Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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चम्पा नगरी में पहुँचने पर उन्होंने बहुमूल्य कुण्डल युगल वहां के गजा चन्द्रच्छाय को भेंट किये । अंगराज चन्द्रच्छाय ने भेंट को स्वीकार कर अर्हन्नकादि श्रावकों से पूछा-तुम लोग अनेकानेक ग्राम नगरों में घूमते हो । बार बार लवण समुद्र की यात्रा भी करते हो । बताओ ऐसा कोई आश्चर्य है जिसे तुमने पहलीबार देखा हो ?
____ अर्हन्नक श्रमणोपासक बोला "स्वामी ! इस बार हम लोग व्यापारार्थ मिथिला नगरी गये थे । वहां हम लोगों ने कुम्भराजां को दिव्य कुण्डल युगल की भेंट दी । महाराजा कुम्भ ने अपनी सुपुत्री मल्ली
लाकर वे दिव्यकुण्डल उसे पहना दिये । मल्लीकुमारी को हमने वहां एक आश्चर्य के रूप में देखा । विदेह की श्रेष्ठ कन्या मल्लीकुमरी का जैसा रूप और लावण्य है वैमा रूप देवकन्याओं को भी प्राप्त नहीं है। महाराजा चन्द्रच्छाय ने अरहन्नकादि व्यापारियों का सत्कार सम्मान कर उन्हें विदा कर दिया।
ब्यापारियों के मुख से मल्ली कुमारी के रूप एवं सौंदर्य की प्रशंसा सुन कर महाराजा चन्द्रच्छाय उस पर अनुरक्त हो गये । दूत को बुलाकर कहा तुम मिथिला नगरी जाओ और वहां के महाराजा कुंभ से मल्ली कुमारी को मेरी भार्या के रूप में याचना करो । महाराज का सन्देश लेकर दूत मिथिला पहुँचा ।
उस समय कुनाल जनपद की राजधानी श्राववस्ती थी । वहां रुक्मि नाम के राजा राज्य करते थे । उसकी रानी का नाम धारिणी था । उसके रूप और लावण्य में अद्वितीय सुबाह नाम की एक कन्या थी । उसके हाथ पैर अत्यन्त कोमल थे, एक बार सुबाहु कुमारी का चातुर्मासिक स्नान का उत्सव आया इस अवसर पर महाराज के सेवकों ने पांचवों के पुष्पों का एक विशाल मण्डप बनाया और उस मण्डप में श्रीदामकाण्ड लटकाएं । नगरी के चतुर सुवर्णकारों ने पांचरंग के चावलों से नगरी का चित्र बनाया । उस चित्र के मध्य भाग में एक पद- बाजोट स्थापित किया । ___महाराज रुक्मि ने स्नान किया और सुन्दर वस्त्राभूषण पहने और अपनी पुत्री सुबाहु के साथ गंधहस्ति पर बैठे । कोरंट पुष्प की माला और छत्र को धारण किये हुए चतुरंगी सेना के साथ राजमार्ग से होते हुए वे मण्डप में पहुंचे । गन्धहस्ति से नीचे उतरकर पूर्वाभिमूख हो उत्तम आसन पर आसीन हुए । उसके बाद राजकुमारी को पट्ट पर बैठाकर श्वेत और पीत चान्दी और स्वर्ण के कलशों से उसका अभिषेक किया । और उसे सुन्दर वस्त्रालंकारों से विभूषित किया । फिर उसे पिता के चरणों में प्रणाम करने के लिए लाया गया ।
सुबाहुकुमारी पिता के पास आई और उन्हें प्रणाम कर उनकी गोद में बैठ गई । गोद में बैठी हुई पुत्री का लावण्य देख कर महाराज बडे विस्मित हुए । उसी समय महाराजा ने “वर्षधर को बुलाकर पूछा-“वर्षधर ! तुम मेरे दौत्य कार्य के लिए अनेक नगरों में और राजमहलों में जाते हो । तुमने कही भी किसी राजा महाराजा सेठ साहूकारों के यहां ऐसा मज्जनक ( स्नानउत्सव ) पहले कभी देखा है, जैसा इस सुबाहुकुमारी का मज्जन महोत्सव है ? उत्तर में वर्षधर ने कहा
"स्वामी ! आपकी आज्ञा से में एक बार मिथिला नगरी गया था । यहां मैने कुम्भराजां की पुत्रो मल्लीकुमारी का स्नान महोत्सव देखा था । सुबाहुकुमारी का यह मज्जन महोत्सव उस मज्जन महोत्सव के लाखवें अंश को भी नहीं पा सकता है। इतना ही नहीं मल्लीकमरी का जैसा रूप है वैसा स्वर्ग को अप्सरा का भी नहीं है । उसके सौन्दर्यरूपी दीप के सामने संसार की राजकुमारियाँ जुगनू जैसी लगती हैं ।
वर्षधर के मुख से मल्लीकुमारी की प्रशंसा सुनकर राजा उसकी ओर आकर्षित हो गया और राजकुमारीमल्ली की मंगनी के लिए अपना दूत कुम्भराजा के पास मिथिला भेज दिया ।
उस समय काशी नामके जनपद में वाराणसी नामकी नगरी थी । वहां शंग्व नाम का राजा राज्य करता था ।
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