Book Title: Gaumata Panchgavya Chikitsa
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 90
________________ अथवा कलईदार बर्तन में सोलह गुणे पानी में मन्द अग्नि पर पकावें। जब चौथाई पानी शेष रहे, तब कपड़े से छान लें। क्वाथ बनाते समय बर्तन का मुँह खुला रहना चाहिए। ढक देने से क्वाथ भारी हो जाता है, ऐसी शास्त्राज्ञा है। क्वाथ मिट्टी के कोरे बर्तन में बनाना चाहिए। द्रव्य शोधन (रसंतंत्रसार व सिद्धप्रयोग). : आयुर्वेद शास्त्र के नियमानुसार द्रव्यों का शोधन करना अर्थात् निर्दोषकर गुण वर्द्धन करना, अनावश्यक बाधक अंश, विजातीय, द्रव्य अथवा मल को दूर करना या उसमें स्थित दोष को घटाकर गुण की वृद्धि करना आदि हेतुओं में से किसी एक या अनेक हेतुओं की सिद्धी के लिये औषध द्रव्य पर जो संस्कार किया जाता है, उसे शोध न कहते हैं। कल्क - (रसतंत्रसार व सिद्धप्रयोग - कषाय प्रकरण) ताजी औषधियों को बिना जल मिलायें और सूखी औषधियों में जल मिलाकर चटनी (लुगदी) तैयार करने को कल्क कहते हैं। यदि कल्क में प्रक्षेप शहद, घृत या तैल मिलाना हो तो कल्क से दो गुणा शक्कर या गुड़ मिलाना हो तो कल्क के समान और कांजी आदि द्रव्य पदार्थ मिलाना हो तो कल्क से चार गुणा मिलाना चाहिये। स्वरस (रसतंत्रसार व सिद्धप्रयोग) ताजी औषधियों को कूट निचोड़कर रस निकाला जाता है। उसे स्वरस कहते हैं। सूखी औषधियों को कुचल या कूट, दो गुणा जल में 24 घण्टे भीगा, छानकर रस निकाल लेने को भी स्वरस कहते हैं एवं सूरवी औषधियों को 8 गुने जल में पका चतुर्थाश जल शेष रहने पर छान लेने से भी स्वरस का काम निकलता है। . इस अध्याय में संदर्भ ग्रंथो के लिए संक्षिप्त रूपों का प्रयोग किया गया है। उनका पूरा नाम निम्नानुसार है भा. प्र. नि.. भाव प्रकाश निघण्टु अ. हृ. अष्टांग हृदय र तं. सा. सि. प्र. रस तंत्रसार व सिद्ध प्रयोग . व. चं. वनौषधि चंद्रोदय द्र. गु. वि. द्रव्य गुण विज्ञान आ. सा. सं. आयुर्वेद सार संग्रह 0000 गौमाता पंचगव्य चिकित्सा

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