Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पर युद्ध कर विजय प्राप्त की थी । अन्त में इनका जोवन धार्मिक बन गया था । ये संन्यासी बन गये थे
और संन्यास अवस्था में ही इन्होंने तिलवाडा में समाधि ग्रहण की । उनके समाधि के स्थान पर विशाल मन्दिर बनाया गया । इनकी पुण्य स्मृति में हजारों मालाणी अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए यहां प्रति वर्ष एकत्र होते हैं । यहां के लोग प्रायः गरीब होते हैं । गोल छत्री के आकार का घास अ मकान बनाते हैं । ये दस-दस पांच-पांच के झुपडों में रहते हैं । जिसे यहां ढानी कहा जाता है । यहां के ठाकुरों का एक कवि ने हुबहु वर्णन किया है
ठाकोर मनके ठाठले मनमें ही राखे ठाठ । घर में चादर एक है ओढनवाले आठ ।
ठाकुरों को अन्दर की पोल और उपर के ठाठ का अच्छा चित्र खोंचा है । इस प्रदेश में ५५० । है । कहा जाता है इनमें केवल एक ही गांव खालसा है बाकी के सब जागोरदार है इनमें २१६ गांव ऐसे है जिनमें कहीं कहों जैनों की वस्ती अवश्य मिलती है । लेकिन ये नाम मात्र के जैन हैं । प्रायः जंगली लोगों की तरह ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं । संस्कार विहीन और शिक्षा रहित हैं । ये इनके रहन सहन और व्यवहार से कोई भी यह नहीं जोन सकता है कि ये भी वणिक हो सकते हैं। यहां ओसवालों के बारह घर हैं। जिसमें सात घर स्थानकवासियों के और पाँच घर तेरह पन्थियों के हैं । मगर आपस में प्रेम अच्छा था । गुलाबचन्दजी साहब एवं चन्दनमलजी भणसाली यहां के मुखिया थे । इन्होंने महाराज श्री का उपदेश सुनकर प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमर करने का प्रण लिया । और भो अनेक श्रावक श्राविकाओं ने विविध त्याग प्रत्याख्यान किये । यहां से महाराज श्री ने शामको विहार किया चमना नामका कुम्भार ने सोढा की ढाणियों तक महाराज श्री के साथ साथ में आया इसने महाराज के उपदेश से जीवहिंसा का त्याग किया ।
दूसरे दिन ता० ५ मई को गोल नोमक स्टेशन पर महाराज श्री ठहरे । बडे स्टेशनमास्टर साहब घनश्यामदासजी जोधपुर के श्रीमाली ब्राह्मण थे और छोटे बाबूजी मनसुखरामजी काठियावाड के ब्राह्मण थे बडे सुज्ञ और भक्त थे । महाराज श्री यहां रेल्वे क्वाटर में ठहरे । यहां पर पुरोहित, सरदार तथा बाह्मणों आदि की १०-१२ ढाणियां थी गोचरी पानी का अच्छा सुभीता मिला । यहां सब लोग इंजन का गर्म पानी ही पीते थे । क्यों कि मीठा पानी यहां से आठ मील दूर पर मिलता है।
६ मई को विहार कर महाराज श्री ७ मील पर भीमरलाई नामक स्टेशन पर पधारे । यहां रास्ते में भोमलो नामक एक जाट कत्ल के लिए एक बकरा लेकर जा रहा था। उसे महाराज श्री ने उपदेश दिया जिससे उसने बकरे को तपस्वीराज के चरणों में भेट रख दिया और तपस्वीराज ने बकरे को अम. रिया करने का उपदेश दिया उसने सहर्ष स्वीकार किया । यह जाट गुमनाजी की ढाणी के पास का रहनेवाला था । महराजश्री फिर स्टेशन पर पधारे। आस पास आध-आध तथा एक-एक मील पर बहुत सी ढाणियाँ हैं । यहाँ सन्तों के लिये आहार की पर्याप्त प्राप्ति हो गई। इधर प्रायः सब स्टेशनों पर व आस पास की ढाणियों में इंजन का ही गरम पानी काम में लिया जाता था । धोने धाने में खारा पानी काम में लाते । यहां तक को भोजन करके चळु करना हाथ धोना भी खारा पानी से करते । सिर्फ पोने ही के काम में मीठा पानी लिया जाता । साम को विहार हुआ । रात को जंगल में ढाणियों के पास वृक्ष के नीचे रहै । आईदानजी और अचेलोजी जाट रात को आये।
महाराजश्री के पास धर्मोपदेश सुना और दोनों ने साप बिच्छू आदि किसी भी प्राणियों को जानबूझ कर मारने के प्रत्याख्यान किये तथा प्रति वर्ष एक एक बकरा अमर करने की प्रतिज्ञा ग्रहण की । इन्होंने तेरह पन्थ के विषय में प्रश्न कर समाधान प्राप्त किया ।
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