Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अधिक से अधिक संख्या में महाराजश्री की सेवामें उपस्थित होने लगे । चतुर्थ दिगम्बर समाज के भट्टारक जिनसेन स्वाभी भी महाराज श्री के दर्शन के लिए आये, चातुर्मास करने का आग्रह करने लगे। पंचमों के महाधीश लक्ष्मीसेन स्वामी भी महाराज श्री की सेवामें आये, और चातुर्मास की प्रार्थना करने लगे । कोल्हापुर महाराज की तरफ से गोविन्दराम कोल्हे ने भी चातुर्मास के लिए प्रार्थना की किन्तु महाराज श्री का सब को एक ही जवाब मिला,, गुरुदेव की बिना आज्ञा के मैं यहां चातुर्मास नहीं कर सकता”
उन दिनों में अनिवार्य कार्य वश कोल्हापुर नरेश बाहर गांव चले गये थे, जब वापस लौटे तो उन्हे महाराज श्री के कोल्हापुर पधारने को सूचना मिली । किसी प्रसंग वश फतेचन्दजी सा. महाराजा से मिलने गये । महाराजा ने फत्तेसिहजी के सामने महाराज के उत्कृष्ट आचार एवं विद्वत्ता की खूब प्रशंसा की और महाराज श्री को यहीं चातुर्मास करने की अपनी ओर से प्रार्थना की । दूसरे दिन महाराजा चार घोडे की बग्गी में बैठकर महाराज श्री की सेवा में उपस्थित हुए और बोले अनिवार्य कार्यवश मैं आपको सेवामें उपस्थित नहीं हो सका अतः मुझे आप क्षमा प्रदान करें। आपने मेरे नगर में रहकर अपने वचनामृत से लोगों को पावन किया इसके लिए हम आपके चिर ऋणी हैं। आप मेरे नगर में रहकर लोगों को अधिक से अधिक सन्मार्ग बताए ऐसी हार्दिक भावना हैं । हम लोग आपकी कुछ भी सेवा नहीं कर सके इसका हमें हार्दिक दुःख है । मैं आपको अपना गुरु मानता हूं अतः आपको राजगुरु शास्त्रचार्य की पदवी से विभूषित करना चाहता हुँ । मुझे आशा ही नही किन्तु पूर्ण विश्वास है कि आप मेरी इस भावना का अनादर नहीं करेंगे । मुनि श्री महाराजा की इस पवित्र भावना का अनादर करना अप्रासंगिक मान कर मौन रहे । कुछ समय तक महाराजा महाराज श्री से विविध विषयक चर्चा करते रहे । बाद में वन्दन कर वे अपने स्थान लौट आये । उसी समय अपने राज्य के प्रतिष्ठित पन्डित बुलाकर उपाधिपत्र तैयार करने का आदेश दिया । जब उपाधिपत्र तैयार हुआ तो महाराजा ने उस पर दस्तखत किये और पत्र को सम्मान पूर्वक एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ महाराज श्री की सेवा में भेट किया। उपाधिपत्र की प्रतिलिपि इस प्रकार है । नकल
ता० १८-१२-१९-२० ई०
श्री श्रीमन्साहू छत्रपति कोल्हापुर नरेश प्रदत्त प्रशंसा पत्रस्य प्रतिकृति
श्रीमतां श्री १००८ मोतीलालजी महाराजां पूज्य प्रवर श्री १००७ श्री जवाहरलालजी महाराजानां सुशिष्यैः श्री १००८ घासीलालजी महाराजैः समगंसि मया मिरजाभिध ग्रामस्य भैषज्यालये । प्रागेव श्रुतैतवृत्तान्तावयं सति साक्षात्कारैऽप्राममूर्तिपूजादि प्रधान जैनतत्वविषयान् । रुग्णासनासीना अपि एते महाराजानः तथा सर्व विषयानुदातारिषुयेन जैनशास्त्रादिचार्यादि प्रधानोपाधिमाधातु मर्हतीति मामकीनानुभातिः। ___ यद्यपि जनताभिः स्युः प्रोत्साहितास्तदा भबेयुर्भारतभाग्यभानून्नायकाः साधब इति । मि० मार्ग शु० ८ शनिवासरे संवत् १९७७
हस्ताक्षरसाहू छत्रपति कोल्हापुराधीशस्य अधोविन्यस्तरेखाद्वय स्थले [s.d] साहूछत्रपति खुद
नगर निवासियों के आत्याग्रह पर महाराज श्री पुनः आठ दिन तक कोल्हापुर में बिराजे । जनता ने खूब अच्छा लाभ लिया। चातुर्मास कोल्हापुर में न हो सकने की संभावना पर स्थानीय जनता खेद खिन्न थी। करीब मास कल्प बिराजने के बाद महाराज श्री ने कोल्हापुर से विहार किया । महाराज श्री
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