Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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महानुभावों ने पट्टे लिखकर महाराजश्री को भेट किये थे। कराची की ओर प्रस्थान
वि सं १९९२ मिति चैत्र शुक्ला अष्टमी गुरुवार ता ११-४-१९३५ को नागौर (मारवाड) से महाराजश्री का शुभ विहार हुआ । प्रथम दिन नागौर के बाहिर प्रतापसागर तालाव के उपर श्रीरामचन्द्रजी की बगीची में बिराजे । यहां पर नागौर श्रीसंघ ने एक अनोखा उत्साह प्रकट किया । श्रीसंघ के अधिक आग्रह से मुनिश्री दूसरे दिन भी वहीं बिराजे । दूसरे दिन प्रवचन का कार्यक्रम रखा गया । प्रवचन में नागौर शहर का विशाल जन समुदाय मुनिश्री के प्रवचन में उपस्थित हुआ । मंगलाचरण के बाद मुनिश्री ने धर्म का स्वरूप समझाते हुए कहा-"धर्म प्रजा का मूल है । आत्मामें रहे हुए सद्गणों को प्रकट करने वाला एक मात्र धर्म ही है । धर्म मनुष्य से देवता बनाने में सहायभूत होता है । धर्म भव समुद्र को पार करनेवालो महान नौका है । उस पर बैठ कर ही हम पार हो सकते हैं । उन्हें पकड रखने से नहीं । सूर्य के प्रकाश की तरह धर्म सब के लिए प्रकाशदायी है । सूर्य के प्रचण्ड प्रकाश पर किसी को स्वामित्व नहीं, किन्तु उपयोग हर कोई कर सकता है । यही बात धर्म के लिए भी लागु होती है। धर्म जब तक कर्तव्य के साथ और कर्तव्य धर्म के साथ नहीं चलता, तब तक धर्म जीवन की कला नहीं बन सकता, और वह कर्तव्य जीवन का आदर्श नहीं हो सकता । शास्त्र में कहा है
जरामरणवेगेणं बुज्झमाणाणपाणिण धम्मो दीवो पइट्टाय, गईसरणमुत्तमं ॥१॥ __अर्थात् जरा और मरण के महाप्रवाह में डूबते प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप है, प्रतिष्ठाका आधार है, उत्तम गति लेता हैं, और उत्तम शरण है । १. धर्म के विषय पर मुनिश्री ने करीब एक घंटे तक प्रवचन फरमाया । प्रवचन का जनता पर अच्छा प्रभाव पडा । लोगों ने अपनी शक्ति के अनुसार अनेक प्रकार के त्याग प्रत्याख्यान ग्रहण किये ।
तीसरे दिन प्रातः होते ही मुनिश्री ने शुभ चैत्र शुक्ला १० शनिवार के दिन अपने नौ मुनिराजों के साथ विहार कर दिया । नागौर संघ ने गुरुदेव को बडे व्यथित हृदय से विदा दी।
चैत्र शुक्ला १० शनिवार १३ अप्रेल १९३५ के दिन मुनिश्री अपनी शिष्य मण्डली के साथ गाडितो को कुमारी पहुंचे । यहां १०-१२ घर हिन्दुओं के थे । गाडीत में मुसलमानों की ही अधिक वस्ती थी यहां करीबन एक हजार मुसलमानों के घर थे । प्रायः समस्त गांव यवनमय ही था फिर भी हिन्दुओं का एवं जैनों का ग्रामवासियों पर इतना अच्छा प्रभाव था कि यहां पर पर्युषणों के आठों हि दिनों सम्पूर्ण हिंसा बंद रहती थी । और आठो हि दिन अगते पाले जाते थे । यहां श्रीयुत माणकचन्दजी मुनावत बडे श्रद्धाशील व्यक्ति थे । उन्होंने मुनिजनों की अच्छी सेवा की।
मुनिश्रोने शामको करीब पांच बजे यहां से विहार कर दिया । और कुमारी पधारे । वासण से कुमारी २ मील पर है । यहां भी गाडीत मुसलमानों की ही अधिक वसती थी। रात को एक मन्दिर में ठहरें । यहां हवालदार साहब श्रीमान् रामनाथजी लोढा जोधपुर के पुष्करणा ब्राह्मण थे । आप बडे सभ्य सुशील एवं गायन वादन विद्या में निपुग थे । रात को उपदेश श्रवण किया और बडी भक्ति की । चैत्र शुक्ला एकादशी १४ अप्रैल को प्रातः कुमारी गांव से महाराजश्री ने विहार कर दिया और ६ मील पर स्थित सिनोद नामक गांव में पधारे । _यहो पर अधिकतर जाटों किसानों की ही बसती थी । बडा तालाब भी है । यहां श्रीमान् बन्शीधरजी व्यास पुष्करणा ब्राह्मण हवाल दार थे । आप बडे भक्त और सुज्ञ थे । मुनिश्रीजी जब यहां से विहार करने लगे तब बडे आग्रह से उनको रोक लिया। रात्रि में महाराजश्री का 'रात्रिभोजन' पर प्रवचन
चन
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