Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 408
________________ ३८३ कर अपने पेट का गड्ढ़ा भरने लगा । किसान और उसका सारा परिवार बच गया । दूसरे वर्ष बहुत वर्षा हुई । खेत अनाज से लहलहा उठे । उस वर्ष उसके खेत में अच्छी फसल आई अनाज पकने पर वह उसे घर लाया और पत्नी से बोला-सेठ ने हमें मरने से बचाया है । सेठ के उपकार को कैसे भूल सकते हैं ? पहले हम उस उपकारी के घर अनाज ले जायेंगे बाद में हम घर पर इसे खायेंगे । जितना मैंने उसे दिया था उससे दुगुना वह अनाज मेरे यहां लाया और मेरे ना कहने पर भी दे कर चला गया । इतना ही नहीं वह प्रतिवर्ष जब तक जीवित रहा तबकक अनाज के दो गठ्ठर मुफ्त में दे जाता रहा। ____ एक दिन मैने उसे कहा-भाई ? मैंने तुझे जो अनाज दिया वह उधार नहीं था । मैंने उसे अपनी बही में भी लिखा नहीं और मैंने तुझ से मांगा भी नहीं फिर भी तू प्रतिवर्ष मुझे दुगुना अनाज दे जाता है यह ठीक नहीं करता अब तुम अनाज देना बन्द कर दो । उसने कहा-आपने संकट के समय सहायता की है। यदि आप अनाज नहीं देते तो भूखमरी के कारण मेरा सारा परिवार नष्ट हो जाता । मैं आपके उपकार का बदला कसे चुका सकता हूं। इस प्रकार वह प्रतिवर्ष मुझे अनाज पहुंचाता रहा । यह है उस गांव की पवित्रता को उज्ज्वल गाथा । बगडूंदे का यह चातुर्मास एक अनोखा चातुर्मास था । दशहरे पर जीवदया का प्रचारः-- दशहरे के दिन प्रायः गांवों में पाडे बकरे आदि अबोल पशुओं को बलि चढाने की नृशंस और घातक प्रथाएँ पूर्व से प्रचलित थी । पूज्यश्री इस घातक प्रथा को बन्द कारना चाहते थे । आपने दशहरे के पूर्व ही प्रचार प्रारंभ कर दिया । तमाम आस पास के गांवों में जहां पाडे बकरे मारे जाते थे उन ग्रामनिवासी लोगों को बुला बुला कर उपदेश दिया फलस्वरूप बगहुंदे व जीराई आदि ८-९ स्थानों पर होने वाली हिंसा को बन्द करवा दी । वास भौमट में अम्बामाता के स्थान पर हिंसा बन्द रही । नाथबाबा की देवी के मन्दिर में जो प्रतिवर्ष बकरा चढ़ाया जाता था उसे कायम के लिये अभयदान दिया गया । जोलावा की माता अम्बाजी के स्थान पर प्रतिवर्ष पाडा और बकरा मारा जाता था उसे भी बन्द कर दिया। जोग्याकागुडा गोगून्दा, आदि आस पास के गांवों में पूज्य आचार्य श्री ने उपदेश देकर जीवहिंसा बन्द करवाई । इस कार्य में बगड़न्दा स्थानकवासी जैन संघ के मुखियों ने तथा नरसी वैरागो ने पूरा सहयोग दिया । स्वगीय तपोनिधि श्री सुन्दरलालजी महाराज की स्वर्गवास तिथि को विजया दशमी के दिन बडी धूमधाम से मनाई गई । इस दिन अनेक जीवों को अभयदान दिलवाया गया । उस दिन सामयिक, पौषध दया आदि व्रत बड़ी संख्या में हुए । सभी दृष्टि से यह चातुर्मास सफल रहा । चातुर्मास को सानन्द सम्पन्न कर पूज्य श्री ने अपनी सन्त मण्डली के साथ बिहार कर दिया । पूज्यश्री को पहुंचाने के लिए सैकड़ों व्यक्ति दूर तक गये । अश्रुभीने नयनों से पूज्यश्री को विदा करने के समय पुनः क्षेत्र फरसने की आग्रह भरी विनंती की । पूज्यश्री ने मांगलिक सुनाकर आगे बिहार कर दिया । बगडूदे से बिहार करते समय मेवाड के महाराना ने अपने प्राइवेट सेकेटरी श्रीमान् कन्हैयालालजी चोबीसा से पूज्यश्री को तार करवाया कि पूज्यश्री बगडुंदे से बिहार कर उदयपुर पधारे । तार इस प्रकार था "पूज्यश्री घासीलालजी महाराज साहब से उदयपुर दरबार निवेदन करते है कि महाराज साहब उदयपुर पधारें-खुलासा पत्र में देखिए" महाराणा के अत्यन्त आग्रह के बाद उदयपुर का श्रीसंघ भी पूज्यश्री की सेवा में आया और उदय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480