Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जमनालालजी बजाज, सेठ पुनमचदजी रांका, आदि प्रतिष्ठित सज्जनों ने मुनियों के दर्शन कर एवं उनके . प्रवचन सुन आनन्दानुभव किया । इस चातुर्मास में तपस्वी मुनियों ने भी अच्छी तपश्चर्या की ।।
आषाढ की अमावस्या के आसपास आचार्य श्री जवाहरलालजी म. की हथेली में फोडा हो गया । उस फोडे से आचार्य श्री को असह्य पीडा होने लगी । मुनियों ने उसे सामान्य फुन्सी समझ कर चाकू से चीर दिया और उसमें का पीप निकाल दिया । एक दो दिन तक तो आराम मालम हुआ किन्तु तीसरे दिन फोडे ने उग्ररूप धारण किया । वह साधारण फोडा विशाल रूप में सामने आया । फोडा बढता गया । यहां तक की कोहनी तक उसकी सूझन फैल गई । चिकित्सा के लिए स्थानीय डॉक्टर बुलाये गये । उन्होंने फोडे का ऑपरेशन किया । ऑपरेशन से चार-पांच दिनतोठीक लगा किन्तु फोडे ने पुनः अपना उग्र स्वरूप बताना प्रारंभ किया । स्थिति यहा तक बढ गई कि पूज्य आचार्य श्री का जीवन भी खतरे में . दिखाई देने लगा । जलगांव के बडे २ सभी डॉक्टरों ने पूज्य श्री के स्वास्थ्य के विषय में निराशा व्यक्त ... की । एक ज्योतिषी पूज्य श्री की जन्म कुण्डली देखकर बोला- पूज्य श्री के ग्रहयोग यह बता रहे हैं कि पूज्य श्री इस असाध्य बिमारी से बच नहीं सकतें । रोग का उपचार तो चल रहा था किन्तु डॉक्टरों एवं ज्योतिषियों के मुख से निराशा जनक उत्तर सुनकर पूज्य आचार्य श्री अधिक घबरागये । उन्हे रोग से भी अधिक मानसिक पीडा का अनुभव होनेलगा। उन्हें ऐसा लगता था कि में अब अधिक समय तक जीवित नहीं रहूँगा । वे सब के साथ एसी ही बात कर रहे थे जैसे मृत्यु के समीप पहुँचा हुआ व्यक्ति बात करता है। पं० मुनिश्री घासीलालजी महाराज ने इस अवसर पर बडे धैर्य का परिचय दिया । वे पूज्य श्री की निरन्तर सेवा में रहने लगे । वे पूज्य श्री के पास उन्ही डाक्टर को आने देते जो पूर्ण निष्णात हो । पूज्यश्री की जांच करने को आने वाले डॉक्टर को एकोन्त में बुलाकर पहले ही कह देते। थे कि बिमारी विषय में पूज्यश्री से एक शब्द भी न कहा 'जाय । वे यदि पूछे तो उन्हे कह दीजियेगा- कि आप शीघ्र ही अच्छे हो जायेंगे । घबराने की जरा भी आवश्शयकता नहीं । जो कुछ भी आप कहें उनके मन को किसी भी प्रकार की ठेस नहीं लगनी चाहीए । ,,
एक बार पं० मुनिश्री घासीलालजी म० जंगल (शौच) गये हुए थे । पीछे से श्रावक लोग एक डॉक्टर को पूज्य श्री के पास ले आये । डॉक्टर ने पूज्यश्री के रुग्ण हाथ को देखकर कुछ एसी बात कह दी कि जिससे पूज्यश्री के मनोबल पर विपरित असर हुआ । उधर पं० मुनिश्री जब स्थान पर आए तो पत्ता चला कि पूज्यश्री के पास एक डॉक्टर आए हुए हैं । सुनते ही तत्काल पूज्यश्री के पास मुनि श्री पहुंचे। वहाँ पहुँचते ही सारा मांजरा मुनिश्री के ध्यान में आगया, मुनिश्री ने पूज्यश्री के
स चेहरे की और देखा । और स्वयं का बीमार सा मुह बनाकर के नब्ज दिखाने के लिए अपना हाथ डॉक्टर के सामने कर दिया । डॉक्टर ने नब्ज देखकर मुनिश्री को न्युमोनिया बताया । पूज्यश्री डॉक्टर का निदान सुनकर मुस्करा उठे । जब डॉक्टर वापिस चला गया तो मुनिश्री ने पूज्यश्री से कहाडॉक्टरों का अभीप्राय कोइ अन्तिम अभिप्राय नहीं होता । डॉक्टर लोग सामान्य बीमारी को भी भयंकर बता देते हैं और भयंकर बिमारि को सामान्य । आप तो विचार शील पुरुष हो । महापरुष तो संकट के समय धीरज से ही काम लेते हैं।., पूज्य श्री की उदासीनता बढती गई। पं० मुनि श्री ने मनोवैज्ञानिक ढंग से इस विकट परिस्थिति को सुलझाने का निश्चय किया । इन्होंने सभी मुनिवरों को एकत्र कर उनके सामने एक सुन्दर सुझाव रखा । इन्होंने कहा कि- "मुनिवरो! पूज्यश्री के स्वास्थ्य से हम लोग - बडे चिन्तित हैं । इस चिन्ता से मुक्त होने के लिए एक रामबाण उपाय यह है प्रभु प्रार्थना और निरन्तर तपश्चर्या । हमारी पूज्यश्री के प्रति स्वास्थ्य की शुभ कामना से एवं तपश्चर्या से पूज्यश्री का स्वास्थ्य
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