Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 451
________________ ४२० आये। संघ ने उनकी समुचित व्यवस्था की । स्थानीय संघ ने जिन शासन की प्रभावना वढाने में अपूर्व योग दान दिया । चातुर्मास में प्रातः प्रार्थना उसके बाद व्याख्यान, मध्याह्न में रास चौपाई एवं सायंकाल में प्रतिक्रमण के बाद धार्मिक चर्चाएं इस प्रकार विविध साधन का क्रम चलता रहा ।। सानन्द और सफल चातुर्मास समाप्त कर पूज्य श्री ने नागनेश विहार कर दिया । आप सौराष्ट्र प्रांत के ग्राम नगरों को पावन करते हुए धंधुका पधारे। धंधुका का श्रावकसंघ बडा श्रद्धालु है । पूज्यश्री की यहां के संघने बडी भक्ति की। उस समय बरवाला संप्रदाय की व्याख्याता विदुषी महासतिजी श्री मोंघीबाई स्वामी विराज रही थी। उन्होंने पूज्यश्री की बडी सेवा की। पूज्यश्री के यहां प्रतिदिवस बाजार के बीच जाहिर प्रवचन होते थे। हजारों लोगों ने आप का प्रवचन सुना । व्याख्यान में प्रतिष्ठित नागरिक राज्य के अधिकारी भी उप स्थित होते थे। समयानुकुल धर्मध्यान अच्छा हुआ । बरवाला संघ विनंती के लिए आया योग्य समय जानकर पूज्यश्री ने विनंती मानकर बरवाला पधारे-यहां का श्री संघ बडा भाविक है, बरवाला संप्रदाय के मुनि श्री सोमचन्दजी महाराज तथा विदुषिमहासति श्रीमोंघीबाई बिराजमान थी। उन्होंने खूब ही स्नेह रखा, शास्त्र कार्य में अच्छा सहकार दिया वहां से फिर विहार कर वापिस धंधुका पधारे । धंधुका से विहार कर आप पाणेसणा होते हुए लिंबडी पधारे । लींबडी में कुछ दिन तक बिराजकर आप लखतर पधारे। वहां से ढांकी होते हुए आप वणी पधारे । विरमगांव निवासी जनता की यह कई वर्षो से इच्छा थी कि पूज्यश्री का चातुर्मास हमारे यहां हो। इसके लिए सदैव प्रयत्नशील रहते थे। पूज्यश्री के वणी पधारने के समाचार जब विरमगांव वालों को मिले तो यहाँ से श्रीमान वकील वाडीलालभाई सेठ माणेकचन्दभाई, श्री वाडीलालभाई मणीभाई, भगतभुदरभाई, नागरदासभाई, ईत्यादि बडी संख्या में चातुर्मास की विनंती करने के लिए पूज्य श्री की सेवा में वणी आये । और चातुर्मास की विनंती करने लगे । इनके आग्रह वश सं. २०१३ का चातुर्मास विरमगाम करने की स्वीकृति दे दी। सौराष्ट्र के मध्यवर्ती क्षेत्रों को पावन करते हुए आप चातुर्मासार्थ विरमगाम पधारे। पूज्य आचार्य श्री के आगमन से सारे नगर में प्रसन्नता छा गई । वि, सं. २००६ में पं. मुनी श्री कन्हैयालालजी म. सा. ने चातुर्मास किया था । उस समय विरमगाव में खूब धर्म प्रभावना हुई थी तभी से स्थानीय संघ की पूज्यश्री को चातुर्मास करवाने की तीव्र अभिलाषा थी। अब वह पूर्ण हुई । पूज्यश्री के प्रवचनों का जनता पर अच्छा प्रभाव पडा । वि. सं. २०१३ का ५५ वां चातुर्मास विरमगांव में ___ चातुर्मास काल में पूज्यश्री के नियमित प्रवचन होने लगे । प्रवचन में हिन्दू मुसलमान आदि सभी जाति और धर्म को मानने वाले उपस्थित होते थे । आप के प्रभावशाली प्रवचन से लोगों में खूब धार्मिक उत्साह बढा । प्रातः नियमित रूप से प्रार्थना होती थी। प्रार्थना में विशाल जन समूह उपस्थित होता था। प्रार्थना के नन्तर प्रथम पं. रत्न व्याख्याता मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराज का बाद में पूज्य आचार्य श्री का व्याख्यान होता था। व्याख्यान में आप प्रथम सूत्र का वाचन करते थे । व्याख्यान के अतिरिक्त पूज्यश्री अपना सारा समय शास्त्र लेखन की प्रवृत्ति में ही व्यतीत करते थे । चातुर्मास काल में तपस्वीजी श्री मदनलालजी म. सा. तथा तपस्वीजी श्री मांगीलालजी म. सा. ने ९०-९० दिन की लम्बी तपश्चर्या की। जिसकी पूर्णाहुति ता. २७-९-४९ के दिन हुई उस दिन समस्त विरमगाम के कसाई खाने बन्द रखे गये । विश्व शांति के लिए ॐ शांति की प्रार्थना का आयोजन किया गया। उस दिन समस्त बाजार बन्द रहे। पूज्यश्री के एवं अन्य मुनिवरों के तप की महत्ता और प्रार्थना के महत्त्व पर प्रभावशाली प्रवचन हुए। प्रवचन का प्रभाव जनता पर खूब अच्छा पड़ा । विरमगांव के लिए यह चातुर्मास अपूर्व रहा त्याग प्रत्याख्यान आदि खूब हुए। इस प्रकार विविध धार्मिक प्रवृत्तियों से भरा यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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