Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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नसीराबाद निवासी बाबु घीसूलालजी ने महाराज श्री की बहुत अच्छी सेवा की । रात्रि में तीन चार घंटे तक महाराज श्री से धार्मिक चर्चा करते रहे ।
२८ मई को आपने प्रातः बिहार कर दिया । सात मील का बिहार कर जालुजोचानरी पधारे । यह गांव तो सर्पो का एक निवास स्थल है। सर्पो के डर के मारे मास्टर लोग बेचारे दिन में हि भोजन करके खाट पर चढ जाते थे नागदेवों की इस गांव पर बडी कृपा थी सर्वत्र इनका ही एक छत्र राज्य था । रात्रि में रेल्वे कर्म चारियों को जब रेल गाडी को यहां से निकालनी पडती थी तब बडी सावधानी रखनी पडती थी। गर्मी के दिनों में गर्मी के कारण सैकडों सर्प रेल की पटडियों पर आ जाते थे और रेल के चक्कों के नीचे आ आ कर कट जाते थे । जहां तहां कटे हुए सर्पो के शवही शव ही पटडियों पर नजर आते थे वर्षा के समय तो उनके बिलों में पानी भर जाने से हजारों की संख्या में सर्वत्र सर्प दृष्टिगोचर होते हैं । यहां के निवासी प्रायः खाट पर ही रहते हैं। मुनिराजों के लिए तो यहां बड़ी समस्या उत्पन्न हुई । खाट का तो मुनिराज कभी भी उपयोग नहीं कर सकते थे और न रात्रि में दीपक के प्रकाश का ही । स्टेशन मास्टरों ने सर्प के बचाव के लिए सन्तों को खाट ला ला कर महाराजश्री के सामने रखवा दिये और कहा रात्रि में आप खटिया पर ही रहैं वरना सर्पो के आप ग्रासबन जायेंगे । मुनिराजों ने कहा हमलोग जैन मुनि शरीर की अपेक्षा अपने आचार धर्म को अधिक महत्त्व देते हैं । हम तो सभी प्राणियों के साथ मैत्री रखते हैं किसी को मन से भी शत्रु नहीं मानते । सर्प भी हमारे मित्र ही है । हम इन मित्रों के साथ ही रात्रि व्यतीत करेंगे । हम लोग खटिया का उपयोग कभी नहीं करतें । महाराज श्री के इस त्याग व इस धैर्य से सभी को बडा आश्चर्य हुआ । रात्रि में प्रतिक्रमण के बाद स्टेशन मास्टर एवं अन्य कर्मचारी गण महाराज श्री को सेवामें उपस्थित हुए । प्रवचन हुआ । महाराज श्री ने अहिंसा पर प्रवचन दिया । प्रवचन बडा हि सुन्दर रहा । स्टेशन मास्टर आसापूरीजी ने एकादशी अमावस्या पूर्णिमा आदि तिथियों में रात्रि भोजन का त्याग एवं शील पालने का नियम ग्रहण किया एवं प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमर करने का प्रण किया । अनेक व्यक्तियों ने दारू माँस जीवहिंसा का त्याग किया । कमालखाँ मरखानी मुसलमान ने सदा के लिए जीवहिंसा दारु मांस शिकार का त्यागकर जैनधर्म स्वीकार किया। यहां के स्टेशन मास्टर ने आगे के स्टेश न मास्टर को तार से सुचना दी कि यहां से बडे चमत्कारी त्यागी सन्त महात्मा आ रहें हैं। उनकी सेवा में किसी प्रकार की खामी न रहनी पाए ।
___ महाराज श्री ने सपों के बीच ही रात्रि गुजारी । जब रात्रि में सन्त सो गये तो सर्प भी मुनिराजों की रक्षा करते हुए इधर उधर फिरने लगे। सच ही किसी नितिकारने कहा है "धर्मो रक्षति रक्षितः” । जो धर्म की रक्षा करता है उसकी धर्म भी रक्षा करता है । रात्रि का काल बडी शान्ति के साथ व्यतीत हुआ । किसी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ।
प्रातः होते ही स्टेशन मास्टर महाराजश्री के पास पहुँचे । सो की नगरी में सन्तों को सुरक्षित देख उन्हे बडा आश्चर्य हुआ । ये लोग महाराज श्री के तप त्याग की भूरी भूरी प्रशंसा करने लगे । महाराज श्री ने प्रातः काल यहां से विहार कर दिया । सात मील लम्बा विहार कर आप परचेजिवेरी पधारे । यहाँ के स्टेशन मास्टर एवं अन्य रेल्वे कर्मचारी गण पहले से ही उत्सुकता के साथ महाराज श्री के पधारने की प्रतीक्षा कर रहे थे । महाराज श्री के पधारते हो जय ध्वनि के साथ सर्वने स्वागत किया । स्टेशन पर ही एक क्वाटर्स में महाराज श्री को उतारे । आहार पानी के बाद महाराज श्री का प्रवचन हुआ । प्रवचन में स्टेशन के सभी कर्मचारीयों ने हिस्सा लिया । प्रवचन के पश्चात् महाराज श्री के उपदेस से टिकीट बाबु ज्वालाप्रसादजी कायस्थ ने दारू मांस का सदा के लिये त्याग किया ऐवं एकादसी अमावस्या आदि पांच तिथि
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