Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे सरिसायामेणुवरि सेढिअसंखेज्जभागठाणाणि ।
चडिदेक्केक्कमपुव्वं फड्डयमिह जायदे चयदो ॥२३॥ सदृशायामेनोपरि श्रेण्यसंख्येयभागस्थानानि। चटित्वा एकैकमपूर्व स्पखंकमिह जायते चयतः॥
वृद्धिप्रमाणमायामः । इति प्राक्तनप्रतिपदं। सदृशायामेनोपरि सर्वजघन्ययोगस्थानायामव समानायामद मेले चयतः सूच्यंगुलासंख्यातेकभागमात्रजघन्यस्पद्धकंगळु सर्वजघन्यदनंतर द्वितीय स्थानं मोदल्गोंडु पेच्चुत्तं पेर्चुत्तं पोगियों देडयोळु जघन्यस्थानायामद मेळे पेच्चिद चयदिदमोंदु अपूर्वस्पद्धकं पुटुगुं। अनितु स्थानंगळं नडेदु पुटुगु दोडे अनुपातत्रैराशिकविवमा स्थानंगळ
साधिसल्पडुगु । प्र व वि । १६ । ४ । २।। स्था। १। इ। व । वि । १६ । ४ । ३ ना इनितिनि१० तविभागप्रतिच्छेदंगचियोंदु स्थानविकल्पं पुटुत्तं विरलागळिनितविभागंगळु पैच्चिदल्लिगेनितु
स्थानविकल्पंगळप्पुर्वेदितु त्रैराशिकम माडि बंद लब्धप्रमितं ९ना वि १६ । ४ अपवसित.
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व वि अ१६।४।२
___ तत्सर्वजघन्ययोगस्थानस्य समानायामस्योपरि उक्तप्रमाणचयेन एकमपूर्वस्पर्धकमुत्पद्यते । कति स्थानानि गत्वा गत्वा ? इति चेत् यद्येतावत्सु अविभागप्रतिच्छेदेषु प्र-व वि १६ ४२ वर्षितेषु एकस्थानं फ स्था १
तदैतावत्सु इ व वि १६ ४९ ना वधितेषु कति स्यानानि ? इति राशिकेन लब्धमात्राणि
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१५ भाग प्रमाण जघन्य स्पर्धक अधिक होते हैं। तीसरेसे चौथेमें, चौथेसे पाँचवेंमें, इसी प्रकार
सर्वोत्कृष्ट योगस्थान पर्यन्त एक-एक स्थानमें सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण जघन्य स्पर्धक बढ़ते-बढ़ते होते हैं। आगे छह अन्तर कहेंगे, उनको छोड़कर जघन्य स्थानसे उत्कृष्ट पर्यन्त जीवोंके योगस्थान होते हैं ।।२३०॥
___सबसे जघन्य योगस्थानके समान आयामके ऊपर पूर्वोक्त प्रमाण वृद्धिरूप चयके होनेपर एक-एक अपूर्व स्पर्धक उत्पन्न होता है। कितने-कितने स्थान जानेपर होता है ? इसके उत्तरमें त्रैराशिक करना चाहिए । सूच्यंगुलके असंख्यातवे भाग प्रमाण जघन्य स्पर्धकोंके जितने अविभाग प्रतिच्छेद हों उनके बढ़नेपर यदि एक स्थान होता है तो जघन्य स्थानके सब अविभाग प्रतिच्छेदोंके प्रमाणमें एक गुणहानि सम्बन्धी स्पर्धकोंकी संख्याको
नाना गुणहानिसे गणित उनकी अन्योन्याभ्यस्त राशिका भाग देनेपर जो प्रमाण हो उतने २५ जघन्य स्पर्धक बढ़नेपर कितने स्थान होंगे, ऐसा त्रैराशिक करनेपर लब्धराशिका प्रमाण
जगतश्रेणिका असंख्यातवाँ भाग आता है। इसी प्रकार इसके अनन्तर समान आयामको लिये द्वितीय स्थानसे लेकर, सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण जघन्य स्पर्धक एक स्थानमें १. अ इत्यपूर्वस्पर्धकं कथयति नायं भागहारः ।
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