Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अर्ज करवाई पूज्य आचार्य श्री महाराणा की इज्छानुसार पहां पधारे और जलप्लावन से दुःखित लोगों के लिये योग्य व्यवस्था करने के लिये परामर्श दिया । वहां से ब्यावर कुदन भवन में बिराजित स्थविर पद् भूषित पूज्य श्री खूबचन्द्रजी म. के दर्शनार्थ व्यावर पधारे । कुन्दन भवन तथा पीपली बजार स्थित जैन स्थानक में पूज्य श्री के सात व्याख्यान हुए । ब्यावर संघ का कुछ अधिक दिन बिराजने का आग्रह था परन्तु सौराष्ट्र में पधारने का निश्चित हो जाने से जल्दि विहार किया ।
रायपुर पधारने से वहां के ठाकुर साहेब से एक दिन का संपूर्ण अगता पलवा कर पूज्य आचार्य श्री ने ईश्वर प्रार्थना करवाई । इसी प्रकार सोजत पधारने पर वहां भी बजार में पूज्य श्री के तीन जाहिर व्याख्यान हुए । वहां से पाली पधारने पर पालो संघ ने बहुत ही उमङ्गसे स्वागत किया । सलाहकार पं. श्री केसरीमलजी महा
भी धर्मदासजी म. की संप्रदाय के श्री मोतीलालजी म पं. श्री धनचन्द्रजी म. ठा ३, स्थविर श्री शादुलसिंहजी म. ठा. ४ यहां बिराजित थे । महावीर जयन्ती का व्याख्यान सभी सुनियों का पूज्य श्री के साथ कपड़ा मार्कीट में हुआ । ___जब पूज्य श्री व्यावर से सौराष्ट्र कि और दामननगर श्रीसंघ का व. शास्त्रज्ञ सेठ श्री दामोदरदास भाई ले अत्यन्त आग्रह से शास्त्रोद्धार के कार्य के लिए पधार रहै हैं यह समाचार जाहेर पत्रोंमें आये इन समाचारों से विघ्न संतोषीयों के कलेजे में भयंकर अग्नि लग गई । अच्छा बुरा होना यह तो पूर्व कर्म के उपार्जित है फिर भी अधम आत्मा अपने कर्तव्य से बाज नहीं आते । उन्हें लगा कराची उदयपुर रतलाम देवगढ विगेरे शहेरों में अपना जोर नहीं चला पूज्य आचार्य श्री को कष्ट देने में कमी न रखी, फिरभी पूज्य श्री तो एक महान क्षमा के अवतार थे । पर अब तो वे सौराष्ट्र देश में पधारते है सौराष्ट्र तो दुलर्भजीभाई तथा चुनिलाल नागजीभाई का शास देश है वह तो पूज्य आचार्य महाराज श्री जवाहिरलालजी म. का एक अभेद्य देश है वहां पधारेंगे तो हमारा सारा किला टुट जायगा, पर यह नहि मालुम कि सौराष्ट्र के महान संत रत्न व श्रावकगण तो गुणों का परम उपासक हैं । उन्होंने सौराष्ट्र में पूज्य श्री न जासके इसके लिए प्रयत्न करने में तो कमी नहीं रखी । परन्तु ज्यां सत्य है संजम है त्याग है वैराग्य है वहां सदाजय होती ही है. इन लोगों ने राजकोट मोरबी और दामननगर जैसे शहरों में पूज्य श्री को न माने ऐसा प्रयत्न खूब चालू किये इसका नमुना मात्र देते है । श्री साधु मार्गी जैन पूज्य श्री हुकमीचन्द्रजीम० के हितेच्छु श्रावक मण्डल के सेक्रेटरी बालचन्दजी श्रीश्रीमाल ने एवं प्रमुख श्री हीरालालजी नांदेचा ने दामनगर श्रीसंघ को एक पत्र लिखा और पूज्य आचार्य श्री घासीलालजी महाराज को किसी भी प्रकार का सहयोग न देने की अपील की. दामनगर श्रीसंघने उचित जवाब देकर इन दोनों महानु भावों की अपील को रद्दी की टोकरी में फेंक दी और इनकी अपील का जवाब अत्यन्त नम्रता के साथ दिया इन दोनों पत्रों की प्रतिलिपि इस प्रकार है--
बालचन्दजी श्रीश्रीमाला का पत्र
कोन्फरन्सनी सूत्राधार श्री काठीयावाड स्था. जैन संघ समीती तथा दामनगरना श्री स्था. जै. संघ ने नम्र विनंती :
काठीयावाड एक शिक्षित प्रदेश छे. त्यानी धर्मभावना पण प्रशंनीय छे, एथी आकर्षाई ने मोटा मोटा आचार्यो अने विद्वान मुनियों पधारता रहे छे काठीयावाडना श्रावको पण विद्वान तथा आचारशील मुनिवरोने आमत्रण करताज रहे छे परन्तु काठियावाड जेवो सुधार प्रिय शिक्षित देश भूल करवा लाग्यो छे, जेने माटे सावधानी सुचववी एमां अमे अमारू कर्तव्य समजीए छीए
स्था. जै. जनताने ए सारी रीते विहित छे के प्रातः स्मरणीय पूज्य पाद श्री हुकमीचंदजी म. नी सं. ना नायक षट्टम पट्टधर सुप्रसिद्ध जैनाचार्य स्वर्गीय पूज्य श्री १००८ श्री जवाहरलालजी महाराज साहेबे
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