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अपथ्य : खटाई, तेल या घी में तला हुआ, गर्म मसाले, चावल, दही, आलू दालें, गारिष्ठ आहार। मैथुन, तेज धूप, अग्नि के सामने न रहें। पथ्य : दूध (फीका), हरी सब्जियाँ, परवल; सहेजना गेहूँ, पपीता, हल्का भोजन, ब्रह्मचर्य, टहलना, घूमना लाभकारी है। अन्न बिल्कुल त्यागकर गाय का दूध उबालकर पीते रहने से अति शीघ्र लाभ होता है। विशेष : रोग नष्ट हो जाने पर भी कुछ मास गौमूत्र का सेवन करने से रक्त स्वस्थ होता है।
18.. मुख रोग (Oral Infection) .. 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. मुख में चारों ओर पंचगव्य घृत लगाकर 15-20 मिनिट रखें 3. बार-बार गौमूत्र से कुल्ला करने से मुख में हुआ किसी भी प्रकार का संक्रमण नष्ट हो जाता है। 4. रात को सोते समय नाक में दो-दो बूंद गाय का घी डालें। अपथ्य : मीठे-खट्टे पदार्थ, आलू, चूना पथ्य : सुपाँचय भोजन
19. कंठ रोग 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या . गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। . 2. दिन में तीन बार गौमूत्र को थोड़ा गर्म कर गरारे करें। . अपथ्य : मीठे-खट्टे आहार, दूध . पथ्य : पतला दलिया, दाल या सब्जी का सूप, सेंधा नमक, हल्का गर्मजल विशेष : कंठ में अधिक कष्ट होने पर गोबर-गौमूत्र का गर्म लेप लगाकर चौड़े पत्ते से ढक मफलर से बाँधकर रखें।
20. संग्रहणी " इस रोग में भोजन का पूर्ण पाँचन हुए बिना ही वह मल के साथ निकलने लगता है। जठराग्नि के विकृत होने से यह रोग होता है। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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