Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आदि सर्व संतो ने लेखन कार्य में पूर्ण सहयोग दिया ।
यहां भी पं. श्री समीरमुनिजो महाराज के पेर की नस में दर्द हो गया था । उपचार द्वारा पर अपने माताजी वयोवृद्ध महासतीजी को दर्शन देने के लिए पूज्य श्री की आज्ञा प्राप्त तरफ विहार कर दिया ।
पूज्य श्री लीमडी से विहार कर चूडा पधारे। थोडे दिन यहां बिराजकर आप सायला पधारे यहाँ कविवर्य प्रसिद्ध वक्ता पं. श्री नानचन्दजी म० बिराजित थे । आप समाज के एक आदर्श कवि थे महान वक्ता और सोराष्ट्र के रत्न थे, ज्ञान के मर्मज्ञ थे आप की सहृदयता पूज्य श्री के प्रति बहुत ही भावपूर्ण रही। यहां के संघत्रय (दरियापुरी लीमडी, और सायला संघ बड़ा संघ, छोटा संघ) ने सेवा भक्ति का लाभ बहुत ही अच्छी तरह से लिया ।
आराम होने कर मेवाड की
सायला नरेश श्री कर्णसिंहजी ने पूज्य श्री के व्याख्यान का लाभ लिया । सायला नरेश की जैन मुनियों के प्रति अगाढ श्रद्धा है । होली चातुर्मास यहां करके पूज्य श्री आयाडोल्या पधारे । यहां के नरेश श्री कनकसिंहजी के महल में पूज्य श्री बिराजे। श्री कनकसिंहजी सायला नरेश श्री कर्णसिंहजी के लघु भ्राता है । दोनों भाईयों के जन्म में केवल ५ मिनिट का ही अन्तर था । श्री कनकसिंहजो ने पूज्य श्री की आज्ञानुसार एक दिन की पाखी रखी और पूज्य श्री ने ईश्वर प्रार्थना पर प्रवचन दिया ।
वहां से आप थान पधारे थान संघ में ही नहीं सारे सौराष्ट्र में सेठ श्री ठाकरसी करसनजीभाई धर्म ध्यान शास्त्रज्ञान के कारण बड़ी ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे । इन्होंने पूज्य श्री के शास्त्र लेखन कार्य में पूर्ण सहयोग दिया । पूज्य श्री के साथ रहकर लेखन कार्य करने वाले पंडितो का श्री संघ की तरफ से सन्मान करवाया श्रीसंघ ने सेवा भक्ति का अच्छा लाभ लिया ।
थान
थान से विहार कर वांकानेर पधारे, वाकानेर पधारे पर वांकानेर श्री संघ ने पूज्य श्री के शास्त्र लेखन के कार्य में पूर्ण सहयोग दिया। तन मन धन से खूब सेवा बजाई, यह संघ महान गंभीर है। यहां के महाराजा श्री अमरसिंहजी ने पूज्य श्री का प्रवचन सुना, मेवाड से अपनी मातुश्री महासतीजी को दर्शन देकर समीरमुनिजी म० पुनः पूज्य श्री से वकानेर में आ मिले। पूज्य श्री ने वांकानेर से मोरबी की ओर विहार कर दिया । वि. सं. २००३ का ४५ वाँ चातुर्मास मोरबी में
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मोरबी श्री संघ ने पूज्य आचार्य श्री घासीलालजी म. का चातुर्मास कराने का विचार किया और संघ का . एक डेप्युटेशन नगर मेटजी के सुपुत्र वर्तमान नगर सेठ श्री चन्द्रकान्तभाई के नेतृत्व में वॉकानेर आया । डेप्युटेशन में ग्यारह ग्रावक आए थे ! आए हुए डेप्युटेशन ने पूज्य श्री को सं. २००३ का मोरबी चातुर्मास के लिये आग्रह किया जिसे पूज्य श्री ने स्वीकार किया । वाकानेर श्री संघ को इच्छा आगामी चातुर्मास वांकानेर में हि हो परंतु मोरबी की बिनंति स्वीकार हो जाने पर श्री संघ विवश वन गया, कुछ समय विराजने के बाद वर्षां आरम्भ हो जाने से पूज्य श्री ने वांकानेर से मोरबी कि ओर विहार किया और रेल मार्ग से विहार करते हुए मोरबी पधारे। मोरबी संघ ने उत्साह के साथ स्वागत किया । नगर सेठ श्री विकमचन्द भाई, महात्मा प्राणलालभाई आदि, संघ के सभी कार्यकत्ताओं ने विचार किया कि पूज्य श्री घासीलालजी म. का चातुर्मास होने से जनसमूह दर्शनार्थ आएँगे ही। कंट्रोल के कारण अनाज का मिलना दुलर्भ है, फिर भी दर्शनार्थियों के लिये सत्कार करना श्री संत्र का परम कर्तव्य हो जाता है, इसीलिये कोई उपाय सोचा जाय । श्री नगर सेठ सा० ने कहा कि संघ के सभी लोग अगर व्यवस्थाँ कर सकते हैं तो मुझे कोई आपत्ती नहीं है । नगर सेठजी की स्वीकृती प्राप्त कर के कार्यकर्ताओं ने महात्मा प्राणलालभाई को सारी व्यवस्था करने का भार सोंप दिया ।
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