Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१८३
त्रैराशिक माडि प्र । सा १ । को २ । फ । व १०० । इ । सा ७० । को २ | बंद लब्धं मिथ्यात्वप्रकृति उत्कृष्ट स्थितिगाबाधे सप्तसहस्रप्रमितमक्कु ७००० मी प्रकादिदं शेष चाळीसिय सीसिय वीसियादिगळगे स्थितिप्रतिभागदिदमाबाधेयवकुं । सण्णि असण्णि चउक्के एगे अंतोमुहुत्तमाबाहा
इत्यादि ॥
इत्यादि प्रसा २५ ।
=
२ फ १११ इ । सा २५४ लब्धमाबाधे २१ । २५
७
अनंतर मन्तः कोटोकोटिसागरोपम स्थितिगाबाधेयं पेदपरु :अंतोकोडा कोडिदिस्स अंतोमुहुत्तमाबाहा ।
संखेज्जगुणविहीणं सव्वजहण्णट्ठिदिस्स हवे || १५७॥
२
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२१ । २५ । ४
७
अन्तःकोटी कोटिस्थितेरन्तर्मुहूर्तमाबाधा । संख्यातगुणविहोना सर्व्वजघन्यस्थितेर्भवेत् ॥ अन्तःकोटोकोटिसागरोपमस्थितिगे आबाधेयन्तर्मुहूर्त्त मक्कुं । २१ । सर्व्वं जघन्य स्थितिगाबा
=
दं नोड संख्यातगुणहीनमक्कुं २१ प्र । मु १०८०००० । फ सा १ । को २ । इ । मु १ । १०
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कोटी कोटिसागरोपमस्य शतवर्षं तदा सप्ततिकोटीकोटिसागरोपमस्य किमिति ? त्रैराशिके कृते प्र-सा १ को २ । फ व १०० । इसा ७० को २ लब्धं मिथ्यात्वोत्कृष्टाबाधा सप्तसहस्री भवति ७००० । एवं शेषचालीसियती सियवीसियादीनामप्यानेतव्या । 'सण्णि असणचउक्के एगे अंतोमुहुत्तमाबाहा' इत्यादि प्र-सा २५ । फ २ २५४ लब्धा २ इत्यादि । अथान्तः कोटी कोटिसागरोपमस्याहง ง ง ง २१ । २५ । ७
७
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ๆ ๆ ๆ ๆ २ १ २५
अन्तःकोटी कोटिसागरोपमस्थितेराबाधा अन्तर्मुहूर्तो भवति २१ सर्वजघन्यस्थितेस्तु ततः संख्यात- १९ गुणहीना भवति २ १ प्र - १०,८०००० | फसा १ को २ । इमु १ लब्धस्थिति: ९, २५, ९२, ५९२ ।
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कोड़ाकोड़ी सागर स्थितिकी आबाधा कितनी होगी ? ऐसा त्रैराशिक करनेपर प्रमाण राशि एक कोड़ाकोड़ी सागर, फलराशि सौ वर्ष, इच्छाराशि सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर । सो फलराशि से इच्छाराशिको गुणा करके उसमें प्रमाणराशिका भाग देने पर लब्धराशिका प्रमाण सात हजार वर्ष आता है । वही मिध्यात्व प्रकृतिकी उत्कृष्ट आबाधा है। इसी प्रकार अपनी- २० अपनी स्थिति प्रमाण इच्छाराशि करनेपर अपने-अपने आबाधा कालका प्रमाण आता है । जिनकी स्थिति चालीस कोड़ाकोड़ी सागर है उनका आबाधा काल चार हजार वर्ष प्रमाण. है । जिनकी स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागर है उनकी आबाधा तीन हजार वर्ष है । इसी तरह अन्य भी प्रकृतियोंकी आबाधा जानना । 'सणि असण्णि चउक्के एगे अंतोमुहुत्तमाबाहा ।' सो इस गाथा के द्वारा दो-इन्द्रिय आदिके आबाबा कहो है उसे भी जान लेना ॥ १५६ ॥ आगे अन्तःकोटाकोटी सागर प्रमाण स्थितिकी आबाधा कहते हैं
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अन्तःकोटाकोटी सागर प्रमाण स्थितिका आंबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । और सब कर्मोंकी जघन्यस्थितिकी आबाधा उससे संख्यातगुणा हीन है । सौ वर्षके दस लाख अस्सी हजार मुहूर्त होते हैं । सो इतनी आबाधा एक कोड़ाकोड़ी सागर की होती है, तो एक
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