Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 431
________________ ४०४ सिहोर सोनगढ उमराला बोटाद होते हुए आप का राणपुर पधारना हुआ । राणपुर में भी पाखी और ॐ शान्ति प्रार्थना का आयोजन किया गया। वहाँ से चुडा पधारे यहां आप का दरबारगढ में प्रवचन हुआ। प्रवचन में दरबार एवं दिवान साहब उपस्थित हुए। ॐ शांत को प्रार्थना का आयोजन हुआ समस्त चूडा में पाखी पाली गई। यहां से आप लोंबडी पधारे इस बार आप लांबडी में स्थानकवासी जैन छात्रावास में बिराजे। छात्रावास के गृहपति मास्टर प्रेमचन्द भाई ने संतों की अच्छी सेवा की। उन दिनों लीम्बडी में पूज्य श्री आचार्य म. श्री गुलावचन्दजी म० सदानन्दी पं० श्री छोटालालजीम० पं० श्री लखमीचन्दजी महाराज आदि मुनिवर विराज रहे थे । सन्तों का यह स्नेह मिलन अपूर्व रहा। लिमडी संप्रदाय का संबन्ध पूर्व काल से वडिलो द्वारा उपार्जित संबन्ध को अभी भी अरस परस चन्द्र जैसा बढ़ता ही है ऐसा अनुभव हुवा । इस संप्रदाय के सर्व मुनिमंडल बड़ा उदार और पवित्र विचार धारा का है। शास्त्रोद्धार के कार्य में उपरोक्त मुनिराजों का अपूर्व सहयोग रहा । सन्तों का यह स्नेह मिलन संघ के लिए बडा आनन्द दायक रहा । वि. स. २००२ का चातुर्मास जोरावरनगर लीम्बडो से विहार कर पूज्य श्री बढवाण पधारे । वढवाण में पहले शहर में बाद में शहर के बहार छात्रावास में ठहरे। वढवाण शहर के तीनों उपाश्रय के श्री संघ ने पूज्य श्री को खूब प्रेमपूर्वक सेवा भक्ति की और नियमित रूप से व्याख्यान श्रवण किया । जोरावर नगर संघ की बड़ी इच्छा थी कि पूज्य श्री का इस वर्ष का यहां चातुर्मास हो । संघ ने मिटिंग की और पूज्यश्री का चोमासा अपने यहां करने का निर्णय किया तदनु सार श्री संघ पूज्य श्री की सेवा में आया और चातुर्मास की जोरदार विनंती करने लगा। महाराज श्री ने संघ की विनंती मान ली । आचार्य श्री की स्वीकृती से संघ में अत्यानन्द छागया । पूज्यश्रीकुछ समय तक वढवाण शहर में बिराज कर सुरेन्द्रनगर पधारे सुरेन्द्रनगर में थोड़े समयतक बिराजे। तदनन्तर पूज्य श्री ने अपनो शिष्य मण्डली के साथ सुरेन्द्रनगर से विहार कर दिया और वढवाण शहेर पधारे । वर्द्धमान संघ ने पूज्य श्री का भावभीना स्वागत किया । यहां से आप चातुर्मासार्थ जोरावरनगर पधारे । तपस्वो श्री मदनलालजी महाराज ने एवं तपस्वी श्री मांगीलालजी महाराज ने चातुर्मास के पूर्व ही तप प्रारंभ करदिया। सुरेन्द्रनगर जोरावरनगर और वढवाण सिटी तीनों शहरों को दो तीन माइल का ही फासला था। अतः तीनों नगर निवासी पूज्य श्री के पवित्र दर्शन के लिए एवं व्याख्यान श्रवण के लिए प्रति दिन बडी संख्या में आने लगे। दो दो तपस्वियों की दीर्घ तपश्चर्या सौराष्ट्र के सारे झालावाड प्रान्त के लिए आकर्षण का केन्द्र बन जाने से जोरावरनगर तीर्थ भूमि सा बन गया था। श्रावक श्राविकाओं में धर्म की भावना बढ़ जाने से तपश्चर्या भी बहुत हुई। पर्युषण पर्व में सारी महाजन वाडी श्रोताओं से चिकार भर जाती थी। जोरावरनगर संघ ने अति उत्साह से पर्युषण पर्व मनाए। व्याख्यान सुनने का लाभ लेने के लिए सुरेन्द्रनगर तथा वढवाण से भी श्रावक श्राविका आते रहते थे। जोरावरनगर श्रीसंघ के मन्त्री श्री भाइचन्द अमूलखभाई के जमाई २५ वर्ष कि तरुण अवस्था में थे । बीमार होने से श्वसुरगृह में इलाज के लिए आए थे । वे पर्युषण प्रारभ के दिन ही इस असार संसार से सर्व लीला पूर्ण करके चल बसे । भाईचन्दभाई का घर उपाश्रय के सामने ही था । अपना २५ वर्ष को जमाई चल वसा और वह भी अपने घर पर ही और उधर महामंगल कारी पर्युषण पर्व का प्रारंभ दोनों बातें अपने आप में महत्व भरी थी । दोनों में से किसको पहले स्थान दिया जाय ? ईसका निर्णय संघ सेक्रेटरी श्री भाइचंद भाई को करना था। एक तरफ मोह के रक्षण की सांसारिक बात थी तो दूसरी तरफ मोह के स्थान पर निर्मोह भाव से धर्म रक्षण को आध्यात्मिक बात थी । श्रीभाई चन्द भाई ने निर्मोह भाव के धर्म रक्षण की बात ही पसन्द की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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