Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 384
________________ आदि मुख्य सेवाभीवी सज्जन हैं । चारसो घर नीमा महाजन के हैं। सन्तों के प्रति इनकी अच्छी भक्ति है ये सर्व वैष्णव धर्म के अनुयाई हैं । किन्तु पूज्यश्री के प्रवचन से बड़े प्रभावित थे । सभी लोग व्याख्यान श्रवण करते थे । रामस्नेही संत चौकसीरामजी भी व्याख्यान श्रवण करते थे। पूज्यश्री रामद्वारे में बिराजते थे । रात्रिको आम बाजार में व्याख्यान श्री पं. रत्न मुनिश्री कन्हैयालालजी महाराज के जाहिर व्याख्यान होने लगे । हिन्दुमुसलमान सर्व कोम के लोगों की बडी हाजरी रहती थी। बांसवाडा धर्म मार्ग में जागृतबन गया आचार्य श्री के सुबह व्याख्यान शहर में होते थे । मेवाड की तरफ बिहार बांसवाडे में पूज्यश्री के बिराजने से अच्छी धर्म प्रभावना हुई । माहाराजा साहब ने एवं महाराज कुमार ने पूज्यश्री का व्याख्यान श्रवण कर बडा हर्ष प्रगट किया । नगर निवासियोंने भी पूज्यश्री के प्रबचनों का अच्छालाभ लिया । बांसवाडे में पुनः उदयपुर महाराणा का पत्र आया कि पूज्यश्री शीध्र हि मेवाड को अपनी चरणधूलि से पावन करें । महाराणा साहब के आग्रह को ध्यान में रखकर पूज्यश्री ने बांसवाडे से ता० १०-१२-४१ को अपनी मुनि मण्डली के साथ मेवाड की तरफ बिहार कर दिया। बडगांव चन्दुजी रोगडो भूगानो लवारिया, लसाडा छोटा, वोडीगाव मार आसपुर वीरवास आदि गावों को क्रमशः अपने अमृतमय प्रवचनों से जनता को लाभान्वित करते हुए सलूम्बर पधारे । बांसवाडे से सलूबर तीस कोष पडता है । मार्ग में आपने सेकडों आदिवासीभीलों को मांस मदिरा शिकार एवं जीवहिंसा का त्याग करवाया । अनेक जैन भाईयों को सम्यक्त्व दी । सलूम्बर तक प्रायः गावों में दिगम्बर जैन सम वस्ती है । लसाडा गांव जो अधिक पाटिपारों की वस्तीवाला है । इसके पास ही बांसवाडा डुगरपुर रियासत के सरहदी महीसागर नामकी बड़ी नदी है । इस नदी का उद्गम स्थल मालवा है। यह नदी सैलाना बांस. वाडा, उदयपुर डुगरपुर गुजरात में होती हुई रवंभात के आखात में समुद्र से जाकर मिलती है । इस नदी का जेनागमों में भी उल्लेख आता है ।। सलुम्बर मेवाड के सोले के ठिकाने में से एक मुख्य ठिकाना है । यहाँ के रावजी का नाम खुमा नसिंही है । सलूम्बर पहले पहाडपर बसा हुआ था । आज भी पहाड पर महल एवं किल्ला है । इसके चारों ओर दरतक कोट घिरा हुआ है । अब पहाड के नीचे दो विभाग में यह शहर बसा हुआ हैं । नया सलूम्बर जना सलूम्बर के नाम से ईसकी प्रसिद्धि है । नये ओर पुराने शहर में दिगम्बर समाज के ही अधिक घर है। कुछ मूर्तिपूजक श्वेताम्बरों की भी बस्ती है । वहाँ पर एक भी स्थानकवासी का घर नहीं हैं। यहाँ भी बागड संस्कृति के ही दर्शन होते हैं । पूज्यश्री के यहाँ पधारने की किसी को इत्तला नहीं थी। शहर में पधारने पर साथ में कोई श्रावक नहीं होने से यथा समय मकान नहीं मिलसका । बाद में वैद्य गोवर्घनदासजी जिनका सरकारी मंदिर में दवाखाना है । उन्होंने भंडारी गोपीलालजीका दरीखाना खुलवा दिया। भंडारीजी साहब एवं श्री कन्हैयालालजी साहब बडे ही लायक आदमी है । आपका मुनियों के प्रति बडा अच्छा प्रेम भाव हैं । यहां के कामदार साहब मोहम्मदशफीक व मजिस्ट्रेज जगदीशकुमारजी बडे श्रद्धालु राजकमजारी हैं। आप दोनों को पूज्यश्री के सलूम्बर पधारने के खबर गुरांसा भैरुलालजी ने जाकर दी । खबर प्राप्त होते ही आप दोनों पूज्यश्री के दर्शन के लिये आये व उपदेश सुना । ये सज्जन पूज्यश्री के प्रवचन से बडे प्रभावित हुए । पूज्यश्री ने अपने प्रवचन में विश्वशान्ति के लिए ॐ शान्ति की प्रार्थना का रहस्य समझाया । पूज्यश्री ने अपने प्रवचन के अन्त में दोनों सज्जनों को एक दिन के अगते के साथ ॐ शान्ति की प्रार्थना करवाने का कहा । पूज्यश्री के आदेश को शिरोधार्य कर दोनों भाईयों ने राज्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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