Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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इस दिन शहर के तमाम कसाई खाने बन्द रखे गये । हिन्दू मुसलमान, सभी भाईयों ने भी अपनी अपनी दुकाने बन्द रख कर तपस्वीजी के प्रति अपनी अपूर्व श्रद्धा व्यक्त की। तपस्वीजी म० के पारने के दिन विशाल मैदान में ॐ शान्ति की प्रार्थना हुई । पूज्यश्रीने हजारों भाई बहनों को प्रार्थना तथा तप का महात्म्य समझाया । बाहर से सैकडों व्यक्ति दर्शनार्थ आये । संघ ने उनकी भोजनादि की उचित व्यवस्था की । समारोह बड़ी सफलता के साथ समाप्त हुआ । इसके बाद शास्त्रोद्वार समिति की जनरल मिटिंग हुई । अब तक की प्रगति का अवलोकन कर आगामी वर्ष की प्रगति की ओर कदम बढाया ।
सब तरह से यह चातुर्मास उपलेटा संघ के लिए चिरस्मरणीय बन गया । पूज्यश्री चातुर्मास के काल में नियमित रूप से शास्त्र लेखन का कार्य करते रहे । चातुर्मास की समाप्ति का समय निकट आया । चातुर्मास के बिहार के समय अपने अपने क्षेत्रों में पधारने की श्रावक संघ की बिनन्तियां आने लगी । सानन्द और सफल चातुर्मास कर पूज्यश्री ने अन्यत्र विहार कर दिया ।
उपलेटा का चातुर्मास समाप्तकर आप कोलकी गाँव में पधारे। यहां जैनों के केवल छ ही घर है लेकिन सभी लोग बड़े धर्म के श्रद्धालु हैं । यहाँ पटेलों के बहुत घर हैं । उनमें रामजी भाई गोविन्दभाई वि. प्रमुख है । आप धनिक होते हुए भी धार्मिक वृत्ति के व्यक्ति हैं । आपने जब पूज्यश्री का प्रवचन सुना तो जैनधर्म के प्रति विशेष श्रद्धाशील बने । प्रतिदिन नियमित रूप से प्रवचन सुनते रहें । आपके कारण अन्य पटेल भाइयों ने भी आचार्यश्री का प्रवचन सुनकर अपनी जैनधर्म के प्रति असीम श्रद्धा व्यक्त की। यहां के पटेलों ने पूज्यश्री के शास्त्रोद्धार कार्य देखा तो बडे प्रभावित हुए ओर शास्त्रोद्धार समिति के मेंबर बन गये । महाराजश्री के प्रवचन से यहां त्याग प्रत्याख्यान खूब हुए । यहां से आप विहार कर खाखीजालिया पधारे । यहां जैन समाज के आठ ही घर है किन्तु लोगों की धार्मिक भावना अपूर्व है । सेठ मोतीचन्दभाई, गीरधरभाई, अभीचन्दभाई, गुलाबचन्दभाई, मणीभाई, शोभाग्यचन्दभाई शांतिलालभाई हिम्मतभाई, बांटविया कुटुम्ब के एक ही परिवार के सज्जन हैं । उन्होंने पूज्यश्री की बड़ी सेवा की । यहां पूज्यश्री के प्रवचन खाखीजी के मठ में हुआ । यहां के संघ ने इतनी सेवा की कि चातुर्मास की याद दिलाता था । श्रीमान् गीरधरभाई का साहित्य प्रेम सराहनीय है । शास्त्रोद्धार के कार्य में आपने तन मन धन से सेवा की । अभीचन्दभाई तथा व्रजकुंवर बेन तो त्याग की मूर्ति ही है । आपने अपने पुत्र पुत्रियों को धार्मिक संस्कारों से ओतप्रोत कर दिया । आपके तीन पुत्र और एक पुत्री है। तीनों पुत्र बेंगलोर में रहकर भ्याय से अपना व्यवसाय चला रहे हैं । इकलौती पुत्री वैराग्यवती कुमारी इन्दुबेन ने भागवती दीक्षा ग्रहण कर मोक्ष का निरापद मार्ग अपनाया । आप लोगों की पूज्यश्री के प्रति असोम श्रद्धा है आप अच्छा दान करते हैं। पूज्यश्री का जीवन चरित्र आपकी तरफ से लिखवाया गया एवं छापवाया गया ।
यहां शेषकाल बिराजकर पूज्यश्री ने अपनी सन्तमण्डली के साथ विहार कर दिया। आप भायावदर पधारे। संघ ने आपके सत्संग का अच्छा लाभ लिया । यहां से विहार कर पानेली मोटी पधारे । वहां से आप धाफा पधारे। यहां भी समयानुकल अच्छा उपकार हआ। यहां से विहार कर-आप जामजोधपुर पधारे। स्थानीय संघ ने आपका भव्य स्वागत किया । पूज्यश्री के अनन्यभक्त एवं शास्त्रोद्धार समिति के उपप्रमुख समाज के कार्यकर्ता श्री मान सेठ पोपटलाल मावजी भाइ ने बड़ी सेवा की। यहां के नगर सेठ श्री प्राणलालभाई गोरधनभाई दलपतभाई पोपटलालप्रेमचन्दभाई माणेकचन्दभाई आदि स्थानीय संघ ने भी अपूर्व उत्साह बताया । यहां शेषकाल बिराजकर आप भाणवड पधारे । भाणवड के श्रीमान सेठ हरखचन्दजी वारिया बडे शास्त्रज्ञ मर्मज्ञ एवं धर्मश्रद्धालु व्यक्ति थे । आपने पूज्यश्री के शास्त्रोद्धार के कार्य का सूक्ष्मता से नीरीक्षण किया । और खूब विचार किया । तीन दिन तक बराबर पूज्यश्री के द्वारा लिखाये जानेवाले आगमो कों पढ़े। और बड़े प्रभावित हुए । उस समय जामजोधपुर के प्रमुख श्रावक एवं अपने वैवाहि श्री पोपटभाई
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