Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
३६१ मज्झे जीवा बहुगा उभयत्थ विसेसहीणकमजुत्ता ।
हेट्ठिमगुणहाणिसलागादुवरि सलागा विसेसहिया ॥२४४॥ मध्ये जीवा बहुकाः उभयत्रविशेषहीनक्रमयुक्ताः। अधस्तनगुणहानिशलाकाया उपरि शलाका विशेषाधिकाः। जीवयवमध्यदोळु जीवंगळु बहुकंगळप्पुवु। अधस्तनोपरितनोभयत्र विशेष. होनक्रमयुक्तंगळ अधस्तनगुणहानिशलाकगळं नोडलुमुपरितनगुणहानिशलाकगळं विशेषाधिकंगळ- ५ प्पुवदेत दोडे :
दव्वतियं हे?वरिमदलवारा दुगुणमुभयमण्णोण्णं ।
जीवजवे चोइससयबावीसं होदि बत्तीसं ॥२४॥ द्रव्यत्रयमधस्तनोपरितनदलवारा द्विगुणमुभयमन्योन्यं । जीवयवे चतुर्दशशतद्वाविंशतिधर्भवति द्वात्रिंशत् ॥
चत्तारि तिण्णि कमसो पण अड अळं तदो य बत्तीसं ।
किंचूणतिगुणहाणिविभजिद दव्वे दु जवमझं ॥२४६।। चत्वारि श्रोणि क्रमशः पंचाष्टाष्टौ ततश्च द्वात्रिंशत् । किंचिदूनत्रिगुणहानिविभाजिते द्रव्ये तु यवमध्यम् ॥
द्वींद्रियपर्याप्त जीवपरिणामयोगजघन्यस्थानमिदु । प ७५ इदनपत्तिसिदोडिदु ।। १५ यिदर नंतरस्थानविकल्पमिदु २ इदु मोदलागि सवृद्धिस्थानंगळु संज्ञिपंचेद्रियपर्याप्तजीवपरिणाम
__ जीवयवमध्ये जीवा बहुकाः अध उपरि च विशेषहोनक्रमयुक्ताः अधस्तनगुणहानिशलाकाभ्यः उपरितनगुणहानिशलाका विशेषाधिकाः ॥२४४|| तद्यथा
जीवोंकी संख्याकी अपेक्षा यवाकार रचनामें मध्यमें जीव बहुत हैं। ऊपर और नीचे अनुक्रमसे विशेष हीन-हीन हैं । नीचेकी गुणहानि शलाकासे ऊपरकी गुणहानि शलाकाका .. प्रमाण कुछ अधिक है ॥२४४॥
विशेषार्थ-जैसे यव (जौका दाना) मध्य में मोटा होता है और ऊपर-नीचे क्रमसे घटता-घटता होता है। उसी प्रकार पर्याप्त त्रस सम्बन्धी परिणाम योगस्थानोंमें यवाकारमें जो मध्यका स्थान है उसमें जीव बहुत हैं अर्थात् उन योगस्थानोंके धारी जीव बहुत हैं। उस बीचके स्थानसे ऊपरके और नीचे के स्थानोंमें जीवोंका प्रमाण क्रमसे घटता हुआ है। अर्थात् . उन योगस्थानोंके धारक जीव क्रमसे घटते हुए हैं । इस तरह यह यवाकार रचना है ॥२४४॥ र
जीवोंकी संख्याकी यवाकार रचनामें प्रथम अंकसंदृष्टि से कथन करते हैं
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