Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 463
________________ ४३२ संवत २०२२ का चातुर्मास सौराष्ट्र के पाटनगर राजकोट में करने के लिए पूज्यश्री बहुश्रुतजी महाराज जब सौराष्ट्र पधारले हुए अहमदाबाद पधारे तत्र पूज्यश्री घासीलालजी म० सा० तेले का पारणा करके श्री बहुश्रुतजी म० सा० के सामने बहुत दूर तक पधारे । दोनों महापुरुषों का जीवन में यह प्रथम मिलन था । जो अत्यन्त भव्य और दर्शनीय था । दोनों महापुरुष विनय की साकार मूर्ति बने हुए थे । विनयावनत दोनों महापुरुषों का यह प्रथम मिलन अपूर्व था और श्रद्धालु भक्तजनों के हृदय श्रद्धा और विनय का अपूर्व संचार कर रहा था। दोनों महापुरुषों के हृदय में वीतराग वाणी के प्रति दृढ श्रद्धा और अपूर्वनिष्ठा थी । " तहमेव सच्चं निसंकं ज जिणेहि पवेइयम्' । तथा, इणमेव णिग्गंथ पावयणं सच्चं अणुत्तरं " इत्यादि दृढ श्रद्धा का महामन्त्र दौनों महापुरुषों की रंग रंग में रम गया था। सौराष्ट्र से वापिस लौटते समय भी श्री बहुश्रुतजी म० सा० ने अहमदाबाद में फिर पूज्य आचार्य श्री के दुवारा दर्शन किये थे । इस प्रकार जीवन में इन दोनों महापुरुषों के मिलने का दो वार प्रसंग आया था । पूज्य आचार्य श्री का जन्म उदयपुर के निकट वणोल नामक छोटे से ग्राम में संवत १९४२ में हुआ था । और तरावली गड ( जसवंतगढ) में सम्वत १९५८ में श्रीमज्जवाहराचार्य के पास दीक्षा अंगीकार की थी । स्वर्गवास के समय आपकी उम्र करीब ८८ की थी इस प्रकार पूज्य आचार्य श्री वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध और संयमवृद्ध हो से महास्थविर थे | फिर भी अभिमान आप में नाममात्र भी नहीं था । आप बडे पुरुषार्थो और परिश्रमी थे । जब देखो तब आप पठन पाठन और लेखन में तल्लीन रहते थे । आप प्रत्येक पक्खी को तेले की तपस्या करते थे । आप श्रीका जीवन बडा सीधा सादा और बड़ा सरल था । मिलनसार प्रकृति थी । आपमें 1 गुणग्राहकता का विशिष्ठ गुण था । निन्दा विकथा से आप सदा दूर रहते थे । ज्ञानाभ्यास और आत्मसाधना ही मुख्य लक्ष्य था । श्री बहुश्रुतजी म० सा० के वियोग का आघात अभी ताजा ही था कि तुरन्त ही आपके वियोग का यह दूसरा आघात फिर लग गया। श्री बहुश्रुतजी म० सा० के स्वर्गवास के ठीक १७ दिन बाद आप स्वर्गवासी हो गये । समाज के आगमरसिक शुद्ध श्रद्धा सम्पन्न दो विद्वान मन्त महापुरुषों का वियोग अल्प काल में हो गया । यह समग्र जैन समाज में महान कमो पडी है । जिसकी पूर्ति होना निकट भविष्य में असम्भव है । दोनों महापुरुषों की आत्मा शीघ्र शाश्वत शान्ति और अव्याबाध सुखों को प्राप्ति के साथ अजर अमर पर को प्राप्त करें ऐसी शुभकामना है । I इन दोनों महापुरुषों द्वारा फैलाई हुई ज्ञान की किरणों को अपने हृदय में उतारकर तथा उनके बताये हुए मार्ग पर चलकर प्रत्येक व्यक्ति अपना आत्मकल्याण करें । यही महापुरुषों के प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगो । वे दोनों महापुरुष आज भौतिक शरीर से हमारे बोच में नहीं रहे हैं किन्तु उनका यशः शरीर कल्पान्त काल तक स्थायी रहेगा । प्रेशक:- भैरूलाल बी० हुण्डिया बालोतरा શ્રી તારાબાઇ મહાસતી ની પુજય વાવૃદ્ધક શાસ્ત્રજ્ઞ સતી રત્ન વિદુષી મહાસતીજી દવને શ્રદ્ધાંજલી, ધમપ્રેમી ભાગીભાઇ તથા સમસ્ત શ્રી સુધ સરસપુર. અમને પુજ્ય મહારાજ સાહેબનાની દનની તીવ્ર ઇચ્છા હોવા છતાં અમે પહેાંચી ન શકયા ન ન થયા તે અમારા કમનશીબ. શાન સમ્રાટ આગમ શિરામણી, જ્ઞાનમાનમાં અગ્રેસર, શાશનના મહારથી અમુમ રત્ન સમાન પુજ્ય મહારાજ સાહેબના ળ ના સમાયાર સાંભળતાં ક્લિને ત્રણું જ દુઃખ થયુ, જૈત શાશન તે એક તેજસ્તી સીતારા ખરી પડયા, સારાય સમાજને આ મહાન રત્ન જવાથી લાણ્યેા છે, જૈત રાજ્યનના તલ તુટી પડયો. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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