Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आहार पानी का ग्रहण आदि ऐसे नियम हैं. जिन की सब जगह रक्षा होना असंभव है । फिर भी कुछ मुनि ऐसे स्थानों में भी कभी-कभी विचरते हैं और परीषहों को सहन करने में आनन्द मानते हैं । मगर प्रथम तो विद्वान साधुओं की ही अत्यन्त कमी हैं और इनमें भी अपरिचित क्षेत्रों में विचरने वाले साधु अल्प ही हैं । परिणाम यह है कि बहुत से क्षेत्र ऐंसे रह जाते हैं जहां धर्म की चर्चा ही कभी नहीं हो पाती । चरितनायकजी इसी उद्देश्य से महाराष्ट्र के क्षेत्र में विचरने लगे । महाराष्ट्र के छोटे छोटे गांव . में आप पधारते और वहाँ के निवासियों को जैन धर्म से प्रभावित करते । आपका व्याख्यान श्रवण कर हजारों व्यक्ति बीडी, सिगारेट, भांग गाँजा, मद्य, मांस, परस्त्री सेवन आदि दुर्व्यसनों का त्याग करते। महाराष्ट्र में विवरण करते समय आगामी चातुर्मास अपने यहाँ कराने के लिए अनेक गांव के संघों की विनंतियाँ आपके पास आने लगी उन में बेलापुर का संघ भी प्रमुख था । महाराज श्रीने बेलापुर संघ' की प्रार्थना स्वीकार की। और चातुर्मासार्थ आप अपनी मुनि मण्डली के साथ बेलापुर पधार गये । समाज में आपके आने से नव्य उत्साह भर गया । इस वर्ष चातुर्मास काल में धर्म ध्यान तपश्चर्या आदि कई शुभ काम हुए । व्याख्यान में लोगों की उपस्थिति अच्छी रहती थी । अनेक जन्मों के पुण्य से. ऐसे सन्तों के सहास का सुअवसर जीवन में यह प्रथमवार हुआ था। इसलिए आप श्री के व्याख्यान का. प्रत्येक .. व्यक्ति रुचि पूर्वक लाभ लेता था । प्रतिदिन व्याख्यान के समय बोधामृत का पान करने से वहां के : श्रावक-श्राविकाओं की धार्मिक -भावना में विशेष वृद्धि हुई
इस चातुर्मास में कोटा संप्रदाय के पं० रत्न श्री प्रेमराजजी महाराज एवं घोर तपस्वी श्री देवीलाल जी महाराज भी यही बिराजमान थे । पं० मुनि श्री के साथ छह अन्य मुनिराज भी थे । तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज ने धोवन पानी से ५९ दिन की तपश्वर्या की। तपस्वी श्री देवीलालजी महाराज ने भी लम्बी तपश्चर्या की ! तपश्चर्या की पूर्णाहुति के दिन नगर के समस्त कतलखाने बन्द रखे गये थे । तपस्वियों के दर्शनार्थ बाहरसे बड़ी संख्या में जनता को उपस्थिति हुई। धर्मध्यान आशातीत हुआ । पं० मुनि श्री प्रेमराज जी म. के एवं पं० मुनि श्री घासीलालजी महाराज के व्याख्यान सम्मिलित हि होते थे ! दोनों के प्रवचन मराठी भाषा में होते थे । मराठी में व्याख्यान होने से महाराष्ट्रीय जनता बडो संख्या में उपस्थित होती थी ।
' इस प्रकार वि० सं० १९८२ का सफल चातुर्मास संपूर्ण कर आपने पूज्य आचार्य श्री की सेवामें.... जलगांव की ओर विहार कर दिया।
इधर जवगांव का दूसरा चातुर्मास व्यतीत कर पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज सा. ने मालवा प्रान्त की ओर विहार कर दिया । आपको भी मालवा को ओर विहार करने का आदेश मिला । गुरुदेव का :, आदेश मिलते ही आपने मालवा की ओर विहार कर दिया । मार्ग में ही आपने पूज्य श्री के दर्शन : किये । माघ पूर्णिमा के दिन आपने पूज्यश्री जवाहरलालजी महाराज श्री के साथ रतलाम में प्रवेश किया। पूज्य श्री के आगमन के बाद संप्रदाय के मुख्य मुख्य करीब ४५ सन्तों का भी आगमन हुआ। लगभग इतनी ही संख्या में सोध्वियां भी उपस्थित हुई । हजारों श्रावक पूज्य श्री तथा मुनिमण्डल के दर्शन करने . की अभिलाषा से उपस्थित हो गये थे । रतलाम संघ ने आगन्तुक श्रावकों का भाव भीना स्वागत किया।
जावरा वाले सन्तों के अलग हो जाने पर पूज्यश्री हुक्मीचन्द्रजी महाराज के संप्रदाय में दो आचार्य . हो गये थे । दूसरे पक्ष के आचार्य पूज्य श्री मन्नालालजी महाराज थे। दोनों धुरन्धर आचार्यों ने समप्रदाय को एकता के सूत्र में बान्धने का विचार किया। तदनुसार पूज्य श्री मन्नालालजी महाराज मी अपनी शिष्य मण्डली के साथ रतलाम पधार गये थे । दोनों पक्षों की ओर से सांप्रदायिक एकता के
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