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गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
(गौबर, गौमुत्र आधरित दवाईयाँ बनाने
की विधि एवं रोग निदान)
गौमूत्र अर्क बनाने की विधि
व्याख्यान और संकलन
राजीव दीक्षित
संपादन निरंजन वर्मा
भाई राजीव दीक्षित - पुस्तक संग्रह ®
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स्वदेशी चिकित्सा
गौमाता
पंचगव्य चिकित्सा (गोबर, गौमूत्र, दूध, छाछ और घृत आधारित दवाईयाँ बनाने
__की विधि एवं रोग निदान)
राजीव दीक्षित संकलन : निरंजन वर्मा
प्रकाशक - स्वदेशी प्रकाशन
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स्वदेशी चिकित्सा
गौमाता
पंचगव्य चिकित्सा
लेखक : राजीव दीक्षित
प्रकाशक : स्वदेशी प्रकाशन
सर्वाधिकार प्रकाशक के पास सुरक्षित
प्रथम संस्करण : 2012 (3000 प्रतियाँ)
स्वदेशी प्रकाशन, सेवाग्राम, वर्धा द्वारा स्वदेशी भारत पीठ्म (ट्रस्ट) के लिए प्रकाशित
स्वदेशी भारत पीठ्म (ट्रस्ट) सेवाग्राम रोड, हुत्तामा स्मारक के पास सेवाग्राम, वर्धा 442 102 फोन नं.- 07152-284014 मोबाईल : 9822520113, 9422140731 आवरण: सुनील कुमार (दिल्ली )
सहयोग राशि : 50 रुपये
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समर्पित
परमपूज्य स्वामी रामदेवजी महाराज को जो भारत को स्वदेशी
बनाने की लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं।
भारत को स्वदेशी, स्वावलंबी और स्वाभिमानी बनाने के लिए चल रहे स्वदेशी आन्दोलन और भारत स्वाभिमान के उन लाखों क्रांतिकारियों को जो राजीव भाई के स्वदेशी भारत के सपने को पूरा करना चाहते हैं ।
उन सभी पुराने साथियों को जिन्होंने राजीव भाई के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ाई लड़ी।
उन सभी नए साथियों को जो इस लड़ाई को जिन्दा रखना चाहते हैं ।
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पंचगव्य अमृतम्
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भारत में देशी गाय की जितनी नस्लें हैं इनके इतिहास में झाकें तो स्पष्ट होता है कि उनका आकार, दूध देने की क्षमता, बैलों द्वारा भार खींचने की क्षमता यह सब वहाँ की भौगोलिकता के अनुसार है। अत: यह कह पाना मुश्किल है कि कौन सी नस्ल की गाय श्रेष्ठ है। भारत में सभी प्रजातियों की गाय अपनी-अपनी भौगोलिकता में अपने-अपने स्थान पर श्रेष्ठ हैं। उत्तर पश्चिम भारत की गायें दूध अधिक देती हैं तो इसका भी कारण वहाँ की भौगोलिकता है। दक्षिण भारत एवं पहाड़ी की गाय दूध सबसे कम देती हैं। तो यह भी स्थानीय भौगोलिकता के कारण ही है। लेकिन गायों द्वारा दिए गए तीनों गव्यों (दूध, गोबर व गौमूत्र) को सम्मलित कर अध्ययन करें तो पता चलता है कि भारत की सभी नस्लें समान मात्रा में अमृत तुल्य गव्य प्रदान करती हैं। इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि जो गाय दूध अधिक देती है। उनका गौमूत्र तुलनात्मक रुप से उतना श्रेष्ठ नहीं होता जितना कम दूध करने वाली गाय का होता है। इसी प्रकार गोबर का भी गुणधर्म है। तीनों गव्यों को मिलाकर देखें तो सभी प्रकार की गाएं समान ईकाई में गव्य प्रदान करती हैं। गाय जीव के बारे में वेदों में कहा गया है कि
तिलम् न धान्यम्, पशुओं न गाव : । जिस प्रकार से तिल धान्य होते हुए भी सभी धान्य में इतना श्रेष्ठ है कि इसे केवल धान्य नहीं कहा जा सकता इसी प्रकार जीवों में गाय इतनी श्रेष्ठ है कि इन्हें पशु नहीं कहा जा सकता। ऋग्वेद की बात मानें तो गायों का वर्णन उषा की और सूर्य की गायों के रुप में है। इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि गायें सूर्य की सीधी प्रतिनिधि हैं। अत: जो कुछ भी हमें सूर्य और उससे प्राप्त उषा से मिलता है। वह सब कुछ गाय दे सकती है। वेदों ने यह भी कहा कि - गाय प्रकाश की प्रदीप किरणें हैं। अथर्व वेद ने तो स्पष्ट कहा है कि -
माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसाऽऽदित्यानाम मृतस्य नामिः। . अर्थात गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन और अमृत की नाभी है। आगे यह भी जोड़ा है कि गौ ही जगत के समस्त पदार्थों की जननी है। गाय स्वयं कहती है -
ना केवला पयसां प्रसूति मवेहि, मां कामदुधां प्रसन्नाम्। . . अर्थात् - प्रसन्न होने पर सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली मुझको केवल दूध देने वाली न समझे रहना। पुराणों में गाय के संबंध में - .
गो सर्व देवमयी, गो सर्व तीर्थमयी। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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कहा गया है। अर्थात्- गाय में सभी तीर्थों का फल है और सभी देवता हैं। इसे आज के संदर्भ में कहें तो सभी तीर्थ अर्थात् भारत के सभी भागों की मिट्टी का गुणधर्म और देव का अर्थ सभी प्रकार के तत्व हैं।
___ गाय साक्षात् धेनू है। अर्थात्- सब कुछ देने वाली है। ऋग्वेद इस धेनू की पीठ है, यजुर्वेद मध्य, सामवेद मुख और ग्रीवा, इष्टापूर्व इसके सींग और सुन्दर-सुन्दर सूक्त ही गृहस्थ धेनू के रोम हैं। इस प्रकार गाय अपने आप में संपूर्ण वेद है। जिस व्यक्ति को मोक्ष्य चाहिए। उसे साधना जरुरी है। साधना के लिए यज्ञ जरुरी है और यज्ञ के लिए घृत, गोमय, गौमूत्र जरुरी है। इसकी प्राप्ति केवल गाय से ही हो सकती है। अत: गाय के बिना मोक्ष्य नहीं। .
गाय से प्राप्त तीन गव्य (गोमूत्र, गोबर और दूध) और दो उपगव्य (छाछ और घृत) को मिला दें तो इन पांचों के समूह को पंचगव्य कहते हैं। यह सदा पवित्र होता है। ऋग्वेद में इसे 'प्रथम भक्ष्य' कहा गया है। अर्थात् जन्म लेते ही सर्व प्रथम खाने योग्य। यज्ञ मीमांसा में कहा गया है -
गौमूत्र में वरुण देव, गोबर में अग्नि, दुग्ध में चन्द्र, छांछ में वायु, घी में सूर्य, कुश में ब्रह्मा, और जल में साक्षात् विष्णु है। अत: पंचगव्य सदा पवित्र है।
गाय और उसके विज्ञान के विस्तार को देखें तो स्पष्ट होता है कि गाय अपने आप में संपूर्ण चिकित्सा शास्त्र भी है। एक पूरा चिकित्सा विश्वविद्यालय भी है। इसी को आधार मानकर चैन्नई में अमर शहीद श्री. राजीव भाई द्वारा एक निःशुल्क पंचगव्य चिकित्सा परामर्श केन्द्र खोला गया था जो अब एक संपूर्ण चिकित्सालय में परिवर्तित हो चुका है। जहाँ सभी प्रकार के रोगों की चिकित्सा गव्यों से की जाती है। जितने भी गंभीर रोग हैं जैसे- कैंसर, मधुमेह, चर्मरोग, हृदय रोग, यौन रोग, बांझपन, एड्स, टीबी: आदि सभी रोगों में सफलता पाई गई है। स्वयं राजीव भाई ने उस चिकित्सा केन्द्र से लगभग 5 हजार से भी ज्यादा रोगियों का इलाज कर चुके हैं। जिसका पता इस प्रकार है। - पंचगव्य विभाग, सी. यू. शाह भवन, 78/79, रिथर्डन रोड, चैन्नई - . 600 007। इससे संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए panchgavya.org देखा जा सकता है।
महर्षि वाग्भट्ट गौशाला एवं पंचगव्य अनुसंधान केन्द्र जहाँ अभी तक 300 से भी ज्यादा प्रकार के पंचगव्य औषधियों का निर्माण किया जा चुका है। वहाँ वर्ष में तीन बार पंचगव्य विज्ञान आधारित निःशुल्क प्रशिक्षण शिविर लगाया जाता है। जिसकी विस्तृत जानकारी panchgavya.org पर उपलब्ध है।
___ इस दिशा में गौशाला के प्रयास से भारत में पहली बार Diploma in Panchgavya Therapy (डिप्लोमा इन पंचगव्य थेरेपी) नाम से एक वर्ष का कोर्स शुरु होने वाला है। जो तमिलनाडु के एक विख्यात विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाणित होगा। इस पढ़ाई को पूर्ण करने के बाद पंचगव्य का मनुष्य जीवन पर प्रयोग और पंचगव्य गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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औषधियों के निर्माण करने का अधिकार मिलेगा।
जिस प्रकार महर्षि वाग्भट्ट गौशाला एवं पंचगव्य अनुसंधान केन्द्र एक स्वावलम्बी और स्वतंत्र ईकाई हैं इसी प्रकार के गौशाला देश के सभी जिलों में क्रम से एक-एक स्थापित हो। यह हमारा लक्ष्य है । और इसी के लिए मैं भारत में भ्रमण कर गाय और उसके विज्ञान की कथा कर रहा हूँ।
अंत में मैं इतना ही कहना चाहुँगा कि अमर शहीद राजीव भाई का जो सानिध्य और राष्ट्र के लिए कुछ कर्म करने का मौका मिला उसी का परिणाम है कि गायों ने मुझे ऐसा अद्भुत कार्य करने का अवसर प्रदान किया है। मैंने अपना सारा जीवन गाय को समर्पित किया है। इस समर्पण ने ही मुझे ऊर्जा दी है।
अतः आप भी राजीव भाई के बताए रास्ते पर चल कर राष्ट्र की सेवा और गऊ माँ से आशीर्वाद ले सकते हैं। इसी में जीवन का सार है और मोक्ष्य भी है।
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
निरंजन वर्मा
- महर्षि वाग्भट्ट गौशाला एवं पंचगव्य अनुसंधान केन्द्र ग्राम : 'कट्टायाक्कम, जिला : कांचीपुरम्, राज्य : तमिलनाडु संपर्क: 09444034723 ईमेल: gaumata@panchgavya.org
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गौरक्षा पर राजीव भाई द्वारा हस्तलिखित दो शब्द
18, 19, 20 दिसम्बर, 2000 को राजस्थान प्रदेश के सांचोर जिले के पथमेड़ा . गांव में एक गौरक्षा सम्मेलन हुआ, जिसमें लगभग 50 हजार स्त्री, पुरुष और बच्चें शामिल हुये। ये सभी लोग गौरक्षा विषय पर अपनी चिन्ताओं को लेकर आये थे, और उनके समाधान के लिये कुछ रास्ता निकालना चाहते थे। गत 3 वर्षों से लगातार राजस्थान - गुजरात आदि प्रदेशों में वर्षा अच्छी नहीं हुयी हैं, और अकाल की स्थिति बन गयी है। इसी कारण से घास चारा नहीं मिल पा रहा है। किसानों के सामने एक संकट खड़ा हुआ है, जिसके कारण किसान अपनी गायों को या तो बेच रहें हैं, या फिर गौशालाओं - पांजरापोल में छोड़ रहे हैं। अब जो गाय गौशाला या पांजरापोल में आ रही हैं, उनकी चारे - पानी की व्यवस्था करनी है, जिसके लिये प्रतिवर्ष लगभग 29 करोड़ रुपये का खर्च आता है। यह खर्च पूरा का पूरा गौभक्त लोगों के दान से हीं आता है । पथमेड़ा गांव की जो गौशालायें हैं, उनमें लगभग 1.25 लाख गायें हैं। इस सम्मेलन में आने वाले स्त्री-पुरुष सभी के लिये गौरक्षा का विषय कितने महत्व का है, यह इसी बात से पता चलता है कि तीन साल से भयंकर सूखे और अकाल का सामना करने वाले किसान-मजदूर आदि साधारण लोगों ने ही गायों की आज संभाल के खर्चे मे 5 करोड़ रुपये से भी अधिक का योगदान किया।
सम्मेलन में आने वाले लोगों की मान्यता में गाय का क्या स्थान है, उसको • समझने के लिये एक घटना महत्व की है। हुआ यह कि इसी सम्मेलन में एक महिला जो कि राजस्थानी घूंघट प्रथा कर पालन करती हुयी मंच पर खड़े होकर बोली कि “कुछ दिन पूर्व मेरी गाय बीमार हुयी और मरने की स्थिति में पहुंच गयी। जब किसी भी दवा से ठीक नहीं हुयी तो मैंने मान लिया कि अब उस गाय की मृत्यू निश्चित है। फिर मैंने उस गाय को भगवत्गीता का पाठ सुनाना शुरु किया। जब पाठ पूरा हुआ, उसके बाद रामचरित मानस का सुन्दरकांड सुनाया । सुन्दरकांड सुनने के बार ही उस गाय की मृत्यू हुयी ” । उस महिला ने अपने ससुर की मृत्यू के समय भी यही भगवतगीता और रामचरितमानस के पाठ पढ़ने की क्रिया दोहराई थी । यानि उस महिला के लिये अपने ससुर की मृत्यू और अपनी गाय की मृत्यू में कोई अन्तर नहीं था। इसी तरह की अन्य सैकड़ो घटनायें साधारण भारतीय लोगों के जीवन में घटित होती रहती हैं। जिससे यह पता चलता है कि सामान्य लोगों के मन में गाय का स्थान क्या है ? यही स्थिति अन्य पशुओं के बारे में भी है, कुछ थोड़ा बहुत अन्तर के साथ |
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साधारण भारतीय लोगों के मन में यह मान्यता कहाँ से आयी है? प्रकृति में मिलने वाले पशुओं के प्रति इतनी सम्मान की भावना कैसे बनी है ? इसका उत्तर खोजें तो मिलेगा, भारतीय संस्कृति की उस मान्यता में जिसमें पुर्नजन्म की बात कही गयी है। यह भारतीय मान्यता ही है, जो पुर्नजन्म में विश्वास रखती है। कहा जाता है कि 84 लाख योनियां होती है। मनुष्य जब मरता है तो इन्हीं में से किसी योनि में. जन्म पाता है, अपने कर्मफल के सिद्धान्त के अनुसार। इन्हीं 84 लाख योनियों में गाय, बैल, बकरी, कुत्ता, भैंस आदि-आदि तमाम जीव हैं। माना यह जाता है कि ये सभी जीव बराबर हैं। कोई ऊंचा या नीचा नहीं है। सभी जीवों में आत्मा होती है और आत्मा सभी की समान होती है। भारतीय मान्यता में सभी जीवों को जीने का अधिकार है। मनुष्य को जीवों के समकक्ष ही माना गया है। यदि कोई मनुष्य मरता है तो हो सकता है कि कर्मफल के सिद्धान्त के अनुसार उसे गाय की-योनि में जन्म मिले या किसी अन्य योनि में। अर्थात आज जो आत्मा मनुष्य में है। वही आत्मा गाय में प्रवेश कर जायेगी। चूंकि आत्मा की बराबरी है। अत: गाय और मनुष्य दोनों ही सहोदर हैं, बराबर हैं। ऊंचे या नीचे नहीं है। जीव-जन्तु और मनुष्यों से मिलकर ही पूरी प्रकृति बनी है। इसलिये दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं और एक दूसरे के सहयोगी है। इसलिये प्रकृति के संसाधनों पर भी दोनों का ही अधिकार है। इन्हीं मान्यताओं के कारण जीव-जन्तुओं के प्रति दया, प्रेम, करुणा की भावना साधारण भारतीय लोगों के मन में है। यदि पशु . भूख से मरते हों तो उनकी चिन्ता समाज के लोगों को होती है और उसके लिये व्यवस्था करना, उन्हें अपना धर्म लगता है और उसके लिये भारतीय समाज में व्यवस्थायें की जाती हैं। जैसे हमारी भारतीय कृषि पद्धति में जो भी अनाज पैदा किये जाते हैं, उनमें मनुष्य, पशुओं तथा अन्य जीव जन्तुओं की खाने की जरुरतों को पूरा . करने का ध्यान रखकर ही फसलें बोयी जाती हैं। लगभग सभी भारतीय फसलों से अनाज जितना निकलता है, तकरीबन उतना ही चारा भी निकलता है।
इसी तरह की फसलें बोने की परम्परा हमारे देश में रही है, जिनसे मनुष्यों के साथ पशुओं की जीवन-यापन भी होता रहे। इसलिये भारतीय समाज में पशु-पालन की एक लम्बी परम्परा है, जो कृषि कर्म के साथ-साथ हजारों वर्षों से चली आयी है। आज के भारतीय समाज में कई तरह की गिरावट आने के बावजूद यह परम्परा कायम है। हालांकि यह गिरावट पिछले. कई सौ वर्षों से लगातार आती जा रही है। अंग्रेजों के भारत में आने के बाद से यह गिरावट बहुत अधिक आयी है और बहुत तेजी से आयी है। अंग्रेजों के भारत आने के पहले तक भारतीय समाज में अच्छी खेती और पशुपालन की व्यवस्था थी। सिर्फ खेती और पशुपालन ही नहीं बल्कि अन्य व्यवस्थायें जैसे उद्योग, शिक्षा, स्वास्थय, न्यायतंत्र, प्रशासन तंत्र आदि भी ठीक-ठाक चलते ही थे। अंग्रेजों ने आकर इन सभी व्यवस्थाओं को जड़-मूल से उखाड़ने की कोशिश की और उसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे। - राजीव दीक्षित गौमाता पंचगव्य चिकित्सा :
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। गौरक्षा और उसका महत्त्व
- राजीव दीक्षित
धार्मिक सज्जनों आज आपसे एक विशेष प्रश्न पर बात करने आया हूँ। सामान्य रुप से स्वदेशी पर काफी व्याख्यान करता हूँ लेकिन आज आपके बीच में एक नये विषय, गौरक्षा के प्रश्न पर, व्याख्यान करने के लिये आया हूँ। गौरक्षा का प्रश्न कितना महत्त्वपूर्ण है और गौरक्षा जरुरी क्यूँ है। इन दो बातों पर मेरे व्याख्यान में काफी कुछ कहने की कोशिश करूँगा और गौरक्षा के संबंध में हम सब लोग अपने-अपने जीवन में क्या कर सकते हैं। ये तीसरी बात, व्याख्यान में कहने की कोशिश करूँगा।
- आप सब जानते हैं कि हमारा देश अंग्रेजों का एक लम्बे समय तक गुलाम रहा। सैकड़ों वर्षों तक अंग्रेजों ने इस देश को गुलाम बनाने के लिये काफी तैयारियाँ की थी। पिछले कुछ वर्षों से भारत देश की गुलामी और अंग्रेजों ने भारत में क्या किया, इसके बारे में हमारे कुछ साथियों ने पचास हजार से ज्यादा कुछ दस्तावेज एकड़े किये हैं। ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन की लाइबरेरी में से यह दस्तावेज मिले हैं। उन दस्तावेजों के आधार पर आज का व्याख्यान होगा-गौरक्षा का प्रश्न क्यूँ जरुरी है।
1813 के साल में अंग्रेजों की संसद “हाऊस ऑफ कॉमन' में एक बहस चली! उसका शीर्षक क्या था। किस मुद्दे पर वो बहस चली। उस बहस का मुद्दा था- 'हाउ टू क्रिश्चनाइस इंडिया' भारत को ईसाई कैसे बनाया जाए। इस मुद्दे पर ब्रिटेन की संसद में 1813 के साल में एक बड़ी बहस चली। 24.जून 1873 को वो बहस पूरी हुई और 24 जून 1813 को जब वो बहस पूरी हुई तो बहस में एक प्रस्ताव पारित किया गया वो प्रस्ताव यही था। भारत को ईसाई बनाना है। उस बहस के जो दस्तावेज हैं उनको देखने से पता चलता है कि अंग्रेज और ईस्ट इंडिया कंपनी जो भारत में आये थे वो सिर्फ व्यापार करने के लिये नहीं आये थे। ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजों को भारत में सिर्फ व्यापार करने में रुची नहीं थी वो भारत को ईसाई बनाने का एक बड़ा काम करने के लिये ही आये थे। :
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तिहास में हम लोगों को सिर्फ इतना ही पढ़ाया जाता है कि ईस्ट दिया कंपनी भारत में व्यापार करने के लिये आयी थी। लेकिन 1813 के दो। के बाद पता चलता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने के आयी थी। मुल उद्देश्य उनका भारत को ईसाई बनाने का था। तो भी बनाने का जो प्रस्ताव पारित हुआ ब्रिटेन की पार्लियामेंट में- हाऊस ऑफ तो प्रस्ताव में कुछ नीतियां तय की गयीं और उन नीतियों को अंग्रेजों की भारत में अपने पूरे समय में लागू किया। वो नीतियां क्या थीं उन लो की जो सबसे पहली नीति थी भारत के लिये वो ये कि अगर भारत को है तो भारत में जो समृद्धी है। भारत में जो संपन्नता है। भारत में जो
सन जो सुख है। भारत में जो पैसा है। जो संपत्ती है। इसका नाश करना पड़ेगा। क्योंकि में गरीबी नहीं आयेगी। जब तक किसी समाज में बेरोजगारी पैदा नही तब तक उस समाज को ईसाई नहीं बनाया जा सकता। यह बात लंदन में बहुत सारे उस जमाने के M.P. ने कहीं।
ये वो ये कि अगर भारत को ईसाई बनाना
गजों ने व्यवस्थित रुप से भारत में शुरु की और उस
फैसला लिया। वो उनका फैसला यह था कि
| तक
नकी
तो भारत में विपन्नता लानी है। भारत को गरीब बनाना है। भारत फैलानी है। इसकी एक नीति अंग्रेजों ने व्यवस्थित रुप से भारत में नीति के तहत उन्होंने सबसे पहले जो फैसला लिया। वो उनका फै भारत में गरीबी पैदा करनी हैं। भुखमरी पैदा करनी हैं। तो भारत की नाश करना पड़ेगा। तो भारत की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के अर्थव्यवस्था का नाश करने के लिये अंग्रेजों की सरकार ने एक फैन भारतीय कृषि पद्धति को भी बर्बाद करना पड़ेगा। तो भारतीय कषि बर्बाद नहीं होगी। भारत की खेती जब तक बर्बाद नहीं होगी । अर्थव्यवस्था बर्बाद नहीं हो सकती। क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था में खेती पर टिकी हुई है। मूलरुप से कृषि-खेती भारत की अर्थव्यवस्था रहा है। तो ऐसा जब अंग्रेजों की सरकार ने लंदन की पार्लियामेंट में तो उसके बाद उन्होंने नीतियाँ बनाना शुरु किया। और उन नीतियों को लागू करने से पहले अंग्रेजों की सरकार ने कई सर्वेक्षण कराये। जो कराये गये भारत में उनमें ऐसा एक सर्वे भी था। जिसमें अंग्रेजी पता लगाने की कोशिश की थी कि भारत के समाज का और भारत का मल केन्द्र क्या हैं। तो इस सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेजों से कि भारतीय कृषि का जो मुल केन्द्र हैं वो गाय है और गाय के हो नहीं सकती। तो भारतीय कृषि के केन्द्र में गाय हैं। एक बात उनके
ने लंदन की पार्लियामेंट में फैसला कर लिया
ने कई सर्वेक्षण कराये। जो सर्वे और सर्वेक्षण
भी था। जिसमें अंग्रेजों की सरकार ने यह भारत के समाज का और भारत के अर्थव्यवस्था
रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेजों को पता चला हैं वो गाय है और गाय के बिना भारतीय कृषि । केन्द्र में गाय हैं। एक बात उनको यह पता चली।
और दसरी एक बात उनको और पता चला कि भारतीय कृषि के केन्ट में
NROENITamany
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गाय के अलावा भारतीय समाज और संस्कृति के केन्द्र में भी गाय है। क्योंकि गाय की पूजा हिन्दुस्तान में हजारों सालों से होती रही है। हमारे देश में आप सब जानते. हैं यह माना जाता है कि गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास होता है। यह जो 33 करोड़ देवी-देवताओं के निवास की जो भावना है वह हमारी गहरी सांस्कृतिक परंपरा से निकल कर आयी है। गाय के शरीर का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है जिसमें . किसी देवता का निवास ना हो । यह बात भारतीय संस्कृति और परंपरा के किसी गहरे हिस्से से निकल कर आयी है। और यह परंपरा हजारों साल पुरानी है। यह कोई हजार दो हजार साल पुरानी परंपरा नहीं है। क्योंकि भारत का अस्तित्व हजारों साल पुराना है । युरोप और अमेरिका के अस्तित्व के बारे में हम कल्पना कर सकते हैं कि वो 500-1000 साल पुरानी संस्कृति वाले देश हैं। लेकिन हमारे देश की संस्कृति और परंपरा तो कई हजार साल पुरानी है। तो इसलिए अंग्रेजों ने जब सर्वे करा लिया और अंग्रेजों की सरकार ने यह जानकारी हासिल कर ली कि भारतीय कृषि के मूल में गाय है और भारतीय संस्कृति की व्यवस्था भी गाय के आसपास घुमती है तो उन्होंने यह फैसला किया कि भारतीय कृषि को बर्बाद करना है भारतीय संस्कृति का नाश करना है तो गाय का नाश करना चाहिये ।
मुल रुप से हिन्दुस्तान में जितने भी राजा हुये उन सभी राजाओं ने गाय को बचाने के लिये ही अपने जीवन की और अपने राज्य की सारी नीतियाँ बनाने की कोशिशें की। हिन्दुस्तान में बहुत सारे ऐसे मुस्लिम राजा भी हुआ करते थे जिन्होंने गोरक्षा के लिये नीतियाँ बनाई और मुस्लिम राजाओं की जो विशेषता थी वो यह थी कि बहुत सारे मुस्लिम राजा यह मानते थे कि भारतीय समाज में अगर कोई व्यवस्था टिकेगी तो वो तभी संभव है जब भारतीय समाज की परंपराओं के अनुरुप शासन होगा। अगर भारतीय समाज की परंपराओं के विपरीत शासन होगा तो कोई व्यवस्था इस देश में चल नहीं सकती। यह बहुत सारे मुस्लिम राजा जानते थे और उस बात को उन्होंने अपने जीवन में, अपने राज्य में लागू करने की कोशिश की थी। अंग्रेजों ने बहुत खोजा लेकिन मुस्लिम समाज में और मुस्लिम समाज के राजाओं के बीच में भी उनको गोरक्षा के लिये काम करने वाले बहुत सारे मुस्लिम राजाओं के दस्तावेज मिले। और वैसे दस्तावेज हिन्दुस्तान के इतिहास में भरे पड़े हैं। एक दो अपवाद ऐसे थे जिनको अंग्रेजों ने प्रचारित करना शुरु किया और उन अपवादों के आधार पर अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान में गाय का कत्ल करवाना शुरु किया ।
गाय का कत्ल करवाने के पीछे अंग्रेजों के मन में जो मुल नीति थी वो सबसे . महत्त्वपूर्ण यह रही थी कि भारत की कृषि का, भारत की अर्थव्यवस्था का नाश करना है । और वो गाय का कत्ल करवा के फिर गाय के मांस को अंग्रेजों की फौज को खिलाया जाने लगा। बड़े पैमाने पर हिन्दुस्तान में गाय का कत्ल अंग्रेजों ने शुरु करवाया और उस गाय के कत्ल का मांस अंग्रेजों की सरकार और उस सरकार के अधिकारी, गौमाता पंचगव्य चिकित्सा.
