Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 401
________________ ३७६ उदयपुर व मेवाड के आसपास के गांवों के लोग उमड पडे थे। छत्र चंवर बेण्डबाजे की व्यवस्था राज की तरफ से हि थी । दीक्षा कार्य बडे उत्साह के साथ समाप्त हुआ। दीक्षा के दूसरे दिन पूज्यश्री ने अपनी मुनिमण्डली के साथ उदयपुर से बिहार कर दिया । हजारों की संख्या में उदयपुरनिवासी पूज्यश्री को विदा देने साथ आये । यह दिन भी उदयपुर के लिए अपूर्व था । सभी के आँखों में अश्रु थे और सभी पूज्यश्री को उदयपुर पुनः फरसने का आग्रह कर रहे थे । इस प्रकार के बिदाई के बाद पूज्यश्री ने नाई की ओर बिहार किया ता० १३-३-४२ को पूज्यश्री नाई पधार गये। यहां पूज्यश्री के उपदेश से ता० १५-३-४२ को अगता रखा गया । नदी के तट पर आमवृक्ष के नीचे ॐ शान्ति की जाहिर प्रार्थना हुई । प्रार्थना में दो हजार जन समूह उपस्थित था । नाई गांव के लिए पुनित प्रसंग नया हि था । पूज्यश्री के उपदेश से सैकडों स्त्रीपुरुषों ने अपनी यथा शक्ति त्याग ग्रहण किये । तथा अनेकोंने दारु, मांस एवं जीवहिंसा का त्याग किया । __वहाँ से बिहार कर पूज्यश्री बूजडा होते हुए मंदार पधारे। ता० २५-३-४२ को सारे गांव में पूज्यश्री की आज्ञा से अगता रखा गया और ॐ शान्ति की प्रार्थना की गई। प्रार्थना स्थल पर सारा गांव ऐकत्र था। पूज्यश्री का ईस अवसर पर मननीय प्रवचन हुआ । पूज्यश्री का उपदेश सुन सारे गांववालों ने चेतसुद एकम के दिन प्रतिवर्ष अगता पालने का और उसदिन ॐ शान्ति की प्रार्थना करने का नियम ग्रहण किया । उसी सायंकाल के समय बिहार कर आप रात्रि के समय भादवीगुडा बिराजे । दूसरे दिन ता० २६-३-५२ को आप गोगुन्दा पधारे। यह गांव पहाडी पर बसा हुआ है । आबू से नौ फीट एवं समुद्र की सपाटी से ५००० फीट ऊँचा है । यहाँ की आबोहवा बडी आरोग्य प्रद है। गर्मी के मौसम में यहां बडी ठन्डक रहती है । यहों से सायरागाँव तक सेहरा प्रांत कहलाता है । यहाँ के रावजी का नाम भैरोसिंहजी है । ये सोलह उमरावों में से एक हैं । रावजी साहब उम्र में छोटे होने पर भी पूज्यश्री के प्रति असीम श्रद्धा रखते हैं। पूज्यश्री का कईबार रावजी साहब ने उपदेश सुना । पूज्यश्री की आज्ञा से ता० १८-५-४२ को रावजीने अपनी समस्त रियासत में अगतो पालने का हुक्म दिया । और उस दिन विशाल मैदान में ॐ शान्ति की प्रार्थना रखी गई । प्रार्थना में रावजी साहब उनके कर्मचारी गण तथा समस्त प्रजाजन उपस्थित थे । सामुहिक प्रार्थना के अवसर पर पूज्यश्री का अहिंसा धर्म पर उपदेश हुआ और लोगोंने प्रभावित होकर अच्छे प्रत्याख्यान किये । पूज्यश्री का निवास ब्रह्मपुरी के उपाश्रय में था वहाँ प्रतिदिन प्रवचन होता था और हजारों स्त्री पुरुष प्रवचन का लाभ उठाते थे। हजारों जीवों को अभयदान मिला । चातुर्मास की विनंती लीमडी चातर्मास में थांदला श्रीसंघ ने अपने गांव में आगामी चातुर्मास के लिए अत्याग्रह भरी विनंती की थी। महाराजकुमार भारतसिजी साहब ने भी चातुर्मास के लिए खूब प्रयत्न किया था । उदयपुर से बिहार होने पर गोगुन्दा, बगडू'दा, जसवंतगढ, घासा आदि के स्थानकवासी संघो ने भी अपने अपने गांव में चातुर्मास करने की विनंती की । वहाँ से बिहारकर पू० श्री जसवंतगढ पधारे । वहाँ भी स्थानीय संघ ने तथा नान्देसमां बगडूदा के संघ ने गोगुंदा श्रीसंघ ने एवं जसवन्तगढ के श्री संघ ने सात आठ वार आकर चातुर्मास की विनंती की । पूज्यश्री ने जीव दया का विशिष्ट उपकार जानकर ता० ७-६-४२ के दिन द्रव्य, क्षेत्र, काल,भाव की अनुकूलता रही तो क्षेत्र खाली नहीं रहेगा इस प्रकार बगड़दा की विनंती को मंजूर फरमाई । ___जसवंतगढ व आसपास के गावों में पूज्यश्री का.पधारना हुआ वहां अगते पाले गये और ॐशान्ति की प्रार्थना हुई । तरपाल, नांदेसमां, खाखडी, गोगुंदा, वास, मादडा आदि गांव के लोग व्याख्यान श्रवण लामडा पानात न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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