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________________ ५ ३६६ गो० कर्मकाण्डे कळेदोडे मुखमरवत्तनात्कक्कु ६४ । मी मुखमं भूमिमं ११२ । कूडि १७६ । दळिसिदोडेण्वसेंटक्कु । ८८ । मदं पर्दाददं गुणिसिदोडे । ८८ । ४ । इनितक्कुमिदधस्तनप्रथमगुणहानिद्रव्यम वकुमदं संदृष्टिनिमित्तमागिकेळगेयुं मेगेयुं नाल्करिदं गुणिसि ८८ ।४।४ गुण्यभूताप्राशीतियं गुणकारभूतैकञ्चतुष्कदिदं गुणिसि पदिनारिदं भेदिसिदोडिक १६ । २२ । ४ ई राशिय गुणकारभूतद्वाविंशतियं द्विकदिदं भेदिसि गुणकारभूतचतुष्कमं द्विगुणिसिदष्टरूपुर्गादिं गुण्यभूतपदिनारं गुणिसिदोडेकादशगुणितयवमध्यचतुर्भागमक्कु १२८ । ११ मिदरोल ऋणमनिनित ४ ४ निक्कोडे ४ रूपाधिकत्रिगुणहानिगुणितयवमध्यचतुर्भागप्रमितमक्कु १२८ ४ । ३ मधोऽधः अर्द्धाद्ध क्रमंग ४ १२८ । २ निक्षिप्ते ४ o ४ अत्र रूपोनगुणहानिमात्रस्त्रविशेषेषु १६ । ४ । अपनीतेषु चरम निषेकः ६४ । मुखभूमियोग १७६ दले ८८ पदगुणिते ८८ । ४ । अधस्तन प्रथमगुणहानिद्रयं स्यात् । इदं संदृष्टिनिमित्तं उपर्यधश्चतुर्भिः संगुण्य ८८ । ४ । ४ १० अष्टाशीतिं गुणकारचतुष्केन संगुण्य षोडशभिभित्वा १६ । २२ । ४ द्वाविशति द्विकेन भित्वा तेन चतुष्कं संगुण्य अष्टभिः षोडशके गुणिते एकादशगुणितयवमध्यवतुर्भागः स्वात् १२८ । ११ अतावति ऋणे ४ ४ १२८ । २ ४ Jain Education International -- रूपाधिकत्रिगुणगुणहानिगुणितयव मध्य चतुर्भाग: स्यात् १२८ | ४ | ३ | अधो ४ प्रमाण आता है । सो ऊपरकी गुणहानि पाँच में से एक घटानेपर चार रहे। चार जगह दोके अंक रखकर २×२×२४२ परस्पर में गुणा करनेपर सोलह हुए । उसका भाग प्रथम गुण१५ हानिके द्रव्य चार सौ सोलह में देनेपर छब्बीस आये । यही अन्तिम गुणहानिका द्रव्य जानना । तथा नीचेकी गुणहानि तीन में से पहली गुणहानिमें यवमध्य में जो प्रमाण है उसमेंसे एक विशेष घटानेपर प्रथम निषेक होता है । सो यवमध्य एक सौ अठाईस में से विशेषका प्रमाण- सोलह घटानेपर एक सौ बारह रहे । यही आदि निषेकका प्रमाण है । इसमें एक-एक निषेक में एक-एक विशेष घटानेपर अन्तके निषेक में से एक कम गुणहानिका आयाम प्रमाण २० विशेष घटानेपर चौंसठ रहते हैं । सो मुख ६४, भूमि ११२ को जोड़नेपर एक सौ छिहत्तर १७६ हुए | उसका आधा अठासी ८८ को पद चारसे गुणा करनेपर तीन सौ बावन ३५२ हुए । यही नीचेकी प्रथम गुणहानिका सबै द्रव्य जानना । यत्रमध्य एक सौ अठाईस में ग्यारह से गुणा करके चारसे भाग देनेपर भी तीन सौ बावन होता है । ऊपरकी प्रथम गुणहानिके द्रव्य में यवमध्यको दूना करके चारसे भाग देनेपर जो आवे उतना ऋण जानना । सो यवमध्य एक सौ २५ अठाईसको दूना करके चारसे भाग देनेपर चौसठ आये। इसको ऊपरकी प्रथम गुणहानि के द्रव्य में से घटानेपर नीचे की प्रथम गुणहानिका द्रव्य होता है । तथा ऊपरकी गुणहानि के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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