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अंग्रेजों की फौज, अंग्रेजों की फौज के सिपाईयों को दिया जाने लगा। तो धीरे-धीरे नतीजा क्या निकलने लगा कि गाय की संख्या कम होती चली गयी। गौवंश का नाश शुरु हो गया।
अंग्रेजों की सरकार को पता चला कि गोवंश का अगर नाश करना है तो गाय का नाश करने से ज्यादा जरुरी है नंदी का नाश किया जाये । मूल का नाश किया जाये। अंग्रेजों का एक अधिकारी था उस अधिकारी ने इस बात को अपनी एक रिपोर्ट में लिखा कि हम गाय का कत्ल करते रहे और गाय को मरवाते रहे। तो गाय पैदा होती रहेगी। उससे ज्यादा अच्छा यह है कि गाय जिस तरीके से पैदा होती है उसके लिये जो सबसे महत्त्वपूर्ण है नंदी। जिसको हम कहते है 'बुल'। उसको मरवाना चाहिये। अगर नंदी का कत्ल होगा, अगर बुल नहीं रहेगा भारतीय समाज में तो गाय की पैदाईश में कमी हो जायेगी। यह बात जब अंग्रेजों को पता चल गयी । तो उन्होंने फिर गाय से ज्यादा नंदी का कत्ल करवाना शुरु किया। और एक विशेष दृष्टि से इस देश में अंग्रेजों ने विशेष कत्ल कारखाने खोले । जिन में सिर्फ नंदिओं का कत्ल हो सिर्फ बुल को काटा जाये। एक तरफ गाय का कत्ले आम । दूसरी तरफ बुल का कत्ले आम और इस तरह तीसरे हिस्से में गोवंश का कत्ले आम भी हिन्दुस्तान में बहुत बड़े पैमाने पर शुरु हो गया।
1850 के आसपास हिन्दुस्तान में गाय के कत्ल के प्रश्न को हिन्दुस्तान के बहुत सारे धर्मगुरुओं ने उठाना शुरु किया । उसमें आर्य समाज के लोग थे। उसमें सिख पंथ के बहुत सारे लोग थे । उसमें हिन्दु धर्म की बहुत सारे तथा दूसरे मजहबों के हिन्दु धर्म के मानने वाले बहुत सारे जो संप्रदाय हैं, जो अलग-अलग मत हैं, उसके लोग भी थे। उन्होंने गाय के प्रश्न को मुद्दा बनाया। अंग्रेजों ने उस गाय के प्रश्न को हिन्दुस्तान की अस्मिता के साथ जोड कर यह भी कहना शुरु कर दिया कि गाय काटी जाये, बुल काटा जाये तो हिन्दुस्तान की अस्मिता भी खत्म होती चली जायेगी। तो फिर गाय का कत्ल 1850 के बाद अंग्रेजों ने इसलिए शुरु कराया ताकि हिन्दुस्तान की जनता को नीचा दिखाना था। पहले गाय और बुल का, नंदी का कत्ल भी करवाया गया कि हिन्दुस्तान की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करवाना है कृषि को बर्बाद करना है । . दूसरे बार में अंग्रेजों ने यह इसलिए शुरु करवाया कि हिन्दुस्तान की जनता को मानसिक ठेस पहुँचानी है। उनकी भावनाओं को तोडना है। तो भारतीय जनता की भावनाओं को तोडने के लिये; भारतीय जनता की भावनाओं को ठेस पहुचाने के लिये एक बड़े पैमाने पर कत्ल कारखानों की शुरुवात की गयी। अंग्रेजों के जमाने के दस्तावेज बताते हैं कि अंग्रेजों की सरकार ने पुरे हिन्दुस्तान में कुछ ऐसे 350 कत्ल कारखाने खुलवाये। जिनमें गोवंश का नाश होता था। अंग्रेजों के जमाने के कुछ दस्तावेज बताते हैं कि
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कितना गौवंश का नाश अंग्रेजों के जमाने में होता था। इन वर्षों में 1910 से लेकर 1940 के साल में कुल लगभग 10 करोड़ से ज्यादा गौवंश का कत्ल अंग्रेजों की सरकार ने कराया। :
जो, दस करोड़ गौवंश का कत्ल कराया। उसके बारे में अंग्रेजों की सरकार यह कह रही है कि अगर यह दस करोड़ गौवंश का आज कत्ल हो जायेगा। तो आने वाले जमानों में करोड़ों गौवंश का नाश इस तरह से हम आगे बड़ा सकते हैं। तो इस तरह से यह नीति आगे चलती रही और हिन्दुस्तान के बहुत सारे धर्म और मजहबों के लोग गाय को बचाने के लिये आंदोलन भी करते रहे। आप सब जानते हैं कि हिन्दुस्तान में जो क्रांति हुई थी। उस क्रांति की जो पहली चिंगारी लगी थी 1857 में बैरकपुर की छावनी में, जब मंगल पांडे को फांसी की सजा हुई थी। तो प्रश्न गाय का ही था। उस गाय के मुल प्रश्न से हिन्दुस्तान की क्रांति की शुरुवात हुई थी। और बाद में वही मुल प्रश्न हिन्दुस्तान की आजादी का प्रश्न बन गया था।
आप सब ने इतिहास में इतना तो पढ़ा ही होगा कि मंगल पांडे को फांसी की सजा क्यों हुई थी। मंगल पांडे एक आर्य समाजी नौजवान था। स्वामी दयानंद के विचारों से बहुत ज्यादा प्रेरित था तो आर्य समाजी नौजवान होने के कारण वो अपने मन में उतना ही धर्मनिष्ठ था जितना हिन्दुस्तान के दूसरे तमाम सामान्य लोग हो सकते हैं। गलती यह हुई कि मंगल पांडे ने अंग्रेजों की फौज में नोकरी कर ली और अंग्रेजों की फौज में नोकरी करते हुये एक दिन मंगल पांडे को पता चला कि जो कारतूस अंग्रेजों की सरकार देती है इस्तेमाल करने के लिये। उन कारतूसों पर गाय की चरबी लगी होती है और गाय की चरबी लगाये हुये कारतूसों को मुँह से खोलना पडता था। उसके बाद बंदूक में चलाने पडते थे। तो मंगल पांडे को जिस दिन यह पता चला कि वो जो गाय की चरबी लगाये हुये कारतूसों को मुँह से खोलता है और उसके बाद बंदुक में उसको लगाना पडता है। तो उसने मन में फैसला किया कि गाय की चरबी के कारतूसों को मुँह से इस्तेमाल करने से ज्यादा अच्छा है कि मैं ऐसी नोकरी को छोड दूं। लेकिन उसके मन में प्रतिशोध भी पैदा हुआ कि जिन अंग्रेज ऑफीसरों ने उसको बिना बताये हुये सालों साल उसके मुँह से गाय की चरबी के कारतूस खुलवाये हैं। उन अंग्रेज ऑफीसरों को वो जिन्दा नहीं छोड़ेगा। तो मंगल पांडे ने हिम्मत की और जिस अंग्रेज ऑफीसर के माध्यम से उसको कारतूस दिये जाते थे। जिन कारतूसों पर गाय की चरबी लगाई जाती थी। उन कारतूसों को लेने से उसने इनकार कर दिया तो बाद में उसके उपर दबाव पड़ा और उस दबाव के तहत एक दिन उस मंगल पांडे ने अपने उस अंग्रेज ऑफीसर की हत्या कर दी गोली मारकर। जैसे ही मंगल पांडे ने उस अंग्रेज ऑफीसर की हत्या की तो यह बात पूरे देश में प्रचारित होने में समय नहीं लगा कि गाय की चरबी के लगे कारतूसों को खोलने से मना करने पर मंगल पांडे को सजा दी । जाने की बात तय हुई तो इसलिए मंगल पांडे ने यह फैसला किया उस अंग्रेज ऑफीसर गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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को मार दिया जाये फिर जैसे ही अंग्रेज ऑफीसर की हत्या हुई। सारे देश में एक बगावत की लहर पैदा हुई और उस बगावत की लहर में अंग्रेजों की सरकार को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। गाँव-गाँव, गली-गली में नौजवानों द्वारा क्रांतिकारियों के संघटन बनना शुरु हो गये। गाँव-गाँव, गली-गली में नौजवानों ने अंग्रेजी फौज और अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत शुरु कर दी। गाँव-गाँव गली-गली में नौजवानों ने गाय के प्रश्न को हल करने के लिये गौरक्षा समितिया बनाना शुरु कर दी। .
बहुत कम लोग जानते हैं कि 1857 की क्रांति में गाय का प्रश्न एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न हुआ करता था। अगर वो गाय का प्रश्न नहीं होता तो शायद 1857 की क्रांति के होने में भी मुश्किलें आती। वो क्रांति एक तरफ से चलती रही दूसरी तरफ हिन्दुस्तान में नौजवानों के संघटन पैदा होने लगे। गाँव-गाँव में गौरक्षा समितियां बना दी गयी। 1870 तक आते-आते हिन्दुस्तान में कोई भी ऐसा गाँव नहीं था। जहाँ पर गौरक्षा की समिति ना बनाई गयी हो।
: अंग्रेजों का एक खुफिया विभाग होता था। जो सीक्रेट रिपोर्ट एकठ्ठी करता था। उस डिपार्टमेन्ट के माध्यम से अंग्रेजों ने एक सर्वे कराने का काम शुरु किया और वो सर्वे काफी समय तक चला इस देश में। तो अंग्रेजों के खुफियां विभाग में जो रिपोर्ट एकछी की जो रिपोर्ट उन्होंने बनाई वो रिपोर्ट बाद में 1893 के साल में लंदन भेज दी गयी। और लंदन की सरकार और लंदन की पार्लियामेंट में उस रिपोर्ट पर जो चर्चाये हुई। उस रिपोर्ट के कुछ हिस्से हम लोगों को भी मिले हैं। उन रिपोर्ट के कुछ हिस्से हैं जिनमें अंग्रेजों का खुफियां विभाग यह बता रहा है कि 1870 के साल तक हिन्दुस्तान. के गाँव-गाँव में गौरक्षा समितियां बन चुकी हैं। और 1890 तक आते-आते हिन्दुस्तान में करीब-करीब उस जमाने में लगभग 5 लाख गाँव हैं। तो वो बता रहे हैं कि इतनी ही करीब-करीब गौरक्षा समितियां हैं। और कोई भी गौरक्षा समिती ऐसी नहीं हैं जिसमें कम से कम 50 नौजवान शामिल ना हों। और अंग्रेजों की खुफिया रिपोर्ट यह कह रही हैं कि गौरक्षा समितियों में जो शामिल नौजवान हैं उनमें एक भी नौजवान ऐसा नहीं है जो गाय के प्रश्न पर मरने के लिये तैयार ना हो।
एक बाजू में गाँव-गाँव में गौरक्षा की समितियां बन रही हैं। दूसरे बाजू में हिन्दुस्तान में क्रांति की बगावत और क्रांति की लहर चल रही हैं। यह दोनों, चीजें एक साथ इस देश में चल रही हैं। 1893 के साल तक आते-आते यह गौरक्षा का आंदोलन बहुत प्रबल हुआ। और गौरक्षा का आंदोलन इतना प्रबल हुआ कि अंग्रेजों की सरकार को लगने लगा कि अब शायद हिन्दुस्तान छोड़ना पड़ेगा। भारत से जाना पड़ेगा। तो 1893 के साल में अंग्रेजों के यहाँ के जो अधिकारी थे। उनमें एक गर्वनर था। उसका नाम था लेन्स डाऊन। लेन्स डाऊन ने एक रिपोर्ट भेजी अंग्रेजों की पार्लियामेंट को 1893 गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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के साल में। लेन्स डाऊन रिपोर्ट भेज रहा हैं ब्रिटिश पार्लियामेंट को उस रिपोर्ट का जो शुरु का हिस्सा है। वो यही बता रहा है कि अब अंग्रेजों को भारत में राज्य करना बहुत मुश्किल हो जायेगा। क्योंकि गाँव-गाँव में गौरक्षा समितियां बन चुकी हैं। गाँव-गाँव में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया है। कभी-भी यह बगावत दावानल का रुप ले सकती है और अंग्रेजों की सरकार शायद उसमें जलकर भस्म हो जायेगी। यह एक अंग्रेज ऑफीसर लेन्स डाऊन लिख रहा हैं।
ब्रिटिश पार्लियामेंट को भेजी गई कुछ रिपोर्ट पर चर्चा हो रही है। और उस रिपोर्ट पर चर्चा होते हुये उस जमाने की जो रानी है व्हिक्टोरिया जिसका नाम हैं। वो व्हिक्टोरिया ब्रिटिश पार्लियामेंट के जो एम.पी. (M.P.) हैं उनको निर्देश दे रही हैं और वो निर्देश क्या हैं वो हम को समझने चाहिये। तो आज के इस प्रश्न का हम लोगों को स्वरुप भी समझ में आयेगा। व्हिक्टोरिया कह रही है 1893 में लंदन के पार्लियामेंट के हाऊस ऑफ कॉमन में कि हिन्दुस्तान में गाय का कत्ल तो जारी रहना ही चाहिये। अंग्रेजों का ऑफीसर कह रहा है लेन्स डाऊन कि गाय का कत्ल करना मुश्किल हैं। और वो रिपोर्ट भेज रहा हैं। ब्रिटिश पार्लियामेंट को कि गाय का कत्ल अगर यहाँ करते चले गये हम लोग, तो यहाँ राज्य करना मुश्किल हो जायेगा। तो ब्रिटेन की महारानी व्हिक्टोरिया कह रही हैं पार्लियामेंट के अंदर 1893 के साल में कि गाय का कत्ल तो बहुत जरुरी हैं। क्यूँ ?. गाय का कत्ल करने से हिन्दुस्तान की अस्मिता, भारत की अस्मिता नष्ट होती है और भारत के लोगों का अस्तित्व भी नष्ट होता है उनका गौरव भी नष्ट होता हैं।
सीधी सी बात हैं कि जो केन्द्र बिंदू में है आपके देश में गाय अगर उसका कत्ल किया जाये तो आपकी भावनाओं को भी ठेस पहुँचती है। आपकी भावना भी आहत होती हैं। तो व्हिक्टोरिया कह रही है कि यह तो बहुत जरुरी है और इसको और आगे बढ़ाया जाना चाहिये। तो कैसे आगे बढ़ा सकते हैं। तो लेन्स डाऊन रिपोर्ट में लिख रहा हैं। और वो कह रहा हैं। एक महत्त्वपूर्ण बात जो आज मैं आपसे कहने की कोशिश कर रहा हूँ। लेन्स डाऊन की रिपोर्ट बताती है कि जो ब्रिटिश पार्लियामेंट में कही गयी है कि गाय को बचाने के लिये हिंदू भी लड़ रहे हैं और मुसलमान भी लड़ रहे हैं। हिन्दु और मुसलमान दोनों मिलकर 1870 के साल से गाय को बचाने के आंदोलन में लगे हुये हैं।
- राजस्थान में आप जाईये। राजस्थान में मुसलमानों की एक जाति है। उसको कहते हैं “राट"। यह राट जो जाति हैं मुसलमानों की यह किस इलाके में रहती है। . यह राट जाति मुसलमानों की राजस्थान के बिकानेर के आस-पास के इलाके में सबसे ज्यादा पायी जाती है। आज भी आप राट जाति के मुसलमानों के बीच में चले जाईये। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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तो उनकी पूरी आजीविका गाय के दूध और गाय के घी की बिक्री पर चलती है। तो राट जाती के मुसलमानों के लिये गाय उनकी आर्थिक जीविका का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। इसलिए राट जाति के मुसलमान 1870 के साल में गाय को बचाने के आंदोलन में लड़ रहे हैं। ऐसे ही आप चले जाईये राजस्थान में एक दूसरी मुसलमाना की जाति है। उसको कहते है "मेव"। जो मेव जाति के मुसलमान हैं। राजस्थान और हरियाणा का एक इलाका ही कहलाता हैं। जिसका नाम है "मेवात"। तो मेवात वो इलाका हैं। जिसमें मेव जाति के मुसलमान रहते हैं। मेव जाति के मुसलमान भी गाय को बचाने के आंदोलन में 1870 के साल से शामिल हैं। राट जाति के मुसलमान भी गाय को बचाने के आंदोलन में 1870 के साल से शामिल हैं। माने क्या हैं। गाय को बचाना सिर्फ हिन्दुओं का काम नहीं। गाय को बचाने के लिये मुसलमान भी लड़ रहे हैं। और उस जमाने के बड़े-बड़े मुसलमानों के जो मौलवी हैं। वो सब कह रहे हैं कि गाय बचेगी तो हम बचेगें। माने वो उनकी आर्थिक जीविका का साधन हैं। कुछ मुसलमान हैं जो गाय का दूध बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं। कुछ मुसलमान है जो गाय का घी बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं। कुछ मुसलमान है जो गाय दूध से बनने वाली मिठाईयां बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं।
हिन्दुस्तान की दूसरी तमाम जातीयाँ लड़ रही हैं गाय को बचाने के लिये। यह अंग्रेजों की रिपोर्ट में लेन्स डाऊन ने लिखवाया और वो रिपोर्ट ब्रिटिश पार्लियामेंट में पहुंची। तो रानी व्हिक्टोरिया ने उस पर एक टिप्पणी की, 8 डिसंबर 1893 को व्हिक्टोरिया ने एक चिट्ठी लिखी लेन्स डाऊन को। वो चिट्ठी का पहला पैराग्राफ क्या हैं। व्हिक्टोरिया लिख रही है कि हिन्दुस्तान में गाय का कत्ल बंद नहीं होना चाहिये।
और हिन्दुस्तान में गाय के कत्ल के बहाने हिन्दु और मुसलमानों के बीच में एक दरार पैदा करनी चाहिये। अंग्रेजों की हमेशा से नीति रही है। बाँटो और राज करो (डिवाईड एंड रुल) तो अंग्रेजों की वो जो नीति है 'बाँटो और राज करो' की उस नीति के तहत व्हिक्टोरिया चिट्ठी लिख रही है लेन्स डाऊन को कि मुसलमानों को इस बात के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये कि वो गाय का कत्ल करें। क्यों? अगर हिन्दुआ का यह पता चलेगा कि मुसलमान गाय का कत्ल कर रहे हैं तों हिन्दु और मुसलमाना क बीच झगड़े शुरु हो जायेंगे। और हिन्दु और मुसलमानों के बीच झगड़े शुरु हो जायेंगे तो अंग्रेजों की सरकार टिकेगी और उसको राज्य करने से कोई रोक नहीं सकता।
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- तो एक जमाने में 1870 से 1893 तक जो मुसलमान हिन्दुस्तान की गाय को बचाने के आंदोलन में लगे हुये हैं। फिर अंग्रेजों की नीतियों के कारण मुसलमानों को गाय का कत्ल करने के लिये प्रोत्साहित किया जाये। यह रानी की चिट्ठी हैं। लेन्स डाऊन के लिये और वो चिट्ठी हम लोगों के पास हैं। इसके आधार पर मैं यह कह रहा गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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हूँ। अंग्रेजों ने हिन्दु और मुसलमानों के बीच में झगड़ा कराने के लिये, हिन्दु और मुसलमानों के बीच में दरार पैदा करने के लिये मुसलमानों को गाय काटने के लिये प्रेरित किया और वो कैसे किया। उसकी नीति भी जानिये। लेन्स डाऊन को जब रानी की चिट्ठी मिली। तो लेन्स डाऊन ने एक नीति बनाई। नीति क्या बनाई? लेन्स डाऊन ने यह फैसला किया कि अंग्रेजों के चलाये गये जितने कत्ल कारखाने हैं उन कत्ल कारखानों में नौकरी सिर्फ मुसलमानों को दी जायेगी। ताकि पूरे हिन्दुस्तान में इस बात का प्रचार किया जाए कि हर कत्ल कारखाने में देखिये गाय काटने का काम मुसलमान कर रहे हैं। तो अंग्रेजों ने बकायदा यह नीति बनाई। और उस नीति के तहत अंग्रेजों के हर तरह के बनाये गये कत्ल कारखानो में मुसलमानों को नोकरी देने का काम शुरु किया। मुसलमानों को रिजर्वेशन के आधार पर कत्ल कारखानों में नोकरी दी गयी। जब मुसलमानों ने कत्ल कारखानों में नौकरी करने का काम शुरु कर दिया। काफी मुसलमानों को अंग्रेजों ने जबरदस्ती मारकर पीटकर गाय का कत्ल करवाने के लिये तैयार किया। सामान्य रुप से कोई मुसलमान उसके लिये तैयार नहीं था।
उस जमाने में जब मुसलमान गाय का कत्ल करवाने के लिये तैयार नहीं थे। तो अंग्रेजों की सरकार ने मुसलमानों को मारना, पीटना, उनको धमकाना, उनको तरह-तरह के लालच देने का काम शुरु करवा दिया। और धीरे-धीरे अंग्रेजों ने सारे देश में यह प्रचार करवाना शुरु कर दिया। देखिये, गाय हम नहीं काटते। मुसलमान काटते हैं।
. और सच्चाई यह है कि रानी ने चिट्ठी में लिखा था कि मुसलमान गाय काटेंगे जरुर लेकिन वो हमारे लिये काटेंगे। हमारी फौज के लिये काटेंगे। अंग्रेजो को गाय का मांस चाहिये। तो मुसलमान, गाय काटेंगे हमारे लिये और हिन्दुस्तान की जनता को दिखाई देगा कि गाय कट रही है मुसलमानों के द्वारा। इसमें जो मूल व्यक्ति हैं गाय को कटवाने वाला, वो मूल अंग्रेज है। गाय को कटवाने वाला उनका चेहरा लोगों को दिखाई नहीं देगा। और यह नीति पूरे हिन्दुस्तान में अंग्रेजों ने. लागू की। इस नीति की सफलता हुई। सफलता क्या हुई? कि हिन्दुस्तान में जगह-जगह हिन्दु-मुसलमानों के दंगे शुरु हो गये। अंग्रेजों ने अपने आप को बचा लिया। और हिन्दु-मुसलमानों के बीच में उन्होंने भेद पैदा कर दिया। गाय का कत्ल करवा के और इस तरह से हिन्दुस्तान में अंग्रेजों की बनाई गयी वो नीति चालू होती गयी।
आजादी मिलने के शुरु के दौर में क्या हुआ कि हिन्दुस्तान के बहुत सारे नेता थे जो गाय बचाने के प्रश्न पर सबसे ज्यादा चिंतित थे। उनमें से पौड़त मदन मोहन मालवीय। मानो मदन मोहन मालवीय के पूरे आंदोलन के केन्द्र में गाय हुआ करती थी। स्वामी दयानंद सरस्वती के पूरे केन्द्र में गाय हुआ करती थी। महात्मा गांधी ने तो उस बात को कई बार कहा। गांधीजी ने जब अपना आंदोलन शुरु किया। उस गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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आंदोलन की शुरुवात में और आंदोलन बीच में और आंदोलन के बाद में भी कई बार यह कहा कि, "स्वराज्य से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है “गौरक्षा"। और मेरे लिये गाय का कत्ल एक ऐसा ही है जैसे किसी व्यक्ति का कत्ल किया जा रहा हो।" हिन्दुस्तान की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले तमाम नेताओं के लिये गाय का प्रश्न बहुत ही केन्द्रीय प्रश्न था। बहुत ही मूल प्रश्न था। तो गांधीजी जैसे लोगों ने गाय के प्रश्न को उठाया। स्वामी दयानंद, मदन मोहन मालवीय जैसे लोगों ने गाय के प्रश्न को उठाया। लोकमान्य तिलक ने गाय के प्रश्न को उठाया। और उन लोगों के पास गाय के प्रश्न उठाने के पीछे एक ही परंपरा थी कि जो हिन्दुस्तान में 1870 में क्रांति हुई थी। बगावत हुई थी। 1857 और 1870 के बीच में जो आंदोलन चले थे वो गाय के प्रश्न को लेकर महत्त्वपूर्ण
आंदोलन चले थे। तो आगे भी इस देश में यह महत्त्वपूर्ण काम होता रहेगा। बीच में आजादी की लड़ाई की ऐसी घड़ी आयी कि जब लोगों को लगने लगा कि अंग्रेज देश छोड़ कर चले जायेंगें। और अंग्रेजों को हिन्दुस्तान छोड़कर जाना पड़ेगा। अंग्रेजों को देश छोडकर जाना पड़ेगा। ऐसी बात दिखाई देने लगी 1940 के साल से।
__1940 के एक साल पहले एक बहुत महत्त्वपूर्ण घटना हुई। जिसका जिक्र मैं करना चाहता हूँ। लाहौर एक शहर है। पहले हिन्दुस्तान का हिस्सा था। अभी पाकिस्तान में है बँटवारे के बाद। लाहौर शहर में अंग्रेजों ने एक कत्ल कारखाना खोला 1939 के साल में। और वो कत्ल कारखाना यांत्रिक था। मेकेनाईज था और बड़े पैमाने पर उसमें गौवंश नंदी का कत्ल हो सकता था। यह अंग्रेजों ने फैसला किया था। तो 1939 में जो लाहौर में कत्ल कारखाना खोला गया। उस के लिये सबसे जबरदस्त
आंदोलन किया पंडित जवाहरलाल नेहरु ने। पंडित जवाहरलाल नेहरु ने 1939 के उस कत्ल कारखाने को बंद कराने के लिये आंदोलन शुरु किया और वो आंदोलन सफल भी हुआ। 1939 में अंग्रेजों की सरकार ने लाहोर में जो कत्ल कारखाना खोला था। वो बंद हो गया। उस कत्ल कारखाने को बंद कराने के समय पंडित नेहरु जो भाषण दिया करते थे उसकी एक लाईन का जिक्र आपके बीच में कर रहा हूँ। पंडित नेहरु कहा करते थे कि “जब मैं जानवरों का कत्ल होते हुये देखता हूँ तो अंदर से मेरी आत्मा चीत्कार करती है। और उनका यह कहना था और उनका यह मानना था कि अगर वो आजाद हिन्दुस्तान में किसी महत्त्वपूर्ण पद पर पहुंचे तो वो एक ऐसा कानून बना देगें। जिससे हिन्दुस्तान में गाय का कत्ल बंद हो जायेगा। गौवंश का कत्ल बंद हो जायेगा।” यह पंडित नेहरु के भाषण हैं।
