Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 400
________________ श्री का स्वागत करने गुरुकुल तक पधारे थे । गुरुकुल में एक दिन बिराजने के बाद पूज्यश्री घासीलालजी महाराज ठाना तीन से पूज्यश्री खूबचन्दजी महाराज के दर्शनार्थ कुन्दनभवन पधारे । दोनों पूज्य मुनिवरों रेक अपूर्व प्रेम को देख सर्व जनता आश्चर्य चकित हो उठी । सब कहने लगे कि इस तरह यदि सर्व मुनिराजों व संप्रदायों मे परस्पर प्रेम भाव हो तो समाज शीघ्र ही भाग्यशाली होगा । आज का समय एकता का है । परस्पर का द्वेष समाज को अवनति की दशा में ले जाता है । आज हमारे समाज के कर्णधार पूज्य मुनिराज चाहें तो शीघ्र ही समाज का कल्याण हो सकता । किन्तु उनकी आपसी साप्रदायिक द्वेष बुद्धि व ईर्षा ही समाज के विकाश में बाधक हो रही है। आदि...... पूज्यश्री व सर्व मुनि मण्डल ने मांगलिक स्तवन फरमाया फिर माँगलिक सुन सर्व जनता विसर्जित हई। दोनों पूज्यश्री कुन्दन भवन में ही बिराजे । प्रतिदिन व्याख्यान होता था। प्रथम मनोहर व्याख्यानी पं. प्रतापमलजी महाराज व्याख्यान फरमाते थे बादमें पूज्य श्रीघासीलालजी महाराज अपनी लाक्षणिक शैली में प्रवचन फरमाते । पूज्य खूबचन्दजी महाराज के आखों का आपरेशन हुआ था इसलिए डॉक्टरों ने उन्हे विश्राम करने की सलाह दी थी अतः वे व्याख्यान नहीं फरमासके । पुनः उदयपुर की ओरइधर समीरमलजी महाराज इलाज के लिए उदयपुर ही ठहरे हुए थे । जिससे पूज्यश्री को उदयपुर वापिस पधारने की ताकिद थी। रास्ते में भीम, देवगढ सरदारगढ, कुआरिआ कांकरोलि आदि गांवों में धर्मप्रचार करते हुए पूज्यश्री पुनः उदयपुर पधारे । और महावीर मण्डल के भवन में बिराजे । यहाँ से सर्व मुनियों के थ बिहार कर पूज्यश्री चांदपोल के बाहर डॉ. छगननाथजी की वाडी में बिराजे । महाराणा साहब ने विसाजी को भेज कर पास ही हरिदासजी की मगरी पर ता० २२-३-४२ को धर्मोपदेश सुनने के लिए पज्यश्री को आमंत्रित किये । तदनुसार पूज्यश्री व मेवाड संप्रदाय के यवाचार्य पं. मनिश्री मांगीलालजी महाराज आदि मुनिमण्डल के साथ हरिदास जी की मगरी के महल में महाराणासा० को उपदेश देने पधारे । महाराणा साहब ने पूज्यश्री का व युवाचार्यजी का यथोचित भावभीना स्वागत किया । पश्चात् युवाचार्य श्री मांगीलालजी महाराज ने सुन्दर भजन के साथ अपनी रसीली मेवाडी भाषा में महाराणा को उपदेश दिया । उपदेश के बाद महाराणा साहब ने करीब एक घंटे तक पूज्यश्री से बातचित की । पूज्यश्री ने अन्त में महाराणा साहब से कहा कि हमारा कल यहाँ से बिहार करने का विचार है । दरबार ने पूछा कि-"कठिने विहार वेगा पूज्यश्री ने फरकाया नाई मोटेगाम की तरफ जावाको विचार है" आगे समय वेगा तो भोमट झालावाड की तरफ भी विचार है । महाराणा साहब ने फरमाया कि "वहीने भी श्रावका का घर है ? पूज्यश्री ने फर माया कि "आपके राज्य में प्राय सर्व गांवों में श्रावकों के घर हैं । इसके बाद महाराणा साहब ने उपस्थित एक भाई को देख उसके बारे में पूछा - यह भाई कौन है ? क्या आपके पास दीक्षा लेना चाहता है ? तब पूज्य श्री ने कहा-हां ! यह भाई यहां के हि निवासी है और इनका नाम इरकचन्द है। यह भागवती दीक्षा लेना चाहता है । तब महाराणा साहब ने जैनमुनियों की दीक्षा विधि पूछी । पूज्यश्री ने वह बताई । तब महाराणा सा.ने कहा कि इस भाई की दीक्षा मेरी तरफ से होगी । पूज्यश्री ने महाराणा साहब की भावना को स्वीकार किया । चातुर्मास आदि के विषय में भी महाराणा साहब ने पूछ ताछ की । इस प्रकार के वार्तालाप के बाद पूज्यश्री ने महाराणा साहब को मांगलिक सुनाया और वे स्वस्थान पधार गये। दूसरे दिन महाराणा साहब ने दीक्षार्थी के लिए पात्र मंगवाकर उन्हें महलों में ही रंगने का आदेश दे दिया। साथ ही दोक्षार्थो के लिए उपयोगी वस्त्र व रजोहरण आदि सर्वसामग्र भी अपनी ओर से ही मंगवाली। श्री हरकचन्दजी साहब की दीक्षा बडे उत्सव के साथ की गई । दीक्षा के पुनीत अवसर पर सारा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480