Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 352
________________ 11 प्रातः समय परम मंगलकारी था क्योंकि आज पूज्यश्री का शहर में प्रवेश हो रहा था। सर्व के आगे श्री धमदास जैनमित्रमण्डल की पाठशाला के विद्यार्थी केसरियां टोपी से सज कतार बन्ध चल रहे थे । उनके बाद पूज्यश्री अपनी शिष्य मण्डली के साथ कदम आगे बढ़ा रहे थे । बाद में रतलाम के हजारों स्त्री पुरुष पून्च की जय जय कार करते हऐ एवम मंगल गान गाते हए चल रहे थे। समय सहावना था । दृश्य रमणीय था पूज्यश्री बड़ी सड़क से होते हुए नीम चौक में पधारे । वहां पहले से ही स्थविरपदविभूपित तपस्वी श्री हजारीमलजी महाराज सलाहकार परमहितेषी पं. मुनिश्री केशरीमलजी महाराज सेवा भावी मुनिश्री प्रेमचन्द्रजी महाराज ठाना ४ से बिराजित थे। तपस्वी श्री के दर्शन कर मांगलिम सुनकर बजाजखाना में होते हुए पूज्यश्री ने वि शाल जनसमुदाय के साथ श्री धर्मदास जैन मित्रमण्डल के भव्य भवन में प्रवेश किया । भवन जय ध्वनि से गूंज उठा । जय ध्वनि सुन कर आस पास का जन समूह उठ उठ कर देखता था व पूज्यआचार्यश्री का दर्शन करता था । वास्तव में यह अपूर्व दृश्य था। पूज्यश्री व सलाहकार पं. मुनिश्री केशरीमलजी म० के मुखाविंद से मांगलिक प्रवचन सुनकर जनता विसर्जित हुई । पूज्यश्री अपनी अमोघवाणी द्वारा संसार के कलुषित वातावरण से संतप्त अनेक भव्य प्राणियों के हृदय को संतोषित करने लगे । पूज्यश्री के व्याख्यान हौल में पधारने तक तो जनता का खूब जमाव हो जाता था, व्याख्यान भवन में जनता का समावेश न होने से सड़क पर टीन का छपरा खींचवाया गया । व्याख्यान समाप्ति का समय हो जाने पर भी लोगों की यही इच्छा रहती थी कि पूज्यश्री अभो व्याख्यान फरमाते हि रहे । क्योंकि पूज्यश्री की वाणी लोगों को अति प्रिय लगती थी। पूज्यश्री को वाणी मोर्मिक तथा सरल होने से हरएक आ बाल वृद्ध अच्छी तरह से समझकर लाभ उठा सकते थे । दोनों सम्प्रदाय का एक ही स्थान पर व्याख्यान होता था । मुनिराजों का पारस्परिक स्नेह भाव आदर्श एवं अनुकरणीय था । ॐ शान्ति की प्रार्थना का भव्य आयोजन: श्रावनवदी १४ ता० २-८-४० को पूज्यश्री के आदेशानुसार श्रीमन्त महाराजाधिराज महाराजा श्री १०८ श्री मेजर जनरल हिज़ हाईनेश सर सज्जनसिंहजी साहेब बहादुर G.C. I. E. K. C. I. E.K. C. S. I. K. C V.O.C To His Imperial Majes:y. ने सारी रियासत में उस रोज जीवहिंसा नहीं करने का आदेश जारी किया । पूज्यश्री का ईश्वर प्रार्थना पर मार्मिक प्रवचन स्वस्थान पर ही हो रहा था । जैन अजैन श्रोता गणों से व्याख्यान भवन खिचोखिच भरा हुआ था । पूज्यश्री की अमृतवाणी भव्यजीवों के हृदय को पवित्र कर रही थी। उसी समय श्रीमान् लक्ष्मीनारायणजी साहब सेक्रेटरी स्टेट कोन्सिल ने महाराजा साहब की तरफ से आ कर प्रार्थना कि की श्रीमंत महाराजा साहब मित्र निवास में ॐ शान्ति के विषय पर व्याख्यान सुनना चाहते हैं । उस पर पूज्यश्री १०॥ बजे मित्र निवास महल में पधारे । साथ में जनता भी जयध्वनि करती हुई वहां पहुँची । वहां पर श्रीमन्त महाराजा साहेब, तथा श्रीमन्त महाराज कुँवर साहेब, मेजर साहेब, दिवान साहेब, उच्चकर्मचारीगण आदि पधारे थे । मित्र निवास के अन्दर के कमरे में श्रीमती राजमाता महारानी साहिबा भी प्रवचन सुनने के लिए बैठ गई थी। पूज्यश्री का प्रवचन साढे ग्यारह बजे तक हुआ । १५-मिनिट तक एकान्त में महाराजा साहब ने महाराजश्री से वार्तालाप किया । इसके बाद माहाराजश्री अपने शिष्य मण्डली के साथ स्वस्थान पधारे । पयूषण पर्वाराधान . भाद्रपद शुक्ला पंचमी को पर्वाधि राज पर्युषण पर्व की भव्य आराधना की। व्याख्यान में प्रतिदिन ७ ८ हजार जनता एकत्र होती थी । व्याख्यान के लिए एक भव्य पाण्डाल बनाया गया था। व्याख्यान में प्रथम मनोहर व्याख्यानी मनोहरलालजी महाराज सुबोधवक्ता श्री हरखचन्दजी महाराज सूत्रकृतांग अनेक हेतु दृष्टान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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