और ऐसे ही एक भाषण में हिन्दुस्तान के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कह रहे हैं कि "मुझे माँसाहार बिलकुल पसंद नहीं। और मैं चाहता हूँ कि हिन्दुस्तान' में अधिक से अधिक लोग शाकाहारी हों। तो इसके लिये जरुरी है कि हिन्दुस्तान में
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माँसाहार का चलन बंद किया जाए। तो माँसाहार चलन बंद करने के लिये सबसे ज्यादा जरुरी है कि मांस उत्पादन के जो केन्द्र चल रहे हैं इनको बंद किया जाये। तो पंडित राजेन्द्र प्रसाद ने भी आजादी के पहले इस तरह का संकल्प लिया कि मैं कभी हिन्दुस्तान में आजादी के बाद अगर किसी महत्त्वपूर्ण पद पर आया। तो गाय का मांस जहाँ उत्पादन होता है, गौवंश का जहाँ कत्ल होता है। हिन्दुस्तान के जानवरों का जहाँ कत्ल होता है। यह सारे उत्पादन केन्द्र बंद करवा देंगे। और इसके लिये हम केन्द्रीय स्तर पर कानून बनवायेंगे। ऐसी भावना थी। यह दोनों व्यक्ति हिन्दुस्तान के सबसे ऊंचे शिखर पर बैठे। पंडित जवाहरलाल नेहरु हिन्दुस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने। और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हिन्दुस्तान के पहले राष्ट्रपति बने। तो हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री और . राष्ट्रपति बनने से पहले दोनों नेता यह मानते थे कि गाय का कत्ल नहीं होना चाहिये। गौवंश की रक्षा होनी चाहिये। और मांस उत्पादन के जो केन्द्र चल रहे हैं पूरे देश में इनको बंद करा देना चाहिये। दोनों नेताओं की यह मान्यता थी कि मांस उत्पादन के केन्द्र को बंद कराने के लिये अगर जरुरत पडे तो हम केन्द्रीय स्तर का कानून बनायेगें।
__ . लेकिन मेरा सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि अपने पूरे शासन काल में पंडित जवाहरलाल नेहरु और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गौवंश की रक्षा करने वाला कानून ही नहीं बना पाये। बाकी बहुत सारे कानून उन्होंने बनाये। 1955 के साल में पंडित नेहरु ने पार्लियामेंट में एक भाषण दिया हैं। उस भाषण की फोटो कॉपी भी हमारे पास है। वो भाषण पंडित नेहरु दे रहे हैं 1955 में पार्लियामेंट के अंदर। हुआ क्या है। एक सांसद ने गौवंश की हत्या को रोकने के लिये एक विधेयक पार्लियामेंट में लाया कि गौवंश की हत्या रोकी जानी चाहिये। इसके लिये एक विधेयक आया संसद में। उस विधेयक पर बहस हो रही है। तो बहस करते समय पंडित नेहरु कह रहे हैं कि उस विधेयक को तत्काल रद्द किया जाना चाहिये। माने गौवंश कत्ल चालू रहना चाहिये। आजादी के पहले एक बात कह रहे हैं और आजादी मिलने के बाद जब वो प्रधानमंत्री बन गये हैं। तो पार्लियामेंट के अंदर उसकी ठीक दूसरी बात कह रहे हैं। दोस्तो, आज यह जो हिन्दुस्तान के नेता हैं सत्ता मिलने के बाद दूसरी बात कहते हैं। यह परपंरा हिन्दुस्तान में आजादी के साल से ही पड़ी हुई है। यह कोई आज की परपंरा नहीं है। इसलिए आज के नेताओं को देखकर मत रोईये।
उस जमाने के जो सबसे बड़े नेता माने जाने वाले लोग सत्ता मिलने से पहले गाय के कत्ल का विरोध करते हैं और सत्ता मिलने के बाद यह कहते हैं कि गाय के कत्ल चालू रहना चाहिये। इससे ज्यादा विरोधाभास और क्या हो सकता है। और वो
दोनो आदमी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और पंडित जवाहरलाल नेहरु भूल गये कि हिन्दुस्तान .. में गाय के कत्ल को रोकने के लिये एक केन्द्रीय कानून बनाने की बात उन्होंने कही
थी। आजादी के पहले और आजादी के साल में वही नहीं हो पाया और आज तक गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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हम सबका, आपका दुर्भाग्य हैं कि आजादी मिले हुये 50 साल हो गये हैं लेकिन केन्द्रीय - स्तर पर आज तक ऐसा कोई कानून नहीं बन पाया। जिससे इस देश में पशुओं के कत्ल
को रोका जा सके। आजादी के पहले जिस तरह से देश चलता था। आजादी के बाद भी वैसे ही देश चल रहा है।
दुर्भाग्य से आज ज्यादा खराब हालत हैं। आंकड़े यह बताते हैं कि अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान में 350 कत्ल कारखाने चलाये। आज आजादी के 50 साल में हिन्दुस्तान '. में 36 हजार कत्ल कारखाने हैं। जब आजादी नहीं मिली थी तो 350 कत्ल कारखाने
थे। अब आजादी मिलने के बाद 36 हजार कत्ल कारखाने हैं। और उनमें से एक एक कत्ल कारखाना कितना जबरदस्त है कि एक-एक कत्ल कारखाने ऐसे हैं के दस हजार पशु रोज काटे जाते हैं। यही बंबई में हैं। देवनार में हैं। मेरठ में है। अलकबीर का है। कलकत्ता में हैं। हिन्दुस्तान के तमाम ऐसे बड़े-बड़े ऐसे कारखाने हैं जिनमें एक दिन में कम से कम दस हजार पशु काट दिये जाते हैं। आप जरा कल्पना करिये कि जितनी देर में आप का चौबीस घंटा बीतता हैं। माने आप रात को सोते है और अगले दिन रात को सोने की तैयारी करते हैं। उतनी देर में दस हजार जानवरों की बलि ले ली जाती हैं।
- क्या हालत हैं इस देश की। अंग्रेजों के जमाने के आंकड़े बताते हैं मैंने आप • से कहा कि लगभग 30 साल के अंदर अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान में दस करोड़ गौवंश का कत्ल करवाया। आज आजादी के 50 साल में जिस साल से हमें आजादी मिली हैं उस साल से 1997 से 1998 के साल तक आते-आते हिन्दुस्तान में लगभग 38 करोड़ गौवंश का नाश किया जा चुका है। अंग्रेजों ने 30 साल में करवाया लगभग दस करोड़
और हमारी सरकार ने पचास साल में करवा दिया 38 करोड़। गौवंश का कत्ल माने पचास करोड़ गाय, नंदी, बछड़े-बछड़ीया यह सब काटे जा चुके हैं। जितने साल में आपने आजादी के पचास साल पूरे किये और आप जरा कल्पना करिये कि अगर यह 38 करोड़ या 50 करोड़ गौवंश के जानवरों को बचा लिया जाता। तो हिन्दुस्तान में आज संपत्ती और संपदा कितनी होती। पैसा कितना होता।
क्योंकि आपको मालूम नहीं हैं। एक गाय घर के दरवाजे पर अगर बंधी है। और वो सालभर दूध दे या ना दे बिना दूध की गाय अगर आपके दरवाजे पर बंधी हुई हैं तो एक साल के अंदर वो गाय पच्चीस हजार रुपये का फर्टीलायजर पैदा करती हैं। खाद पैदा करती हैं। जिसको आप गोबर कहते हैं। तो अगर एक गाय पच्चीस हजार रुपये का फर्टीलायजर पैदा करती है एक साल में, तो गौवंश के जो पचास करोड़ पशुओं का कत्ल हो गया हैं। तो आप सोचिये कितने करोड़ रुपये के खाद का नुकसान किया हैं हमने पिछले पचास साल में। और आप सब जानते हैं और हम भी जानते हैं कि गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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गाय का गोबर अगर खेत में ना पड़े तो गेहूँ नहीं हो सकता। गाय का गोबर अगर. खेत में ना पड़े तो चना नहीं हो सकता। मटर नहीं हो सकती। और गेहूँ चना मटर अगर नहीं हो सकता तो हमारा पेट नहीं भर सकता। तो जिस गाय से हमको इतनी महत्त्वपूर्ण और बेशकीमती चीज मिल रही है उसका हम ने नुकसान किया है। करोड़ों रुपये खाद का नुकसान हुआ है पिछले पचास सालों में। और आप.मान लीजिए एक साल में एक गाय दस से पंद्रह हजार रुपये का दूध देती हो। तो यह जो 38 करोड़ . गौवंश का नाश हुआ है पिछले पचास साल में। यह कितने करोड़ रुपये के दूध का नाश कर दिया है हमारी सरकार ने। और आपको मालूम नहीं है, कि गाय का गोबर और गाय का दूध। उससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है गाय का मूत्र। और आपको यह जानकर खुशी होगी और आश्चर्य भी होगा की गाय के मुत्र से 108 तरह की दवायें बनती हैं।
और हमारे देश के आयुर्वेद के जो बड़े ग्रंथ हैं चरकसंहिता, सुश्रुत, हरित संहिता इन . सभी आयुर्वेद के ग्रंथो में गाय का मूत्र बहुत विशेष किस्म की दवा माना जाता है।
__ एक बीमारी है उसका नाम है डायबिटीज। यह डायबिटीज नाम की बीमारी का कोई इलाज नहीं है होमियोपैथी में। कोई इलाज नहीं है ऐलोपैथी में। और कोई. इलाज नहीं है दुनिया की किसी पैथी में। डायबिटीज को कंट्रोल तो किया जा सकता है लेकिन उसका इलाज करना बहुत मुश्किल है। ऐलोपैथी वाले तो कभी यह गारंटी दे नहीं सकते कि वो डायबिटीज जैसी बीमारी को ठीक कर सकते हैं। डायबिटीज को कंट्रोल कर सकते हैं लेकिन ठीक नहीं कर सकते। वो डायबिटीज जैसी बीमारी गाय के मूत्र से हमेशा-हमेशा के लिये खत्म हो जाती हैं। तो गाय का दूध। गाय का गोबर। गाय का मूत्र। यह सब बहुत जरुरी चीजे हैं। और अगर 38 करोड़ गौवंश के पशुओं का नाश हुआ है पिछले पचास साल में तो आप अंदाजा करिये कि कितने लाख करोड़ रुपये की हम ने बर्बादी की है इस देश में पिछले पचास साल में।
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.. और आज भी आपको मैं जानकारी हूँ कि हिन्दुस्तान में इस समय भयंकर समस्या चल रही हैं पेट्रोल की और डीजल की। पेट्रोल और डीजल की समस्या जो चल रही। वो क्या है ? भारत सरकार हर साल यही कहती रहती है कि हिन्दुस्तान में पेट्रोल
और डीजल के दाम बढ़ाये जाने चाहिये। क्यूँ? क्योंकि भारत सरकार के ऑइल पूल अकाउन्ट का डेफिसिट बढ़ता ही चला जाता। कभी पूरा ही नहीं होता है। वो ऑइल पूल अकाउन्ट में हमेशा घाटा रहता है हजारो करोड़ का। उस ऑइल पूल अकाउन्ट . . के डेफिसिट में तो यह पेट्रोल और डीजल का ज्यादा हिस्सा बाहर से आयात करना पडता। और जैसे-जैसे आपके रुपये की कीमत गिरती चली जाती है। वैसे-वैसे बाहर से आने वाले पेट्रोल और डीजल का दाम बढ़ता चला जाता है। क्योंकि आपका रुपया गिरेगा तो बाहर से आने वाली चीजों का आयात मँहगा होता चला जायेगा। तो आपके गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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देश में रुपया ग़िरता चला जाता है। 1947 के साल से आज 1997 वे 1998 के साल तक आपके रुपये में सैकड़ो टक्का की गिरावट आयी है।
पिछले सात वर्षों में हमारे रुपये में 120 टक्का की गिरावट आयी है। 1991 के साल में हमारे देश में एक डॉलर में 18 रुपया होता था। आज एक डॉलर में 40, 41, 42 रुपये के आस-पास भाव है। 120% की यह जो गिरावट आयी है रुपये में ! इसके कारण क्या हुआ है। आपके देश में आने वाला डीजल और पेट्रोल 120% मँहगा हो गया। तो जैसे-जैसे डीजल और पेट्रोल मँहगा होता जा रहा है। वैसे-वैसे इस देश में ऑइल पूल अकाउन्ट का डेफिसिट भी बढ़ता जा रहा है। तो भारत सरकार क्या करती है। भारत सरकार ऑइल पूल अकाउन्ट के डेफिसिट को पूरा करने के लिये आप जैसे लोगों के ऊपर चार्ज लगा देती है और पेट्रोल, डीजल का दाम बढ़ा देती है ।
एक बार बैगलोर में एक बड़ी भारी कॉन्फ्रेस हुई। उसमें सरकारी अधिकारी शामिल थे। उसमें देश के बड़े-बड़े अर्थशास्त्री शामिल थे। उसमें हमारे देश के बड़े सामाजिक शास्त्री भी शामिल थे। मैं भी उसमें गलती से चला गया था। गलती से इसलिए कहता हूँ कि मेरे जैसे लोगों को वहाँ नहीं जाना चाहिये। क्योंकि वो जिस खोपड़ी से काम करते हैं। हमारी, हमारा दिमाग ही उससे बिलकुल अलग चलता । लेकिन दुर्भाग्य की बात मैं वहाँ गया। मुझे भी उसका इनव्हिटेशन था। तो वहाँ बाते चल रही थीं और भारत सरकार का एक अधिकारी चिंता व्यक्त कर रहा था कि कैसे हम यह ऑइल पूल अकाउन्ट का डेफिसिट पूरा करें। तो तमाम लोगो ने अपने अपने सुझाव दिये। सब लोगो के सुझाव उसने सुन लियें । फिर उसने कहा राजीव भाई आपका क्या सुझाव है कि यह भारत सरकार ऑइल पूल अकाउन्ट का डेफिसिट कैसे खत्म करे। तो मैने कहा कि मैं मेरा सुझाव देने से पहले आपसे दो सवाल पुछना चाहता हूँ । पहले मुझे मेरे दो सवालों का जवाब दीजिये तो में मेरा सुझाव देने को तैयार हूँ। तो उन्होंने कहा - सवाल पूछिये तो उस अधिकारी से मैंने पूछा कि आप मुझे यह बताइये कि हिन्दुस्तान में एक गाँव से दूसरे गाँव जो सामान जाता है। हमारे देश में जो गुडस् का ट्रान्सपोर्टेशन होता है। जो माल एक जगह से दूसरी जगह जाता है। इस माल को. एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने में कितना हिस्सा है जो बैलगाडियों से होता है और कितना हिस्सा है जो मोटर कार और रेल से और हवाई जहाज से होता है। इसको तकनीकी भाषा में अगर कहूँ। तो मेरा सवाल ऐसा है कि हिन्दुस्तान में गुडस् के ट्रान्सपोर्टेशन में ऑरग्नाइज सेक्टर का कितना हिस्सा हैं। और अनऑरग्नाइज सेक्टर का कितना हिस्सा हैं। तो उस अधिकारी ने जवाब दिया कि, “राजीव भाई आज भी हिन्दुस्तान में एक माल जो एक गाँव से दूसरे गाँव में पहुँचता हैं, माल का ट्रान्सपोर्टटेशन होता है, उसमें से 60% माल बैलगाडियों के द्वारा एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाया जाता है। 60% माने हिन्दुस्तान में जो टोटल ट्रान्सपोर्टेशन आफ गुडस् है उस में
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60% हमारे देश के पशुओं की ताकत से एक गाँव से दूसरे गाँव पहुँचता है। सिर्फ 40% ट्रान्सपोर्टेशन है गुडस् का जो रेलगाडी द्वारा होता है, हवाई जहाज द्वारा होता है, ट्रकों के द्वारा होता है, लॉरी के द्वारा होता हैं सिर्फ 40% 1
तो मैंने उसे एक दूसरा सवाल किया कि अगर आप यह हिसाब बताते हैं कि 60% ट्रान्सपोर्टेशन गुडस् का आज भी हिन्दुस्तान में अनऑरग्नाइज सेक्टर में हैं। माने पशु शक्ति से एक गाँव से दूसरे गाँव जाता है और 40% ही हिन्दुस्तान में ऑग्नाइझ सेक्टर में जाता है। तो मैंने कहा एक दूसरी बात और बता दीजिये कि अगर यह जो 60% माल आज जा रहा है बैलगाडी के द्वारा, घोडागाडियों के द्वारा, उँट गाडियों के द्वारा अगर यह सारा का सारा माल हम हवाई जहाज से ले जायें। सारा का सारा माल हम रेल से ले जायें सारा का सारा माल हम ट्रक से ले जायें, सारा का सारा माल हम मोटर गाडी से ले जायें तो क्या होगा ? तो उसने कहा। राजीव भाई हिन्दुस्तान
पेट्रोल और डिझेल का खर्चा ही साठ सत्तर हजार करोड़ तक पहुँच जायेगा । तो मैने कहा कि अगर सारा माल हम पेट्रोल और डिझेल पर उठाना शुरु करें, हवाई जहाज
भर के एक गाँव से दूसरे गाँव पहुँचाना शुरु करे तो आप कहते हो कि साठ-सत्तर हजार करोड़ का डिझेल और पेट्रोल हमको खर्च करना पड़ेगा हर साल में। तो मैंने कहाआपने ही अपने सवाल का जवाब दे दिया। वो कहने लगे मेरी समझ में नहीं आया । अधिकारी हैं। बुद्धि उल्टी है। समझ में कैसे आये । तो मैंने उसको बिलकुल सीधा कर के समझाया। मैने कहा कि यह जो 60% माल जा रहा है गाँव में बैलगाड़ियों से एक जगह से दूसरी जगह, इसको 100% अगर हम कर दें। तो क्या होगा ? तो कहने लगा हिन्दुस्तान किं सरकार का हर साल के बजट में कम से कम चौदह से पंद्रह हजार करोड़ रुपये वच जायेगा। तो मैंने कहा- अगर चौदह से पंद्रह हजार करोड़ रुपये बचेगा । तो आप बताइये ऑइल पूल अकाउन्ट डेफिसिट कितना तो उसने दाँत निकालते हुये कहा कि कुल चौदह हजार करोड़ का । मैंने कहा डेफिसिट पूरा हो जाता है अगर आप हिन्दुस्तान के पशुधन का इस्तेमाल करें। पूरे माल को एक गाँव से दुसरी जगह ले जाने . की व्यवस्था कर दे तो आपके देश में ऑइल पूल अकाउन्ट का डेफिसिट ही नहीं रहने वाला तो बात उसके समझ में आ गयी ।
तो उसने दूसरा प्रश्न किया मुझसे - राजीव भाई आप फिर मुझको यह बताइये कि अगर बैलगाडियों से यह माल एक गाँव से दूसरे गाँव जायेगा। तो महिनों में एक जगह से दूसरी जगह पहुँचेगा। मैंने कहा- उसका भी सुझाव है मेरे पास आप हिन्दुस्तान की बैलगाडियों के चक्कों में बियरिंग लगा दीजिये। तो अगर हिन्दुस्तान के बैलगाडियों के चक्कों में बियरिंग लगा दिया जाये। तो क्या होगा? वही बैल जो 100. क्विटल माल ले जा सकता हैं। वह दो क्विटंल, जितना माल ले जा सकता हैं। अगर बैलगाडी के चक्कों में बियरिंग लगा हुआ है तो वही बैल उससे दोगुना ज्यादा माल ले जायेगा । गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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सिर्फ दोगुना ज्यादा माल ही नहीं ले जायेगा बल्कि तेजी के साथ वो माल एक गाँव से दूसरे गाँव में पहुँच जायेगा। तो आपकी समय की समस्या का भी समाधान हो जायेगा।
तो मैंने कहा कि बस दो छोटे से काम करिये। पहला काम कि हिन्दुस्तान का जो पशुधन है। हिन्दुस्तान के पशुओं की जो शक्ति है। इसका बचाव करिये ताकि यह माल को एक गाँव से दूसरे गाँव में ले जाने के काम में आयें। और दूसरा काम बैलगाडी के चक्कों में बॉल बियरिंग लगा दीजिये। तो उसने तीसरा सवाल मुझसे कहा .. कि राजीव भाई यह करेगा कौन? मैंने कहा- आप करेंगे और कौन करेगा। अधिकारी आप हैं मैं थोडी। तो कहने लगे आपकी बात समझ में आती है। लेकिन कोई इसको करने के इसलिए तैयार नहीं होगा क्योंकि बैलगाडी के चक्कों में बियरिंग लगाना चालू काम है। और हिन्दुस्तान के वैज्ञानिक को अमरीका जाने का मौका कैसे मिलेगा। क्योंकि अमरीका जाने का मौका तब मिलेगा। जब आप पेट्रोल डीजल और ऐसी चीजों पर रिसर्च करेंगे। बैलगाडी के चक्कों में बॉल बियरिंग लगायेंगे तो उसको तो गाँव में जाना पड़ेगा। और यहाँ तो सब अमरीका भागने को तैयार बैठे हैं। परेशानी तो यह है। माने हिन्दुस्तान की सरकार की सबसे बड़ी समस्या ऑइल पूल अकाउन्ट का डेफिसिट खत्म करने में हिन्दुस्तान के गौवंश का सबसे बड़ा इस्तेमाल हो सकता हैं। यह बात में आपको कहना चाहता हूँ। और आप यह जान लीजिये भारत सरकार . कहती हैं। मैं नहीं कहता।
हिन्दुस्तान में इस समय जितना बचा हुआ पशुधन है। आपको मालूम है ज्यादा पशुधन बचा नहीं। मैंने बताया पचास साल में 38 करोड़ गौवंश का नाश कर दिया है। मुश्किल से इस देश में पशुधन अगर गौवंश का आज हम देखें तो 18-20 करोड़ के आस-पास होगा। लेकिन यह जो 18-20 करोड़ का गौवंश का पशुधन हैं। यह पशुधन हिन्दुस्तान में 14 हजार करोड़ रुपये की बचत करता है हर साल में। आप सोचिए कितनी बड़ी बचत है। 14 हजार करोड़ कोई छोटी-मोटी रक्कम नहीं होती। वो 14 हजार करोड़ की रक्कम बचायी जाती है हिन्दुस्तान के गौवंश के पशुओं के द्वारा और हिन्दुस्तान के दूसरे पशुओं के द्वारा। इसलिए गौवंश का नाश नहीं होना चाहिये। इसलिए भी नाश नहीं होना चाहिये गौवंश का, कि हिन्दुस्तान में जो गाय हैं वो अरबों रुपयो का फर्टीलायजर पैदा कर सकती है। बैल अरबों रुपये का फर्टीलायजर पैदा कर सकता हैं। और हम को विदेशों से केमिकल्स फर्टीलायजर इम्पोर्ट करने की जरुरत नहीं हैं। आप सब जानते हैं। यह जो केमिकल्स फर्टीलायजर होता है। यह बाहर के देशों से लाया हुआ केमिकल्स फर्टीलायजर आपके शरीर में जहर घोल रहा है। आप गेहूँ नहीं खा रहे हैं। गेहूँ के साथ जहर खा रहे हैं। आप चना और चावल के साथ जहर खा रहे हैं। क्योंकि उनमें विदेशी फर्टीलायजर लगता है। केमिकल्स फर्टीलायजर लगता है। इसकी वजह से पानी ज्यादा लगता है खेती में। अगर गाय के गोबर से हम खेती गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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करें तो हमारे देश का पाँच गुना पानी बच सकता है। वही खेती हो रही है केमिकल्स फर्टीलायजर से तो पाँच गुना ज्यादा पानी बर्बाद हो रहा है देश का। और आप सब जानते हैं कि पानी ईश्वर की देन है। सरकार पानी पैदा कर नहीं सकती। दुनिया में अरबों रुपये जिन सरकारों के पास हैं वो भी पानी पैदा नहीं कर सकते। यह भगवान , का दिया हुआ है। ईश्वर का दिया हुआ है। और जमीन के नीचे यह पानी है। वो आपके बैंक बॅलेन्स की तरह से है। हम बेवकुफी में क्या कर रहे हैं कि बैंक बॅलेन्स में से पैसा निकालते चले जा रहे हैं। निकालते चले जा रहे हैं। उसको वापस डालने का हमारे पास कोई तंत्र नहीं है। इसलिए गाय बचे। गौवंश बचे। तो हिन्दुस्तान में हजारों करोड़, अरबों करोड़ों रुपये का केमिकल्स फर्टिलायझर पैदा होगा। तो आप पूछेगे कैसे होगा। तो एक छोटासा सुझाव है कि हम सब लोग ज्यादा से ज्यादा गाय का दूध पीना शुरु - कर दे। हिन्दुस्तान में जो लोग चाय, कॉफी और पेप्सी, कोका कोला पीते हैं। अगर यह चाय, कॉफी और पेप्सी, कोका कोला पीना बंद कर दिया जाए। तो लगभग साढ़े सात-आठ हजार करोड़ रुपये का गाय का दूध ओर बिकेगा। और इतने दूध को बेचने के लिये कम से कम देड़-दो करोड़ और ज्यादा गाय पालनी पड़ेगी। और देड़-दो करोड़ जो गाय पाली जायेगी इस देश में वो देड़-दो करोड़ गाय दस प्रतिशत की वृद्धि होगी हर साल में तो हिन्दुस्तान में आने वाले पंद्रह-बीस सालों में करोड़ों गौवंश को हम बचा सकेंगे। इसलिए गाय की रक्षा, गौरक्षा करना बहुत जरुरी है। और चलते-चलते आखरी बात। इसलिए भी गौरक्षा बहुत जरुरी हैं कि यह गाय जो है। भारतीय संस्कृति का प्राण हैं। और इसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास है। तो हम सब एक छोटा सा काम जरुर कर सकते हैं कि अपने घर में संकल्प करें कि जितने ज्यादा से ज्यादा गाय का दूध पिये। गाय का घी खाये। गाय के दूध को बिकवाये। गाय के दूध से बने हुये सामानों की बिक्री करवाये उतना ही ज्यादा से ज्यादा हमारे देश में यह गौवंश की वृद्धि होती चली जायेगी। इतना ही मुझे आपसे कहना था। बहुत बहुत आभार - बहुत बहुत धन्यवाद
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2. गौरक्षा सोलापूर .
