Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पुत्रों को जन्म दिया । जिनमें श्रीकृष्ण सातवें और गजसुकुमाल आठवें पुत्र थे । महाराज वसुदेव के कुंती और माद्री ये दो छोटी बहने थीं । भोजवृष्णि के एक भाई मृत्तिकावती नगरी में राज्य करते थे । भोजवृष्णि के पुत्र महाराज उग्रसेन हुए । इनकी रानी का नाम धारिणी था ।
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में शौर्यपुर नाम का नगर था । वहां के शासक का नाम था समुद्रविजय । उनकी रानी का नाम शिवा देवी या । शांवमुनि का जीव अनुत्तर विमान से चवकर कार्तिक वदि १२ के दिन चित्रा नक्षत्र के योग में महारानी शिवा देवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । महारानी ने उसी रात्रि में तीर्थङ्कर के सूचक १४ महास्वप्न देखे । गर्भवती महारानी अपनी गर्भ का यत्नपूर्वक पालन करने लगी।
गर्भ के पूर्ण होने पर महारानी शिवा देवी ने श्रावन शुक्ला पंचमी के दिन चित्रा नक्षत्र में शंख के चिह्न से चिह्नित श्यामवर्णीय पुत्र को जन्म दिया । भगवान के जन्मते ही समस्तदिशाएं प्रकाश से प्रकाशित हो उठी । नरक के जीव भी कुछ समय के लिए शांति का अनुभव करने लगे । भगवान की माता का सूतिकाकर्म करने के लिए छप्पन दिग्कुमारिकाएँ आई । इन्द्रादि देवों ने भगवान को मेरुपर्वत पर ले जाकर नहलाया और उत्सव किया । माता पिता ने भी पुत्र जन्मोत्सव किया । जब भगवान गर्भ में थे तब उनकी माता ने स्वप्न में अरिष्टरत्नमयी चक्रधारा देखो थी इसलिए बालक का नाम अरिष्टनेमि रखा। अरिष्टनेमि शैशव को पार कर युवावस्था को प्राप्त हुए ।
एक समय श्रीअरिष्टनेमि घूमते हुए महाराजा श्रीकृष्ण के शस्त्रागार में पहुँच गये । शस्त्रागार का संरक्षक अरिष्टनेमि को वासुदेव श्रीकृष्ण ने शस्त्रों को दिखाने लगा । शस्त्रों का निरीक्षण करते हुए अरिष्टनेमि की दृष्टि सारंग धनुष पर पडो । उन्होंने उसी समय सारंग धनुष को उठाया । सारंग धनुष को उठाते देख संरक्षक अरिनेमि से बोला-"स्वामी यह धनुष श्रीकृष्ण के अतिरिक्त और कोई उठा नहीं सकता । यह बडा भारी और भयंकर धनुष है । आप इसे उठाने का व्यर्थ प्रयत्न न करें । अरिष्टनेमि हंसे और धनुष को उठाकर उसे कमलनालकी भान्ति झुकाकर प्रत्यंचा भी चढाई । और टंकार भी की। इस टंकार को सुनकर सभी लोग कांप गये । शस्त्रागार का रक्षक विस्फारित नेत्रों से देखता रह गया ।
उसी समय अरिष्ठनेमि ने पांचजन्य शंख उठाया और फंका । पांच जन्यकी आवाय सुनकर सारी पृथ्वी कांपने लगी और प्रजाजन घबरा उठे । उधर श्री अरिष्टनेमि ने सुदर्शनचक्र भी उठाकर और उसे
फिर गदाएं और खड़ चलाये जिनके विषय में सभी को ज्ञान था श्रीकृष्ण के अतिरिक्त उन्हें उठाने की शक्ति किसी में नहीं है ।
___अस्त्रशस्त्रों की आवाज सुनकर श्री कृष्ण के महल में खलबली मचगई । सभी बड़े बड़े वीर एकत्र हुए जिनमें श्री कृष्ण के बड़े भाई बलदेव भी थे । सभी दौड़कर श्रीकृष्ण के पास आये और बोलेगोविंद ! यह कैसी आवाजे आ रही हैं ! अभी अभी हमने सारंगधनुष की टंकार सुनी, पांचजन्य शंख की ध्वनि सुनी । कैसी आवाजे आ रहीं हैं । कोई चक्रवती या वासुदेव तो पैदा नहीं हुआ हैं ।
श्री कृष्ण स्वयं विस्मित थे । वे सोच ही रहे थे कि पहरेदार ने आकर सूचना दी कि श्रीअरिष्टनेमि शस्त्रागार में पहुचकर आपके शस्त्रों का प्रयोग कर रहे हैं। श्री कृष्ण को पहरेदार की सूचना पर विस्वास नहीं हुआ । वे स्वयं अपने साथियों के साथ आयुधशाला में पहुंचे । वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि अरिष्टनेमि सारंगधनुष को धारण कर पाँचजन्य शंख फूक रहै हैं । उनके आश्चर्य की सीमा न रही । अरिष्टनेमि ने श्री कृष्ण की ओर मुस्कराते हुए देखा और कहा-"भैया ! आपके शस्त्रागार के संरक्षक कहते थे कि इन अस्त्रशस्त्रों को आपके सिवाय और कोई नहीं उठा सकता और न चलाही सकता है। किन्तु मै इनमें ऐसी कोई विशेषता नहीं देखता ।
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