Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१५३ सा \ ३ सा ४० को २ बंद लब्धमिवु सा १ ४ एकद्रियजीवं चाळीसियंगल्गेकटुव
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जघन्यस्थितिबंधप्रमाणमक्कं । मत्तमंते प्रसा ७० को २। फज सा १।२। इसा ३० को २ बंद
लब्धमेकेंद्रियजीवं तीसियंगळ्गे कटुव जघन्यस्थितिबंधप्रमाणमक्कु सा१।। ३ मत्तमन्ते प्र।
सा ७० को २ फ। ज सा १। इसा २० । को २। बंधलब्धमेक द्रियजीवं वोसियंगळगे कटुव
जघन्यस्थितिबंधप्रमाणमक्कुं सा१।।२ द्वौद्रियादिगळ्गेयुमी प्रकारविदं चाळीसिय ५
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तोसिय वीसियंगळ जघन्यस्थितियननुपातत्रैराशिकदि साधिसिदपरदेंतेंदोडे सप्ततिकोटीकोटिसागफ-ज । सा | इ-सा ४० को २ । लब्धं सा १ ।। ४ सस्य चालीसियानां जघन्यस्थितिबन्धप्रमाणं
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a भवति । तथा प्र७० को २ फज सा १
इ सा ३० को २ लब्धं तस्य तोसियानां जघन्यस्थिति
बन्धप्रमाणं भवति सा १ ।। ३ पुनस्तथा प्र-सा ७० को २ । फज सा १\ इसा २० को २ लब्धं
कोडाकोडी सागरकी स्थितिवाले कर्मकी जघन्य स्थिति कितनी बाँधेगा। सो प्रमाणराशि सत्तर कोडाकोड़ी सागर, फलराशि एकेन्द्रियके मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका प्रमाण, इच्छाराशि चालीस कोड़ाकोड़ी सागर । फलराशिसे इच्छाराशिको गुणा करके प्रमाणराशिसे भाग देनेपर लब्ध प्रमाण जघन्य स्थितिबन्धका प्रमाण होता है। इसी तरह जिस कर्मकी तीस कोड़ाकोड़ी सागर और बोस कोडाकोड़ी सागरकी उत्कृष्ट स्थिति है उसका जघन्य स्थिति बन्ध एकेन्द्रिय जीव कितना करता है। यहाँ भी प्रमाण राशि सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर, १ फलराशि एकेन्द्रियके मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति, इच्छाराशि तीस कोड़ाकोड़ी सागर या बीस कोड़ाकोड़ी सागर । सो फलराशिसे इच्छाराशिको गुणा करके उसमें प्रमाणराशिसे भाग
क-२०
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