- राजीव दीक्षित इस सभा के अध्यक्ष आदरणीय श्री शास्त्रीजी। मेरे सहयोगी श्री केतन भाई, . राजकुमार भाई बरडिया, संदीप वैद्य और यहाँ की पशुधन बचाव समिति के सभी सम्माननीय सहयोगी। मैं आपके शहर सोलापूर के लिये नया नहीं हूँ। बहुत बार यहाँ पर आया हूँ। लेकिन आज आपसे एक विशेष संदर्भ में संवाद करने आया हूँ। मैं महात्मा गांधी के गाँव से महात्मा गांधी का संदेश ले के आया हूँ। महात्मा गांधी का गाँव सेवाग्राम है वर्धा जिल्हे में। मैं वही रहता हूँ। गांधीजी का आश्रम मेरा निवास स्थान है। वहाँ से एक संदेश लेकर विशेष संदर्भ में आया हूँ। (राजीव भाई 1997 से लेकर 2004 तक सेवाग्राम आश्रम, नई तालीम परिसर में रहें। वहीं से पूरे प्रदेश में आंदोलन का काम किया।)
वो संदेश यह है कि जब आजादी मिलने का समय तय हो गया और अंग्रेजों ने यह घोषणा कर दी कि वह भारत छोड़कर चले जायेंगे। तो उसी समय एक अंग्रेज अधिकारी जो भारत का प्रमुख अधिकारी था। जिसका नाम था माउन्टबेटन। उसने गांधीजी की एक मुलाकात ली। भेंट किया। यह घटना है सन् 1946 की और महिना था दिसम्बर का। गांधीजी को माउन्टबेटन ने एक प्रश्न पुछा, बहुत गंभीर प्रश्न था। उसने कहा कि बापु अभी भारत आजाद हो जायेगा। अंग्रेज, भारत छोड़कर चले जायेंगे। तो आप के मन में सबसे पहला कौन सा काम है जो आप करेंगे भारत में। अंग्रेजों के जाने के बाद, अंग्रेजों की सरकार चले जाने के बाद आप कौन सा ऐसा काम है जो सबसे पहले करना पसंद करेंगे। मान लो कि हम सब चले गये अंग्रेज। अब आप बतायें क्या करेंगे। राजकारण ठीक करेंगे। अर्थव्यवस्था ठीक करेंगे। भारत के नेताओं को, जो नैतिक रुप से कमजोर हैं उन्हे दुरुस्त करेंगे। शिक्षा व्यवस्था ठीक करेंगे। शेती व्यवस्था में काम करेंगे। क्या करेंगे सबसे पहले। गांधीजी ने बहुत सुंदर उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि तुम्हारी सरकार जाने के बाद में कलम की पहली नौक से भारत के सब कत्ल कारखाने बंद कराऊँगा। माउन्टबेटन को बहुत आश्चर्य हुआ। उसको आश्चर्य यह हुआ कि क्या उत्तर दिया है उन्होंने। उसको अपेक्षा नहीं थी कि ऐसा उत्तर गांधीजी से मिलेगा। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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उसने फिर प्रश्न किया। बापु, कत्ल खानों की जो समस्या है भारत में इससे भी ज्यादा बड़ी कई समस्यायें हैं। गरीबी की है। बेराजगारी की है। भुखमरी की है। भारत देश में उस जमाने में आप जानते हैं हिन्दु-मुसलमानों के दंगे हो रहे थे। वो एक बड़ी समस्या है। तो आप इतनी बड़ी-बड़ी समस्याओं को छोड़कर और सम्भावना उस समय यह हो गई, क्योंकि पाकिस्तान बनेगा लगभग तय हो गया था। लेकिन गांधीजी ने उसे स्वीकार नहीं किया था। और गांधीजी ने घोषणा कर रखी थी कि पाकिस्तान बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा। मैं पहले मरूँगा। बाद में पाकिस्तान बनेगा। तो माउन्टबेटन ने फिर प्रश्न दोहराया अपना कि इतनी बड़ी-बड़ी समस्यायें भारत में हैं। उनको छोड़कर कत्ल खाने बंद करेंगे। यह तो बहुत छोटी सी समस्या है। गांधीजी ने भी उससे बड़ा उत्तर दिया। उन्होंने कहा “देखो माउन्टबेटन, मेरे लिये भारत में कत्ल खानों का. चलना सबसे बड़ी समस्या है। अगर अंग्रेज यह कहें, अंग्रेजों के लिये वो कह रहे है, कि भारत की आजादी और कत्ल खानों के बंद होने में से कोई एक गांधीजी चुनाव करें तो माने अगर अंग्रेज अगर मुझको यह कहें किं आप तो भारत की आजादी ले लो या कत्ल खाने बंद करा दो। तो मेरा चुनाव होगा कि कत्ल खाने पहले बंद होने चाहिये। आजादी बाद में आ जायेगी। फिर माउन्टबेटन ने आखरी बार एक और बात पूछ ली कि आपको ऐसा लगता है क्या बापु यह कत्ल खानों के बंद
हो जाने से भारत की सब समस्याओं का समाधान हो जायेगा। तो गांधीजी ने कहा • देखो सब समस्याओं का समाधान नहीं हो जायेगा। यह मै जानता हूँ। लेकिन कत्ल खानों के बंद होने से सारी समस्याओं का रास्ता खुल जायेगा। और जब तक यह कत्ल खाने चलेंगे। भारत की किसी भी समस्या का समाधान नहीं होने वाला। यह बात गांधीजी और माउन्टबेटन के बीच की है। बाद में माउन्टबेटन ने कहा यह मैं वृत्तपत्र में दे दूं छापने के लिये। गांधीजी ने कहा- दे दो। और भारत से अच्छा है लंदन में दे दो।
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तो लंदन के कई अखबारों में गांधीजी की यह मुलाकात छपी। बाद में गांधीजी का इंटरव्यु लेने के लिये और भी बहुत सारे लोग आये लंदन से। और कई-कई तरह के सवाल उन्होंने गांधीजी को पूछे। सबको उन्होंने एक ही जवाब दिया कि अगर मुझे आजादी और पशुओं की रक्षा में से कुछ चुनना पड़े। तो पशुओं की रक्षा को पहले चुनूगाँ। आजादी तो बाद में आती रहेगी। क्योंकि आजादी तो हमें उसी दिन मिल जायेगी। जिस दिन हम हमारे पशुओं को बचाने का काम शुरु कर देंगे।
- इस तरह की बात कहने वाले महात्मा गांधी अब इस देश में जीवित नहीं हैं। लेकिन हम हिन्दुस्तानी मानते हैं कि, उनकी आत्मा को हम कोई श्रद्धाजंली दें तो उनकी इस बात को याद करें कि गांधीजी के बाद क्या हुआ इस देश में। जो महात्मा गांधी कहते थे कि कलम की एक नौंक से मैं सारे कत्ल खाने बंद करा दूंगा। वो महात्मा गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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गांधी के विचार का क्या हुआ। गांधीजी 30 जनवरी 1948 को चले गये। उनकी हत्या हो गई। उसके बाद क्या हो गया इस देश में। उसके बाद इस देश में यह हो गया कि गांधीजी के मरने के साथ ही उनका विचार भी मार डाला गया। मर नहीं गया, मार डाला गया। गांधीजी को सिर्फ फोटो में जिन्दा रखा है। विचार के स्तर पर उनको संपूर्ण दफन कर दिया गया है। उनका एक भी विचार भारत देश की सरकारों ने पिछले 59 वर्षो में माना नहीं। दो को छोड़कर, एक सरकार थी श्री लाल बहादुर शास्त्री की । और दुसरी थी मोरारजी देसाई की। श्री लाल बहादुर शास्त्री की सरकार ने जरूर गांधीजी के विचार पर निर्धारित योजना बनाई थी और कार्यक्रम भी किये थे। और दूसरे एक प्रध नमंत्री श्री मोरारजी देसाई जिन्होंने गांधीजी से ही दीक्षा ली थी। गांधीजी के ही शिष्य थे। और बाद में संयोग से इस देश के 1977 में प्रधानमंत्री बने थे। वो ऐसे ही बात करते थे। जैसे गांधीजी करते थे। आपको मालूम है मोरारजी देसाई ने गांधीजी से दीक्षा लेने के बाद कसम खायी थी कि मैं कभी भारत में किसी ऐसे कॉन्सीटयुशनल पोस्ट पर आया तो आपकी इच्छा के अनुरूप सबसे पहले शराब बंदी करूँगा । और आप जानते हैं, श्री मोरारजी देसाई ने गुजरात में संपुर्ण शराब बंदी लागू करायी थी । उनका दूसरा कदम था कि भारत में शराब बंदी होनी चाहिये। लेकिन वह हो पाता तब तक उनकी सरकार गिरा दी गयी। लेकिन उन्होंने एक कदम उठाया। गुजरात में शराब बंदी कराई
आज तक लागू है और उस शराब बंदी के प्रश्नों पर बहुत सारे राज्यों में समय-समय पर आंदोलन हुये हैं। और उन्होंने समय-समय पर कई बार सफलतायें पाई हैं। आंध प्रदेश में हुआ। हरियाणा में हुआ। महाराष्ट्र में, विदर्भ में बहुत हुआ । अनेक-अनेक बार अनेक-अनेक जगह हुआ।
दूसरा गांधीजी के विचारों पर आधारित श्री मोरारजी देसाई ने एक काम और किया। गांधीजी कहते थे कि भारत को स्वदेशी - स्वावलंबन के रास्ते पर बढ़ना चाहिये । मोरारजी देसाई पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने विदेशी कंपनियों पर सबसे पहले पाबंदी लगाई। उन्होंने कहा- हमें विदेशी कंपनियां नहीं चाहिये। आप को याद होगा कोका कोला पर पाबंदी लगाने वाले भारत के पहले और आखरी प्रधानमंत्री थे। 1977 में कोका कोला को नोटिस देकर हिन्दुस्तान से भगाने वाले वो पहले और आखिरी प्रधानमंत्री थे। क्योंकि उनके बाद किसी प्रधानमंत्री में हिंमत नहीं हुई । जो कोका कोला को इस देश से भगा सके। बाकी प्रधानमंत्रियों ने दरवाजा खोलकर उसे बुलाया जरुर। लेकिन मोरारजी देसाई ने भगाया। ऐसे ही एक प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री, जो प्रधानमंत्री बनते ही गांधीजी की एक नीति का अनुसरण कर के इस देश में बहुत बड़ा उन्होंने क्रांतिकारी कदम उठा लिया। जब शास्त्रीजी प्रधानमंत्री बने थे। तो भारत देश में अमरीका से गेहूँ आयात होता था । लाल रंग का बहुत ही घटिया क्वालिटी का गेहूँ भारतवासी खाते थे। अमरीका के साथ भारत सरकार ने एक समझौता किया था।
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पी. एल.- 480, (PL 480) यह अमरीका का एक कानून है। पी. एल. याने पब्लिक लो, पब्लिक लो फोर एट जिरो का एक ऍग्रीमेन्ट था। जिसके तहत अमरीका से गेहूँ भारत में आता था। शास्त्रीजी ने प्रधानमंत्री बनते ही वो गेहूँ लेना बंद किया था। और उनका कहना था कि अमरीका से घटियाँ क्वालिटी का गेहूँ खरीदकर खाना, उससे अच्छा है भुखे मर जाना। जिस समय उन्होंने अमरीका का गेहूँ खरीदना बंद किया था। उस समय भारत बहुत गंभीर परिस्थिति में फंसा हुआ था। पाकिस्तान से हमारा युद्ध चल रहा था । और युद्ध के समय आप जानते हैं अर्थव्यवस्था बहुत नाजूक दौर में होती है । कोई भी बड़ा फैसला करने की हिंमत सामान्य रुप से प्रधानमंत्रियों में नहीं होती है। लेकिन शास्त्रीजी ने हिंमत की और युद्ध के दौरान अमरीका को कह दिया कि हमें गेहूँ नहीं लेना है। तो अमरीका ने थोड़ी धमकी दी कि अगर आप हमारा गेहूँ नहीं खायेंगे । तो आप भूखे मर जायेंगे। तो शास्त्रीजी ने कहा ठीक है। हमें भुखे मरना आता है। बनिस्वत कि अपमान के साथ अमरीका का गेहूँ खाना और उस समय जब गेहूँ लेना बंद किया तो भारत में गेहूँ की कमी हो गई। तो शास्त्रीजी ने लाखों-करोड़ भारत वासियों से अपील की कि सप्ताह में एक बार व्रत रखना शुरु कर दो। करोड़ों भारत वासियों ने उनकी इस अपील का स्वागत किया और कोटि-कोटि भारतवासियों ने व्रत रखना शुरु कर दिया। अभी भी इस देश में लाखों भारतवासी हैं जो सोमवार को खाना नहीं खाते। क्योंकि शास्त्रीजी ने सोमवार को यह कसम दिलवाई थी। .
यह दो प्रधानमंत्री बहुत अच्छे हुए इस देश में। लेकिन दुर्भाग्य दोनों का यह था कि किसी की भी सरकार पाँच साल के लिये नहीं चली। शास्त्रीजी की सरकार पाँच साल नहीं चल पाई। मोरारजी देसाई की सरकार पाँच साल नहीं चल पाई। जो यह दोनों पाँच साल चल गये होते तो आज यह कल्ल खानों का प्रश्न हमारे सामने नहीं होता । मोरारजी देसाई ने तय किया हुआ था कि वो तीन प्रश्नों को हल करेंगे। शराब बंदी का, कत्ल खानों का और भारत देश में गरीबी, बेरोजगारी का । लेकिन आप जानते हैं कि 22-23 के महीने बाद ही उनकी सरकार गिर गई। शास्त्रीजी की सरकार तो 18 महीने के बाद चली गई। क्योंकि उनकी हत्या हो गई। वो गये थे ताश्कंद । एक समझौता पाकिस्तान से दोस्ती का करने के लिए लेकिन वो जीवित वापस नहीं लौटे। तो इन दो प्रधानमंत्रियों ने पूरी ईमानदारी के साथ इस देश में गांधीजी के विचार जीवित करने का प्रयास किया बाकी किसी ने नहीं किया। अपने को महात्मा गांधी का सबसे अच्छा शिष्य बताने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरु ने गांधीजी के सपनों का एक प्रतिशत हिस्सा भी इस देश में पूरा नहीं किया। गांधीजी और पंडित जवाहरलाल नेहरु के विचारों में बहुत मतभेद था। लेकिन गांधीजी की यह महानता थी कि उन्होंने उस मतभेद को कभी जनता के सामने नहीं लाया। अगर बोल दिया होता तो पंडित नेहरु प्रधानमंत्री कभी नहीं बन पाते। 1937 का लिखा हुआ महात्मा गांधी का एक पत्र है पंडित
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जवाहरलाल नेहरु के नाम। उन्होंने कहा कि- “मेरे और तुम्हारे विचार इतने विपरीत
हैं कि मैं कभी-कभी चाहता हुँ कि जनता के सामने इनको खोल दूँ। ताकि लोगों को पता चले कि नेहरु क्या है । और मैं क्या हूँ”। तो नेहरुजी तुरन्त गांधीजी के पास पहुँचे और कहने लगे बापू यह समय नहीं है उन विचारों को खोलने का। अभी पहले आजादी लेनी है। आजादी आ जाये। उसके बाद यह सोचेंगे। लेकिन आजादी आई । उसके बाद विचार लोगों के सामने नहीं आये।
नेहरूजी और गांधीजी में बड़े मतभेद थे। उसमें एक मतभेद यह कत्ल खानों के प्रश्नों पर भी था। दूसरा मतभेद अंग्रेजों के द्वारा बनाये गये नियम कायदे कानूनों पर था। तीसरा मतभेद अंग्रेजों की प्रशासकीय व्यवस्था पर था। चौथा मतभेद भारत देश की गरीबी, बेरोजगारी की परिस्थिति और उसको ठीक करने के प्रश्नों पर था। ऐसे बहुत सारे मतभेद थे। लेकिन नेहरु थोड़े चालाक आदमी थे। ज्यादा चालाकी करते थे। होशयारी में और चालाकी में थोड़ा अंतर होता है। होशियार होना बहुत अच्छा माना जाता है। चालाक होना अच्छा नहीं माना जाता । चालाकी क्या करते थे। कभी देखा कि बापू नाराज हो रहे हैं तो अपने को विड्रो कर लेना। क्योंकि उनको मालूम है कि बिना उनके आशिर्वाद के मेरा कोई इस देश में ना भविष्य है ना वर्तमान है। भूतकाल तो ऐसा था नहीं कि जो देश के लायक वो कुछ खो पाते। वर्तमान और भविष्य गांधीजी ने उनका बना दिया। क्योंकि उनके ऊपर हाथ रखे। बहुत सारे भारतवासी मानते हैं कि पंडित नेहरु को गांधीजी ने आगे बढ़ाया। यह बात आंशिक रुप से सच है लेकिन उससे भी बड़ा सच यह है कि पंडितजी की विचारधारा और गांधीजी की विचारधारा में जमीन आसमान का फरक था।
आपके सामने अभी संदीप भाई ने बात कही। पंडित नेहरु ने लाहोर में एक भाषण दिया था। एक कत्ल खाना खोला था अंग्रेजों की सरकार को । अंग्रेजों की सरकार ने भारत में 250 साल के शासन में 350 कत्ल खाने खोले थे। सबसे पहला कत्ल खाना उन्होंने कलकत्ता में खोला था। रॉबर्ट क्लाईव नाम का एक अंग्रेज था । 1757 में जब उसने कलकत्ता को जीत लिया । तथाकथित रुप से जीत लिया। युद्ध के मैदान में नहीं चालाकी के साथ, वो कहानी आप सब जानते है कि सिराज उद्दौला उस समय में बंगाल का राजा था। रॉबर्ट क्लाईव को लंदन से भेजा गया कि सिराज उद्दौला को पराजित करना है और बंगाल में अपने राज्य की स्थापना करनी है। अंग्रेजी राज्य की मुश्किल यह कि सिराज उद्दौला के पास अठारह हजार सैनिक थे। रॉबर्ट क्लाईव के साथ मुश्किल से तीन सौ सैनिक थे। तीन सौ सैनिक, अठरा हजार सैनिकों का मुकाबला नहीं कर सकते। यह रॉबर्ट क्लाईव जानता था। तो उसने क्या किया। सिराज उद्दौला की सेना में अपने कुछ एजेंट भेज दिये। और उनसे कहा कि तुम पता करो कि कौन गद्दार है जो भारत से विद्रोह कर सकता है। उस सिराज गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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उद्दौला की सेवा में एजेंटो ने घुमकर पंता कर लिया कि इस सिराज उद्दौला का सेनापति ही है जो गद्दारी करने को तैयार है। अब किसी राजा का सेनापति जब राजा और उसके राज्य से गद्दारी करने को तैयार हो। तो खतरनाक होता है । “मीरजाफर” नाम का एक सेनापति हुआ करता था सिराज उद्दौला का । उसने ईस्ट इंडिया कंपनी और रॉबर्ट क्लाईव से समझौता कर लिया। समझौता यह है कि हम युद्ध लड़ेगें। लेकिन नकली, असली युद्ध नहीं लड़ेगें। सिराज उद्दौला को लगेगा की यह युद्ध हो रहा है। लेकिन हम नकली युद्ध लड़ेगें। और युद्ध शुरु होने के दस मिनिट के बाद मैं, माने मीरजाफर अपने सैनिकों के साथ रॉबर्ट क्लाईव के सामने आत्मसमर्पण कर दूँगा । रॉबर्ट क्लाईव युद्ध जीतने की घोषणा कर देगा। बाद में हम दोनों मिलकर सिराज उद्दौला को मार डालेंगे और समझौते के मुताबिक मीरजाफर को बंगाल का राजा बना दिया जायेगा । तो प्लासी के मैदान में जो हम इतिहास में पढ़ते आये हैं कि बड़ा भारी युद्ध हुआ। कोई युद्ध नहीं हुआ। वहाँ नकली युद्ध हुआ । बीस मिनिट में फैसला हो गया। भारत की और से लड़ने वाले सेनापति अंग्रेजों से जाकर मिल गया। बीस मिनिट
अंग्रेजों ने घोषणा कर दी कि हम युद्ध जीत गये। और बाद में उन्होंने जाकर सिराज उद्दौला की हत्या कर दी। मीरजाफर को बंगाल का राजा बना दिया। बाद में रॉबर्ट क्लाईव ने मीरजाफर की हत्या कर दी। मीरकासिम को राजा बना दिया। फिर मीर कासिम की हत्या कर दी और रॉबर्ट क्लाईव खुद बंगाल का राजा बन गया।
बंगाल का राज बनने के बाद रॉबर्ट क्लाईव ने सबसे पहला कत्ल खाना शुरु किया। उस कत्ल खाने में रोज की लगभग 30 से 35 हजार गाय काटी जाती थी । अब वो कत्लखाने का साईज कितना बड़ा रहा होगा। आप इसकी कल्पना कर सकते हैं। क्योंकि उस जमाने में मशीन से नहीं काटी जाती थी । गाय उस जमाने में हाथ से काटी जाती थी। तो आप कल्पना करिये। एक कसाई एक दिन में दस घंटे काम करे तो 3-4 से ज्यादा गाय काट नहीं सकता। इसका माने 32 हजार गायों को काटने के लिये कितने कसाई रहे होंगे। अंग्रेजों ने उन सब को नौकरी पर रखा हुआ था। अंग्रेजों को गाय का मांस खाना है इसलिए वो कत्ल खाने शुरु कर दित गए। और उस कल खाने में गाय का मांस उत्पन्न हो के अंग्रेजों के सैनिकों को उपलब्ध कराया जाता था। बंगाल में कलकत्ता में उस समय अंग्रेजों के लगभग 50 हजार से अधिक की सेना के प्रमुख अधिकारी रहते थे।
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पूरे भारत में अंग्रेजों की कुल आर्मी पचास हजार थी । प्रमुख अधिकारी सब कलकत्ता में रहते थे। क्योंकि कलकत्ता उस समय भारत की राजधानी थी। इन सब प्रमुख अधिकारियों को गाय का मांस चाहिये। उनके साथ जो सेना रहती थी उसको भी गाय का मांस चाहिये। इसलिए पहला कत्ल खाना खोला गया था। बाद में क्या गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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हुआ। धीरे-धीरे अंग्रेजों की सेना के हर स्थान पर गाय के मांस की माँग होने लगी। तो अंग्रेजों ने जहाँ-जहाँ सेना थी वहाँ कत्ल खाने खुलवा दिये। अगर आप भारत का . कत्ल खानो का इतिहास ध्यान से समझे। तो जहाँ-जहाँ भी केन्टोनमेन्ट हैं सैनिकों के लिए मिलेट्री कॅन्ट हैं। वहाँ सब जगह कत्ल खाने हैं। उदाहरण के लिये पूर्वी भारत में सबसे बड़ा मिलेट्री कॅन्ट हैं। सबसे बड़ा कत्ल खाना कलकत्ता में। उसके बाद पर्वी भारत में यह दूसरा बड़ा कॅन्ट है बैरकपूर में। दूसरा बहुत बड़ा कत्ल खाना-बैरकपर में। तीसरा है, पटना में। तो कत्ल खाना पटना में। ऐसे ही अगर उत्तर भारत में जायें तो बहुत बड़ा मिलेट्री कॅन्ट है मेरठ में। और बहुत बड़ा कत्ल खाना है मेरठ में। ऐसे ही अगर और थोड़ा आगे बढ़े तो बहुत बड़ा मिलेट्री कॅन्ट है रुड़की में, हरिद्वार के पास। अंग्रेजों ने जहाँ भी अपनी आर्मी को रखा। उन एरिया को मिलेट्री कॅन्टोनमेन्ट के नाम से घोषित किया। हर उस जगह कत्ल खाना होना कम्पलसरी कर दिया। एक तो यह । किया और बहुत दुर्भाग्यपूर्ण दूसरा काम किया इन अंग्रेजों ने इस देश में कि जहाँ भी अंग्रेजों की आर्मी रहेगी। वहाँ एक कत्ल खाना तो रहेगा ही कम से कम एक वैश्या घर भी होगा। यह भी उन्होंने नियम बनाये। कम से कम एक वैश्या घर होगा। जिसको रेड लाईट एरिया आज की सभ्य भाषा में कहते हैं। अगर आप ध्यान देगें तो जहाँ भी मिलेट्री कॅन्ट है। सब जगह रेड लाईट एरिया हैं। मुंबई में अंग्रेजों की आर्मी रहती थीं। बहुत बड़ा रेड लाईट एरिया मुंबई में। कलकत्ता में अंग्रेजों की आर्मी रहती थी। बहत बड़ा रेड लाईट एरिया कलकत्ता में। मेरठ में अंग्रेजों की आर्मी। बहुत बड़ा रेड लाईट एरिया मेरठ में। और अंग्रेजों का तर्क क्या था। वो यह कहते है कि हमारे सैनिक महिनों महिनों अपने घरों से दूर आकर यहाँ रहते हैं। उनको अपनी शारीरिक भख मिटाने के लिये इसकी जरुरत है। इसलिए वैश्यावृत्ति को ऑरगनाईझड लेवल पर टेड के रुप में एशटेबलिश कर दिया। मैंने हिन्दुस्तान के इस वैश्यावृत्ति के इतिहास पर थोड़ा काम शुरु किया है पिछले कुछ वर्षों से कि आखिर कार यह ऑरगेनाईजड लेवल पर प्रोस्टिटयुशन कब से आया इस देश में। क्योंकि हम इतिहास में पढ़ते हैं तो गणिकायें हुआ करती थी। कोई वैश्या नहीं होती थी इस देश में। गणिका में और वैश्या में जमीन आसमान का अंतर होता है। गणिकायें कौन होती हैं। वह ईश्वर के लिये नृत्य करती हैं। और ईश्वर के ध्यान में ही मग्न रहती हैं। किसी आदमी के लिये नृत्य नहीं करती हैं। परिवार के लिये नहीं करती हैं। किसी भक्त के लिये नहीं। ईश्वर के लिये करती • हैं। तो गणिकाये बहुत थी इस देश में। वैश्यायें नहीं हुआ करती थी इस देश में। वैश्याओं
को ऑरगनाईझड तरीके से हिन्दुस्तान में लाकर स्थापित करने का काम अंग्रेजों ने किया। .. .
.. एक तो कत्ल खाने खुलवाए गये। दूसरे वैश्या घर खुलवाए गये। गांधीजी को इन दोनों से ही नफरत थी। और गांधीजी बार-बार अपने व्याख्यानों में कहते थे कि गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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एक दिन के लिये भी. भारत का राजा बन गया होता। एक दिन के लिये। तो कलम की नौक से यह सब काम एक दिन में कर दूं। पहला काम कत्ल खाने बंद करा दूं। दूसरा काम यह वैश्या घर बंद करा दूं। तीसरा काम भारत में शराब बंदी करा दूं। चौथे काम ऐसे लिस्ट बना रखी थी उन्होंने। लेकिन उस लिस्ट में शुरु में यह तीन काम थे। कत्ल खाने बंद करना सबसे पहला। दूसरा वैश्या घर बंद करना। तीसरा यह जो जगह-जगह अंग्रेजों ने शुरु किया था तमाशा, शराब का और जगह-जगह पब्लिकली शराब पीना। और लोगों के सामने उसका डिमॉनस्ट्रेशन करना यह बंद करना। लेकिन दुर्भाग्य इस देश का यह रहा कि गांधीजी की एक भी इच्छा पूरी नहीं हुई। अंग्रेज गये .उन्होंने जो कत्ल खाने खोले थे वो अंग्रेजों के जाने के बाद और बढ़े। अंग्रेज गये उन्होंने जितने वैश्या घर खोले थे इस देश में, अंग्रेजों के जाने के बाद और बढ़े। अंग्रेज गये तो जितनी शराब छोड़कर गये थे। उससे ज्यादा शराब इस देश में बढ़ी। और अंग्रेजों . से ज्यादा बड़ी बेहूदगी तरीके से भारत की सरकार ने शराब को बढ़ावा दिया।
गांधीजी की एक भी इच्छा पूरी नहीं हुई हैं। पता नहीं उनकी आत्मा को शांति मिली होगी या नहीं। बहुत लोग कहते हैं कि मरने वाले की आत्मा को शांति तब मिलती है जब उसकी इच्छा पूरी होती है। यहाँ तो एक भी इच्छा पूरी होती हुई नहीं दिखाई देती। लेकिन हर साल इस देश में दो अक्टूबर मनाया जाता है। सरकारी अधिकारी, प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति, राष्ट्रपति से लेकर राज्यपाल, मुख्यमंत्री, तमाम मंत्री गांधीजी की समाधि पर जाते हैं। कुछ फूल चढ़ाते हैं। टि.व्ही. चैनलों पर उनकी अच्छी-अच्छी बाते सुनते हैं। बापूजी को याद रखना चाहिये। बापूजी के सपनों को कभी भूलना नहीं चाहिये। लेकिन बापूजी के सपनों को जिन्दा करने के लिये कोई कुछ नहीं करता।
अभी थोड़े दिन पहले हमने तमाशा देखा इस देश में। महात्मा गांधी के दांडी सत्याग्रह का 75 वां वर्षगाठ मनाया गया। गांधी सत्याग्रह। दांडी सत्याग्रह। दांडी सत्याग्रह का 75 वां वर्षगाठ। 1930 में महात्मा गांधी ने दांडी सत्याग्रह किया था। अंग्रेजों की सरकार के नमक के टॅक्स कानून को वापस कराने के लिये। उस सत्याग्रह में गांधीजी साबरमती आश्रम से निकले थे अपने 78 कार्यकर्ताओं के साथ। और जब समुद्र के किनारे पहुँचे दांडी पर तो एक कोटि से ज्यादा लोग उनके पीछे थे और उन्होंने नमक कानून तोड़ा था। अंग्रेजों की सरकार ने भारत के नमक पर टॅक्स लगा दिया था। इस काले कानून के खिलाफ गांधीजी निकले थे। और संकल्प लेके निकले थे कि जब तक अंग्रेज भारत से नहीं चले जाते मैं साबरमती आश्रम में वापस नहीं आऊँगा। उनकी पत्नी के द्वारा पूछने पर “आप क्या कह रहे हैं। अंग्रेज अभी जाने वाले हैं क्या ?" तो गांधीजी ने बहुत खराब शब्द में कहा कि "मैं कुत्ते की मौत मरना-पसंद
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करूँगा। पक्षिओं की मौत मरना पसंद करुँगा लेकिन साबरमती आश्रम में वापस नहीं आऊँगा, जब तक अंग्रेज भारत से नहीं जाते और वो निकल पडे। दांडी सत्याग्रह सफल हुआ, अंग्रेजों ने नमक का टॅक्स वापस लिया लेकिन देश नहीं छोड़ा। तो गांधीजी साबरमती नहीं गये और पैदल भटकते-भटकते वर्धा आ गये। वर्धा में एक कुटीया बना लिया वही पर एक आश्रम स्थापित कर दिया। सौभाग्य से आज मैं उसी आश्रम में रहता हूँ। (यह भांषाण 2002 में जब हुआ था तब राजीव भाई सेवाग्राम आश्रम में ही रहते थे। )
गांधीजी के सपनों में यह जो सबसे पहला काम था पशुओं का कत्ल रोकना। कारण क्या? उसका गांधीजी को एक बार पुछा गया था कि आप पशुओं को क्यों बचाना चाहते हो! बहुत सुंदर उत्तर दिया कि - ताकि मैं जिन्दा रह सकूँ, इसके लिए पशुओं को बचाना चाहता हूँ। उसके और आगे उन्होंने बोला, उन्होंने कहा कि मैं पशुओं को बचाकर उनके ऊपर कोई एहसान नहीं कर रहा हूँ। मैं मेरे ऊपर एहसान कर रहा हूँ कि ये पशु ज़िन्दा रहेंगे तो मैं जिन्दा रहुँगा। एक बार इसी तरह से उनसे और एक प्रश्न पूछा गया कि आप पशुओं की, जीव दया की, प्रेम की, करुणा की, इतना सब बात क्यूँ करते हैं। तो उन्होंने कहा- सनातनी हिन्दू हूँ इसलिए। किसी ने पूछा आप तो सांप्रदायिकता कर रहे हैं। उन्होंने कहा अगर किसी को कहना है तो कहे। मैं सनातनी हिन्दू हूँ और तीन बार बोला इस बात को कि मैं सनातनी हिन्दू हूँ जो समझना है तो समझे। तो पूछने वाला जानता नहीं था ये सनातनी हिन्दू क्या होता हैं तो गांधी को पूछ लिया कि सनातनी हिन्दू की परिभाषा क्या है तो उन्होंने कहा सनातनी हिन्दू का मतलब होता है जो पुर्नजन्म में विश्वास करता है। मैं पुर्नजन्म में मानता हूँ और इसलिए मैं चाहता हूँ कि पशुओं की रक्षा होनी चाहिए। बात वहीं . पर खत्म हो गई।
मैंने गांधीजी के इस स्टेटमेन्ट पर सोचा कि उन्होंने कहा क्या । इसका मतलब क्या है। कई बार क्या होता है ना बड़े लोग महान लोग बिटवीन द लाईन्स बहुत कुछ कह जाते हैं। इसमें गांधीजी ने बहुत कुछ कह दिया है। पहले तो मेरी समझ में नहीं आता था। यह बात अब समझ में आयी है। गांधीजी ने कहा कि मैं सनातनी हिन्दू हूँ। सनातनी हिन्दू कौन होता है जो पुर्नजन्म को मानता है। इसका माने पूरा भारत वर्ष सनातनी हिन्दू है। क्योंकि सारे भारतवासी पुर्नजन्म को मानते हैं। भारत में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो पुर्नजन्म नहीं मानता हो । मैं हिन्दुस्तान में पुरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण की इतनी यात्रा कर चुका हूँ कि तीन बार भारत की परिक्रमा के बराबर हो और मैंने अलग-अलग धर्मों के लोगों से एक ही प्रश्न कई बार पूछा है। गांधीजी को समझने के लिए । पुर्नजन्म में मानते हो - हाँ मानते तो है लेकिन हमारी
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बायबिल नहीं कहती हैं हम तो मानते हैं बायबल में नहीं है।
एक बार मैं एक बहुत बड़े मौलाना अब्दुल रहीम खान से बात कर रहा था लखनउ में। मैंने कहा- पुर्नजन्म में मानते है। हाँ मानता तो हूँ लेकिन कुरान शरीफ में कहीं नहीं है। तो मैंने कहा अब इस में संकट है अगर आप कुरान शरीफ को मानते हैं। कुरान शरीफ पुर्नजन्म को नहीं मानती है तो आप पुर्नजन्म कैसे मानते है। तो उसने कहा- देखो यार- भारतीयता जातीय नहीं है। अब इतनी बड़ी बात कि भारतीयता जातीय नहीं है। भले ही हम मजहब बदल ले, संप्रदाय बदल ले, भारतीयता नहीं जाती। फिर एक बार मैंने उनसे पूछा आपके संप्रदाय में मजहब में ऐसे कितने लोग हैं जो पुर्नजन्म मानते हैं। उन्होंने कहा शायद 90 प्रतिशत होंगे। मैंने कहा गारण्टी से कहते हो। उसने कहा शायद 95 प्रतिशत होंगे, फिर तीसरी बार कहा 99 प्रतिशत भी हो सकते हैं। मैंने कहा कैसे। तो उन्होंने कहा- हम अरब देश से आये हुए थोडी . हैं, हम तो यहीं के हैं। हजारों साल पहले हमारे पुरखे तुम्हारे ही जैसे थे किसी एक समय विशेष में किसी गलत काम के कारण या गलत प्रभाव के कारण हमने मजहब बदल लिया तो भारतीयता थोड़ी ही चली गई हैं। फिर मैंने कहा- मुझे ऐसे कुछ लोगों से मिला दो जो भारतीय मुसलमान हैं। आजकल एक शब्द चल गया है ना अमेरिकन इंडियन हैं ना। तो मैंने कहा चलो भारतीय मुसलमान से मिलवा दो। उन्होंने मुझे इतने सारे लोगों से मिलवाया है उनके घरों में मैं गया हूँ, उनकी शादी ब्याह पद्धति को मैंने देखा है, नामकरण की पद्धतियों को देखा हैं। उनके त्योहारों के रीति-रिवाजों को देखा है। कहीं से नहीं लगता है वो अभारतीयत हो गये हैं। ज्यादा से ज्यादा दिखाई देता है उनका नाम बदल गया हैं और पूजा करने की पद्धति बदल गयी है। तो क्या पूजा करने की पद्धति तो हम सनातनी हिन्दुओं में भी एक विशिष्ट है। कोई मंदिर को मानता हैं कोई नहीं मानता। कोई दुर्गा को मानता है, कोई हनुमानजी को मानता है। कोई किसी को मानता ही नहीं है। कहता है कि देवी-देवता होते नहीं हैं। तो पूजा की पद्धति तो हमने भी बदली हुई है, उन्होंने भी बदली हुई है। तो भारतीयता तो नहीं
गयी हैं।
मैंने उनसे एक प्रश्न पूछा खान साहब से। अच्छा ये बताए कत्तल खानों पर आपका क्या विचार है। उन्होंने कहा- वो ही जो महात्मा गांधी का है। कत्तल खाने बंद होने चाहिए। मैंने पूछा क्यों बंद होने चाहिए तो उन्होंने कहा कि इसलिए कि हम जिंदा रह सकें। मैंने कहा- गांधीजी को अनुकरण कर रहे हैं या ईमानदारी से कह रहे हैं। मुझे भी समझ में आता है कि पशु जिंदा हैं तो हम जिंदा हैं। हमारी औकात तो इन पशुओं से हैं अगर यह चले गए तो हम तो नहीं रहने वाले। फिर मैंने उनसे एक विशिष्ट बात पूछी। जिसको पूछने की हिंमत कम लोगों में होती हैं। मैंने उनसे गौमाता पंचगव्य चिकित्सा -
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कहा आपने कभी गाय का मांस खाया। उन्होंने कहा- यार एक बार खाया था तो मेरी माँ ने बहुत पिटाई किया था। मैंने पूछा क्यों। उन्होंने कहा- हमारे यहा सख्त पाबंदी है। आज भी हम गाय का मांस नहीं खाते। मैंने पूछा अगर गलती से आ गया तो। बहुत सारा मांस आता है। उसमें गाय का आ गया और यदि पता चल जाये तो बर्तन को उठाके घर के बाहर फेंक देते हैं। उस बर्तन को भी काम में नहीं लेते। तो मैंने कहा फिर ये गाय की हत्या क्यूँ हो रही है। उन्होंने कहा- यह तो अंग्रेजों की साजिश हैं जो आज तक गाय की हत्या हो रही। . .
