Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१४९
सिदोडिनु २ सा १ अपत्तितमिदु प इदरोळेकरूपं कळेदु प. उत्कृष्टस्थितियोळकळेदोडे त्रीद्रियजीव मिथ्यात्वप्रकृतिर्ग कटुव जघन्यस्थितिबंधप्रमाणमक्कु सा ५० ई जघन्यस्थिति
११२१ १
यनुत्कृष्टस्थितियोळकळदेकरूपं कूडिदोडिदु प त्रोंद्रियजीवंगे मिथ्यात्वप्रकृति सर्वस्थितिबंध
१११
।१००
विकल्पंगळप्पुवु । चतुरिंद्रिय जीवंगे मिथ्यात्वप्रकृतिस्थित्युत्कृष्टाबाधेयिदु ११ ई संख्यातद्वितयभक्तावल्यभ्यधिकशतांतम्र्मुहूर्तप्रमाणविंदमुत्कृष्टस्थितियं भागिसिदोर्ड स्थित्याबाधाकांडक- ५ प्रमाणमक्कु सा १०० अपत्तितमिदु सा १ इदनाबाधाविकल्पंगलिंदं गुणिसिदोडिदु सा १ ' २१ । १०० २१
२१ । ११ अपत्तितमिदु प इदरोळेकरूपं कळदुत्कृष्टस्थितियोळकळेदोर्ड सा १००\ इदु चतुरिंद्रियजीवं
ऊना उत्कृष्टस्थितिः तस्य त्रीन्द्रियस्य मिथ्यात्वजघन्यस्थितिर्भवति सा ५० तां च उत्कृष्टस्थिती अपनीय
रूपे निक्षिप्ते मिथ्यात्वसर्वस्थितिबन्धविकल्पा भवन्ति
। चतुरिन्द्रियस्य मिथ्यात्वोत्कृष्टाबाधया २
संख्यातद्वयभक्तावल्यधिकशतांतर्मुहूर्तया भक्ता उत्कृष्टस्थितिः आबाधाकाण्डकं भवति सा १०० तेन अप- १०
२११००
वतितेन सा आबाधाविकल्पगुणितेन २
अपवर्त्य प
रूपोनेनोत्कृष्टस्थितिस्तस्य मिथ्यात्वस्य
२१११
जो प्रमाण हो उसमें एक घटाकर उसे उत्कृष्ट स्थिति पचास सागरमें-से घटानेपर त्रीन्द्रियके मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति होती है। इस जघन्य स्थितिको उत्कृष्ट स्थिति में घटाकर शेषमें एक जोड़नेपर तेइन्द्रियके मिथ्यात्वको स्थितिके सब भेदोंका प्रमाण होता है। चतुरिन्द्रिय जीवके दो बार संख्यातसे भाजित आवली अधिक सौ अन्तर्मुहूते प्रमाण मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट १५ १. तिमिथ्यात्व ज।
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