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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३६७ प्पुत्रंतागुत्तं पोगि चरमाधस्तनगुणहानियोळु रूपोनाधस्तननानागुणहानिप्रमित द्विकंगळु भागहारं गळ १२८४ । ३ ऋणमुं प्रथमाधस्तनगुणहानियोल निक्षिप्तऋणमं नोडलु गुणहानि प्रति ४ । २ । २ यद्धर्द्धिगळप्पु १२८ । २ ४ = १२८ । २ ४ । २ = १२८ । २ वी ऋगळं संकळिसिदोडे अन्तणं ४।२।२ [5] गुणगुणियं १२८ । २ । २ आदिविहीणं नात्करिदं ४ समच्छेदमं माडि कळेदोर्ड १२८ । १ । ६ । २ ४ १६ ई सर्व्वऋणप्रमाणं गुणहानि गुणितच रमाधस्तनगुणहानिविशेषद होनमप्पयवमध्यराशिप्रमाण -- मकुं । ११२ । अन्तघणं १२८ । ४ । ३ गुणगुणियं १२८ । १३ । २ आदिविहोणं नाक ४ ४ रिदं समच्छेदमं माडि गुणिसि आदियं कछेद शेषमिदु । ७२८ अधस्तनगुणहानिगळ सर्व्वद्रव्यसक्कु । मत्तं अन्तणं १२८ । १३ गुणगुणियं १२८ । १३ । २ आदिविहीणं । ई राशियं पदि ४ ४ Jain Education International घोऽयर्विक्रमेण चरमगुणहानौ रूपोनाधस्तननानागुणानिमात्रद्विकैर्भक्तः स्यात् १२८ । ४ । ३ ऋणमपि प्रथम४।२।२ गुणहानिनिक्षिप्तात् प्रतिगुणहान्यर्धार्ध स्यात् । १२८ | २ | १२८ | २ | १२८ । २ संकलिते अतघणं गुण- १० ४ ४। २ ४। २ । २ ५ 1 १५ निषेकोंमें-से नीचेकी गुणहानिके निषेकों में ऊपरकी गुणहानिके चय प्रमाण ऋण होता है । जैसे ऊपरकी गुणहानिका प्रथम निषेक एक सौ अठाईस है । उसमें से चयका प्रमाण सोलह घटानेपर नीचेकी गुणहानिके प्रथम निषेकका प्रमाण होता है । इसी प्रकार सर्वत्र जानना । तथा प्रत्येक गुणहानिका द्रव्य आधा-आधा जानना । एक कम नीचेकी गुणहानि प्रमाण दुओंका भाग आदि गुणहानिके द्रव्यमें देनेपर अन्तको गुणहानिका द्रव्य होता है । तथा प्रथम गुणहानिमें जो ऋण कहा है वह भी आगे-आगेकी गुणहानिमें आधा-आधा होता जाता है जैसे ६४।३२।१६ । सो 'अंतधणं गुणगुणियं आदिविहीणं' इस सूत्र के अनुसार अन्तधन चौंसठको गुणकार दोसे गुणा करनेपर और आदि सोलह घटानेपर सबसे नीचेकी गुणहानिमें ऋणका प्रमाण होता है । सो गुणहानि आयाम के प्रमाणसे नीचेकी अन्तिम गुणहानिमें जो विशेषका प्रमाण है उसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना यवमध्यके प्रमाण मेंसे घटानेपर जो प्रभाग हो उतना जानना । सो गुणहानि आयाम चारसे नीचेकी अन्तिम गुहानिके विशेष चारको गुणा करनेपर सोलह हुए । सो यवमध्य में से घटानेपर एक सौ बारह रहे । सो सर्वॠण होता है। चौंसठ, बत्तीस और सोलहको जोड़नेपर भी एक सौ बारह ही होता है । तथा नीचे को और ऊपर की सर्वगुणहानियों का सर्वद्रव्य 'अतधणं गुणगुणिय' इत्यादि सूत्र के अनुसार जोड़नेपर तथा उसमें से उक्त ऋणको घटानेपर शुद्ध द्रव्य चौदह सौ बाईस १४२२ होता है । For Private & Personal Use Only २० २५ www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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