उस दिन मेरी आँखे खुल गयी और आँखे खुली तो इतनी खुली कि अब सब कुछ दिखाई दे रहा है स्पष्ट इस घटना के पहले में मानता था कि भारत के बहुत सारे मुस्लिम भाई हैं जो गाय का कत्ल कर रहे हैं लेकिन इस घटना के बाद मेरी आँखे खुलीं और मैंने खोजना शुरु किया तो पता चला भारत में सबसे ज्यादा गाय का कत्ल भारत की सरकार कर रही है। मुसलमान नहीं कर रहे हैं और इस देश में ऐसे कई मुस्लिम समाज हैं जिनको में जानता हूँ वो गाय को वैसे ही पालते हैं जैसे आप पालते हैं। आप कभी आएं गुजरात में कच्छ नाम का एक जिल्हा हैं। कच्छ जिले में एक नहीं सैकड़ों नहीं हजारों मुसलमान हैं जो गाय पालन करते हैं। गाय का दूध बेचते हैं। दूध में से दही बनाते हैं। दही से मख्खन निकालते हैं, मख्खन में से घी निकालते हैं
और बेचते हैं। आप राजस्थान में आएं, बीकानेर, जैसलमेर, बाडमेर इन तीनों जिलों में एक नहीं हजारों मुसलमान हैं जो गाय पालते हैं। गाय का दूध बेचते हैं। दूध में । से मख्खन बनाते हैं फिर घी बनाते हैं और धंदा करते हैं। राजस्थान का एक इलाका है अलवर, मेवाड़ क्षेत्र कहते हैं। पूरा मेवाड़ क्षेत्र जो है ना मुसलमान समाज के भाईयों से डॉमिनेटेड है। वहाँ एक नहीं सेकड़ों मुस्लिम भाई हैं जो गाय पालते हैं। गाय का दूध पीते हैं। गाय के दूध से दही बनाके वैसा ही घी और बिजनेस करते हैं।
मुसलमान गाय खाते हैं यह बहुत बड़ा भ्रम है जो हम हिन्दुस्तानियों के बीच में फैलाया अंग्रेजों ने। और यह भ्रम फैलाया था अंग्रेजों की रानी ने जिसको हम दुर्भाग्य से व्हिक्टोरिया कहते रहे। उसने एक चिट्ठी लिखी थी 1894 में। अंग्रेजों का एक अधि कारी हिन्दुस्तान में था उसका नाम था लेन्स डाऊन, गव्हर्नर था इस देश का। उसको एक चिट्ठी लिखी व्हिक्टोरिया ने, चिट्ठी में लिखा कि- देखो हम भारत में जितने भी कत्तल खाने चलाते हैं। उनमें सबसे ज्यादा गाय कटती है। यह भारत के हिन्दुओं को पंसद नहीं है क्योंकि ये उनकी अधिष्ठात्री है। माने हम उसको पुज्यनीय मानते हैं, मातृसमान मानते हैं। हिन्दुओं को पंसद नहीं हैं और वास्तव में मुसलमान भी पंसद नहीं करते गाय को मारना और उसको खाना। गाय तो हमारे लिए काटी जाती है। माने अंग्रेजों के लिए काटी जाती है। अब भारत में हिन्दू और मुसलमान कभी एक गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
गामातापच
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हो गए और गाय बचाने में लग गए तो हमारी सरकार नहीं चलेगी भारत में । इसलिए तुम एक काम करो कि जितने कत्तल खाने चल रहे हैं गाय काटने के लिए, उनमें मुसलमानों की भरती कर दो और हिन्दुओं को बताओ कि गाय को मुसलमान काट रहे हैं, तो हिन्दुओं की भरती नहीं मुसलमानों की भरती कर दो। हिन्दुओं को बताओ. कि गाय मुसलमान काट रहे हैं। कट हमारे लिए रही है । काट रहे हैं मुसलमान, खाते नहीं हैं, हम खा रहे हैं। यह जब हिन्दुओं को पता चल जायेगा तो यह दोनों एक दूसरे से लड़ मरेंगे और ये लढ़ने लगेंगे तो हमारी गद्दी सुरक्षित रहेगी और हम भारत पर एक हजार वर्ष तक राज करेंगे। यह व्हिक्टोरिया की चिट्ठी हैं लेन्स डाऊन को 1894
लिखी गई। इस चिट्ठी को पढ़कर मेरी समझ में आ गया पॉलिटिक्स क्या है इस देश की। पॉलिटिक्स यह है कि गाय कटे अंग्रेजों के लिए, और लढ़ते रहें हिन्दु, मुसलमान। हम एक दूसरे को गाली देते हैं, एक दूसरे की टांग खिचाई करते रहें और अंग्रेज मजा करते रहे। इस तरह से अंग्रेजों ने वो एक पॉलिसी है ना 'बाँटो और राज करो' (Divided.And Rule) में हमको फंसाया, गाय को कटवाया और एक दो नहीं करोड़ों गाय को कटवाई। इस देश में एक कत्तल खाना जो कलकत्ता से शुरु हुआ धीरे-धीरे भारत के हर कॅन्ट एरिया में फैल गया। साढ़े तीन सौ कॅन्ट एरिया अंग्रेजों ने स्थापित किये। साढ़े तीन सौ कत्तल खाने बना दिए ।
गांधीजी इन्हीं की खिलाफत करते थे। अंग्रेजों के जमाने में गांधीजी को बार-बार लगता था कि यह कत्तल खाने बंद होने चाहिए। गांधीजी के पहले एक और महान व्यक्ति हुए इस देश में, जिनको बहुत पीड़ा होती थी इन कत्तल खानों के चलने से। उनका नाम था 'स्वामी दयानंद सरस्वती' । जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना की । उन्होंने तो अपने जीते जी एक फौज तैयार कर दी 'गौरक्षा' के लिए। स्वामी दयानंद सरस्वती ने एक संघटन बना दिया जिसका नाम था 'आर्य समाज' आज तक जीवित 'हैं। सवा सौ वर्ष पुराना संघटन है। कॉंग्रेस से भी पुराना संघटन | कॉंग्रेस जो राजनैतिक दल है ना, उससे पहले का है यह आर्य समाज । इसका एक ही काम था गौरक्षा करना । और इस आर्य समाजी संघटन ने पूरे देश के नौजवानों को ऐसा चार्ज कर दिया था कि • भारत के सात लाख बत्तीस हजार गांव में हर जगह गौरक्षा समिती बन गई। 1870 से यह शुरु हुआ और 1894 में आ कर यह आंदोलन अपने सबसे उच्चतम शिखर पर था। और 1894 में जब यह आंदोलन उच्चतम शिखर पर था तो भारत के हिन्दु, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, पारसी, बौद्ध सब मिलकर गौरक्षा में लगे हुए थे। और अंग्रेजों के सामने एक प्रश्न खड़ा कर दिया कि एक भी गाय कटेगी तो अंग्रेजों की खैर नहीं तो अंग्रेज घबरा गये थे। इसी घबराहट में रानीने चिट्ठी लिखी थी 1894 में। कि अगर इस आंदोलन को तोड़ना है, हिन्दु-मुसलमानों को लड़ाना है तो तुम यह काम करो की सारे कत्तल खानों में मुसलमानों की भरती करो और हिन्दुओं को यह बताओ गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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की गाय यह काट रहे हैं। और जब यह खबर अंग्रेजों ने फैलाई तो उसके बाद इस देश में हिन्दु-मुसलमानों के दंगे शुरु हो गये। मैं आपको विनम्रता पूर्वक बताना चाहता हूँ कि 1894 के पहले एक भी हिन्दु-मुस्लिम दंगा नहीं हुआ। पहला, हिन्दु-मुसलमान दंगा 1894 में दिसबंर में हुआ। रानी की इस चिट्ठी के बाद और उसके बाद लाईन लग गई दंगों की। फिर क्या हुआ आजादी का प्रश्न पीछे आ गया, गौरक्षा का प्रश्न पीछे आ गया। हिन्दु-मुसलमानों का सांप्रदायिकता का प्रश्न सबसे आगे आ गया। अंग्रेजों . ने लगभग 60-70 साल तक इसी आग को जलाकर रखा। और इसमें समय-समय पर घी डालते रहे। वो कभी-कभी यह दोनों एक ना हो जाए इसके लिए पूरी ताकत लगाकर अपने एजन्टों को भारत की बहुत सारी संस्थाओं में घुसाकर बैठा दिया। ताकि यह समाज एक ना हो जाए। और इस तरह से बरस्तूर गाय कटती रही और हत्या होते-होते करोड़ों की संख्या में पहुँच गयी।
जब अंग्रेज गये 15 अगस्त 1947 को तो भारत के महात्मा गांधी जैसे कुछ क्रांतिवीर जो जीवित थे उन्होंने यह प्रश्न उठाया कि हाँ, अंग्रेज गए हैं जल्दी से गौ-हत्या बंद होनी चाहिए तो गौ-हत्या बंद होने के लिए. भारत की संसद में प्रस्ताव आया। उस प्रस्ताव को लाने वाले एक बहुत अच्छे सांसद थे जिनका नाम था महावीर त्यागी। वो कई बार संसद सदस्य बने थे। माने खासदार बने थे। सोनीपत नाम का एक क्षेत्र हैं हरियाणा में। वहाँ से वो जीतकर आते थे। और किसी राजकीय पक्ष के टिकट पर नहीं अकेले ही जीत कर आते थे। महावीर त्यागी जी के बारे में कहा जाता है की जब वो संसद में खड़े होकर भाषण दिया करते थे तो पंडित जवाहरलाल नेहरु सारे काम छोड़कर उनका भाषण सुना करते थे। क्योंकि वो सरकार की इतनी खिंचाई करते थे तो उसका जवाब कैसे देना है संसद में यह नेहरुजी के लिए मुश्किल हो जाता था। तो नेहरुजी सब काम छोड़कर महावीर त्यागीजी का भाषण सुनते थे। महावीर त्यागीजी ने सबसे पहले याद दिलाया कि देखो अंग्रेज अब चले गए हमारी सरकार आ गयी। अब गौ-हत्या बंद करने के लिए कानून बनाओ। तो संसद में प्रस्ताव आया उस पर बहस हुई। महावीर त्यागीजी ने बहुत बड़ा काम किया कि अंग्रेजों की यह जो राजनीति थी हिन्दु और मुसलमानों को बांटने की गाय के प्रश्न पर। उसके सारे डॉक्यूमेन्टस पार्लियामेंट में उन्होंने डिस्ट्रीब्यूट किए कि देखो असलियत यह है। कोई मुसलमान गाय का ज्यादा मांस नहीं खाता और कोई मुसलमान गाय को कटवाना भी पंसद नहीं करता। यह तो अंग्रेजों की चाल है हमको आपस में लड़ाने की और बर्बाद करने की तो इस चाल को समझकर मुस्लिम खासदारों ने भी समर्थन किया कि हाँ; गौरक्षा होनी चाहिए। विधेयक आने का समय आया। विधेयक के समय पर आप जानते हैं संसद का नियम यह है कि बहस जब.पूरी हो जाती है तो वोट लिया जाता है कौन किसके समर्थन में है। तो इस पर वोट का समय आया। वोट के समय में एक दिन पहले यह.
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तय हो गया था कि भारत की संसद के मेक्सीमम MP सबसे ज्यादा खासदार गौरक्षा के समर्थन में हैं और मुश्किल से कुछ MP जिनकी संख्या दस भी नहीं थी वो गौरक्षा . . के विरोध में है। तो दस एक तरफ हैं बाकी एक तरफ है। अगले दिन जिस दिन यह वोट के लिए आया तो पंडित नेहरु ने कहा कि मुझे कुछ कहना है वोट से पहले क्या कहना है जी। पूरी संसद की निगाहें नेहरुजी की तरफ, नेहरुजी ने कहा की अगर गौरक्षा का प्रस्ताव पारित हुआ तो मैं इस्तीफा दे दूंगा।
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• यह बात मुझे इसलिए कहनी पड़ी क्योंकि मेरे दोस्त संदीप ने नेहरुजी को उद्धृत किया है। कई बार हमें धोका हो जाता है चेहरा कुछ होता है। असलियत कुछ
और होती है। हमारे देश में अभी थोडे दिन पहले एक बहुत बड़ा मामला आया है। सामने बहुत गंभीर मामला है. वो, अगर राजनीतिक लोग उसको थोड़ा बाजू में रख दे तो भी . देश के लिए गंभीर मामला है। गंभीर मामला यह है कि खुफिया एजेन्सी के KGB के. एक बहुत बड़े ऑफीसर ने एक दस्तावेज आधारित एक किताब लिखी है। जिसमें उसने नाम लिख के कोट किया है कि भारत के कौन-कौन से प्रधानमंत्री, कौन-कौन से . मंत्री रुस से पैसा लेते रहे और रुस के समर्थन में इस देश में कानून बनाते रहे। उस किताब में मित्रोखिन नाम का ऑफीसर है उसने लिखा है कि भारत में प्रधानमंत्रिओं का मुखोटा कुछ होता है। क्या कुछ होता है यह बात आपको समझ में आए। इसलिए मैंने सुनाया कि नेहरुजी आजादी से पहले भाषण दे रहे हैं कि कत्तल खानों के सामने से गुजरता हूँ तो मुझे घिन आती है। एक मिनट मैं खड़ा नहीं रह सकता, चील, कौवें मंडराते हैं मेरी आत्मा मुझे कोसती है। प्रधानमंत्री बनने के बाद जब गौरक्षा का प्रस्ताव आता है तो वही नेहरुजी कहते हैं की प्रस्ताव पारित हुआ तो मैं इस्तीफा दे दूंगा, क्यूँकारण क्या है। इस पर खोज होनी चाहिए। क्या आजादी के पहले एक कहा और आजादी मिलते ही, प्रधानमंत्री बनते ही इस्तीफा देने लगे। अब उस जमाने में होता क्या था नेहरुजी की धमकी कि इस्तीफा दे दूँगा तो पूरी पार्लियामेंट हिल गई, महावीर त्यागी को छोड़कर। क्योंकि उनके उपर इसका कोई असर नहीं था। क्योंकि काँग्रेस की टिकट पर कभी चुनके नहीं आते थे। तो जो काँग्रेस की टिकट पर चुन के आने वाले खासदार थे उनके लिए प्रश्न खड़ा हो गया। क्या होगा नेहरुजी इस्तीफा दे देंगे सरकार चली जायेगी। पता नहीं दुबारा जीत के आयेंगे कि नहीं आयेंगे। मंत्रिमंडल में स्थान मिलेगा की नहीं मिलेगा। यह होता है न आप को भी होती है न तकलीफ। अभी थोडे दिन पहले NDA सरकार चलती थी कि अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि इस्तीफा दे दूंगा। देखा आपने कैसा तमाशा हुआ। एक दिन ऐसा हुआ श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा मैं प्रधानमंत्री नहीं बनुगी। आपने देखा कैसा तमाशा हुआ दिल्ली में ऐसे-ऐसे खासदार बंदुक, तंमचा लेकर सामने आये कि मैं अभी आत्महत्या कर लूँगा। क्योंकि सोनिया गांधी हमारी प्रधानमंत्री नहीं बन रही हैं। थोडी दिन के बाद क्या हुआ, वो वहाँ गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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से चले गए, किसी ने आत्महत्या किया क्या ? सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बनी फिर भी किसी ने आत्महत्या किया क्या ? राजनीति में चेहरे कुछ होते हैं मुखोटे कुछ होते . हैं। इतने सारे उदाहरण में आपको दे रहा हूँ। एक ही बात समझाने के लिए, मुखोटे कुछ होते हैं चेहरे कुछ होते हैं। बिलकुल जरुरी नहीं है कि कोई बात जो कह दी है उन्होंने पब्लिकली, तो वो टिकेंगे। क्योंकि हिन्दुस्तान की राजनीति का यही सबसे बड़ा दुर्गुण हैं। एक दिन बोलना, अरे मुझे तो गलत कह दिया है अखबार वालों ने अखबार वाले सुना देगे - देखो आपने बोला है। हाँ-हाँ, बोला है तुमने गलत अर्थ निकाल लिया इसका। अब कितने अर्थ होते हैं किसी शब्द के, यह पॉलटिशयन से आप पूँछे । यह जो बीमारी है ना भारत में नेहरूजी के समय से हैं। आज की नहीं है। मैं आपको यह समझाना चाहता हूँ और चूंकि यह बीमारी उस जमाने से है इसलिए गौरक्षा का कानून आज तक बना नहीं है इस देश में। जब-जब संसद में कोशिश हुई कुछ ना कुछ अडंगा इसी तरह का ।
एक और उदाहरण देता हूँ। 1966 में आप में से कुछ लोग होंगे। मैं तो पैदा भी नहीं हुआ था। जिस समय की यह घटना है भारत के हजारों संतो ने एक बहुत बड़ा जुलूस निकाला दिल्ली में । गाय रक्षा होनी चाहिए, कानून बनना चाहिए। गांधीजी तो तब थे नहीं, विनोबाजी थे गांधीजी के शिष्य थे। उनका आशिर्वाद लेके बहुत बड़े-बड़े साधु संत एकठ्ठे हुए। स्वामी करपात्रीजी महाराज जो शंकराचार्य की स्थिति वाले संत हैं। उन्होंने लीडर शिप लिया, गौरक्षा होनी ही चाहिए। लाखों साधू-संत एकठ्ठे हुए और उन्होंने कहा कि हम संसद को घेर लेंगे अगर सरकार गौरक्षा का कानून पारित नहीं करती। सौभाग्य या दुर्भाग्य जो भी कहिए स्वामी करपात्रीजी महाराज के आर्शिर्वाद
श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन गई थी तो स्वामी करपात्रीजी को लगता है इसको तो आर्शिर्वाद मैंने दिया है अब यह कैसे मना करेगी मेरे काम को । स्वामीजी को मालूम नहीं था। आपको मालूम है इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री बनीं थी तो उनकी पॉलिटीकल पोजीशन बहुत कमजोर थी। उनके सामने जो टक्कर में थे ना वो बहुत पावरफुल लीडर थे निजिलिंग गप्पा । बहुत पावरफुल आदमी थे पूरा दक्षिण भारत उनके समर्थन में खड़ा था और तय था कि ये प्राईममिनिस्टर बनेगे । निजलिंगअप्पा को अडंगे लगाकर श्रीमती गांधी प्रधानमंत्री बनी थी। तो बहुत सारे संतो से आर्शीर्वाद लिया था। तो करपात्रीजी ने भी दे दिया, विनोबाजी ने भी दे दिया। अब प्रधानमंत्री बनते ही याद दिलाया विनोबाजी ने वो काम करो ना मेरा, गौ-हत्या बंद करने के लिए कानून लाओ । तो कहा बाबा अभी थोड़े दिन संभालने तो दो । बाबा ने कहा कितना दिन लगेगा संभालने में। तो दिन बीतते गए और करपात्रीजी महाराज का धैर्य चूक गया तो उन्होंने बहुत बड़ा जुलूस निकाल दिया। सरकार को घेरना हैं, संसद को बंद कर देना है। कोई अंदर जायेगा नहीं, कोई बाहर आयेगा नहीं। जब तक गौ-हत्या बंद नहीं होती आप जानते हैं क्या हुआ,
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जिन करपात्रीजी महाराज के आशीर्वाद से श्रीमती गांधी प्रधानमंत्री बनी उन्हीं के उपर श्रीमती गांधी ने गोली चलवाई। और एक नहीं सैंकड़ों साधु उसमें मर गए। लेकिन गौ-हत्या नहीं रुकी। वो वैसे ही चली उसके बाद स्वामी करपात्रीजी ने, उनके शिष्य बताते हैं मैंने उनसे कभी सीधे बात नहीं की, श्राप दे दिया। और वो कहते हैं कि उसी श्राप का दुष्परिणाम है कि जिस तरह से श्रीमती गांधी ने गोलियां चलवाकर मरवाया था गौरक्षा भक्तों को, उसी तरह से श्रीमती गांधी मारी गई। और यह अजीब सा योग है मैंने इसपर थोड़ा काम किया। मुझे पता चला श्रीमती गांधी ने जिस दिन यह गोली - चलवाई थी उस दिन गोपाष्ठमी थी। भारत में गाय के पूजन का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। गोपाष्ठमी दिपावली के कुछ दिन बाद आता है। और श्रीमती गांधी को जिस दिन गोली मारी गई उस दिन भी गोपाष्ठमी थी। यह सब हुआ लेकिन गौ-हत्या नहीं रुकी। विनोबा भावे जिन्होंने आशिर्वाद दिया था श्रीमती गांधी को वो जीवन के अंतिम दिनों में डिप्रेशन में चले गए। इतने डिप्रेशन में चले गए की उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया। जैन संतो की भाषा में कहूँ तो संतथारा ले लिया। विनोबाजी बार-बार एक प्रश्न पुछते थे कि मैं बहुत बड़ी मांग नही कर रहा हूँ, एक छोटी सी मांग है कि गाय का कत्ल बंद करा दो। कोई बहुत बड़ी मांग नहीं हैं। संसद के सब सदस्य मानते हैं। मॅजोरिटी . संसद इसके साथ में है। और उन्होंने कहा कि गाय का कत्ल बंद हो जाएं तो ये देवनार कत्ल खाना बंद हो जाए जो मुंबई में चलता है। जिसमें 26 हजार जानवर आज रोज कट रहे हैं। उस समय ग्यारह हजार कटले थे। छोटा सा प्रश्न था, नहीं हुआ और वो वहीं छूट गया। उसके बाद अभी थोडे दिन पहले जब NDA सरकार आयी। तो बड़ी मुश्किल से एक बिल तैयार करके संसद में पेश किया गया की गाय कि हत्या तुरन्त रुकनी चाहिए कानून तुरन्त बनना चाहिए। सबेरे बिल पेश किया गया। शाम को वापस ले लिया गया। श्रीमान अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने सबेरे विधेयक पेश किया सरकार की तरफ से शाम को वापस ले लिया यह कहते हुए कि इस पर बाद में बहस
होगी।
. मैं आपको यह सुना कर क्या कहना चाहता हूँ, हिन्दुस्तान में गाय का कत्ल बंद हो जाए। यह हमारी सद् इच्छा है। लेकिन गाय कत्ल चलता रहे उसके लिए कोई बहुत बड़ा षडयंत्र है। वो समझना जरुरी है। हमारी तो सद् इच्छा है कि गाय का कत्ल नहीं होना चाहिए। जब भी संसद में इस तरह की बहस होती है कुछ ना कुछ इस तरह के सवाल खड़े हो जाते हैं। एक दिन तो मैं संसद की दीर्घा में था। उस दिन बहस हो रही थी इसी गौरक्षा के प्रश्न पर। मैं गया था कि आज देखें सांसद कौन किसके समर्थन में हैं। कौन किसके पक्ष में हैं। सारे सांसद एक बाजू से बोल रहे हैं कि गौरक्षा होनी चाहिए, मुस्लिम सांसद गमबनात वाला ने कहा कि अगर बिल पास होता है तो पहला वोट मेरा गौरक्षा के समर्थन में उसके साथ दूसरे मुस्लिम सांसद खडे हो गए। हमारी गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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आपत्ती नहीं हैं आप कानून बनाइए। तभी एक महिला खड़ी हो गई उसका नाम है सुश्री ममता बॅनर्जी। उसने कहा गाय का मांस खाना मेरा मौलिक अधिकार है। उसका क्या होगा? और ममता बॅनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट के एक डिसीजन को कोट कर के बोलना शुरु किया कि कोई कसाई गाय का कत्तल करता है। यह उसका मौलिक अधिकार है। उसका क्या होगा यह सुप्रीम कोर्ट का जजमेन्ट है। तो मामला बनते-बनते होते-होते फिर फिसल गया। इसी तरह से एक बार और हुआ हमारी संसद में । सब तय हो गया कि गौरक्षा का बिल पास हो ही जाना चाहिए। एक महामहिम भारत देश में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़े हुए व्यक्ति जी. जी. वैल खड़े हो गए। कि मैं गाय का मांस खाता हूँ मेरा क्या होगा। तो मैंने उनको एक खत लिखा था। जिसका जवाब उन्होंने नहीं दिया। मैंने कहा आप गाय का मांस खाते है खाते रहिए। अपने घर में कांटे, यह कत्तल खाने तो बंद हो जाने दीजिए। आपको गाय का मांस खाना है आप अपने घर में कत्ल करिए, काटिए, उसे खाईए। आपमें हिम्मत है तो आपके घर में काटिए खाईए। आपके बीबी - बच्चे भी आपको देखे उसको कांटते हुए, खाते हुए, पड़ोसी भी देखे कांटते हुए, खाते हुए। और अगली बार आप राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़े तो सबको पता तो चले कि ऐसा व्यक्ति देश में राष्ट्रपति बनना चाहता है। जवाब नहीं दिया उसके बाद। क्योंकि इस तर्क में क्या बुराई है। आपको गाय का मांस खाना है, ठीक है। घर में काटिए, खाईए। यह कत्ल खाने क्यों चाहिए आपको यह तो आपके मांस की सप्लाई नहीं करते यह तो एक्सपोर्ट करते हैं।
आजादी के 58-59 सालों में संसद में चार बार गंभीरता से गौरक्षा पर बहस हुई है। प्रस्ताव पारित होने को आया है। वह करने तक नौबत आयी है। लेकिन किसी न किसी कारण वो अटकता गया है। कभी पंडित नेहरू के इस्तीफा देने की धमकी के कारण कभी हमारे देश में सुश्री ममता बॅनर्जी जैसे खासदारों के यह कहने के कारण कि मैं गाय का मांस खाती हूँ मेरे मौलिक अधिकार क्या होगा, कभी जी. जी. रवैल के कारण। और कभी सबेरे विधेयक पेश किया और शाम को बहस करेगें दुबारा यह श्री. अटल बिहारी वाजपेयी के बयान के कारण। हर बार यह हुआ है।
मैंने इसको समझने की कोशिश की है कि आखिर गाय की रक्षा में ऐसा कौन-सा प्रश्न है या जानवरों की रक्षा में ऐसा कौन-सा प्रश्न है जो भारत की संसद इसको होने नहीं देना चाहती या भारत की संसद में ऐसे कुछ लोग हैं। मित्रोखिन के शब्दों में अगर कहे जिनके चेहरे कुछ हैं मुखोटे कुछ हैं। तो हम ढूंढना शुरु करें हमारे नजदीक में ऐसे कितने पॉलिटिशन हैं, खासदार हैं, आमदार हैं जिनके चेहरे कुछ हैं मुखोटे कुछ हैं। ढूँढे हम, कम से कम अपने बीच में खोजना तो शुरु करें ताकि यह गंभीर प्रश्न आज नहीं तो कल हल हो सके। क्योंकि हल करना ही पड़ेगा। इस प्रश्न
