Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
२५९
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मोहनीय आयु
मोहनीय
नाम
नाम
गोत्र
अन्त.
सब प्रकृतियोंका एक जीवके एक कालमें बन्धका प्रमाण
जीवके एक कालमें
०
० ० ।
० ० ० |वेदनीय
° ° ° ° दर्शनाव,
० ०
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०
०
०
०
२२।२१।२०।१९।१८ | ५/५५५६।५७।५८०२६
०
२८॥२९॥३०॥
३१।।
०
५६/५७/५८/५९
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०
५६.५७
०
२८।२९ २८।२९ २८।२९।३०
६०१६१ ६४/६५।६६
०
०
२८।२९
६३।६४
०
०
२२
ज्ञाना.५, द.९।६।४/ 2
२८।२९।३० | १ |५/ ७१।७२।७३ २३।२५।२६।२८ १ | ५/६७६९।७०।७२।७३ २९॥३०॥३२१
७४ २३।२५।२६।२८ गोत्र २९॥३०३१११ में एक
२६।२२।२१॥ १७।१३।९।५।
|३१
|
इसका आशय यह है कि एक जीवके एक कालमें ज्ञानावरणकी पाँच ही प्रकृतियोंका बन्ध होता है । दर्शनावरणकी नौका, छहका अथवा चारका बन्ध होता है। वेदनीयकी दोमें एकका ही बन्ध होता है। मोहनीयकी छब्बीसमें से बाइस या इक्कीस या सतरह या तेरह या नौ या पाँच चार दो और एकका बन्ध होता है। आयु चारमें से एक ही बंधती है। नामकर्मकी तेईस या पच्चीस या छब्बीस या अठाईस या उनतीस या तीस या इकतीस या एक प्रकृतिका बन्ध होता है। गोत्र दोमें-से एक बँधता है। अन्तराय पाँचका ही बन्ध होता है।
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