Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 438
________________ ४०९ सौराष्ट्र में धाक थी । आपकी पूज्य आचार्य श्री के शास्त्रोद्धार के कार्य पूर्ण सहानुभूति रही । आप ही ने काका को प्रेरित किये । पूज्य श्री के पास मोरबी चातुर्मास से अभ्यास करनेवाले रतागरखेड़ा मालबा के निवासी चान्दमलजी का काका के घर से हि दीक्षोत्सव हुआ । और ज्युबिलि बाग में पूज्य श्री के हाथों से उनकी दीक्षा हुई । दीक्षा के अवसर पर राजकोट की जैन अजैन हजारों जनता थी । काका हरगोविन्द भाई का राजकोट में महत्व पूर्ग प्रभाव होने से राजकोट शहर के सरकारी बिन सरकारी प्रमुख व्यक्ति भी दिक्षा प्रसंगपर उपस्थित थे । मोरबी महाराजा ने दीक्षा पर अपनी तरफ से कम्बल तथा पात्रे भेजाए । दीक्षा के बाद जामनगर वाले श्रावकों का आग्रह होने से जामनगर पधारे । जामनगर लोकागच्छ उपाश्रय में पूज्य श्री के व्याख्यान होते थे । जामनगर की श्रावक श्राविकाओं ने व्याख्यान श्रवण तथा सेवा भक्ति का लाभ पूर्ण भावना के साथ लिया । गोंडल संप्रदाय के प्रसिद्ध यशस्वी सन्त श्री प्राण. लालजी म. का पदार्पण होने पर प्रत्यक्ष परिचय हुआ । शास्त्रोद्धार कार्य के प्रति उत्साह तथा सह विचार मिले । जामनगर से खीलोस जोडीया घोल होते हुए पुनः राजकोट पधारे, तब कुछ दिन मोरबी महाराजा के महल में बिराजना रहा । काका हरगोविन्द भाई के आग्रह से चातुर्मासार्थ व्याख्यान भवन में पधारे वि० सं० २००४ का २६वां चातुर्मास राजकोट में सं. २००४ का चातुर्मास राजकोट व्याख्यान भवन में ठा० ६ से बिराजे । चातुर्मास में पर्युषण पर्व के व्याख्यानों व्याख्यान भवन का सारा हॉल श्रोताओं से भर जाता था । दोनों तपस्वी मुनियों के.. तपस्या के पूर पर काका ने राजकोट के कतलखाने बन्द रखवाए । राजकोट शहर स्थानकवासी जैन समाज के घरों की दृष्टि से सौराष्ट्र में सब से बडा संपन्न शहर माना जाता है । जिधर जाओ उधर स्थानकवासी समाज के घर ही घर दृष्टि गोचर होते हैं । गौचरी जाने वाले मुनि सभी घरों में नहीं पहुंच पाते फिर भी दो माह पहले पुनः उन घरों में गौचरी का नम्बर नहीं आता | राजकोट में अंग्रेज के समय से रेजिडेन्ट रहा करता था । इस चातुर्मास तक वहां रेजिडेन्ट मौजूद था । उनके पास श्री चन्दुलालभाई, और सेक्रेटरी ताराचन्द भाई कार्य कर रहे थे । उन्होंने पूज्य श्री के सम्बन्ध में रेजिडेन्ट से बात की तो अपनी रेजिडेन्ट की कोठी पर पूज्य श्री को उपदेश देने के लिये आमंत्रित किये । तदनुसार पूज्य आचार्य श्री अपने मुनियों सहित कोठि पर पधारे। रेजिडेन्ट सा० ने अपनी पत्नि सहित पूज्य श्री के दर्शन किये, और अहिंसा तथा जैन धर्मं के सम्बन्ध में प्रश्न करके जानकारी ली। पूज्य श्री द्वारा उपदेश सुनकर के वे बहुत ही प्रसन्न हुए । पूज्य आचार्य श्रीघासीलालजी म. वय स्थविर ० दीक्षा स्थविर हो जाने से तथा चलते हुवे शास्त्र लेखन के महान कार्य को एक जगह बिराज कर स्थिरता से अधिक कार्य करसकें इस दृष्टि से काका हरगोविन्दभाई ने पूज्य श्री को सं २००५ तथा सं२००६ - दोनों चातुर्मास के लिये ज्युबिलि बाग के पास के अपने स्वयं के उपाश्रय में आग्रह करके रोक लिये । वि. सं. २००५ व ६ का ४७-४८ वा चातुर्मास पुनः राजकोट में सं. २००५ के चातुर्मास के लिये राणपुर संघ ने पं मुनि श्री कन्हैयालालजी म० ठा० ३ के लिये विनन्ती पास सं २००५ का चातुर्मास रहकर की जिससे ठा० ३ राणपुर चातुर्मास के लिये पधारे । पूज्य श्री के ज्ञान वृद्धि की दृष्टि से तपस्वी श्री रोशनलालजी म० मालवे से पं. श्री समीर मुनिजी म० के साथ पधारे थे, जिससे पू श्री ठा० ४ से बिराजे । सं २००६ में पूज्य श्री ठा० ५ से चातुर्मास बिराजे । दोनों चतुर्मास श्रावक श्राविकाओं ने व्याख्यान का महान लाभ लिया । पर्युषण पर्व उमंग से धर्म ध्यान व तपश्चर्या से मनाया । राजकोट के काका हरगोविन्द भाई एवं इनके छोटे भाई श्री उमेदचन्द भाई कोठारी के रेपू ५२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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