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को आज नहीं तो कल। कल नहीं तो परसों। परसों नहीं तो नरसों।
- इस प्रश्न को बहुत दिनों तक टाल के नहीं रखा जा सकता। इसको ऐसे ही .. हल करना पड़ेगा जैसे अभी हमने कई गंभीर प्रश्न हल किये हैं। भारत पाकिस्तान के बंटवारे का प्रश्न था बार-बार टाल नहीं सकते थे तो हल किया थोड़ा दर्द हुआ। लेकिन हल हुआ। एक लाईन खिंच गई कि वो पाकिस्तान है। यह भारत है। चीन के साथ हमारा गंभीर प्रश्न हुआ सीमा विवाद पर बहुत दिनों तक टाल नहीं सकते थे तो हमने फैसला किया। यह भी प्रश्न बहुत गंभीर है। क्योंकि भारत के करोड़ों लोगों की मान्यताओं व आस्थाओं से जुड़ा हुआ है और हमारे संपूर्ण भारत के जीवन से जुडा. हुआ है। हम भारतवासी गांधीजी के शब्दों में अगर कहें कि हम सनातनी हिन्दु हैं। गांधीजी जब यह ताल ठोंक के कहते हैं कि मैं सनातनी हिन्दु हूँ। क्यूँ? क्योंकि मैं पूर्व जन्म में मानता हूँ। जरा इसको जाने इसमें है क्या। दुनिया में भारतीयता को छोड़कर ऐसी कोई दूसरी सभ्यता नहीं है जो पूर्वजन्म को मानती हो। अभी आज की दूनिया में चार बड़ी सभ्यताए तो मौजूद हैं और इतिहास में बहुत सारी सभ्यताए आकर चली गई। फिलहाल में चार मौजूद हैं। एक इस्लामिक सभ्यता, इज़राईल वाली सभ्यता, एक है ज्युज वाली सभ्यता यहुदीज्म वाले और एक है हमारी भारतीय सभ्यता। चार - तो पक्की है ही। तो भारतीयता में भी कई सारी उपसभ्यताए हैं। एक जैनिज्म है, बुद्धिज्म है और बहुत सारे है। ऐसे ही ईसाईत में भी बहुत सारी उपसभ्यताएं हैं। ऐसे ही इस्लाम में भी बहुत सारी उपसभ्यताएं हैं। ऐसे ही ज्युजिज्म में हैं।
भारत की सभ्यता को छोड़कर इस्लाम ईसाईयत और यहूदी तीनों सभ्यताओं में पूर्नजन्म नहीं माना जाता। वो मानते हैं कि जन्म एक बार होता है बार-बार नहीं होता। इसलिए उस सभ्यता में जो भी कुछ करना है। वो एक ही जन्म में करना है। क्योंकि आपको दुबारा जन्म नहीं मिलेगा। मेरे बहुत सारे मित्र हैं, दोस्त हैं। अमेरिका में रहते हैं, युरोप में रहते हैं। पहले मेरे साथ पढ़ाई करते थे लेकिन भाग के चले गए अमेरिका, युरोप को। और वो कई बार मुझको कुर्तक करते रहते हैं। वो कहते हैं'यार-देखो हमारा अमेरिका तो बहुत अच्छा है। अब वो हमारा अमेरिका बोलते हैं। हाँ,- लॉयलटी इतनी चेंज हो गई है कि हमारा अमेरिका बहुत अच्छा है। जन्म भारत में लिया। हवा यहाँ की खाई, पानी यहाँ का पिया; मिट्टी में यहाँ के खेले, भोजन यहाँ का किया, यहाँ के लोगों की खून पसीने की कमाई के टॅक्स के पैसे पर इंजीनिअरींग किया, भाग गए अमेरिका। काम वहाँ कर रहे हैं। भारत को कुछ नहीं दे रहे हैं। कभी-कभी.एहसान करते हैं यहाँ आ जाते हैं तो गालियां देकर चले जाते हैं। भारत में बहुत गंदगी है, सड़क पर कुत्तें घुमते रहते है, गाय घूमती रहती है, भैंस घूमती रहती है। और घर में छिपकली आ जाती है, मच्छर आ जाते हैं। यह कोई देश है गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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रहने लायक। चलो हमारा अमेरिका बहुत अच्छा है। हाँ, और उनके माता-पिता बैचारे पूरे साल इंतजार करते, हमारा बेटा आयेगा - आयेगा। बेटा वहाँ से हाय, हॅलो कह देता है। बस, माताजी मरने को तैयार हैं फिर भी कहता है। क्या करू प्लेन की टिकट नहीं मिल रही है। अभी अंतिम संस्कार कर देना किसी भी तरह से। तो वहाँ प्लेन की टिकट माताजी से बड़ी हो जाती है।
तो ऐसे कुछ लोग भारत में पैदा हुए अमेरीका चले गए। वो कभी-कभी मुझे कुर्तक करते हैं। इस प्रश्न पर भी कुर्तक करते हैं। जब मैं उनसे कहता हूँ कि देखो भैय्या यह अमेरिका की सभ्यता है वो ईसाईयत से संचालित है। यूरोप की सभ्यता वो भी इसी से संचालित है। थोड़ा बहुत इलाके में ज्युइज्म है। और इस्लाम की अपनी सभ्यता तो है ही। इनमें से किसी में भी पुर्नजन्म नहीं है तो मुझे तर्क, पता हैं क्या देते है। वो कहते हैं देखो अमेरिका में हर चीज फास्ट हो जाती है। तुम्हारे देश में नहीं होती दस साल में नहीं होती, पंद्रह साल में नहीं होती। हमारे अमेरिका में तो एक फोन पर सब होता है और हमारे यहाँ हर चीज फास्ट है। गाडी चलती है तो 240 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से। तुम्हारे यहाँ कल्पना होती है. क्या । तो वो कहता है। जीवन बहुत अच्छा है, तेज है, वगैरा वगैरा तब मैं उनको धीमे से कहता हूँ तुम्हे मालूम है वहाँ का जीवन क्यूँ तेज हैं। क्योंकि वहाँ पुर्नजन्म नहीं होता। आप इसको गंभीरता से सोचिए जिस जीवन में पुर्नजन्म नहीं है वहाँ क्या होगा। जो करना है इसी जन्म में करना है तो जल्दी-जल्दी करनी पड़ेगी कि नहीं। दूसरा जन्म तो है नहीं तो जो करोगे जल्दी करोगे। तो जल्दी करने के लिए जो टेक्नोलॉजी बनेगी उसी में वो रहेंगे। देखिए, टेक्नोलॉजी जो बनती है किसी भी देश में वो मान्यता के हिसाब से बनती है । एक पहिया है, मान लीजिए मुल तो वो है। बाकी उस पहिये को आप हवाई जहाज में लगा लीजिए। चाहे मोटर कार में लगा लीजिए। चाहे स्कूटर में लगा लीजिए या बैलगाड़ी में लगा लीजिए। है तो पहिया । अब वहाँ क्या है जीवन एक ही बार है। बार-बार मिलता नहीं। जो करना है एक ही बार में करना है।
मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त है । जर्मन में वो थोड़े दिन पहले आया था भारत | दिल्ली में हम दोनों बैठे बात कर रहे थे तो बड़ी चिंता करने लगा। यार - भारत देश ने न्यूक्लिअर बम बना लिया है। मैंने कहाँ- तुम को क्या परेशानी है। बना लिया तो तुमको क्या परेशानी है। अरे यार --पाकिस्तान ने भी बना लिया। मैंने कहा- तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है ? जर्मनी ने तो बना लिया है, फ्रान्स ने भी तो बना रखा है, ब्रिटेन ने भी तो बना रखा है। उसने कहा प्रॉब्लम यही है कि इनमें से किसी ने भी अगर गिरा दिया तो मैं तो मरने वाला हूँ। तो मैंने कहा मरने वाले हो तो फिर पैदा हो जाना। उसने कहा मैं नहीं मानता कि पुर्नजन्म होता है। तुम मानते हो इसलिए तुम तो दुबारा पैदा
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हो जाओगे। मैं तो नहीं आनेवाला। मुझे तो यह दुनिया देखने को फिर कभी नहीं मिलने वाली। इसलिए मेरी चिंता है यह एटम बम। यह जो जल्दबाजी के लोग होते है ना उनकी सबसे बड़ी चिंता हैं कि यह होना चाहिए, वो होना चाहिए। क्योंकि शांति से उन्हें इसी जन्म में सब कुछ भोगना है। सारा भोग इसी जीवन में करना है। चाहे एड्स हो जाए, चाहे डायबिटीज हो जाए, चाहे कुछ हो जाए, भोग नहीं छोड़ना है ताकि अगला -- जन्म नहीं है। यह तो हैं युरोप और अमेरीका।
_अब भारत में देखो- एक बार मैं एक गांव में गया। यह सच्ची घटना सुनाता हूँ आपको। बस्तर नाम का एक जिला है छत्तीसगढ़ में। तो वहाँ के सरपंच को मैंने कहा की मेरा नाम राजीव दीक्षित है। मैं आपके गांव के किसानों से बात करना चाहता हूँ तो कहने लगे क्या बात करना चाहते है। मैंने कहा भारत देश में बहुत सारी तकलीफें हैं। इन विषयों पर मैं बात करना चाहता हूँ। उसने कहा उससे क्या होगा? मैंने कहा आपके अगर समझ में आया तो तकलीफे दूर करने के लिए आप प्रयास करेंगे, मैं भी प्रयास करुंगा। तो उसने कहा तकलीफ दूर होने से क्या होगा। तो मैंने कहा आपको थोडासा सुख मिलेगा, शांति मिलेगी। तो उसने कहा वो तो अभी-भी हैं मेरे पास सुख और शांति दोनों हैं। आप क्यूँ परेशान हैं, मैं तो अभी-भी सुख और शांति से ही हूँ। परेशान तो आप हैं जो हजारों किलो मीटर चलके आ गए मेरे पास। मुझे तो कोई परेशानी नहीं। यह है भारतीयता। फिर मैंने पुछा आप सच में सुख और शांति में हो। उसने कहा- हाँ। मैंने पुछा यह जो इतनी समस्या हैं गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी इनका क्या? तो उसने कहा अगले जन्म में हल करुंगा। जरुरी हैं, इसी जन्म में करूँ।
- मेरी एक दादी थी। वो अभी स्वर्गवासी हो गयी। वो मुझे रोज यही कहती थी। तु इतना भाग-भाग क्यूँ करता हैं। आज इस गांव में, कल उस गांव में। तो मैंने कहा जल्दी से भारत की समस्या हल होनी चाहिए। तो उसने कहा इसी जन्म में अगले जन्म में हो जाएगी। क्यूँ चिंता करता हैं इतनी। यह जो ब्रेन है ना यह जो माइन्ड सेट है। यह पुर्नजन्म से निकलता हैं। माने पुर्नजन्म में रहने वाले लोग और मानने वाले लोगों को किसी चीज की जल्दी नहीं हैं। इसलिए गौ-हत्या भी अगले जन्म में रुक जाएगी। यही सोचकर हमारे खासदार वहाँ बैठे हैं। उनको जल्दी नहीं हैं। अगले जन्म में हो जाएगी। क्या फरक पड़ता हैं यह तो हमारे मन की स्थिति है।
.. . तो जहाँ सभ्यता का प्रश्न आता हैं ना, वहाँ पर सवाल इस तरह से होते
हैं। तो भारत की सभ्यता दूसरे देशों की सभ्यता से एक मामले में जो अलग है। मूल : यह है कि हम पुर्नजन्म मानते हैं। वो नहीं मानते। अब जरा कल्पना करिए। जैसे ही
आप पुर्नजन्म मानना शुरु करते हैं तो आपकी दुनिया बिलकुल बदल जाती है। क्या होती है। पुर्नजन्म क्या होता है। कब होता है। आत्मा कहाँ प्रवेश करती है। शरीर गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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कैसे होता है। यह सारी थ्योरीज आपके सामने खुलती हैं तो उन थ्योरी को सपोर्ट करने के लिए हमारे अपनें लॉजिक हैं। उनमें से एक लॉजिक है। यह देखो भाई पुर्नजन्म होता हैं। कर्म के हिसाब से जन्म मिलता है। तो हमने कर्म की थ्योरी को उसमें लगा दिया जिसको सभी मानते हैं। इस देश में चाहे वो जैन हो या सनातनी हिन्दु हो। कर्म. के सिद्धांत को सब मानते हैं।
. ..
__ कर्म अच्छा करोगे तो अगला जन्म अच्छा मिलेगा खराब किया तो खराब मिलेगा। अच्छा और खराब क्या? अच्छा कर्म किया तो हो सकता हैं मनुष्य जन्म मिले। खराब कर्म किया तो चीटी बन गए; मख्खी बन गए, मच्छर बन गए, छिपकली बन गए, सांप बन गए, मेंढ़क बन गए। अब यह तो थ्योरी है। हम छिपकली हो सकते हैं, चीटी हो सकते हैं, सांप हो सकते हैं, मेंढ़क हो सकते हैं, मख्खी हो सकते हैं, मच्छर हो सकते हैं, 84 लाख किस्म के जीव-जंतु हैं। उनमें से कोई भी जन्म हमें मिल सकता है। अगर कर्म अच्छा नहीं किए तो अब इसके आगे हम गए। हमने क्या किया कि भले हम अगले जन्म में कुछ भी बने। इस जन्म में हम मनुष्य हैं लेकिन अगले जन्म में अगर हम कुछ और बन गए। और हमने इस मनुष्य जन्म में रहते हुए कुछ ऐसे जीव-जंतुओं को मार डाला। क्या पता हम भी अगले जन्म में वही बन गए और हमको किसीने मार डाला फिर कोई और बन गया तो उसने किसी को मार डाला। तो यह मारामारी कब तक चलेगी। इसलिए अहिंसा का दर्शन हमने ले लिया कोई किसी को ना मारे अब कोई किसी को ना मारे यह अहिंसा के दर्शन से निकला है। पुर्नजन्म की फिलोसॉफी में से।
फिर इसमें हमारे देश में ज्ञानी लोग आ गए। जैसे- एक बहुत बड़े महान तपस्वी ज्ञानी जिनका नाम था महावीर स्वामी तीर्थकार हो गए। उन्होंने हमको यह ज्ञान दे दिया। उनको ज्ञान तो अद्भूत हो गया। केवल ज्ञान जिसकी कल्पना है। उनका केवल ज्ञान यह है कि 84 लाख किस्म के जीव-जंतु, किसकी क्या भुमिका है यह उनको मालूम है। और 14 वर्षों की उनकी जो तपस्या है। वो इसी बात के लिए है कि यह सृष्टी है। प्रकृति है। इसमें कोई जीव है वो कहा क्या कर रहा है। दूसरा है, उसको सपोर्ट कर रहा है। तीसरा है, उसका कॉम्पलीमेन्ट्री है तो यह सब क्या व्यवस्था है। यह उनको ज्ञान हुआ तो वो केवल ज्ञान है तो बोल कर चले गए की देखो भाई यह जीव प्रकृति व्यवस्थित तरीके से चल रही है इसको डिस्टर्ब मत करना। क्योंकि इनके जिंदा रहने से तुम जिंदा हो तो उन्होंने कहा छोटे भी जीव को हानि नहीं पहुँचाना! चाहे वो देखा हुआ हैं या नहीं देखा हुआ है। कई जीव ऐसे होते हैं ना जो
आँख से दिखते है। कई नहीं दिखते है। तो जो नहीं दिखते हैं उनको भी हानि नहीं पहुँचनी चाहिए। जो दिख रहे हैं उनको तो पहुँचना ही नहीं चाहिए। और फिर उन्होंने गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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जीवों की श्रेणीयां बना दिया। एक इंद्रिय जीव हैं, तीन इंद्रिय जीव हैं, पंचद्रिय में हम आते हैं। ऐसे-ऐसे बना दिया और उसके लिए उन्होंने फीलोसॉफी बना दिया कि इसको. मारोगे तो यह पाप है। वगैरा वगैरा निकला सब पुर्नजन्म में से । तो हम चूँकि पुर्नजन्म को मानते हैं।
पुर्नजन्म में 84 लाख योनियां हैं तरह-तरह के जीव-जंतु हैं। हमारा जन्म किसी भी योनि में हो जाए, हमको भी ऐसे ही मारे जैसे हमने मारा तो बॅलेन्स टुटेगा । तो इसमें से हम अहिंसा की तरफ बढ़ते चले गए । अहिंसा का स्थूल स्वरुप और अहिंसा का सुक्ष्म स्वरुप दोनों इस देश में विकसित होता चला गया। इसलिए हमारे दिल में बहुत ज्यादा चोट लगती है। जब गाय हत्या की बात होती हैं, पशु हत्या की बात होती हैं, जीव हत्या की बात होती है। तो हम विचलित हो जाते हैं। क्योंकि हजारों साल की मान्यता से हमने यह ग्रहण किया है। हमारा विचलन इसके लिए होता है और इसी दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग रहते हैं जो मार के खा जाते हैं । उनको कोई विचलन नहीं हैं। क्योंकि उनके यहाँ पुर्नजन्म नहीं होता है। जीव हत्या करना कोई पाप नहीं हैं फिर उनको यह समझा दिया गया है। आप जब पुर्नजन्म मानते नहीं हैं तो पूरी प्रकृति में जो भी कुछ है इसी जन्म के लिए है तो खाओ, पियो, मौज करो। तो फिलोसॉफी आयी कि खाओ, पियो, मौज करने में अगर प्रकृति का नाश होता है तो करलो बाद में बॅलेन्स कर लेंगे। उसको पहले नाश करलो तो उन्होंने जितनी भी - टेक्नोलॉजी बनायी और जो भी सायन्स विकसित किया। वह सब प्रकृति के नाश पर आधारित है। हमने भारतीय लोगों ने जो कुछ बनाया सायन्स और टेक्नोलॉजी में वो प्रकृति के सहयोग से और प्रकृति के संरक्षण पर आधारित है। हम जब पुर्नजन्म में गये तो फिलोसॉफी कहाँ तक गई। फिलोसॉफी गई
ईशा वाश्यं इदय सर्वमं
यतकिंच जगत्यामं जगत
त्येन तत्येन भुंजी था माग्रधंः कस्यसिद्धनम्
जो कुछ भी इस चराचर जगत में है। वो सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं है औरों के लिए भी है । और तुम्हारा उस पर अधिकार उतना ही है जितना तुम्हारे लिए है। सब कुछ तुम्हारा नहीं हैं। आने वाली पीढ़ी के लिए है। इसलिए त्याग पूर्वक भोग करो - और पड़ोसी के लालच में मत फंसो । और यही फिलोसॉफी अलग-अलग शब्दों में अलग-अलग मुहावरों में अनेक - अनेक संप्रदायों में आयी । मूल वो यह है । इसलिए हमको दिल में चोट होती है और गांधीजी को भी चोट होती है कि गाय का कत्ल क्यूँ हो रहा है ! क्योंकि मैं कभी गाय बन गया तो मेरा भी होगा। भैंस का कत्ल क्यों हो रहा हैं क्योंकि मैं कभी भैंस बन गया तो मेरा भी होगा। और जब आप इस फिलोसॉफी में आगे जाते हैं। तो टेक्नोलॉजी कैसी होगी। टेक्नोलॉजी आप वही लायेगें जो आपको संरक्षित रखे। जो भी इसको डिस्टर्ब करे। ऐसी कोई टेक्नोलॉजी आप के
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काम की नहीं होगी। तो हमने टेक्नोलॉजी ऐसी बनाई बैलगाड़ी का पैय्या बनाया। हवाई जहाज का नहीं। क्योंकि बैलगाड़ी का पैय्या धीरे-धीरे रोटेट करता है। और धीरे चलने वाली चीज जमीन पर प्रेशर कम डालती है। उससे जीवों की हत्या कम होती है। इसलिए बैलगाड़ी का पैय्या बनाया इसलिए नहीं कि हम पिछड़े हुए हैं। पैय्या जब हमने बना लिया तो हवाई जहाज का भी बना सकते थे। लेकिन हमने समझ बुझकर बैलगाड़ी चूनी हैं। क्योंकि इसमें न्यूनतम जीव हत्या होती है। हम किसी से पिछड़े हुए नहीं हैं। बहुत सोच समझकर हमने बैलगाड़ी को ऑप्शन में लिया हैं।
दूसरी तरफ युरोप वाले हैं, अमेरीका वाले हैं। उनकी समझ यही हैं कि जो करना है इस जीवन में करना है। बाद में जीवन नहीं है तो हर चीज तेज करनी है तो स्पीड के साथ करनी है। हवाई जहाज का पैय्या बना लिया। अब हम कहाँ फंस गए हैं। उन्होंने जी, हवाई जहाज का पैय्या बना लिया। हम बॅकवर्ड हैं। यह सबसे बड़ा हमारे मन में बैठा हुआ दुश्चक्र है। दुनिया में कोई फॉरवर्ड कोई बॅकवर्ड नहीं होता हैं। अपनी-अपनी मान्यताओं के हिसाब से कुछ चीजें तय होती हैं। हम जब यह कहते हैं ना कि अमेरीका वाले फॉरवर्ड हैं हम बॅकवर्ड हैं तो हम कभी भूल जाते हैं। अभी थोड़े दिन पहले अमेरीका में दुर्घटना हुई। उनके यहाँ भी सुनामी आ गया 'कॅटरिना ' उसका नाम और थोड़े दिन पहले आया 'रीटा' दो पानी के बड़े जलजले आए। उनके यहाँ कॅटरीना ने अमेरीका के तीन राज्यों का सफाया कर दिया। वो आपने सबने सुना है तीन राज्यों का सफाया हुआ। लाखों लोग बर्बाद हुए, घर टूट गए। फिर आपने यह भी सुना होगा पाँच दिन तक सरकार ने कुछ नहीं किया लेकिन हम उसकी चर्चा नहीं करते। हमारे यहाँ हो जाए तो उसपे गाना गाने लगते हैं। अमेरिका की सरकार ने पाँच दिन तक लाखों लोगों की खबर सुध क्यों नहीं लीया। क्योंकि वो ब्लॅक थे। काले लोग हैं। जिन राज्यों में यह कॅटरिना आया वहाँ की मॅजोरिटी पॉप्युलेशन ब्लॅक है। जार्ज बुश को उनकी चिंता नहीं हैं। क्यूँ प्रश्न ही नहीं हैं पुर्नजन्म का । चिंता क्यूँ होनी चाहिए। जिनके यहाँ पुर्नजन्म का प्रश्न होगा ना उनको चिंता होगी। कि अगली बार ब्लॅक हो के पैदा हो गए। तो हमारे साथ भी कोई यह करेगा। जार्ज बुश को चिंता ही नहीं है कि अगले बार ब्लॅक भी हो सकता हैं। वो कहता है आखरी जीवन है जो करना है इसी में करना है । उसको चिंता नहीं है।
सारी दुनिया के अखबारों में लेख लिखे । और कहा गया कि अमेरिका अपने को बहुत बड़ा तीस मार खाँ कहता है और जनहित का रक्षक कहता है लेकिन अपनी जनता के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति क्या कर रहा है। पाँच दिन तक ना पुलिस, ना सेना भेजी, ना कुछ भेजा, ना सामान भेजा। लोग बेचारे ठिठुरते रहें। सड़क पर मरते रहे और जानते है आगे क्या हुआ। आगे यह हुआ कि जिन लोगों को भूंकप ने या तूफान
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ने प्रभावित किया है उन सब लोगों ने एक दुसरों को जमकर लुटा। एक दूसरे की माताओं-बेटियों के साथ जमकर बलात्कार किए। एक दूसरे की जेबें कांटी। एक दूसरे , के घरों में घुसके सामान लेके आ गए! भयंकर लूटमार अमेरिका में चलती रही 7 दिन तक। जब जॉर्ज बुश को समझ में आया कि लॉएण्ड ऑडर की प्रॉब्लम है। तब उसने आर्मी भेजी वहाँ लेकिन आर्मी को भी उसको कंट्रोल करने में तीन दिन और लग गए। दस दिन तक अमेरीका में जमकर तांडव हुआ। और जलजले से प्रभावित लोगों ने एक दूसरे को मारा, एक दूसरे को लुटा, एक दूसरे के साथ बलात्कार किया, घरों में आग लगाई। सब कुछ हुआ, यह है सभ्यता।
अभी भारत की बात करता हूँ। भारत में भी सुनामी आयी थी और हमारे भी तीन राज्य उससे बुरी तरह प्रभावित हुए थे। और सुनामी के बाद हमारे मुंबई के आजू-बाजू के करीब चार सौ-साड़े चार सौ गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए थे। इन दोनों ही दुर्घटनाओं में मैंने काम किया था सेवा के रुप में। और हर जगह मैंने देखा कि भारत में जहाँ यह भयंकर आपत्ति आई है। वहाँ एक भी भारत वासी ने दूसरे को नहीं लुटा। किसी भी भारत वासी ने किसी के बहन के साथ बलात्कार नहीं किया। किसी भी भारत वासी ने किसी भी माँ के साथ बत्तमिजी नहीं की। सबने एक दूसरे
को मदत किया। यह है सभ्यता। क्यूँ? पुर्नजन्म होता है। हाँ, सारे देशवासी एकटे होकर पहुँच गए कि भाई इनकी मदद करो। आप में से भी कुछ गए होंगे। क्यूँ-क्या मालूम अगले जन्म में हमारे साथ ऐसा हो जाए। तो ये जो पुर्नजन्म है ना, यह बहुत .कुछ कराता हैं। अगर हम पुर्नजन्म से नहीं बंधे हों तो हम भी वैसे ही व्यवहार करेंगे
जैसे अमेरिका में होता है। तो पुर्नजन्म की यह फिलोसॉफी है जिसने हमको बांधा हैं एक साचे में। हम वैसे ही रिअॅक्ट करते हैं जैसी हमारी फिलोसॉफी है। और सायन्स और टेक्नोलॉजी को वैसे ही आगे बढ़ाते हैं जैसे हमारी फिलोसॉफी है।
अभी देखो सायन्स-टेक्नोलॉजी पर मैं आता हूँ समझाता हूँ आपको। मेरी माँ झाडू लगाती है! बचपन से मैं उसको देखता हूँ घर में झाडू लगाते हुए। तो एक बार मैंने मेरी माँ को पूछा यह जो झाडू हैं। उसके आगे का हिस्सा ऐसा क्यूँ खुला हुआ है। क्यूँ आगे पीछे एक जैसा क्यूँ नहीं। तो मेरी माँ ने समझाया- देखो यह आगे का हिस्सा खुला हुआ है। इसलिए कि झाडू लगाऊ तो चींटी ना मर जाए इसके लिए खोल के रखा है। उसको तो स्पेस हैं ना चींटी को निकल के जाने के लिए। एक सींक से दूसरे सींक के बीच में स्पेस है तो वो निकल के चली जायेगी। तो यह है टेक्नोलॉजी। हमने झाडू भी बनायी तो यह ध्यान रखा है कि उसके नीचे चींटी ना मर जाए। और भारत में एक तो सीक झाडू होती हैं। और तो एक दूसरी झाडू होती हैं। जो बहुत ही सॉफ्ट होती है। क्या कहते है उसको 'फुलझाडू' कहते हैं। उसको बनाते समय ध्यान रखा है कि अगर उसमें स्पेस नहीं हो तो झाडते समय चींटी जिंदा जाए। यह है हमारी
