Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 399
________________ ३७४ भी इस पवित्र संघ यात्रा में सम्मलित गये । ता० ३-२-४२ के दिन ये लोग उदयपुर पहुंच गये । जब मोतीलालजी तेजावत को भीलों के आगमन का समाचार मिले तो वे भी उनका स्वागत करने के लिए उनके सामने गये । बाजार के बीच होते हुए हजारो भीलों का जूलूस पूज्यश्री की जय जय का घोष करते हुए पूज्य आचार्य महराज श्री की सेवा में पहुंचे । सारे मार्ग में भील ॐ शान्ति का गान करते थे । उस समय पूज्यश्री का व्याख्यान हो रहा था। भोल व्याख्यान स्थल पर पहुंच पूज्यश्री के दर्शन किये और बड़े संतुष्ट हुए । पूज्यश्री ने भीलों को सम्बोधित करते हुए सदाचार का उपदेश दिया । पूज्यश्री के प्रवचन से हजारों भीलों ने दूसरे दिन दारु, मांस जीवहिंसा और चोरी का त्याग किया । और अपने हाथ में तलवार लेकर सभी भील अपने मुख से इस प्रकार बोले- आज पिछे हिंसा नहीं करांगा दारु मांस नहीं खावांगा चोरी डकैती नहीं करांगा । अणा सोगन ने चूके तो माने भवानी माता पूगे । यों सर्व भीलोंने प्रतिज्ञा ली । प्रतिज्ञा की विधि में करीब एक घन्टा समय लगा । इसके बाद भीलों का शानदार जूलूस अक्षय भवन से पूज्यश्री की जय जयकार करते हुए निकला । सब से आगे पूज्यश्री थे उनके पोछे मुनिवृन्द और उनके पीछे श्रावक और उनके पीछे भीलों के नेता और बाद में भीलों का समूह था । जलूस के पीछे बहने मंगल गान गाती हुई आ रही थी । इस प्रकार यह भव्य जुलूस आम बाजार, घण्टा घर धानमंडी होता हुआ सूरंज पोल के बहार श्री रंगनिकुंज पहुँचा | सारा शहर भीलों के द्वारा बोली हुई पूज्यश्री घासोलालजी महाराज की जय, ॐ शान्ति, और अहिंसाधर्म की जय की ध्वनि से गूंज उठा । इस भव्य जूलूस को देखने के लिए सारा उदयपुर उमड पडा था । अहिंसा प्रेमी सज्जन भीलों के इस महान त्याग को देख फूले नहीं समाये और उनकी खूब प्रशंसा करने लने । समस्त आगंतुक भीलों के लिए उत्तम भोजन की व्यवस्था की गई थी । यह व्यवस्था वकिल साहब श्री मोहनलालजी नाहर श्री चन्दनमलजी नलवाया स्थानकवासी जैन संघ, श्री महावीर जैन मित्र मण्डल, श्री अस्थल के महन्तजी मालिक 'उदयप्रेस' श्री मेनेजर मालिक 'कृष्णप्रिटिंग प्रेस' श्री जगदीश मन्दिर भोजनशाला व हिज हाइनेस महाराणा साहब की तरफ से को गई थी । भील मण्डली आठ दिन तक उदयपुर में ठहरी । भील मण्डली महाराणा साहेब से भी मिली । विदाई के समय भील के अधिपति ने पूज्यश्री से अर्ज की कि हम आपके द्वारा बताये गये अहिंसा धर्म का लाखो भीलों में प्रचार करेंगे तथा हिंसा, मांस मदिरा शिकार और लूट चौरी न करने की उनसे प्रतिज्ञा करावेंगे । साथ ही समस्त उपस्थित भीलों ने एक एक बकरे को अमरिया करने का प्रण ग्रहण किया । सर्व भीलों ने पूज्यश्री से मांगलिक श्रवण किया और पूज्यश्री की जय जय कार करते हुए अपने अपने घर के लिए रवाना हो गये । स्थानीय संघ ने व श्री महावीर मण्डल ने पूज्यश्री की आज्ञा से सामुहिक दया की। जिसमें सैकड़ों श्रावक श्राविकाओं ने इस धार्मिक उत्सव में भाग लिया । इस प्रकार पूज्यश्री के उदयपुर पधारने से जो उपकार हुआ वह चिरस्मरणीय रहेगा । पूज्य श्री ने कुछ दिन तक यहाँ बिराजकर उदयपुर से बिहार कर दिया । व्यावर की तरफ पूज्यश्री का प्रस्थान मेवाड को पावन करते हुए पूज्यश्री ने पूज्य आचार्य श्री खूबचन्दजी महाराज साहब के दर्शन के लिए अपनी मुनिमण्डली के साथ व्यावर की ओर बिहार किया । श्री समीरमुनिजी शारीरिक अस्वस्थता वश उदयपुर में ही बिराजे । पूज्यश्री ठाना ३ से थामला कोशीथल आसीन्द, पडासौली, आदि गांवों में बिचरते हुए शीघ्राति' शीघ्र बिहार कर ब्यावर गुरुकुल पधारे । गुरुकुल पधारने के पूर्व ब्यावर विराजित पूज्यश्री को व मुनियों को खबर मिलते ही सरल स्वभावी स्थविर मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराज व विचक्षण सलाह कार पं० मुनिश्री केशरीमलजी महाराज आदि सर्व मुनिमण्डल व ब्यायर के श्रावक श्राविकागण पूज्य आचार्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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