Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 420
________________ ३९३ अतिरिक्त कोई मकान न होते हुए भी सभी खुले जंगल में रात्रि निवास रहे । भजनों से सारा जंगल गुंजित हो रहा था । किसी को नींद स्पर्श ही नहीं कर रही थी । रात्रि जागरण में बीत जाने पर सुबह सूर्य उदय हुआ और पूज्य आचार्य श्री ने वहाँ से गोगुन्दा बिहार किया। सभी जाति के स्त्री पुरुष बहुत दूर तक पहुंचाने आए । अर्धमार्ग से सभी को मांगलिक सुनाकर पूज्य श्री ने अन्तिम सन्देश दिया कि आप सभी का है, यह बड़ा स्तुत्य हैं भविष्य में प्रभु भक्ति द्वारा इस स्नेह को सिंचित करते रहें । अश्रू भीनी आखों से बहुत से स्त्री पुरुष लौट गए । कुछ लोग गोगुन्दा तक साथ आए । गोगुन्दा संघ ने जावडो तक पहुंच कर पूज्य श्री का बड़ा स्वागत किया । गोगुन्दा में दो दिन बिराजे, वहां उदयपुर महाराना श्रीभूपालसिंहजी ने अपने मर्जीदान श्री कन्हैयालालजी चौविसा को पूज्य श्री की सेवा में भेजकर पूज्य श्री को उदयपुर शिघ्र पधारने का आग्रह किया । पूज्य श्री को तथा पं. श्री समीरमुनिजी म. को ज्वर ने अभी भी नहीं छोड़ा | स्वास्थ्य लाभ के लिए विश्राम तथा अनुकूल जल वायुवाले स्थान की आवश्यकता थी । गोगुन्दा के पास ही चांट्या खेडी गांव के ब्राह्मणों का बड़ा आग्रह था । जिससे पूज्य श्री वहां पधारे । वहाँ पहुंचने पर ज्वर ने अपना प्रभाव अधिक दिखाया । जिससे पूज्य आचार्यश्री को वहीं रुक जाना पडा । सभी ब्राह्मण लोग मुनियों के नियमों को जानने वाले होने से उन्होंने अपने सभी लोगों को इकट्ठे कर के आदेश दिया कि पूज्य म. यहां बिराजे जितने दिन कोई भी रात को भोजन नहीं करें, अगर कोई भी रात को भोजन करेगा तो पंच ५१ रु. जुर्माना करेंगे । सभी लोग बडी श्रध्धा से सेवा का लाभ लेने लगे । गोगुन्दा संघ गोगुन्दा से डॉ. साहेब प्रभुलालजी को लेकर आये तबियत बताई और उपचार करने से ८-१० दिन में ज्वर ने विश्राम दिया ।' सामान्य स्वास्थ्य सुधरने पर पूज्य श्री ने विहार कर दिया चोरवावडी भाद्वीगुड़ा. मदार थूर, लोहरा गांवों में विश्राम करते हुए पूज्य श्री पधार रहे थे। पं. श्री समीर मुनिजी म. की तबियत ठीक हो गई परन्तु पूज्य आचार्य जी को ज्वर आता रहा । इस कारण बिहार भी थोडा थोडा होता था । उदेयपुर के समीप फतेपुरा में विश्राम किये बिना आगे बढना असंभव था । विश्राम के लिये स्थान की तपास करने के लिये पं. श्री समीर मुनिजी म० आगे पहुंचे और फतेहपुरा चोराहे के पास के एक बंगले में गए । बंगला के स्वामी कुर्सी पर बैठे किताब पढ रहे थे । मुनिजी ने जाकर उनसे कहा कि हमारे पूज्य महाराज को ज्वर आरहा है, पीछे धीरे धीरे आरहे हैं । थोडी देर विश्राम के लिये आप के यहां स्थान मिल सकेगा ? मुनिजी की आवाज सुनते ही वे सज्जन तत्काल कुर्सी से खडे हो गए, और बोले, आप महाराज श्री को जरूर ले आइये, यहां स्थान उपलब्ध है । उसी समय एक कमरा खोल दिया । ये मकान मालिक थे भूत पूर्व रीयां किसनगढ़ स्टेट के प्रधान मंत्री श्री केसरोचन्दजी पंचोली । मकान में अपना सामान रख कर मुनिजी पुनः पूज्य श्री के सामने गये, ज्वर के कारण चला नहीं जा रहा था फिर भी दृढ़ साहस के साथ धीरे धीरे चलते हुए उस बंगले पर पहुंचे । श्री केसरी चन्दजी पंचोली चोराहे तक सामने आए और अपने मकान पर ऐसे महान विद्वान मुनि के पद पंकज स्पर्शित हुए इसके लिये महति प्रसन्नता प्रकट कर रहे थे । पूज्य श्री ने फरमाया हमारे ठहरने से आप को मकान की संकड़ाई होगी । पंचोलीजी बोले संत चरन मेरे बंगले पर मेरे भाग्य से ही मिले हैं । हमें कोई तकलीफ नहीं है। संतो के लिये हम अपना सारा सामान बाहर रखकर सारा बंगला खाली कर दें, यह हमारा परम कर्तव्य है। संत सेवा का लाभ बिना भाग्य के नहीं मिलता । आप यहां अधिक दिन बिराजें यहां का जल वायु बड़ा शुद्ध है । इससे आपके स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचेगा । दुपहर के बाद बिहार करने की इच्छा थी परन्तु श्री पंचोलीजी ने दो दिन तक बिहार नहीं करने दिया । पूज्य श्री के पदार्पण के समाचार उदयपुर पहुंचते ही उदयपुर से बड़ी संख्या में लोग दर्शनार्थ ५० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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