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टेक्नोलॉजी।
अब युरोप वालों ने क्या किया उन्होंने बनाया हैं एक मशीन। हाँ जो खींच लेता है सबको अपने अंदर। देखा है डस्ट खींच लेता है कहते- तो उसको डस्टक्लिनर है लेकिन वो डस्टक्लिनर नहीं हैं डस्टसकर है। डस्ट को खींचता है. और डस्ट के साथ चींटी को भी खींच लेता है और कॉकरोच को भी और सबको खल्लास करता है। यह है टेक्नोलॉजी। अब हम इसी में फंसे हुए है हम तो पिछड़े हुए हैं। झाडू बनाया हैं। वो तो बहुत आगे है। फॉर्वड हैं क्योंकि उन्होंने डस्टसकर बनाया हैं यह हमारी मुर्खता है। कोई अगला पिछला नहीं होता है। दुनिया में हर देश अपनी सभ्यता और अपनी मान्यता के हिसाब से आगे बढ़ता है।
हमारी सभ्यता हैं पुर्नजन्म वाली इसलिए हम जो भी करेंगे उसको ध्यान में रखकर करेंगे। हर जगह आप यही देखेंगे हिन्दुस्तान में जो भी स्वदेशी टेक्नोलॉजी बनेगी आगे बढ़ेगी उसमें हर जगह आप यही पायेगें। अगर यह टेक्नोलॉजी किसी ऐसे व्यक्ति ने बनायी हैं जो खरा हिन्दुस्तानी है। अमेरीका रिर्टन हैं तो कबाड़ा करेगा इस देश का। हाँ- क्योंकि वहाँ जो देख के आया है ना कचरा, वो सब यहाँ चालू कर देगा। कहेगा क्या फालतू काम करते हो। झाडू लगाते हो डस्टसकर लेकर आओ उसको थोड़ी देर बिजली लगाओ। पूँ-पूँ करे उसको खींच लो सब। अब उसमें कितनी चींटी मरी, कितने मच्छर कितनी मख्खी, उसको कोई चिंता नहीं क्योंकि उसको पुर्नजन्म में कोई मतलब नहीं है जो है वो इसी जन्म में है। फिर हम क्या करें। उसकी नकल कर करके हमारे घर में लेके आएं। और अपने को कहें हाँ हम तो बहुत स्मार्ट हैं। हम तो बहुत फॉवर्ड हैं। हम तो बहुत इंटेलिजेन्ट हैं। हमसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं हैं।
बिना अपनी सभ्यता को समझे कोई बिना अपनी संस्कृति को जाने हुए दूसरों पर टिप्पणी करना और अपनों को उससे नीचे मान लेना यही मुर्खता हैं। हम तो इसी में फंसे हैं। जब भी यह बात खड़ी होती है ना गांधीजी के सामने हो या आपके सामने गाय कट रही हैं भैंस कट रही हैं तो जो भारतीयता के लोग हैं जो पुर्नजन्म में मानते हैं जो सनातनी हिन्दु हैं। भले किसी भी संप्रदाय के हैं उनके दिल में कसक उठती है। यह गाय क्यूँ कटती है कुछ कर नहीं पाते वो अलग बात है। कसक तो हैं दिल में और इतनी तीव्र कसक है कि आप जरा खुलकर बात करलो तो इतना फट पडते हैं कि गाय बचाने के लिए मुझे मेरी जान देनी पड़े तो मैं तैयार हूँ। क्यूँ आती हैं हमें इतना तीव्र उद्वेग। यह जो हमारे मंच पर थोड़ी देर पहले जो विलास भाई बैठे थे ना 74 साल की उम्र में उनके मन में इतना उद्वेग क्यूँ है। इसलिए है कि पुर्नजन्म की मान्यता है और हम सब इस मान्यता से बंधे हुए है। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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तो अब हमारे सामने प्रश्न क्या हैं। हमारे सामने प्रश्न यह है कि जिस मान्यता को हमने धारण किया है। उसके अनुरुप अपने देश की कानून व्यवस्था होनी चाहिए। यह प्रश्न है। सबसे बड़ा कत्तल खानों का बंद होना, नहीं होना यह इस प्रश्न से तय होने वाला है। हिन्दुस्तान में कानून बने हैं, कायदे बने हैं वो अंग्रेज बनाके चले गए हैं। उन कानूनों के अनुसार गाय का कत्तल नहीं हो सकता लेकिन बूढ़ी गाय का हो सकता हैं। उसी कानून के अनुसार अंग्रेजों का बनाया हुआ कानून जब उन्होंने बहुत दबाव में आ के तय किया। और बाद में भारत सरकार ने इसको राज्यों के स्तर पर बनवाया। केन्द्र ने तो आज तक नहीं बनाया। भारत में आप जानते हैं 18 राज्य हैं जिन्होंने यह कानून बना दिया हैं उनमें महाराष्ट्र भी एक हैं कि गाय का कत्लं तो नहीं करेगें लेकिन अस्वस्थ गाय है तो कर लेंगे। स्वस्थ का नहीं करेगें। अस्वस्थ का कर लेंगे। तो स्वस्थ और अस्वस्थ होने के बीच में एक बहुत बारीक लाईन है।
एक डॉक्टर बैठता है कत्ल खाने के गेट पर जो यह सर्टीफिकेट देता है कि यह स्वस्थ है या अस्वस्थ। उसके सर्टीफिकेट से तय होता है। एक बार में देवनार कत्ल खाने में गया। मेरी आँखों के सामने बहुत अच्छी-अच्छी सुंदर-सुंदर.गाय एकदम स्वस्थ कटने के लिए गई। मैंने कहा भाई कानून यह कहता है महाराष्ट्र का कि गाय नहीं कटनी चाहिए। उसने कहा कानून को ध्यान से पढ़ो, कहता हैं कि बीमार गाय कटनी चाहिए। मैंने देखा बात सही है। स्वस्थ तो नहीं काट सकते अस्वस्थ तो काट सकतें हैं। तो मैंने कहा कैसे मालूम तुमको यह अस्वस्थ हैं। उसने कहा मेरा सर्टीफिकेट है। तो मैंने कहा तुम अस्वस्थ कैसे बना सकते हो किसी गाय को। उसने कहा बहुत आसान है किसी भी स्वस्थ गाय के पाँव में डंडा मार दो, लंगड़ा के चलने लगे तो अस्वस्थ हो गई। किसी भी गाय की पूंछ काट दो तो अस्वस्थ हो गई। पाँच दिन भूखा रखो चल नहीं पायेगी, अस्वस्थ हो गई तो कटने के लिए जायेगी। कानून से जायेगी। उसमें मान्यता का प्रश्न नहीं हैं कानून का प्रश्न है। तो इस समय भारत के 18 राज्यों में यह कानून है गौरक्षा के लिए। लेकिन हर कानून में यह लगा हुआ है। कई राज्यों में यह है कि बछड़ा अगर तीन बरस से छोटा है तो नहीं कटेगा। तीन बरस से एक दिन भी उपर हैं तो कटने को जा सकता है! तो कानून बना दिया उन्होंने और हम हिन्दुस्तानी जो देश चलाते हैं अंग्रेजों की मान्यता से इतने प्रेरित हैं कि इस तरह के कानून को सुधारते रहते हैं। 58-59 साल से जड़ मूल से खत्म नहीं करते। अपनी मान्यता के अनुसार गाय बीमार हो या अस्वस्थ तुमको क्या लेना देना। तुमने पैदा नहीं किया तुम मारते कैसे हो उसको, जिसने पैदा किया हैं वो तय करेगा कि इसको कब मरना हैं कब नहीं मरना हैं। तुम कौन होते हो बीच में अडंगा लगाने वाले! यह तो मान्यता का प्रश्न है कानून में नहीं आता तो अब इस देश में हमें यह तय करना है कि कानून का राज चलेगा कि मान्यताओं का। . गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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- प्रश्न यह है। हमें तय करना है, पुढारिओं को तय नहीं करना हैं। वो तो हमें और आपको उल्लू बना रहे हैं, जैसे अंग्रेज बनाते थे। 250 साल उन्होंने बनाया 58-59 साल हो गए काले अंग्रेज हमे उल्लू बना रहे हैं। वो तो गोरे अंग्रेज थे यह तो काले अंग्रेज हैं सब के सब। हाँ- कोई अंतर थोड़ी है इनमें। ऐसे ही बातें करते हैं जैसे अंग्रेज करते थे। और कभी-कभी तो शर्म भी छोड़कर बातें करते हैं। अभी वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह 8 जुलाई 2005 को लंदन गए ऑक्सफोर्ड युनिर्वसिटी में डिग्री लेने तो वहाँ भाषण दे दिया कि हमसे गलती हो गई जो हमने भगा दिया अंग्रेजों को। अगर इसको ही विश्लेषण करना शुरु करें कि एक सरदार हैं मनमोहन सिंह जो कहता हैं कि अंग्रेजों को भगाना गलती हो गई। एक सरदार था भगतसिंग जो अंग्रेजों को भगाए बिना चैन नहीं लगा। इसका संकल्प लेके बैठा था। एक सरदार मनमोहन सिंह जो अंग्रेजों को भगाने को गलती मानते हैं। अंग्रेजी शासन को भारत के लिए उपहार मानते हैं कि अंग्रेजी शासन बहुत अच्छा था जिसने हमें न्याय दिया, कानून दिया, सभ्यता दी, शिक्षा दी, टेक्नोलॉजी दी, सायन्स दी। यह सब अंग्रेजी शासन ने दिया। और एक था उधमसिंग जो मानता था कि अंग्रेज सिवाय लुटेरे और कुछ करते नहीं। यह प्रश्न जो हैं ना वो कानून का नहीं हैं मान्यताओं का प्रश्न हैं। मनमोहन सिंह की मान्यता है कि अंग्रेज बहुत अच्छे। यह तो अंग्रेजी कानून भी अच्छे है तो मनमोहन सिंह तो अंग्रेजी कानूनों को ही आगे बढ़ायेंगे ना। जिनकी मान्यता हैं वो तो वही करने वाले है।
___ आपकी मान्यता हैं चींटी नहीं मरनी चाहिए तो आप झाडू लगाते समय ध्यान रखते हैं कि नहीं रखते है। उनकी मान्यता हैं ही नहीं तो वो ध्यान क्यूँ रखेंगे। कत्ल खाने चले ना चले क्या फरक पड़ता है। तो सरकार कहाँ जाती, कानून के साथ, मान्यताओं के साथ नहीं जाती हैं, तो कानून इस तरह के हैं कत्ल होते जाएं। और अब नए-नए कानून ऐसे बनाए जा रहे हैं इसमें से एक कानून अभी थोड़े ही दिन पहले बना है। इस देश में नीति बनी हैं पहले तो पॉलिसी फिर कानून कि भारत से जो मीठ एक्सपोर्ट हो रहा है। इसको डबल किया जाए अभी जितना हम जानवर काट कर मांस बेचते हैं इसकी मात्रा दोगुनी कर दी जाए। यह पॉलिसी बनी है तो इसका अर्थ क्या हुआ। अभी तीन हजार छ: सौ कत्तल खाने.चलते हैं तो इनकी संख्या दस हजार करनी पड़ेगी। यही होगा ना तो इस पॉलिसी के तहत सोलापूर में दो कत्तल कारखाने खुलने जा रहे हैं। यह है कहानी इसी पॉलिसी के तहत नागपूर में एक कत्तल खाना खुलने . जा रहा है। इसी पॉलिसी के तहत थोड़े दिन में तुलजापूर में खुलेगा। इसी पॉलिसी के तहत अक्कलकोट में खुलेगा। फिर क्योंकि पॉलिसी तो मान्यताओं से तो नहीं चलती ना, कानून और न्याय से चलती है। न्याय की परिभाषा वो नहीं जो हमारी मान्यता वाली है। न्याय की परिभाषा वो जिसको लॉ कहते है। जस्टीस नहीं, लॉ अलग है, जस्टिस गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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अलग है। तो इस पॉलिसी के तहत भारत सरकार ने तय कर दिया है क्योंकि यह अंग्रेजियत की मान्यता है ना, तो उसी अंग्रेजियत की मान्यता से सब कुछ संचालित हैं इस देश में कुछ बदला नहीं है।
___ अंग्रेज चले गए हैं अंग्रेजियत की सारी नीतियां चल रही हैं। अंग्रेजों के बनाए गएं सारे कानून चल रहे हैं। अंग्रेज चले गए हैं अंग्रेजों का बनाया गया पाठयक्रम इस देश में चल रहा है। अंग्रेज रखलो लेकिन इस अंग्रेजियत को विदा करो। हमने उल्टा किया है, अंग्रेजों को विदा किया हैं अंग्रेजियत को नहीं छोड़ा। तो अंग्रेजियत शासन . तंत्र में भी है। कानून में भी है। शिक्षा में भी है और हमारे दैनिक जीवन के व्यवहार में भी है। उसी अंग्रेजियत ने भारत सरकार को प्रेरित कर रखा है जो भारत सरकार कहती हैं कि मीट एक्सपोर्ट डबल होना चाहिए। अब तक हमारे देश में बहत्तर लाख मीट्रिक क्विन्टल मांस उत्पादन होता हैं। सरकार चाहती हैं की यह एक सौ चालीस लाख मीट्रिक क्विन्टल हो जाना चाहिए। इसके लिए जितने पैसे की जरुरत है केन्द्र सरकार देने को तैयार है और केन्द्र सरकार ने कहा है कि सारे कत्तल खाने खोलो सब्सिडी हम देंगे। और कत्तल खाना खोलने के लिए एक करोड़ रुपये तक की सब्सिडी आराम से मिलती है और कई करोड़ रुपये का कर्ज बिना ब्याज के मिलता है। अगर यह कानून का प्रश्न नहीं होता। अंग्रेजियत का प्रश्न नहीं होता तो क्या होता. मान्यता का अगर प्रश्न होता तो इस देश की मान्यताओं के हिसाब से सजाया हुआ है। और दूसरे का कोई हस्तक्षेप आप उसमें पसंद नहीं करते हैं तो अपने देश को अपनी मान्यताओं के हिसाब से सजाइए। दूसरे के हस्तक्षेप को क्यूँ पसंद करे।
क्योंकि यह जो हमारा छोटा घर हैं इन्ही छोटे-छोटे घरों से मिलकर देश बनता है। जो बड़ा घर है यह तो नहीं चलने वाला। कि घर हम हमारी मान्यताओं की हिसाब से चलाए देश को विदेशी मान्यताओं की हिसाब से चलाएं या विदेशी नीतियों की हिसाब से चलाएं। यह तो नहीं चलने वाला और अगर यह चलेगा तो हर समय संघर्ष होगा। यह कुछ इस तरह से होगा मैं आप को सरल शब्दों में समझाता हूँ। घर आपने सवारा है अपने हिसाब से, कोई पड़ोसी आके कहेगें- जी उडद की दाल खाओ रोज। तुवर की अच्छी नहीं होती और बैंगन का भरता खाओ यह बटाटा अच्छा नहीं होता। . और दूधी, भोपले का यह करो यह अच्छा नहीं होता रोज आपको आके सबेरे-सबेरे भाषण दे। कितने दिन आप सुनेगे। कहेंगे, भाई तु जा तेरे घर में कर। हमें क्या करना हैं वो हम तय करेगें, तु कौन होता है। हम उडद की दाल खायेगे, तुवर की दाल खाए तु कौन होता है बताने वाला कि हम दूधी-भोपले का रस पीये या नहीं पीये। होता कौन है तु हमारे घर में हम तय करेगें। अगर हम अपने घर के लिए अधिकार पूर्वक . इतना तीव्रता से कहते हैं तो देश के लिए क्यूँ नहीं कहते कि हमारे देश में क्या करना . गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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है। वो हम तय कर लेंगे। यह अंग्रेजियत के कानून चलाने वाले पुढारी कौन होते हैं। देश हमारा हैं। समाज हमारा हैं। हम तय करेगें इस देश में क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए। जितनी तीव्रता से हम हमारे घर के लिए कहते हैं उतनी तीव्रता से समाज के लिए कहें, देश के लिए कहेगें हमारे घर में हम तय करेगें अगर हम अपने घर के लिए अधिकार पूर्वक इतनी तीव्रता से कहते हैं तो देश के लिए क्यूँ नहीं कहते हैं कि हमारे देश में क्या करना है वो हम तय कर लेगे। यह अंग्रेजियत की संसद कौन होती हैं। या अंग्रेजियत के कानून चलाने वाले पुढारी कौन होते हैं। देश हमारा है। समाज हमारा है हम तय करेगें। इस देश में क्या होना चाहिए? क्या नहीं होना चाहिए। जितनी तीव्रता से हम हमारे घर के लिए कहते हैं उतनी तीव्रता से हम समाज के लिए कहें, देश के लिए कहें तो इस समस्या का समाधान पाँच मिनट में निकलता है।
इससे ज्यादा उस दिन तक रखो जिस दिन तक उपयोग करना है। नहीं है तो खत्म करो उसको। तो हमारी सरकार इस समय युटिलिटी की थ्योरी में फंसी हुई हैं। और सरकार ही नहीं पुढारी भी उसमें फंसे हुए हैं तो तर्क क्या देते हैं - जी- जो जानवर उपयोगी नहीं हैं उनका कत्तल क्यूँ नहीं कर देना चाहिए। क्या हमारी मान्यता में ऐसा कहने का अधिकार किसी को है कि क्या उपयोगी है क्या उपयोगी नहीं है। क्योंकि जिसने यह प्रकृति बनायी है तो वो कहें तो समझ में आता है कि यह उपयोगी है और यह उपयोगी नहीं है। तुमने तो कुछ नहीं किया है इस प्रकृति में। तुम कौन होते हो तय करने वाले कि यह उपयोगी है या यह उपयोगी नहीं है। और अगर यही प्रश्न मान के चले कि गाय दूध नहीं देती तो उपयोगी नहीं हैं। भैंस दूध नहीं देती तो उपयोगी नहीं हैं इसलिए इन का कत्तल करो। तो उनसे पूछो कि यह थ्योरी देते हैं कि भाई थोड़े दिन के बाद तो तुम्हारी आई (माँ) भी दूध नहीं देती तो पूछेगे ना वो भी उपयोगी नहीं है उसको भी कत्तल करो और थोड़े दिन के बाद तुम्हारे वडील (बड़े बुजुर्ग) किसी काम के नहीं हैं। वो भी उपयोगी नहीं हैं तो उनको भी कत्तल करो। थ्योरी ऑफ युटिलिटी तो बहुत खतरनाक है। अगर आप ऐसे ही अपने जीवन को चलायेंगे की क्या उपयोगी है क्या उपयोगी नहीं है। तो थोड़े दिन के बाद तो आपके लिए कुछ भी उपयोगी नहीं होगा। जो कत्तल खाना बनाने की मुहिम में लगे हुए हैं।
और मैं आपको बता दूँ की वो बहुत माइनॉरिटी के लोग हैं। जो कत्तल खाना बनाना चाहते हैं। उसमें महापौर हो सकते हैं। महानगरपालिका के लोग हो सकते हैं। लेकिन मॅजोरिटी लोग हैं जो नहीं चाहते तो उनको अपनी ताकत दिखानी पड़ेगी। हमारे देश में एक बहुत बड़े व्यक्ति हुए गोस्वामी तुलसीदास। उन्होंने बहुत सुंदर बात लिखी है।
विनय न मानद जलद निधि गए तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब भय बिन होवे ना प्रीत गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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भगवान राम समुद्र को विनय कर रहे हैं, कि भाई रास्ता दे दो लंका में जाना है। समुद्र कहता हैं नहीं दूंगा। तुम कौन होते हो। तब तुलसीदास कह रहे हैं, भय ।। बिन होवे ना प्रीत। जब तक आप डर नहीं दिखाओगे समुद्र को, यह आपसे प्रेम नहीं करने वाला तो वही फार्मुला हमें अपनाने की जरुरत है। क्योंकि यह हमारी मान्यता .. का सवाल है। यह हमारी अस्मिता का सवाल है। यह सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल नहीं हैं। और मुझे बहुत खुशी हुई अभी जिस गांव में जाके आया। जिस बंजारे समाज को भारत सरकार चोर और बेईमान साबित करने में लगी है। उनकी मान्यता है कि हम कत्ल खाना बनने नहीं देगे। इसको पूरे गांव ने कहा है। कोई एक व्यक्ति ने नहीं कहा तो अगर वो इतनी ताकत से खड़े हुए है तो हमें तो उन्हें सिर्फ सहकार्य भी देना है। उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होना है। और सिर्फ यह एक गांव नहीं कह रहा है। उसके आजू-बाजू के 11 गांव कह रहे हैं कि यह हम कत्लखाना नहीं बनने देंगे। तो यह ग्यारह गांव की ग्राम सभायें थोड़े दिन में सौ हो सकती हैं। पूरा सोलापूर गांव की ग्रामसभा यह प्रस्ताव पारित कर सकती है कि नहीं। हम नहीं होने देंगे। तो आप की भुमिका क्या हैं? .
आप की भुमिका यह है कि जिन्होंने यह तय कर लिया हैं कि नहीं होने देगें। उनके साथ सहयोग करना हैं। बस इतनी सी भुमिका है और जो जैसा सहयोग कर सके धन से, तन से, मन से कर सके। जैसा भी सहयोग कर सके, करिए। अपनी सीमा जानते हैं कि मैं कितना सहयोग कर सकता हूँ और उनकी सीमा आपके सामने है। आपको सहयोग करना हैं बस और वो इतने कन्विन्स हैं इस बात से तो कहते हैं कि कोई लढ़ाई हमें लढ़नी पड़े। हम पीछे हटने वाले नहीं हैं। फिर मैंने पुछा राजनीतिक दबाव आया तो। तो उन्होंने कहा तो क्या आता रहता है। वो तो हम पीछे नहीं हटने वाले उसमें से अगर उन्होंने इतना ठाम निर्णय ले रखा हैं तो हमको तो थोड़ा सा ही निर्णय करना है कि इनके इस काम में सहयोग देना है। लड़ाई तो वो लड़ रहे हैं हमें तो सहयोग करना है और आपका सहयोग उनके लिए बहुत बड़ी ताकत का . काम करेगा। इतनी ताकत उनको मिलेगी कि जिसकी कल्पना आप नहीं कर सकते हैं। अब सहयोग कैसे करना है, मान लीजिए कल को वो कोई बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित करें धरने का, प्रदर्शन का, उपवास का, सत्याग्रह का। आप, उसमें शामिल हो जाइए। वो कोई मेमोरेंडम देने के लिए यहाँ आएं। तो आप भी उनके साथ चले जाइए। उनको यह नहीं लगना चाहिए कि यह लड़ाई अकेले वो लड़ रहे हैं। उनको यह लगना चाहिए कि पूरा समाज उनके साथ इस लड़ाई में शामिल है।
भारत के लोगों में कुछ शक्ति है यह आपको सच बता रहा हूँ इस देश के लोगों की इतनी बड़ी शक्ति है कि बड़े-बड़े एम्पायर इस देश ने हिला दिए। श्रीमती गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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गांधी के बारे में इस देश में एक जमाने में कहा जाता था कि उनकी सरकार को कोई हिला नहीं सकता। इन्हीं हिन्दुस्तानियों ने उन्हें आसमान से जमीन पर लाया। तो अभी तो ऐसी कोई सरकार सरकार नहीं है जो श्रीमती गांधी के बराबर की हो ताकत में। हाँ इतनी हैसीयत तो फिलहाल किसी की नहीं दिखती हैं इस देश में तो यह कौन होते है। इनकी ताकत इतनी नहीं है। जब श्रीमती गांधी की सरकार को हिन्दुस्तानी लोग आसमान से जमीन पर ला सकते हैं और श्रीमती गांधी की जमानत जप्त कर सकते । हैं तो यह हिन्दुस्तानी कुछ भी कर सकते हैं। बहुत ताकत हैं इनमें बस इनको ध्यान दिलाने वाला कोई चाहिए। जैसे रामचंद्रजी ने हनुमानजी को याद दिलाया था कि तुम्हारी. बहुत ताकत है तुम इस समुद्र को पार कर सकते हो। करके तो देखो एक बार। और मारी छलांग और हनुमानजी पहुँच गए श्रीलंका। फिर राम ने कहा तुम्हारी बड़ी ताकत है आग लगा सकते हो आग लगाके तो देखो, लगा दी। तो भारत के लोग हनुमानजी जैसे हैं। जब आप बताओगे कि बहुत ताकत हैं तो वो खड़े हो जायेगें। फिर उनके सामने कोई भी नहीं टिकने वाला।
मेरा यह कहना है यह जो सरकारे हैं ना- वो हमसे हैं। हम सरकारों से नहीं हैं और हम सरकार चलाने के लिए वोट दे रहे हैं। नोट दे रहे हैं। तो हमें अधिकार है सरकार को आदेश देने का निवेदन करने का नहीं। आदेश देने का अधिकार निवेदन तो तब करते थे जब अंग्रेजों की सरकार चलती थी इस देश में। हम आपके पास एक मॅमोरेंडम ले के आए हैं। इसको जरा ध्यान दीजिए। अभी तो आप बोलिये हम आदेश पत्र ले के आए हैं। इसको करिए क्योंकि आपको वोट दिया है और नोट भी और सरकारें तो हमारी नौकर हैं। हम तो मालिक हैं। आप सोलापूर महानगर पालिका को टैक्स पै करते हैं। अच्छा काम करने के लिए। खराब काम करने के लिए नहीं। हम सरकारें बनाते हैं अच्छे काम करने के लिए। खराब काम करने के लिए नहीं और सोलापूर में जो लोग टैक्स पै कर रहे हैं 80 प्रतिशत तो पक्का हैं कि वो जीव, दया प्रेमी हैं। क्योंकि भारतीयता को मानने वाले हैं। तो वो कहें इस बात को कि हम तो जीव, दया में मानते हैं। आपको हर साल टैक्स भरते हैं। हमारे टैक्स के पैसे से आप कत्ल खाना ' चलाए। यह तो. अधिकार हमने आपको नहीं दिया है। कुछ अच्छा काम करना है तो करिए नहीं तो जाइए किसी दूसरे को लायेंगे। आपके बंधुआ मजदूर नहीं हैं। अच्छा काम कुछ करना है। तो सड़के ठीक करवा दीजीए सोलापूर की। पीने के पानी की व्यवस्था कर दीजिए। स्कूल नहीं चलते हैं उनकी देखभाल कर लीजिए। बिजली नहीं मिल रही है। उसको जरा देखिए। इस तरह के कुछ काम कर दीजिए। सोलापूर की मिले बंद हो रही हैं। उनके लिए कुछ कर लीजिए। .
