Book Title: Gaumata Panchgavya Chikitsa
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 16
________________ को मार दिया जाये फिर जैसे ही अंग्रेज ऑफीसर की हत्या हुई। सारे देश में एक बगावत की लहर पैदा हुई और उस बगावत की लहर में अंग्रेजों की सरकार को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। गाँव-गाँव, गली-गली में नौजवानों द्वारा क्रांतिकारियों के संघटन बनना शुरु हो गये। गाँव-गाँव, गली-गली में नौजवानों ने अंग्रेजी फौज और अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत शुरु कर दी। गाँव-गाँव गली-गली में नौजवानों ने गाय के प्रश्न को हल करने के लिये गौरक्षा समितिया बनाना शुरु कर दी। . बहुत कम लोग जानते हैं कि 1857 की क्रांति में गाय का प्रश्न एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न हुआ करता था। अगर वो गाय का प्रश्न नहीं होता तो शायद 1857 की क्रांति के होने में भी मुश्किलें आती। वो क्रांति एक तरफ से चलती रही दूसरी तरफ हिन्दुस्तान में नौजवानों के संघटन पैदा होने लगे। गाँव-गाँव में गौरक्षा समितियां बना दी गयी। 1870 तक आते-आते हिन्दुस्तान में कोई भी ऐसा गाँव नहीं था। जहाँ पर गौरक्षा की समिति ना बनाई गयी हो। : अंग्रेजों का एक खुफिया विभाग होता था। जो सीक्रेट रिपोर्ट एकठ्ठी करता था। उस डिपार्टमेन्ट के माध्यम से अंग्रेजों ने एक सर्वे कराने का काम शुरु किया और वो सर्वे काफी समय तक चला इस देश में। तो अंग्रेजों के खुफियां विभाग में जो रिपोर्ट एकछी की जो रिपोर्ट उन्होंने बनाई वो रिपोर्ट बाद में 1893 के साल में लंदन भेज दी गयी। और लंदन की सरकार और लंदन की पार्लियामेंट में उस रिपोर्ट पर जो चर्चाये हुई। उस रिपोर्ट के कुछ हिस्से हम लोगों को भी मिले हैं। उन रिपोर्ट के कुछ हिस्से हैं जिनमें अंग्रेजों का खुफियां विभाग यह बता रहा है कि 1870 के साल तक हिन्दुस्तान. के गाँव-गाँव में गौरक्षा समितियां बन चुकी हैं। और 1890 तक आते-आते हिन्दुस्तान में करीब-करीब उस जमाने में लगभग 5 लाख गाँव हैं। तो वो बता रहे हैं कि इतनी ही करीब-करीब गौरक्षा समितियां हैं। और कोई भी गौरक्षा समिती ऐसी नहीं हैं जिसमें कम से कम 50 नौजवान शामिल ना हों। और अंग्रेजों की खुफिया रिपोर्ट यह कह रही हैं कि गौरक्षा समितियों में जो शामिल नौजवान हैं उनमें एक भी नौजवान ऐसा नहीं है जो गाय के प्रश्न पर मरने के लिये तैयार ना हो। एक बाजू में गाँव-गाँव में गौरक्षा की समितियां बन रही हैं। दूसरे बाजू में हिन्दुस्तान में क्रांति की बगावत और क्रांति की लहर चल रही हैं। यह दोनों, चीजें एक साथ इस देश में चल रही हैं। 1893 के साल तक आते-आते यह गौरक्षा का आंदोलन बहुत प्रबल हुआ। और गौरक्षा का आंदोलन इतना प्रबल हुआ कि अंग्रेजों की सरकार को लगने लगा कि अब शायद हिन्दुस्तान छोड़ना पड़ेगा। भारत से जाना पड़ेगा। तो 1893 के साल में अंग्रेजों के यहाँ के जो अधिकारी थे। उनमें एक गर्वनर था। उसका नाम था लेन्स डाऊन। लेन्स डाऊन ने एक रिपोर्ट भेजी अंग्रेजों की पार्लियामेंट को 1893 गौमाता पंचगव्य चिकित्सा :... .. . ।

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