Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 388
________________ ३६३ के बिना लाभ दायी नहीं हो सकता । जिसका आत्मा में दृढ विश्वास है वही ईश्वर भजन कर सकता है । परम योगिनी मीरा बाई का उदाहरण हमारे सामने हैं । उसके ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धाने ही जहर के प्याले को अमृत बना दिया था । ईसलिए हे राजन् ? जीवन में सच्चा आनन्द व सुख शान्ति पाने की इच्छा हो तो वह ईश्वर भजन से ही प्राप्त हो सकता है । इस क्षणिकजीवन में तथा आज के अशान्त युग में हमें केवल एक मात्र ईश्वर का ही सहारा है । उसी कि हृदय से उपासना करने पर ही हमारा जीवन धन्य बन सकता है । आदि इस प्रकार पूज्यश्री ने एक घंटे तक प्रभाव शाली एवं विस्तृत व्याख्यान दिया । जिसे सुनकर महाराणा साहब एवं सामन्त वर्ग बडा हि प्रसन्न हुआ । व्याख्यान समाप्तिके बाद महाराणा साहब ने पूज्यश्री से विविध विषयक प्रश्न किये और पूज्यश्री ने उनका योग्य समाधान किया । तत्पश्चात् पूज्यश्री ने महाराणा साहेब से अपने बिहार की बात कह कर स्वस्थान पर चले आये । बाद में महाराणाजी ने कोठारीजी ऐवम् केलवा के ठाकुर साहब श्री दौलतसिंहजी एवम् फतहलालजी को भेजकर कहा कि पूज्य महाराजश्री को कंवर पदे के महलो में ठहराओ । बिहार न करने दो । जब तक पूज्य महाराज श्री यहाँ बिराजेंगे तब तक शिकार जीवहिंसा बन्द रहेगी । पूज्यश्री महाराजा साहब के आग्रह को स्वीकार कर कुंवरपदों के महल में जा बिराजे । उस दिन दोनों तपस्वियों के तेले के पारने का दिन था । पूज्यश्री के महल में विराजने से महाराणा के सामन्त वर्ग अच्छा लाभ उठाते रहें । अपने हाथ से आहार पानी को बहराया - महाराणा साहब के साथ कुछ शाकाहारी राजकर्मचारियों का भी विशाल दल था उनके लिए अलग रसोडा चलता था । महाराणा साहब ने पूज्यश्री से अपने हाथ से आहार देने की अत्यन्त इच्छा व्यक्त की । तब पूज्य महाराजश्री ने फरमाया कि हम राजपिण्ड तो ग्रहण नहीं कर सकतें । तब महाराणा साहब शाका - हारी राजकर्मचारियों के रसोडे में पधारे वहाँ पूज्यश्री को अपने हाथों से आहार पानी बहराया । पश्चात् पूज्यश्री ने फरमाया कि हाथ कच्चे पानी से न धोयेजाय तब महाराणा साहब ने पूज्यश्री से फरमाया कि यह तो गरम पानी ही । उसके बाद महाराणा साहब ने कहा आज ये मेरे हाथ भी पवित्र हो गये हैं जिससे कि आप जैसे पवित्र सन्तों को आहार पानी दान करने का मुझे सौभाग्य मिला है । आज का यह शुभदिन मुझे अपने जन्मदिन की खुशी से भी ज्यादा अच्छा लग रहा है। दूसरे दिन पूज्यश्री ललितबाग में व्याख्यान देने के लिए पधार रहे थे । कुछ बकरे कसाई खाने में लेजारहे थे । पूज्यश्री ने पूछा ये बकरे का लेजा रहे हो । उसने कहा- कसाई खाने में । पूज्यश्री ने उस समय बकरों को वही खड़ा करवा दिया और इसकी सूचना महाराणा साहब को करवाई । पूज्यश्री का आदेश मिलते ही महाराणा साहब ने एवं महाराणी साहब ने उन समस्त बकरों को अमर करवा दिये । पश्चात् पूज्यश्री ने ता० ३०-१२-४१ को ललिबाग के महल में मनकी एकाग्रता पर प्रभावशाली प्रवचन दिया- अपने प्रवचन में " मनएवमनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः - का उच्चारण कर फरमाया कि संसार में मनकी शक्ति इतनी विशाल है कि जिसका माप किया जाय तो किसी की भी ताकत नहीं कि इसका माप लगाले । मन ही आत्मा को भोग या योग में झुकाता है । ऋषिमुनि इसीलिये मन को अपने ताबे में रखते हैं क्योंकि अजर अमर पद की प्राप्ति करने की चावी इसी के पास ही में रहती है । चेतनराजा पवित्र धर्म क्रिया से खुश होकर अजर अमर पुरी का राज्य आत्मा को प्रदान करता हैं तो मन रूप खजानची आकर एसा करने से उसको रोकता है। अगर यह खुश हो तो स्वयं इस बात की प्रेरणा दे कर सुखी भी बना देता है । मन के विषय पर ही आत्माओं ने बडे बडे ग्रन्थ लिखे हैं । उसकी निन्दा और प्रशंसा से ग्रन्थों के पन्ने के पन्ने भर दिये हैं । फिर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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