलु गुणहानि प्रति
४ । २ । २
यद्धर्द्धिगळप्पु १२८ । २
४
=
१२८ । २
४ । २
=
१२८ । २ वी ऋगळं संकळिसिदोडे अन्तणं ४।२।२
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गुणगुणियं १२८ । २ । २ आदिविहीणं नात्करिदं ४ समच्छेदमं माडि कळेदोर्ड १२८ । १ । ६ । २
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ई सर्व्वऋणप्रमाणं गुणहानि गुणितच रमाधस्तनगुणहानिविशेषद होनमप्पयवमध्यराशिप्रमाण
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मकुं । ११२ । अन्तघणं १२८ । ४ । ३ गुणगुणियं १२८ । १३ । २ आदिविहोणं नाक
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रिदं समच्छेदमं माडि गुणिसि आदियं कछेद शेषमिदु । ७२८ अधस्तनगुणहानिगळ सर्व्वद्रव्यसक्कु । मत्तं अन्तणं १२८ । १३ गुणगुणियं १२८ । १३ । २ आदिविहीणं । ई राशियं पदि
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घोऽयर्विक्रमेण चरमगुणहानौ रूपोनाधस्तननानागुणानिमात्रद्विकैर्भक्तः स्यात् १२८ । ४ । ३ ऋणमपि प्रथम४।२।२ गुणहानिनिक्षिप्तात् प्रतिगुणहान्यर्धार्ध स्यात् । १२८ | २ | १२८ | २ | १२८ । २ संकलिते अतघणं गुण- १०
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४। २ ४। २ । २
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निषेकोंमें-से नीचेकी गुणहानिके निषेकों में ऊपरकी गुणहानिके चय प्रमाण ऋण होता है । जैसे ऊपरकी गुणहानिका प्रथम निषेक एक सौ अठाईस है । उसमें से चयका प्रमाण सोलह घटानेपर नीचेकी गुणहानिके प्रथम निषेकका प्रमाण होता है । इसी प्रकार सर्वत्र जानना । तथा प्रत्येक गुणहानिका द्रव्य आधा-आधा जानना । एक कम नीचेकी गुणहानि प्रमाण दुओंका भाग आदि गुणहानिके द्रव्यमें देनेपर अन्तको गुणहानिका द्रव्य होता है । तथा प्रथम गुणहानिमें जो ऋण कहा है वह भी आगे-आगेकी गुणहानिमें आधा-आधा होता जाता है जैसे ६४।३२।१६ । सो 'अंतधणं गुणगुणियं आदिविहीणं' इस सूत्र के अनुसार अन्तधन चौंसठको गुणकार दोसे गुणा करनेपर और आदि सोलह घटानेपर सबसे नीचेकी गुणहानिमें ऋणका प्रमाण होता है । सो गुणहानि आयाम के प्रमाणसे नीचेकी अन्तिम गुणहानिमें जो विशेषका प्रमाण है उसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना यवमध्यके प्रमाण मेंसे घटानेपर जो प्रभाग हो उतना जानना । सो गुणहानि आयाम चारसे नीचेकी अन्तिम गुहानिके विशेष चारको गुणा करनेपर सोलह हुए । सो यवमध्य में से घटानेपर एक सौ बारह रहे । सो सर्वॠण होता है। चौंसठ, बत्तीस और सोलहको जोड़नेपर भी एक सौ बारह ही होता है । तथा नीचे को और ऊपर की सर्वगुणहानियों का सर्वद्रव्य 'अतधणं गुणगुणिय' इत्यादि सूत्र के अनुसार जोड़नेपर तथा उसमें से उक्त ऋणको घटानेपर शुद्ध द्रव्य चौदह सौ बाईस १४२२ होता है ।
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