Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तामस गुणों का बढ़ाने वाला है. प्रभु का स्मरण वैर विरोध को शान्त करने वाला है और सात्विक गुणों में वृद्धि करता है। हिंसा ताप है, तो प्रभु का स्मरण चन्द्र की चांदनी जेसा शीतल है । हिंसा भयानक रात्रि है तो प्रभु का स्मरण अन्धकार को नाश करने वाला दिवाकर है। हिंसा विष है और प्रभु स्मरण अमृत है। परस्पर इन दो विरोधी तत्वो का संमिश्रण कैसे हो सकता. सारांश यह है कि यदि हमें भगवान के दरबार में जाना है तो पूर्णतया अहिंसक बनना हि पडेगा. आज के ईस पावन प्रसंग पर उपस्थित श्रोताओं से यह आशा रखता है कि इस प्रान्त में में से के जन्मे हुए पाडे के बच्चे को रस्सीसे पेर बांध कर एकान्त जंगल में जा छोडने की जो घातक प्रथा है उसे सदा के लिए बन्द कर दें। अपने लोभ के कारण थोडे से दूध बचाने के लिए उस कोमल शिशु को जो निरापराध है उसको मौत के शरण पहंचाना कहां तक मानवता है. । आप यदि मानव हैं तो इस दानव कृत्यों का परित्याग कर दें. किसी भी प्राणी की हिंसा का परिणाम जन्म जन्मान्तर में भुगतना पड़ता है. हिंसा करने वाला व्यक्ति नरक व तियेच योनि में उत्पन्न हो कर अनन्त दुःखों का भागी बनना पड़ता है. । इसलिए आप लोग प्रतिज्ञा करें कि आज से यह कर कर्म सदा के लिए हमलोग बन्द कर देंगे । पूज्यश्री का उपदेश सुनकर सभी ने खडे हो कर यह प्रतिज्ञा की कि आज से यह पापकृत्य नहीं करेंगे । प्रार्थना सभा प्रभु प्रार्थना कर सभी लोग अपने अपने स्थान पर चले गये. इस प्रकार यह चातुर्मास धार्मिक प्रभावना से अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा. इस चातुर्मास में आस पास के हजारों ग्राम निवासियों ने पूज्यश्री का प्रवचन सुन कर अपने आप को धन्य बनाया. यह चातुर्मास पूर्ण सफल रहा. छकायका सामुहिक व्रत
एक समय पूज्यश्री ने सर्व ग्राम निवासीयों को एवं आसपास के सभी गांव वालो से भादवावदि ता. २९-८-४२ के दिन छकायव्रत (दयावत) करने को फरमाया । पूज्यश्री के इस आदेश को समस्त ग्राम निवासियों ने सहर्ष स्वीकार किया । पूज्यश्री की इच्छानुसार ओसवाल, ब्राह्मण, क्षत्रिय कुम्हार, लुहार सुथार तेली, नाई, भील, बलाई आदि सर्व जाति के लोगों ने सामुहिक छकाया का व्रत पालन किया । सर्वने अचित पानी लिया । आरंभ कार्यों का परित्याग किया। और सारा दिन रात धर्मध्यान में व्यतीत किया। श्री मान गोगुन्दा निवासी मोतीलालजी साहेब ने इस कार्य में सुन्दर सहयोग दिया । पयूषन पर्व की अराधना
जैन धर्म में पर्युषण पर्व का बडा महात्म्य है । प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला पञ्चमी को आता है । उस दिन प्रायः सभी जैन समाज आरंभ सारंभ का त्याग कर धार्मिक प्रवृत्ति में समय व्यतीत करती है । इस वर्ष पूज्यश्री के बिराजने से पयूषण पर्व के आठों हि दिन बडे उत्साह के साथ मनाये गये । प्रातः व्याख्यान में पूज्यश्री श्री अन्तगढसूत्र फरमाते थे। उसके बाद अन्य मुनियों के प्रासंगिक प्रवचन होते थे। सामा यिके पौषध, उपवास बेले तेले आदि की तपश्चर्या एवं त्याग प्रत्याख्यान सीमातीत हुए । हजारों लोगों ने पूज्यश्री के प्रवचन पीयूष का पानकर धन्यता का अनुभव किया कृष्णजन्माष्टमी का जाहिर प्रवचन
भाद्रपद कृष्णा अष्टमी के दिन ता०-३-६-४२ को त्रिखण्डाधिपति वासुदेव श्रीकृष्ण जयन्ती मनाने का निश्चय किया इसकी सूचना पत्र पत्रिकाओं द्वारा आस पास के गांववालों को दी। सूचना पाकर सभी जाति के लोग व्याख्यान पाण्डाल में एकत्र हुए । उस दिन समस्त गांव में पाखी रखी गई । पूज्यश्री ने कृष्ण के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला । उस दिन श्रावकों ने दयाव्रत रखा । संवत्सरी के दिन समस्त ग्राम निवासियों ने अपनी दुकाने बन्द रखी, पूज्यश्री ने पर्दूषण पर्व के शास्त्रोक्ति महात्मय को समझाया ग्यारह बजे तक । पूज्यश्री के एवं अन्य मुनियों के प्रवचन होते रहे । मध्याह्न के समय आत्म शुद्धि के लिए आलोचना हुई ।
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