Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 448
________________ को बुलाये । और बोले-पोपटभाई । पूज्य श्री घासीलालजी महाराज जो शास्त्र लेखन का कार्य कर रहे हैं वह कार्य अपर्व है। मैं इस कार्य में अपना पर्ण सहयोग देना चाहता है। सेठ श्रीहरखचन्द भाई वारिया को पज्यों के आगम कार्य से प्रभावित देखकर सेठ श्री पोपटलाल भाई ने शास्त्रोद्धार की विस्तृत रूप रेखा समझाई । तो श्रीहरखचन्दभाई पुनः बोले -मैं इस पुनीतकार्य में ५०००) पाच हजार रुपया देना चाहता हूँ । पोपटलाल भाई ने उनका हार्दिक अनुमोदन किया । सेठ हरकचन्दभाई को शास्त्रोद्धार के कार्य में इतनी बड़ी रकम देते देख कर यहां के नगर सेठ सोमचन्दभाई श्री जयचन्दभाई माणेकचन्दभाई संघवी ने भी इस पनीतकार्य में अपना सहयोग देना निश्चित किया । ये सभी शास्त्रोद्धार समिति के मेम्बर बन गये । महाराजश्री शेषकाल बिराजकर विहार की तैयारी में ही थे कि श्रीमान् सेठ हरखचन्दभाई वारिया का हृदयगति के बन्द पड़ जाने से अचानक स्वर्गवास हो गया । परिवार पर तथा समस्त संघ पर उनके इस अचानक निधन से वज्रपात जैसा दुःख आ पड़ा । श्रीमान् हरखचन्दभाई अत्यन्त दयालु प्रकृति के व्यक्ति थे । आपके निधन से सभी को बड़ा दुःख हुआ। आपके निधन के बाद शास्त्रोद्धार समिति की प्रगति में श्री हरखचन्द भाई वारिया की धर्मपत्नी श्री मणीबेन ने तथा उनके सुपुत्र श्रीमान् लालचन्दभाई वारिया जेचन्दभाई वारिया नगीनभाई आदि पुत्रों ने पूरा सहयोग दिया । और पिता की हार्दिक इच्छा को पूरी की । ___यहां से बिहार कर पूज्यश्री पोरबन्दर पधारे । पोरबन्दर एक बड़ा आदर्श नगर है । समुद्र के किनारे बसा हुआ होने से बड़ा सुन्दर लगता है। यहां के संघ को धार्मिक लगन बड़ी सराहनीय है । पूज्यश्री की संघ ने बड़े मनोयोग से सेवा की। पूज्यश्री के शास्त्रोद्धार के मर्म को समझा और इस पुनीत कार्य में तन, मन, धन से सहयोग प्रदान किया। कुछ दिन तक पोरबन्दर में विराजने के बाद पूज्यश्री ने अगामी चातुर्मासार्थ मांगरोल की ओर बिहार किया। रास्ते में पूज्यश्री को मांगरोल पहुँचने तक बड़ा हि कष्ट का अनुभव करना पड़ा क्योंकि रास्ते में ओजत और भादर ये दो बड़ी नदियां आती है । ये दोनों नदियाँ समुद्र में आ के मिलती है। इन दो नदियों के व समुद्र के बीच रेती का एक विशाल टीला है। इन टीलों पर से ही न्यक्तियों को आने जाने का मार्ग होता है । एक तरफ समुद्र और दूसरी तरफ विशाल काय नदियां जलभण्डार लिये खडी है । जब समुद्र में नदियां आकर मिलती है तब मार्ग बन्द हो जाता है । ईस प्रदेश में मीठा पानी बहुत कम मिलता है । पूज्यश्री भूख और तृषा के कष्ट को सहन करते हुए तथा मार्ग में आनेवाले गांवों में धार्मिक प्रचार करते हुए चातुर्मास मांगरोल पधारे। संघ ने आपका भव्य स्वागत किया । वि० सं० २०१० का ५२ वां चातुर्मास मांगरोल में पूज्यश्री के पधारने से संघ में धार्मिक उत्साह वढा । सैकडों व्यक्ति प्रतिदिन प्रवचन सुनने के लिए व्याख्यान हॉल में उपस्थित होने लगे। प्रतिवर्ष के अनुसार तपस्वीजी श्री मदनलालजी महाराज ने तथा तपस्वीजी श्री मांगीलालजी महाराज ने आत्म लक्षे धोवनपानी के अगार से लम्बी तपश्चर्या प्रारम्भ की । तपश्चर्या की पूर्णाहुति के दिन आस पास के गांव वाले बड़ी संख्या में तपस्वीजी के दर्शन के लिए आये । ईस अवसर पर समस्त गांववालों ने अपना कारोबार बन्द रखा । गांव के कसाई खाने बंद रहै। जोव दया का प्रचार भी अपेक्षाकृत बहुत अधिक हुआ स्थानीय संघ ने इस अवसर पर एकता एवं सेवा भाव का जो परिचय दिया वह सब के लिए प्रशंसनीय था । बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों की संघ ने अत्यन्त लगन पूर्वक सेवा की। उपाध्याय पं. रत्न श्री प्यारचन्दजी महाराज सा. के शिष्य मुनि श्री वर्धमानजी महाराज की यहाँ पुनर्दीक्षा हुई । सानन्द एवं सफल चातुर्मास समाप्त कर पूज्यश्री ने सन्त मण्डली के साथ विहार कर दिया। वेरावल संघ के अत्यन्त आग्रह से आप वेरावल पधारे । मार्ग में शारदाबाग और चोरवाड श्रोसंघ ने बडा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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