Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 317
________________ २९८ लहाने गोविन्दरामजी ने दार मांस, व जीवहिंसा का सदा के लिए त्याग किया । चंबा स्टेट के निवासी नानकपंथी वैद्याचार्य संन्यासीजी ने जैन शास्त्राचार्य पूज्य श्री के एवं तपस्वीजी के दर्शन कर • अत्यन्त प्रसन्नता प्रगट की । आपने प्रतिमाह पांच दिन तक हरिखाने की प्रतिज्ञा को। नेपाल सरदार महेश्वरसिंहब्रह्मा फासि स्ट कंट्राक्टर आपने उपदेश सुनकर बडी प्रसन्नतो प्रगट की। आध्यात्मिक विषय पर देढ घंटे तक चर्चा करते रहें। महाराजश्री के गहन तत्व ज्ञान से ये बड़े प्रभावित हुए। आपने एकादशी को निर्जला उपवास करने का नियम लिया । कमलनेन व सुजानमल ने सर्वथा दारु मांस का त्याग किया। सेठ दिनशाजी पेस्तन जी दस्तुर फारसी मेनेजर सिंध प्रोविशियलबेंक तथा इनके पुत्र नोरजने दर महिने की पहली तारीख को दारू मांस एवं शराब का त्याग किया, इलेक्टरिक इंजिनीयर होरमजी भिखाजी खरास ने सदा के लिए दारु मांस का त्याग कर दिया। मुनिसिपल कोन्सलर डॉ० ताराचन्द लालवाणो ने महाराजश्री का उपदेश सुनकर अनेक नियम ग्रहण किये। यहां तक की पहली तारीख को वनस्पति खाने का भी त्याग किया । इस प्रकार नगर के सेकडों मुसलमान भाईयों ने तथा हजारों सिन्धि भावुकों ने दारु मांस एवं जीवहिंसा का त्यांग किया । नगर के प्रायः अधिकारी गण एवं मुख्य मुख्य प्रतिष्ठित सज्जनों ने व्यापारियों ने सन्तों के दर्शन कर त्याग प्रत्याख्यान द्वारा तपस्वियों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की। लधुतपस्वीजी मांगीलालजी महाराज ने एकोत्तर दिन की तपश्चर्या की थी। तपस्या की पूर्णाहुति का समय ज्यों ज्यों नजदीक आता था त्यों त्यों धर्म की जागृति बढने लगी । संघ के उपमंत्री श्रीमान् गोकलदास महादेव भावसार आपने तपस्वीजी महाराज के पारनेपर महान उपकार का कुलभार श्री संघ को प्रार्थना कर अपने उपर ले लिया । आपने तपश्चर्या की पूर्णाहुति के अवसर पर दो अनाथाश्रमों को, विधवा श्रम को, तथा अन्धशाला को एवं स्कूल के सभी छात्रों को भोजन कराया और गरीबों को तथा साधर्मि भाईयों को आर्थिक सहायता दी। रोहतक के सेट श्रीजोतराम केदारनाथ सेठ पन्नालालजी साहब ने अपनी तरफ से कराची के तथा आस पास के बगीचे में पहाड आदि आश्रम में रहने वाले योगी संन्यासियों को भोजन कराया । बडे बडे योगी लोग सैकडों की जमात में एकत्र होकर जैन धर्म की जय बोलते हुए तपस्वीजी के दर्शन के लिए आये । दर्शन कर बडे प्रसन्न हुए । लोगों ने भी योगियों का एवं संन्यासियों का स्वागत किया । घोर तपस्वीजी श्री सुन्दरलालजी महाराज ने ९६ दिन की सुदीर्घ तपस्या की थी । तपश्चर्या की पूर्णी हति का समय ज्यों ज्यों समोप आता जाता था त्यों त्यों दूज के चन्द्र की तरह लोगों का उत्साह भी बढता जाता था। तपश्चर्या का समय नजदीक आ गया । जैन संघ ने तपोत्सव अत्यन्त उत्साह से मनाने के लिए सर्वत्र पत्र पत्रिका को छाप कर भारत के मुख्य मुख्य नगरों में एवं ग्रामों में भेजी गई । सिन्धी, गुजराती हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में बुलेटिन छापकर समस्त नगर में वितरित किये । जैन उपाश्रय के बिहार होस्पिटल रोड पर बडे बडे कपडों पर स्वर्णाक्षरों में तपस्वीजी के तपश्चर्या की पूर्णाहुति महोत्सव लिखकर लटकाये गये । पूर्णाहुति के दिन कराची के कसाईखाने बन्धरहे इस भावना से पं. श्री घासीलालजी महाराज ने म्यु. कोन्सलर साहेब श्री खीमचन्द माणकचन्द शाह के द्वारा कसाईगृह के संचालकों को तपस्वीजी म० के दर्शनार्थ बुलवाए गये । जहां की साढे तोन लाख जनता मांसाहार करती हो वहां कितने जानवर मारे जाते होंगे यह कल्पना से बाहर को बात है । लगभग ५० कसाई जैन उपाश्रय में आकर तपस्वीजी म० के दर्शन किये । जिनका कद्दावर भारी भरखमशरीर, मुख का रौद्रस्वरूप, बडा भयावना प्रतीत होता था । उनको पंडित मुनिश्री ने अहिंसा धर्म का उपदेश कुरानेशरीफ की आयतों से एवं मुस्लिम सन्तों के सुवचनों के अनुसार दिया । उपदेश सुनकर सभी कसाई भाई बडे प्रभावित हुए । अन्त में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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