Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
४१४
श्रवण, ॐ शान्ति की प्रार्थना, प्रभावना सामायिक प्रतिक्रमण दया, पौषध आदि अनेक धर्म क्रियाएँ की । जेतलसर में धोराजी का श्रीसंघ पूज्यश्री के दर्शन के लिए आया और धोराजी पधारने का अतिआग्रह करने लगा । धोराजी संघ की प्रार्थना को स्वीकारकर पूज्यश्री धोराजी पधारे । धोराजी में लींबडी का संघ और गोंडल का संघ इस प्रकार यहाँ दो संघ हैं। दोनों संघों ने पूज्य श्री की बडी सेवा की। नियमित व्याख्यान श्रवण करते रहें । यहां के संघ के धर्मप्रेमी श्री प्रभाशंकरभाई बखाई जीवनभाई प्रभुदासभाई वालजीभाई वलभदासभाई, प्रेमचन्दभाई, हरिभाईकामदार, दलपतभाई कामदार माणेकचन्दभाई खाटलीवाले, वकिल शान्तिभाई, दलिचन्दभाई, बाबुलालभाई सेठ आदि दोनो संघ के अग्रणी श्रावकों ने धार्मिक कार्यो में बडा सहयोग अच्छा दिया । यहाँ के मुस्लिमभाई बडे धनवान है । सेठ शाहिगरा सेठ तेली हाजीमहमद सेठभाडल्या आदि बडे सज्जन है। परदेश में इनका व्यापार चलता है । पूज्य श्री का सर्वधर्म समभाव के प्रवचन से ये लोग बडे प्रभावित हुए ।
महाराज श्री ने विश्वशान्ति के लिए ॐ शान्ति को प्रार्थना का उपदेश दिया । संघ ने उसे आदर पर्वक स्वीकार किया। समस्त गांव में इस विषयक पत्र पत्रिका छपवाकर वितरण करवादि । बाजार के बीच विशाल पाण्डाल बनाया गया। उसदिन समस्त धोराजो में अगता रखा गया। सभी कसाई खाने बन्द रखे गये । गाँव के जैन अजैन सभी भाईयों ने दुकाने बन्द रखी । सभामें हजारों भाई बहनों ने सम्मिलित होकर ॐशांति प्रार्थना की । प्रथम पंडित रत्न मुनि श्रीकन्हैयालालजी म. का बाद में पूज्य आचार्य श्री का विशाल जनसमूदाय के बीच प्रार्थना के महत्व पर प्रवचन हुआ। आस पास के सैकडों गाव वाले भी उस अवसर पर धोराजी में उपस्थित हुए । धोराजी के लिये यह दिन ऐतिहाँसिक दिन था। उल्लास कौर आनन्द का सर्वत्र वातावरण था । लोगों ने उस दिन यथाशक्ति प्रत्याख्यान किये । शेषकाल में चातर्मास जैसा दृश्य नजर आता था । महाराज श्री ने प्रार्थना प्रवचन में कहा-"प्रार्थना का प्रभाव और प्रताप अगम्य
अवर्णनीय है । वोणी के द्वारा इसका महात्म्य प्रगट नहीं किया जा सकता । शारीरिक, पारिवारिक आर्थिक, बौद्धिक एवं आत्मिक क्षेत्र में प्रार्थनो का बड़ा महत्व पूर्ण स्थान है । प्रार्थना से सर्व प्रकार की अशुद्धियों का नाश होता है । शरीर और इन्द्रियों के सर्व विकार दूर हो जाते हैं। प्रार्थना से मानव का जीवन अलौकिक बन जाता है । प्रार्थना से भगवान भी प्रसन्न हो जाते हैं तो सामान्य मनुष्य की बात ही क्या है । इस प्रकार डेढ घंटे तक पूज्यश्री ने अपनी अमृतरूप वाणी का जनता को पान कराया । बारह से आगन्तुक दर्शनार्थियों के आतिथ्य सत्कार आदि को सुन्दर व्यवस्था स्थानीय विभिन्न सज्जनों की तरफ से थी। धोराजी संघ के लिए यह अपूर्व अवसर था । संघ ने इस महत्वपूर्ण आयोजन से अपनी धर्म भावना का अपूर्व परिचय दिया । उस समय आगामी चातुर्मास अपने यहां करने की पूज्य श्री से विनंती की। श्रीसंघ का विशेष आग्रह और महान उपकार देख धोराजी संघ की आग्रह भरी विनंती को स्वीकार कर ली । चातर्मास की स्वीकृति से श्रीसंघ में अपूर्व आनन्द छा गया । वहाँ शेषकाल बिराजकर आपने अन्यत्र विहार कर दिया ।। वि. सं. २००८ का ५० पचासवाँ चातुर्मास धोराजी में
सौराष्ट्र के गांवों नगरों को पावन करते हुए पूज्य श्री चातुर्मासार्थ धोराजी पधार गये । स्थानीय जनता ने आपका बडा भव्य स्वागत किया । इस क्षेत्रमें समय समय पर अनेक सन्तो व सतियों के चावी होते ही रहते हैं । निरंतर संत सतियों की चरण रज से पवित्र होने के कारण यहां के लोगों में
ओर विशेष रुचि है । चातुर्मास के अवसर पर तपस्वीजी श्री मदनलालजी महाराज ने 2० मिनी तपश्चर्या की । यहाँ पर लिंबडी संप्रदाय के स्थविर त्यागी शास्त्रज्ञ पू०. श्री धनजी स्वामी तथा पी श्यामजी स्वामी का पधारना हुआ । आप श्री का बडा स्नेह भाव रहा । गोंडल सम्प्रदाय की मार
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org