Book Title: Gaumata Panchgavya Chikitsa
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 37
________________ बायबिल नहीं कहती हैं हम तो मानते हैं बायबल में नहीं है। एक बार मैं एक बहुत बड़े मौलाना अब्दुल रहीम खान से बात कर रहा था लखनउ में। मैंने कहा- पुर्नजन्म में मानते है। हाँ मानता तो हूँ लेकिन कुरान शरीफ में कहीं नहीं है। तो मैंने कहा अब इस में संकट है अगर आप कुरान शरीफ को मानते हैं। कुरान शरीफ पुर्नजन्म को नहीं मानती है तो आप पुर्नजन्म कैसे मानते है। तो उसने कहा- देखो यार- भारतीयता जातीय नहीं है। अब इतनी बड़ी बात कि भारतीयता जातीय नहीं है। भले ही हम मजहब बदल ले, संप्रदाय बदल ले, भारतीयता नहीं जाती। फिर एक बार मैंने उनसे पूछा आपके संप्रदाय में मजहब में ऐसे कितने लोग हैं जो पुर्नजन्म मानते हैं। उन्होंने कहा शायद 90 प्रतिशत होंगे। मैंने कहा गारण्टी से कहते हो। उसने कहा शायद 95 प्रतिशत होंगे, फिर तीसरी बार कहा 99 प्रतिशत भी हो सकते हैं। मैंने कहा कैसे। तो उन्होंने कहा- हम अरब देश से आये हुए थोडी . हैं, हम तो यहीं के हैं। हजारों साल पहले हमारे पुरखे तुम्हारे ही जैसे थे किसी एक समय विशेष में किसी गलत काम के कारण या गलत प्रभाव के कारण हमने मजहब बदल लिया तो भारतीयता थोड़ी ही चली गई हैं। फिर मैंने कहा- मुझे ऐसे कुछ लोगों से मिला दो जो भारतीय मुसलमान हैं। आजकल एक शब्द चल गया है ना अमेरिकन इंडियन हैं ना। तो मैंने कहा चलो भारतीय मुसलमान से मिलवा दो। उन्होंने मुझे इतने सारे लोगों से मिलवाया है उनके घरों में मैं गया हूँ, उनकी शादी ब्याह पद्धति को मैंने देखा है, नामकरण की पद्धतियों को देखा हैं। उनके त्योहारों के रीति-रिवाजों को देखा है। कहीं से नहीं लगता है वो अभारतीयत हो गये हैं। ज्यादा से ज्यादा दिखाई देता है उनका नाम बदल गया हैं और पूजा करने की पद्धति बदल गयी है। तो क्या पूजा करने की पद्धति तो हम सनातनी हिन्दुओं में भी एक विशिष्ट है। कोई मंदिर को मानता हैं कोई नहीं मानता। कोई दुर्गा को मानता है, कोई हनुमानजी को मानता है। कोई किसी को मानता ही नहीं है। कहता है कि देवी-देवता होते नहीं हैं। तो पूजा की पद्धति तो हमने भी बदली हुई है, उन्होंने भी बदली हुई है। तो भारतीयता तो नहीं गयी हैं। मैंने उनसे एक प्रश्न पूछा खान साहब से। अच्छा ये बताए कत्तल खानों पर आपका क्या विचार है। उन्होंने कहा- वो ही जो महात्मा गांधी का है। कत्तल खाने बंद होने चाहिए। मैंने पूछा क्यों बंद होने चाहिए तो उन्होंने कहा कि इसलिए कि हम जिंदा रह सकें। मैंने कहा- गांधीजी को अनुकरण कर रहे हैं या ईमानदारी से कह रहे हैं। मुझे भी समझ में आता है कि पशु जिंदा हैं तो हम जिंदा हैं। हमारी औकात तो इन पशुओं से हैं अगर यह चले गए तो हम तो नहीं रहने वाले। फिर मैंने उनसे एक विशिष्ट बात पूछी। जिसको पूछने की हिंमत कम लोगों में होती हैं। मैंने उनसे गौमाता पंचगव्य चिकित्सा -

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