Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 405
________________ ३८. सांयकाल में प्रतिक्रमण कर चौरासी लाख जीवों से क्षमा याचना की । उस दिन हजारों उपवास सामायिकें एवं पौषध हुए । ग्रामनिवासियों का उत्साह अपूर्व था । पूज्यश्री के बिराजने से सारा गांव धर्मनगर बन गया संवत्सरो के दिन बड़ी संख्या में बाहर के दर्शनार्थी उपस्थित हुए । दान प्रभावना प्रत्याख्यान सीमातीत हुए। बाहर से आनेवालेसज्जनों की स्थानीय संघ ने भोजनादि से बड़ी अच्छी सेवा की। अपने व्यवसाय को भी एक तरफ रख कर अत्यन्त अनुराग पूर्वक स्थानीय श्रीसंघ आगनन्तुको की सेवा करता था । इनकी अपूर्व सेवा देखकर दर्शनार्थी स्थानीय संघ की बडी प्रशंसा करते थे । संवत्सरी के दूसरे रोज स्थानकवासी जैन संघ के कार्यकर्ता गण पूज्यश्री के पास आए और प्रार्थना की कि प. रत्न प्रियवक्ता मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराजश्री को सेवा में बिराजित घोर तपस्वी शान्तस्वभावी मुनिश्री मदनलालजी म. सा० ने विशाल तपोव्रत ग्रहण किया है जिनकी समाप्ती का दिन कब होगा ? कृपा कर फरमावे । पूज्यश्री ने कार्यकर्ताओं की यह प्रार्थना सुन कर कहा कि तपस्वीजी की ८२ दिन की तपश्चर्या का पारणा भाद्रपद शुक्ला १२ ता० २१-९-४२ को होगा । उस अवसर पर आप लोग जीवदया का कार्य करें । उस दिन अगता रख कर समस्त आरम्भ समारम्भ के कार्य बन्द रखे जाय । पूज्य श्री के इस आदेश को संघ ने शिरोधार्य किया । पं. मुनिश्री कन्हैयालालजी महाराज के गोगून्दे में बिराजने से धर्मध्यान खूब हुआ । पूज्यश्री के आदेश से संघ ने तपमहोत्सव के समय पत्र पत्रिकाओं द्वारा तमाम नर नारियों को सूचित किया कि ता०२१।९। ४२ क। अगता पाला जाय और आरम्भ की प्रवृत्ति बन्द रखी जाय । तदनुसार हजारों ग्राम निवासियों ने उस दिन अगते रखे और यथा शक्ति धर्मध्यान किया । ता० २०-९-७२ को गोगुन्दा श्रावक संघ की प्रार्थना पर पूज्यश्री गोगुन्दा पधारे । पूज्यश्री के पधारने से संघ में अपार हर्ष छागया । वे महान भाग्यशाली जिन्हें तपस्वी, त्यागी संयमी मुनियों की सेवा का लाभ मिलता है। जो व्यक्ति अपनी कलुषित भावना के कारण एसी सेवा से वंचित रहता है वह सचमुच ही बडा दुर्भागी है । जैन धर्म तो रागद्वेष को दूर करने का ही विधान करता है। किन्तु रागद्वेष के आधिन हो जो व्यक्ति एसे पुनित प्रसंग का लाभ नहीं उठा सकता वह अधन्य ही है। ___ गोगुन्दा श्रीसंघ ने पूज्यश्री व तपस्वीजी म० की अपूर्व सेवा का लाभ मिला । पुनित प्रसंग को सफल बनाने के लिए समस्त संघ तन मन धन से जुट गया । पूर के अवसर पर हजारों लोग बाहर गांव से तपस्वियों के दर्शनार्थ आये। इतनी बड़ी संख्या में आने वाली जनता का स्थानीय संघने भोजनादि से खूब अच्छा सत्कार किया । दशेनाथे आने बाले हजारो लोगो ने तरह तरह के त्याग प्रत्याख्यान किये । हजारों जीवों को अभयदान मिला । विशाल प्रवचन पण्डाल में ता० २१-९-४२ के दिन जनसमूह एकत्र होगया पाट पर पूज्यश्री अपनी शिष्य मन्डली के साथ बिराजे । इस अवसर पर प्रथम पं. श्री कन्हैयालालजी महाराज ने तप के महात्म्य पर प्रवचन दिया। उसके बाद पूज्यश्री ने गम्भीर वाणी "द्वारा तपबडो रे संसार में "इस गाथा से प्रवचन प्रारम्भ किया । आपने कहा-इच्छा का निरोध करना ही तप है । अपनी इच्छाओं. कामनाओं को, वासनाओं का जो निरोध करता है वह तपस्वी होता है । इच्छा, वासना, कामना, यह मनुष्य जीवन की सबसेबडी दुर्बलता है इस, दुर्बलता के कारण संसार अनन्तशक्तियो का धारक मनुष्य भी दीन हीन बन गया । हीरों की और पन्नों की खान पर बेठने वाला व्यक्ति भी यदि अपने आपको दरिद्रमानता हो तो इससे बढकर जीवन की विडम्बना और क्या हो सकती है ? परन्तु इसविडम्बना का कारण कोई दूसरा नहीं है। मनुष्य स्वयं हि है, उसकी इच्छा है आसक्ति है कामनाओं की दासता है एक उर्दू कवि ने ठीक ही कहा है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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