Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 456
________________ भव्य श्मशान यात्रा: ठीक १२-३० को हजारों कण्ठो से जय जय नन्दा जय जय भद्दा के गगनभेदि नारों से पालकी उठाई गई । भजन मण्डली और हजारों भक्त जनों के साथ पालकी सरसपूर जैनस्थानक से निकली और मुख्य रोड से होती हुई सरसपुर बाजार, कालुपुर के पुल पर से होकर साकरबाजार, मस्कतीमार्केट, रीलीफरोड़, घनासुधारकी पोल, टंकशाल की पोल कालुपुर पुल के नीचे से होकर माणकचौक, फुवारा, पानकोरनाका, रोगलटोकीज, कृष्ण सीनेमा, स्वामीनारायण मन्दिर, छीपापोल, लुणसावाड दिल्ली चकला, शाहपुरदरवाजा होकर शाहपुर के शान्ति नगर स्मशान गृह में पहुँची । सडक के रास्ते चौराहे के मकान गेलेरियों एवं ऊँचे स्थानों पर दर्शनार्थ हजारों जन समुदाय नजर आ रहा था । भक्त लोग मुठ्ठी भर भर कर अपने इस आध्यात्मिक नेता कि पालकी को ओर बदामें चावल रुपये पैसे उछाल रहे थे । तुमुल ध्वनि व जयनाद के बीच पालकी नीयत स्थान पर पहुँची । आचार्य श्री के देह को पालकी से निकाला गया । सामने मनोबंधकाष्ठ, चन्दन, हजारों नारियल, मेवा, और घी का ढेर था उस पर आचार्यश्री का देह रखा गया। देह पर चन्दन के काष्ठ चारों ओर चुन दिये गये । चिता में अग्नि प्रज्वलित की गई। बात ही बात में आचार्यश्री का वह तेज पुंज देह चिता में सदा के लिए विकीन हो गया । मुनिश्रेष्ठ इस असार संसार से वह देह से भी सदा के लिए चले गये । ४२५ स्मशान भूमि में पूज्यश्री के धर्मप्रतीक जैसे मुखवस्त्रिका, शास्त्र के पन्ने, चादर आदि की आजीवन ब्रह्मचर्य के व्रत की बोली से ली गई । स्मशान भूमि में अन्य भी त्याग प्रत्याख्यान बहुत बडी मात्रा में हुए । इस प्रसंग पर दिल्ली राजस्थान गुजराल सौराष्ट्र महाराष्ट्र से हजारों जनों ने पूज्य श्री के अन्तिम दर्शन कर अपने आपको धन्यता का अनुभव किया । पूज्य आचार्य श्री का पार्थिव देह आंखों से सदा के लिए ओल हो गया । जिस उद्देश्य के लिए जीवन का प्रारंभ किया था उसमें संपूर्ण सफलता प्राप्त कर महाप्रयाण की ओर चल पडे । सभी की आंखो में श्रावण मास की तरह अश्रू की झंडियां लगी हुई थी । सचमुच सामान्य जन का भी वियोग अखरने लगता है तो फिर परोपकारी महान दयालु सन्त के विछोह से कोन पाषाण हृदय न पसीजेगा । शोक की सीमा होती । किसी की मृत्यु के बाद केवल सिर पर हाथ रखकर अश्रु बहाते रहने से कुछ नहीं होता । इसलिए किसी की मृत्यु के बाद उसके द्वारा प्रारंभ किये हुवे आदर्श कार्य की रक्षा करना ही उनकी आत्मशान्ति का सब से श्रेष्ट उपाय है । ऐसा करके ही अनुयायी वर्ग अपने गुरुवर के ऋण से उऋण हो सकता है। पूज्यश्री के गुणों का स्मरण करते हुए एवं उनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चलने से ही हमारा श्रेय निश्चित रूपेण होगा । श्रद्धाजली समर्पण व्यावर संघ का शोक प्रस्ताव श्री महावीर जैन नवयुवक संघ ब्यावर की यह शोकसभा जैनाचार्य शास्त्रज्ञ पं० पू० मुनि श्री १००८ श्री श्री घासीलालजी म० सा० के अहमदाबाद में हुए स्वर्गवास पर हार्दिक शोक प्रकट करती है । पं० मुनिश्री समाज की एक महान विभूति थे । आपका सारा जीवन शास्त्रों की अध्ययन व धार्मिक क्रियाओं में हि व्यतीत हुआ । आप सादगी क्षमा व त्याग की दिव्य मूर्ति थे । पं० मुनिश्री शान्त स्वभावी सरल हृदय व उच्चकोटि के सन्त थे जिसको पूर्ति निकट समय में होना असंभव है । यह शोक सभा पं० मुनिश्री के प्रति हार्दिक श्रद्धाञ्जली अर्पित करती हुई वीर प्रभु से यही प्रार्थना करती है कि दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करें । मंजी = स्था० महावीर जैन नवयुवक संघ ब्यावर ( राजस्थान ) ५४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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