Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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आबाधामपनीय प्रथमनिषेके ददाति बहुकं तु । ततो विशेषहीनं द्वितीयस्याद्यनिषेकपय्यंतं ॥ कर्म्मस्थितियोळाबाधेयं कळेवु प्रथमगुणहानि प्रथमनिषेकदोळु बहुद्रव्यमं कुडुगुं । तुम ५ ततो विशेषहीनं अल्लद मेलण द्वितीयनिषेकं मोदगोंड द्वितीयगुणहान्याद्य निषेकपर्यंतं विशेषहोनक्रर्मादिदं कुडुगुं ॥
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गो० कर्मकाण्डे
आबा बोलाविय पढमणिसेगम्मि देइ बहुगं तु । तत्तो विसेसहीणं विदियस्सादिमणि से गोति ॥ १६१॥
विदिये विदियणिसेगे हाणी पुव्विल्लहाणिअद्धं तु ।
एवं गुणहाणिं पडि हाणी अद्धद्धयं होदि ॥ १६२॥
द्वितीये द्वितीयनिषेके हानिः पूर्व्वहानेरद्धं तु । एवं गुणहानि प्रति हानिरर्द्धाद्धं भवति ॥ तुमत्ते द्वितीये द्वितीयगुणहानियोळ द्वितीयनिषेके द्वितीयनिषेकदोळ हानिः हानि पूर्वहानेर प्रथमगुणहानिय हानियं नोडलर्द्धयवकुमिन्तु गुणहानि प्रति गुणहानि। गुणहानिदप्पदे हानिः हानी अर्द्धाद्धं भवति अद्धर्द्धक्रममक्कुं । १ । २ । ४ । ८ । १६ । ३२ । द्रव्य ६३०० । गुणहानि ८ । नानागुणहानि ६ । स्थिति ४८ । अन्योन्याभ्यस्त राशि
कर्मस्थितावाबाधां त्यक्त्वा प्रथमगुणहानिप्रथमनिषेके बहुद्रव्यं ददाति । तु-पुनः तत उपरि द्वितीयादि१५ निषेकेषु द्वितीयगुणहानिप्रथमनिषेकपर्यन्तेषु विशेषहीन क्रमेण ददाति ॥ १६१ ॥
तु पुनः द्वितीयगुणहानी द्वितीयनिषेके हानिः पूर्वहानेर भवति । एवं गुणहानि गुणहानि प्रति
च १००
२००
४००
८००
१६००
| प्र ३२००
स्थिति में से आबाधाकाल नहीं घटाना क्योंकि आयुकर्मकी आबाधा तो जिस भवमें उसका बन्ध - किया उसी भव में पूर्ण हो गयी। पीछे जो जन्म धारण किया उसमें प्रथम समय से लगाकर अन्त समय पर्यन्त प्रतिसमय आयुकर्मके निषेक खिरते हैं। अतः आयुकर्मकी जितनी स्थिति होती है उसके समयोंका जितना प्रमाण होता है उतने ही आयुकर्मके निषेक होते हैं ॥ १६० ॥
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सो आबाधाकालको छोड़कर, क्योंकि आबाधाकालमें तो कोई परमाणु खिरता नहीं, अतः उसके अनन्तर समयमें अर्थात् प्रथम गुणहानि के प्रथम निषेकमें अन्य निषेकोंसे बहुत द्रव्य देना चाहिए। उसमें बहुत परमाणु खिरते हैं । तथा प्रथम गुणहानिके द्वितीय आदि निषेकों में द्वितीय गुणहानिके प्रथम निषेक पर्यन्त एक-एक चयहीन द्रव्य देना चाहिए || १६१ ॥
तथा दूसरी गुणहानिके दूसरे निषेकमें प्रथम निषेकसे पहले प्रत्येक निषेकमें जितना घटाया था उससे आधा घटानेपर जो प्रमाण रहे उतना द्रव्य देना चाहिए । इसी प्रकार तीसरे आदि निषेकोंमें तीसरी गुणहानिके प्रथम निषेक पर्यन्त इतना - इतना ही घटाना
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