Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 403
________________ ३७८ गोगुन्दे व बगडु दे का चातुर्मास - पूज्यश्री की सेवा में गोगुन्दे श्रीसंघ ने अपने यहां चातुर्मास बिराजने के लिए बहुतबार विनंती की । श्रीसंघ की अत्याग्रह भरी विनंती को मान देकर पूज्यश्री ने क्षेत्र खाली न रहनेका फरमाया था तदनुसार चातुर्मास पूर्व शेषकाल में पं. रत्न व्याख्याता मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराज को व घोरतपस्वोश्री मदनलालजी महाराज साहब को चातुर्मासार्थ गोगूदा आषाढ शुक्ला सप्तमी ता० २७-७-४२ के दिन भेज दिये गये । दो दो सन्तों के पधारने से गोगुंदावासी बडे प्रसन्न हुए । दोनों क्षेत्रों में धर्मध्यान की बाढ आने लगो म्यारूपान श्रवण करने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में जनता उपस्थित होती थी । बगड़ दे में ॐ शान्ति की प्रार्थना जब से गदे में पूज्यश्री का पदार्पण हुआ तबसे गांव के जैन अजैन समाज में ही नहीं अपितु आसपास के सभी क्षेत्रों में जैसेकि जोलोवा, भारोडी, जीराइ, मनाम मजावद कानाजीकागुदा व छोटे बड़े मावों में उत्साह छा गया । व्याख्यान श्रवण के लिए तथा पूज्यश्री के दर्शन के लिए सभी जाति और वर्ग के लोग बिना किसी भेद भाव के आने लगे । पूज्यश्री को चातुमासार्थ बिराजने के लिए श्रीमान देलवाडा रावजी साहब श्री खुमानसिंहजी ने अपनी कोठी खाली कर दी और तहसीलदार को यह आज्ञा दी कि सुविधानुसार बगइ दे श्रीसंघ को प्रत्येक कार्य में मदद दी जाय । पूज्यश्री चातुर्मास सरकारी कोठी में ही त्रिराजे । व्याख्यान के लिए बाजार के बीच एक विशाल मण्डप बनाया गया था । प्रतिदिन पूज्यश्री अपनी शिष्य मण्डली के साथ पाण्डाल में पधारते और हजारों लोगों को व्याख्यान सुनाते थे । पूज्यश्री के प्रवचन पियूष का पान करने के लिए जालोवा, जीराई मजावद, भारोडी, गडा, मजास, आदि आसपास के गावों के हजारों भ्यक्ति आते थे और व्याख्यान श्रवण कर आनन्द का अनुभव करते थे । पूज्यश्री के प्रवचन से प्रभावित होकर सभी गांव के निवासियों ने 'ॐ शान्ति की प्रार्थना का आयोजन किया । ता० २-८-४२ के दिन 'ॐ शान्ति' प्रार्थना की सूचना आस पास के गांववालों को पत्र पत्रिकाओं द्वारा दी गई । फलस्वरूप बीस गांव वालों ने उस दिन सभी प्रकार की आरंभ सारंभ की प्रवृत्तियां बन्द रखी। कसाई खाने बन्द रखे । शराब पीना उस दिन सर्वथा बन्द रखा गया शान्ति प्रार्थना के पुनीत अवसर पर सम्मिलित होने के लिए आस पास के सभी जाति और वर्ग के लोग हजारों की संख्या में आने लगे । सारा पाण्डाल लोगों से भर गया । स्थान न मिलने के कारण सैकडों लोगों को पान्डाल के बाहर खड़ा रहना पड़ा. दुपहर के बारह बजे पूज्यश्री ने ईश्वर स्मरण और अहिंसा विषय पर मार्मिक प्रवचन फरमाया । प्रिय बन्धुओं ! संसार में प्रत्येक व्यक्ति को प्रभु का स्मरण अवश्य करना चाहिए. केवल आपत्ति के समय ही प्रभु का स्मरण आवश्यक नहीं किन्तु सुख में भी प्रभु को विस्मृत नहीं करना चाहिए. एक प्राचीन कवि ने कहा है । दुःख में सुमिरण सब करे, सुख में करे न कोय | जो सुख में सुमिरण करे तो दुःख कहां से होय ॥ कवि के इस वाक्य से ही सुस्पष्ठ है कि मानव को ईश्वर का भजन सतत पवित्रता से करना चाहिए. ईश्वर भजन एक प्रकार का रसायण है. जो रसायण का सेवन करता है उसे पथ्य का भी पालन करना चाहिए, रसायण खाकर जो पश्य का पालन नहीं करता उसका परिणाम बडा भयंकर होता है. इसी प्रकार भगवान के जप रूपी रसायन का सेवन करते समय मानसिक पवित्रता रखना ही उसका पथ्य पालन करना है. मानसिक चिक कायिक एवं अहिंसा का पालन करने वाला व्यक्ति ही ईश्वर भजन से ईश्वर बन जाता है हिंसा के स्थान या हिंसा करने वाला प्रभु भक्त कभी नहीं हो सकता. क्यों कि हिंसा कर्म भयानकता का द्योतक है व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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