हमने आपको कत्ल खाना चलाने के लिए टैक्स नहीं दिया है और यह बात
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सोलापूर में ही बोलने की जरुरत नहीं हैं। इस बात को भारत सरकार के स्तर तक बोलना है। हम आपको हर साल सात लाख पचास हजार कोटी रुपये टैक्स में भरते हैं। इसके लिए नहीं कि आप ट्रान्सपोर्ट बढ़ाए इस देश का । हम नहीं चाहते कि भारत से मांस का निर्यात हो, हम चाहते हैं कि भारत से दया, करुणा, प्रेम, निर्यात हो । जो हजारों साल हमने किया है। हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता में जितने भी महान लोग आये हैं। उन्होंने भारतीय सभ्यता का निर्यात किया है। मांस का निर्यात नहीं किया है और सीधे-सीध प्रश्न करना है कि महात्मा गांधी के दांडी मार्च के सत्याग्रह की अगर जयंती आप मनाते हो तो किस मुँह से यह कत्ल कारखाने खुलवाते हैं या तो यह पाखंड बंद करो, गांधीजी के मार्च का सत्याग्रह का, जयंती बनाने का और सबको कहो कि हमने गांधीजी को दफन कर दिया है और या गांधीजी को मानते हो तो उनके जीवन की सबसे महत्त्व कि बात हैं कि कत्तल खाना कलम की नोक से बंद होना चाहिए। उसका पालन करो या तो लोगों से कहो कि हमने गांधीजी को छोड़ दिया है। तो हिन्दुस्तान के सब नोटों से गांधीजी की तस्वीर मिटाओ। सभी डिग्री कॉलेज, मेडिकल्स कॉलेज, इंजिनिअरींग कॉलेज से गांधीजी की फोटो हटाओ। हिन्दुस्तान के ऑफीसर के जो बड़े-बड़े कक्ष हैं वहाँ से गांधीजी को हटाओ। हिम्मत है तो करो और कहो सबको कि हमने गांधीजी को भुला दिया है। नहीं मानते उनको, और यह हिम्मत नहीं है तो कम-से-कम पाखंड तो मत करो। यह तीखे प्रश्न समाज में आने चाहिए और यह इस लिए की हमारी सभ्यता की लड़ाई है। अस्मिता की लड़ाई है। यह व्यक्तिगत नहीं हैं। राजनीतिक नहीं है। यह सभ्यता का प्रश्न है। यह मान्यता का प्रश्न है। किसी भी राजनीति से बड़ा है ।
भारतीयता में अगर मैं राजनीति को परिभाषित करूँ तो राजनीति के बारे में आप मन में एक छोटा सा कहीं कॉर्नर में बिठा लीजिए कि राजनीति सिर्फ टॉयलेट रुम जैसी ही है इससे ज्यादा कुछ नहीं । घर में टॉयलेट रुम होता है ना, लेकिन पुरा घर टॉयलेट रुम नहीं हो सकता। घर का एक छोटा सा कोना टॉयलेट रुम होता है। जिसमें दस पंद्रह मिनट हम बैठ सकते है। इससे ज्यादा नहीं। राजनीति भी वहीं तक है। क्योंकि उसके आगे भी तो बहुत कुछ है। किचन है। डायनिंग रुम है। ड्राईंग रूम है। बेडरूम है। वो महत्त्व के हैं। टॉयलेट रुम नहीं। पंद्रह मिनट के लिए है बस । तो • राजनीति भी उतनी ही है। इसको इससे ज्यादा सर पे मत चढ़ाए। नहीं तो तकलीफ करेगी आपको। राजनीति को हमने जरुरत से ज्यादा सर पे चढ़ा लिया हैं। और इतना चढ़ा लिया हैं। हर छोटे बड़े काम में किसी न किसी पुढारी को पकड़ के लाते है । हाँमंदिर का उद्घाटन वो पुढारी करता है जो जिंदगी भर बलात्कार करता रहा। जिसने दूसरों के घर जलाए हैं। जिसने दूसरों के घरों में चोरिया लगाई हैं। वो मंदिर का उद्घाटन कर रहा है। राम कथा का उद्घाटन वो पुढारी करता हैं जो चरित्र में बिलकुल रावण
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से भी गया बीता है। कृष्ण कथा का उद्घाटन वो पुढारी करता है जो कंस से भी दस फीट नीचे है नैतिकता में और चरित्र में। हमने सच में इनको सर पे चढ़ा रखा है। हर छोटे बड़े काम में इनके आगे पीछे घूमते रहते हैं, आइये जी हमारे यहा उद्घाटन हैं। कहाँ फंस गए आप इनके चक्कर में।
इसलिए मैंने बहुत गंभीरता से सोच-विचार कर के कहा है। पुढारी और पॉलिटिक्स माने टॉयलेट रुम, घर की जरुरत है। लेकिन पूरा घर वो नहीं है थोड़ा सा हिस्सा है। उतना ही भर रखिए उसको उतना भर रखेंगे। तो यह सीधे रहेगे और एकदम चलते रहेगे आपके कहने पर। जो आपने सिर पे बिठा लिया। अगर पूरा घर टॉयलेट बना लिया तो क्या होने वाला है घर छोड़ के जाना पड़ेगा आपको। इसलिए ज्यादा इनको सिर पर मत चढाइए और ज्यादा इनको इस तरह से तबज्जो मत दीजिए। हर समय उनके आगे पीछे माला लेके खड़े हो जाना। हम जानते हैं कि चरित्र से बहुत घटिया हैं। बेईमान है, चोर है, लुच्चा है, लफंगा है, लंपट है फिर किस लिए मालाए लेके खड़े हो उसके सामने। जब जानते हैं, नहीं जानते तब बात अलग है। आपको मालूम है
सबकुछ खुला है आपके सामने उसका। फिर इतना क्यूँ तबज्जो देना थोड़ा स्वाभिमानी · तो बनिए। भारत के लोग तो स्वाभिमान के लिए गर्दन कटा देते हैं। स्वाभिमान नहीं
छोड़ते। हमने इतना छोड़ दिया हैं तो जब आप थोड़े स्वाभिमान से आत्मसम्मान से खड़े होने लगेगें तो यह पॉलिटीशन आपकी इज्जत करने लगेंगे। जब इनके सामने आप गिड़गिड़ाते और रुलाते हुए खड़े रहे तो आपके सिर पर चढ़के बैठेंगे। इसलिए उनको उनकी जगह पर रहने दीजिए। आप अपनी जगह तलाशिए और समाज में इस प्रश्न को, कत्लखाने के प्रश्न को, भारत की सभ्यता और अस्मिता का प्रश्न बनाइए।
सिर्फ कत्लखाना रोकने तक यह सीमित नहीं है। यह लढाई बहुत बड़ी है। गांधीजी जिसको लड़ना चाहते थे आजादी के बाद वह अधुरी है। इसको पूरा करने का काम हमें करना हैं। गांधीजी इस प्रश्न को पूरी सभ्यता के साथ जोड़कर देखते थे। वो कहते थे कि यह प्रश्न अंग्रेजियत का है। इससे कम नहीं हैं कुछ भी। तो आज भी अंग्रेजियत का प्रश्न हमारे सामने है। इसमें जो छोटे-छोटे प्रश्न आयेगें। उनका समाधान आप करिए। जैसे थ्योरी ऑफ युटीलिटी की बात मैंने कही- बीमार हैं, अपंग है, लुले-लंगड़े पशुओं उनका क्या करना कहिए। हम संभालेगे आप क्यूँ चिंता कर रहे हैं उनकी। हर एक पशुओं का मूत्र और उसका शेण (गोबर) यहीं एक्कट्ठा करे तो साल की लाख रुपये की इंकम है। मैंने आप से कहा इसको हम सिद्ध कर चुके हैं ऐसे ही नहीं कह रहे है। फिर कोई लोग कहेंगे कि कत्तलखाना तो बन गया हैं 40 प्रतिशत पूंजी लग गई है। बहुत बड़ी बिल्डिंग खड़ी हो गई है तो क्या-बन गई है तो उसका दूसरा कोई उपयोग हो सकता है। क्या उपयोग हो सकता है। जहाँ कत्लखाना हो
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सकता है। वहाँ गौ-शाला भी हो सकती है। मैं देख के आया हूँ बहुत अच्छा शेड बनाया है। वहाँ हम कम-से-कम एक हजार गाय पाल सकते हैं और पूरे सोलापूर नगर को गाय का दूध पिलायेंगे।
हमारे वर्धा शहर में ऐसा होता है। गाय पालने वाले किसानों की एक सहकारी. संस्था बनाई हैं। वो रोज 5-6 हजार लीटर दूध पिलाती है शहर के लोगों को। तो यह वर्धा में हो सकता है तो सोलापूर में हो सकता है। तो हम वहाँ गाय पालेगें, दूध पिलायेगें, और अच्छी नस्ल की गाय का दूध जो, हम भूल गए हैं। जैसे राठी नस्ल की गाय होती हैं। राजस्थान में अद्भुत दूध देती हैं। एक गाय पैतीस लीटर दूध देती हैं कोई सोच नहीं सकता कत्लखानों गौशालाओं में बदलें हमने तो इतनी कल्पना की हैं। जर्सी गाय पैतीस लीटर दूध देती है। भारत की स्वदेशी राठी नस्ल की गाय पैतीस लीटर दूध देती हैं और दूध अद्भूत हैं उसका। जो पीते हैं वो जानते हैं उसके बारे में। जो अच्छी-अच्छी गाय लाके रखेंगे हजार-दो हजार। उनका जितना दूध होगा वो सोलापूर में बाँटेगे। बंच गई. तो दही बनायेगें। दही से ताक बनायेगें। ताक दूसरों को देगें और मख्खन हम निकालकर उसका घी बनायेगें। घी यहाँ के मंदिरो में काम आयेगा। मंदिर तो बहुत हैं ना, तुलजाभवानी का मंदिर है। अक्कलकोट का मंदिर है। मंदिरो का शहर हैं यह तो। आजू-बाजू में इतने तीर्थ स्थान है। सब जगह घी काम आयेगा एक और बहुत बड़ा काम आयेगा वो यह कि मैं गांव-गांव में घूमता हूँ। शेतकरी बांधवों से कहता हूँ आप गाय रखते हो। हाँ-रखते हैं। तो उसको गर्भाधान कैसे कराते हो तो कहते हैं- इजेक्शन लगाके उसको गर्भाधान कराते हैं। क्यूँ कराते हो तो मुझे एक मायूसी में बात कहते हैं- राजीव भाई हमारे गांव में बैलं नहीं हैं। सांड नहीं हैं। क्या करे तो चलो हम केन्द्र बनाये यहाँ पर जो अच्छे किस्म के सांड पालने का हो और सब गांव में उपलब्ध करायें।
__राठी नस्ल की गाय है तो राठी नस्ल का सांड भी है। थरपारकर नस्ल का है। साहिवाल नस्ल का है। भारत में चालीस नस्ल के बहुत उत्तम किस्म के सांड हैं। सबको यहाँ लाके रखेंगे जिसको जिसकी जरुरत हों वो गांव में लेके जाए और उसकी गाय को नहीं तो यहाँ छोड़कर जाए। सेवा उसको प्राकृतिक रुप से मिलेगी तो परिणाम क्या निकलेगा। उस गाय की नस्ल सुधरती चली जायेगी। आप जानते हैं यह इंजेक्शन लगा-लगाकर गाय को गर्भाधान किया जाता है। उससे नस्ल खराब होती है और तीन नस्ल के बाद तो गाय दूध देती ही नहीं है। संभव होता है तो इस नस्ल को वापस सुधारें तो प्राकृतिक तरीके से उसको गर्भाधान कराये। उसके लिए सांड उपलब्ध करायें और यह इंजेक्शन देने वाले डॉक्टरों को पता नहीं मन में अंदर आत्मा झंझोरती है कि नहीं। टाईम बे टाईम इंजेक्शन लगा दिया। सोचो क्या होगा। हालाकि वो डॉक्टर मानते गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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हैं कि हमने फिजिओलॉजी पढ़ा है। एनाटॉमी पढ़ा है लेकिन इतने मूर्ख लोग है। उनको अक्कल भी नहीं है कि इसी फिजिओलॉजी, एनाटॉमी के आधार पर मैं उनसे सवाल करता हूँ तुमको क्या मालूम टाईम आया है कि नहीं आया है। बताओ ना कैसे मालूम तुमको। कोई यंत्र है. तुम्हारे पास जो यह बता सके। बे टाईम इंजेक्शन तुमने लगा दिया तो क्या होने वाला है उस गाय का। बहुत बड़ा पाप हो रहा है इस देश में।
तो यह कम-से-कम पाप बंद हो इसके लिए हम एक केन्द्र खोल रहे हैं यहाँ पर और सौ-दो सौ, पाँच सौ अच्छे सांड रखे हैं जो गांव-गांव उपलब्ध हों और तीसरा बड़ा काम यहाँ बहुत सारी संस्थाए हैं जो जीव दया का काम करती हैं वो सब संस्थाए मिलकर वहाँ एक अच्छा हॉस्पिटल चलाएं गाय के लिए, बैल के लिए, बछड़े के लिए, भैंस के लिए, कुत्तों के लिए। क्योंकि हॉस्पिटल की जरुरत है। जैसे हमें जरुरत है वैसे उनको भी जरुरत है। उनके एक्सिडेंट होते रहते हैं बिचारे नंगे पाव घुमते रहते है। कोई तो चाहिए उनकी सेवा करे, तो अच्छा हॉस्पिटल, हो सकता है। पशु -चिकित्सालय हो सकता है और डॉक्टर भी अच्छा हो जो वहाँ पर सेवा दे सकते हैं
और सबसे बड़ा काम वो हो सकता है कि भारत के कास्तकार को, शेतकरी को ट्रेनिंग देने का, गाय को कैसे रखना। अभी तो हम भूल गए जो शेतकरी उसको इंजेक्शन लगवा सकते हैं। इसका माने तो वो भूल गए सब कुछ, फिर गाली देते हैं गाय दूध नहीं देती। देगी कैसे, तुम गाय के मन मर्जी से करो तो वो दूध दे तुम्हे तुम उसके मन के खिलाफ जाओगे कैसे देने वाली है। तो इतना समझ अगर हमारी कम हो गई हैं तो इसका माने तो ट्रेनिंग कॅम्प करने पड़ेगें किसानों के! सेमिनार करने पड़ेंगे। सिम्पोझियमस करने पड़ेंगे। वर्कशॉप करने पड़ेंगे। जिसमें उनको समझाया जाये कि भाई गाय का दूध किन-किन तरीके से बढ़ सकता है।
मैंने एक छोटा एक्सपेरिमेन्ट किया था एक गाय का। आज से छ:-सात साल पहले जिसको कुछ भी दूध नहीं था और उसको एक ही काम किया प्राकृतिक तरीके से उसको गर्भाधान शुरु किया उस गाय ने तीन पीढ़िया दीया और चौथा पीढ़ी अब हमारे 'घर में हैं। वो तेरह लीटर दूध देती है और चार पीढ़ी-पहले वो कोई दूध नहीं देती थी। सिर्फ एक ही काम किया और ऐसे कई छोटे-छोटे काम हैं। जैसे गाय को रोज सुबह ज्वारी की भाकरी और गेहूँ खिला दो देखो दूध कितना बढ़ता है। बिना यूरिया, बिना डिए.पी का घास चारा खिलाओ। देखो दूध कितनी तेजी से बढ़ता है। पानी उसको दिन में दो बार की जगह चार बार पिलाओ दूध बहुत.तेजी से बढ़ता है। यह छोटी-छोटी बातें हैं। यह बस बताने की हैं। किसान इसको कर सकेंगे लेकिन बताने के लिए कोई केन्द्र तो चाहिए। तो यहाँ चलायेगे ना जहाँ कत्तलखाना खुलने वाला है यहाँ केन्द्र चलायेगें। यह बेकार नहीं होने वाला! फिर कहेंगे जी मशीन ले आए। तो क्या बेच दो गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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भंगार के भाव में, खरीदने वाले हैं और किस से खरीद लाए हैं। तो हमारे टॅक्स के पैसे की है ना या तुम्हारे गांव से लाए है, पूछो ना इनको, मशीन तो हमने टॅक्स दिया उस पैसे से लाए हो। हम कहते है बेच दो भंगार के भाव। तुम कौन होते हो परेशान होने वाले। हमारे टॅक्स का पैसा है और कोई खरीदता नहीं तो हम खरीद लेगे वापस।
क्योंकि मैं आपको एक जानकारी दूँ। इंजिनियरींग में यह कोई भी मशीन कभी-भी बेकार नहीं होती। उसका स्वरुप बदल के आप उसको किसी दूसरे काम में ले सकते हैं। अभी जो मशीन आयी है वो काटने के लिए हैं। इसके ब्लेड निकाल दो तो वही मशीन दूसरे काम करेगी। कुछ बेकार नहीं होने वाला उसका ब्लेड को आप बेचना हो तो बेच दो नहीं तो उससे दूसरे काम कर सकते हो जो पशु प्राकृतिक मौत मर रहे हैं। उनकी चमड़ी उतारने में यही ब्लेड काम आयेंगे। तो मशीन बेकार नहीं है बिल्डिंग बेकार नहीं है दोनों काम में आएगा और नगरपालिका कहेगी जी इसका पैसा कौन देगा तो उनसे कहो कि किसके पैसे से बनी है पूछो ना। नगरपालिका कहाँ से पैसा लाई है। कहेंगे केन्द्रसरकार की सब्सिडी है। केन्द्र सरकार ने सब्सिडी कहाँ से दिया है। हमने इन्कम टॅक्स भरा हैं उनमें से दिया है। हमने सेल्स टॅक्स भरा उसमें से दिया। हमने सर्विस टॅक्स दिया है उसमें से दिया है। केन्द्र सरकार कहाँ से लाई। उनके पास क्या पैसा पेड़ पे उगता हैं तो उसमें से वो देते। तो हमारा पैसा है हम तय कर रहे है इसको क्या करना है और अगर वो कहते है कि यह बिल्डिंग हमने कहीं से कर्ज लेकर बनाया है तो ठीक है। बिल्डिंग हम खरीद लेगें और मैं यह मानता हूँ कि सोलापूर में मेरे जैसे लोग अगर झोली फैलाकर भीख मांगने जाये तो इतना तो इकट्ठा हो ही जायेगा। जितना बिल्डिंग का कर्ज चुका सकें। सोलापूर अभी इतना गरीब नहीं हो गया है। इतने जीव दया प्रेमी तो यहाँ निकल ही आयेंगे। जो दस-दस रुपये भी दान करेगें, सौ-सौ रुपये भी दान करेगें तो बिल्डिंग का पूरा पैसा निकल आयेगा।
___ इसलिए कोई चिंता की बात नहीं है। हम इन सब प्रश्नों का समाधान कर सकते हैं। हमारी मान्यता है। हमारी सभ्यता है। हम कहीं तक भी जा सकते हैं उसके लिए और यह कॉन्फिडन्स आप में आ जाए कि यह हमारी मान्यता का प्रश्न है। यह टेक्नोलॉजी का सवाल नहीं हैं लॉ एण्ड ऑडर की प्रॉब्लम नहीं है तो आप ही इसके लिए बहुत कुछ कर देंगे। आदमी जो है ना मान्यता के लिए ही जीता हैं और वो जिंदा तभी तक रहता है जब तक उसकी मान्यता जीवित है। उसी दिन मर जाता है जिस दिन मान्यता चली जाती है उसकी।
तो आप अपनी मान्यता को जीवित रखें। भारतीयता को जीवित रखें। जो सभ्यता हमने पायी है सच में अनमोल है। दुनिया के बहुत सारे देशों की सभ्यताओं गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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का अध्ययन करने के बाद अब मुझे लगता है कि भारत सच में महान है। पहले मुझे यह लगता था। यह लोग कहते हैं भारत महान है। भारत महान है। क्या महानता हैं इसमें। महानता यह हैं कि हम पुर्नजन्म में मानते हैं और वहाँ से सब कुछ हमारी व्यवस्था निकलती हैं और दूसरे मानते ही नहीं हैं तो वहाँ से सब टेन्शन ही टेन्शन निकलती है। पुर्नजन्म में से टेन्शन नहीं निकलेगा। कभी टेन्शन निकलता है जब एक ही जन्म है। तो टेन्शन निकलता हैं एक जन्म में से, पुर्नजन्म में से तो शांति-शांति ही निकलती है। यह हमारी मान्यता। यह हमारी महानता है कि जब विपत्ति आती है। तकलीफ आती है। तो सबसे ज्यादा लोग एक-दूसरे की मदत करते हैं। एक-दूसरे का बलात्कार नहीं करते। एक-दूसरे की चोरी नहीं करते।
मैं कहता हूँ एक आखरी बात फिर खत्म करता हूँ। मेरा एक दोस्त अमेरीका में रहता है। थोड़े दिन पहले उसने मुझे ई-मेल किया। बोलता है राजीव भाई मेरा घर जल गया। तो मैंने कहा- सो गॉड- जल गया तो जल गया। क्या फरक पड़ता है। उसने कहा नहीं-नहीं मैं कुछ बताना चाहता हूँ मैंने कहा बताओ। उसने कहा- जब मेरा घर जला तो सबसे पहले फायरब्रिगेड आया और फायरब्रिगेड ने आग बुझाई। फिर . तुरन्त ही इन्शुरन्स कंपनी वाले आ गए। चेक दे के चले गए। फिर पुलिस आ गई मेरे घर में एफ. आय. आर. नोट करके चले गए। मैंने कहा फिर क्या हैं उसने कहा- मेरा पड़ोसी नहीं आया। मैंने कहा- भाई तू अमेरीका में रहता हैं। भारत नहीं हैं। यह अमेरीका में घर जलता है तो सब कुछ आता हैं पड़ोसी नहीं आता और भारत में अगर घर जल गया तो कोई नहीं आयेगा। सबसे पहले पड़ोसी आयेगा। फायरब्रिगेड वाले कहेंगे अभी पानी नहीं है टंकी में। दो-तीन घंटे बाद पानी भर के आयेंगे। पुलिस कहेगी हमको फुरसत नहीं हैं। यहाँ आओ और एफ.आय.आर करावो। सरकार कहेगी दो-तीन साल बाद इन्शुरन्स का पेमन्ट होगा। कोई नहीं आयेगा। पड़ोसी पहले आ जायेगा यह तो सभ्यता है। इसी सभ्यता को बचाने की लड़ाई है जो दूसरे देशों के पास नहीं है। जॉर्ज बुश और अमेरीका इससे वंचित हैं और हमारे पास यह है जो है अच्छा हैं। तो बचाके रखना है और कई खराब हुआ हैं तो अच्छा बनाना हैं।
हमारी सभ्यता में कहीं कुछ खराबियाँ आ गई हैं तो उसको अच्छा बनाना . है और जो अच्छा है उसको संजोकर रखना है। यह ध्येय है हमारा। इसके लिए हम यह काम कर रहे हैं। तो आप भी हम भी सब मिलके करे। शायद हो जाए और यह होने में असंभव कुछ नहीं हैं। यहाँ आपने वह देखा था। हमारे दो कार्यकर्ता अमरावती से आए हैं। थोड़े दिन पहले उन्होंने वहाँ एक कत्ल खाना बंद कराया और ऐसा ही अमरावती महानगरपालिका ने प्रस्ताव किया बिल्डिंग बनना चालू हो गया। मशीनरी खरीद ली गई। सारे कुर्तक यहाँ हैं वो भी थे लेकिन वहाँ जब समाज एकट्ठा हो गया और उन्होंने कहना शुरु कर दिया। महानगरपालिका ने सरेन्डर कर दिया। प्रस्ताव भी गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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वापस हो गया। मशीन भी वापस चली गई। बिल्डिंग भी वैसे है तो अमरावती में हो सकता हैं। तो यहाँ भी हो सकता हैं। दुनिया में कोई भी काम असंभव नहीं होता , करनेवालों का संकल्प कितना बड़ा है महत्त्व इस बात का है।
आप थोड़ा संकल्प ले लें। गांव के लोगों ने संकल्प ले लिया हैं। ग्यारह गांव वालों ने संकल्प ले लिया है और थोड़े दिन में दस-बीस गांव इनसे जुड जाने वाले हैं। बस संकल्प बढ़ता चला जाये काम हो जायेगा। अब इसमें टेक्नोलॉजी के स्तर पर एक छोटा काम करने की जरुरत हैं महानगरपालिका में जो नगरसेवक हैं इनको एक-एक को समझाने की आवश्यकता हैं। हो सकता हैं बहुत सारे नगरसेवक इसी भ्रम में हो कि थ्योरी ऑफ युटीलिटी ठीक है। तो बेकार हैं तो काट दो। फरक क्या पड़ता हैं। तो उनको यह बताने की जरुरत है। हो सकता हैं वो समझ जाये क्योंकि कि यह नहीं मानना चाहिए कि यहाँ जितने भी हैं वो बहुत ही समझदार होंगे। उनकी समझ दुसरे तरह की हो सकती हैं तो अगर हम उनको ठीक कर पाये समझ के स्तर पर तो वो हमारे साथ आ जायेगें। क्योंकि हमारा उनसे झगड़ा थोड़े ही हैं। हम तो सभ्यता और मान्यता की बात लेके जा रहे हैं। व्यक्तिगत किसी से कोई झगड़ा नहीं हैं। कोई काँग्रेस का हैं कोई बीजेपी का कोई राष्ट्रवादी का कोई शिवसेना का ठीक है। जो जहाँ हैं रहे हमारा तो प्रश्न उससे बड़ा है। बीजेपी से बड़ा है। काँग्रेस से बड़ा है। राष्ट्रवादी से बड़ा है। शिवसेना से बड़ा है। क्योंकि सभ्यता, मान्यताओं का प्रश्न है तो बड़े प्रश्न हैं।
- तो ऐसी एक विनंती मैं आप से करने आया कि आप इस काम को बहुत महत्त्वपूर्ण मानकर जीवन यह बहुत ऊँचे स्थान पर इसको दर्जा देकर थोड़ा प्रयास करें लो जरुर हो जायेगा। आप जितने लोग यहाँ हैं रोज अगर एक घंटा भी इस काम में लगायेगे तो मैं ग्यारंटी देता हूँ यह काम हो जायेगा। कुछ असंभव नहीं हैं इसमें बस एक बार आप को खड़े होने की बात हैं। अब खड़े कैसे हो। कभी-भी महानगरपालिका में बड़ी बैठक होगी तो आप सब लोग कम-से-कम उस दिन नगरपालिका के सामने उपवास करें। सैकड़ों की संख्या में करें। माताएँ भी हों, बहनें भी हों, पुरुष भी हों, बच्चे भी हों, उसको नैतिक असर बहुत होता है। गांधीजी हमेशा इसका इस्तेमाल करते थे। उसमें हम तो शुद्ध होते ही हैं सामने वाले पर असर बहुत होता है और अगर नगरपालिका में ऐसा कुछ होता है। आपने किया कौन जाने उसी दिन महानगरपालिका यह प्रस्ताव वापिस हो जाए तो Solved हो जायेगा प्रश्न।
.. ऐसे ही इन नगरसेवकों के घर-घर जाकर उनको कनविंस करना इस बात से, वो भी बहुत आवश्यक है। उसके लिए यह अपने कार्यकर्ताओं ने छोटी सीडी बनाई हैं वो आप सबको दिखा दीजिए कि कत्लखाने में होता क्या है। अगर एक बार कोई गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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देख लेगा तो अंतर आत्मा हिल जाती है और नगरसेवकों की पत्नियों को और उनके बच्चों को पहले दिखा दीजिए। हाँ यह मैं अनुभव से कह रहा हूँ आपसे। किसीको अगर ठीक करना है ना तो उसकी पत्नी और बच्चों के रास्ते से करें बहुत आसानी से होता हैं। सीधे कहेंगे तो बहुत अहंकार में बात करेंगे। मनुष्य का जो स्वभाव है ना वो सांप
जैसा होता है। सांप आपने देखा है ना। सड़क पे चलेगा ऐसे-ऐसे बहुत टेढ़ा-मेढ़ा चलता हैं। सीधे कभी नहीं चलता। जब घर में घुसता है बिलकुल सीधे जाता है। घर में टेढ़ा-मेढ़ा नहीं चल सकता। क्योंकि बीवी को है ना उसकी बहुत सारी पोल मालूम हैं। बच्चों को सब मालूम है। इसलिए बीवी बच्चों के सामने टेढ़ा नहीं रह सकता। एकदम सीधा है जहाँ वो सीधा है वहीं चोट करिए ना तो उनके बच्चों को उनकी पत्नियों को आप दिखा दीजिए कत्तलखाना कैसा होता है। वो अपने पति को या अपने पिताजी को कनव्हेन्स कर लेगें। आप लढ़ाई जीत लेंगे कुछ मुश्किल नहीं हैं इसमें और बहुत अच्छा होगा जब आप ऐसा कोई धरना प्रदर्शन करे तो उनकी पत्नी और बच्चे भी उसमें शामिल हो। कि बंद करो यह भैय्या। बिलकुल संभव है असंभव जैसा कुछ नहीं है। क्योंकि आखिरकार वो सब भारतीय हैं। सभ्यता में उनके वही मन में हैं कि पुर्नजन्म होगा। पूछ लो नहीं तो जाके मानेंगे तो वो भी कि पुर्नजन्म होगा। उनको अगली बार माय का जन्म मिला और ऐसे ही कत्तल खाने में काटा तो-तो वो आयेगे आपके साथ। यह जरुर होगा कि उनके उपर अपनी-अपनी पार्टियों का थोड़ा प्रेशर आये क्योंकि पार्टिया बहुत ही अहंकार में डूबी हुई हैं। पार्टियों को ऐसे लगता है कि सारा देश वो ही चला रहे हैं। वास्तविकता यह है देश अपनी गति से चल रहा है पार्टियों का उसमें कोई योगदान नहीं है। आप देखो ना। इस देश में जन्म होते हैं। शादी होती है। ब्याह होते है। मरण होते है। पार्टियों की क्या भुमिका है। उसमें कुछ तो देश तो अपनी गति से चल रहा है। पार्टियों को यह अहंकार हो गया हैं कि हम देश चला रहे है। हाँलाकि वो देश को डूबा रहे है चला क्या रहे हैं। 58-59 साल से हमने सबको देख लिया है। एक ने खड्डे में डाला। दूसरे ने उससे भी ज्यादा खड्डे में डाल दिया तो इनको यह अहंकार है तो उस अहंकार के तहत वो दबाव डालेंगे वो दबाव से आप को थोड़ा दो-चार होना पड़ेगा। उससे ज्यादा कुछ तकलीफ नहीं आने वाली।
1000
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गौमाता पंचगव्य चिकित्सा......
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गाय और गोमूत्र की परिभाषा
गोमूत्र के बारे में सामान्य जानकारी
प्रश्न 1 : गौमूत्र किस गाय का लेना चाहिए? . उत्तर - जो वन में विचरण करके, व्यायाम करके इच्छानुसार घास का सेवन करे,
स्वच्छ पानी पीवे, स्वस्थ हो; उस गौ का गौमूत्र औषधिगुणवाला होता है।
शास्त्रीय निर्देश है कि - "अग्रमग्रं चरन्तीनामोषधीनां वने वने। प्रश्न 2 : गौमूत्र किस आयु की गौ का लेना चाहिए? उत्तर - किसी भी आयु की- बच्ची, जवान, बूढ़ी-गौ का गौमूत्र औषधि प्रयोग में
काम में लाना चाहिए। प्रश्न 3 : क्या बैल, छोटा बच्चा या वुद्ध बैल का भी गौमूत्र औषधि उपयोग . . में आता है? उत्तर - नर जाति का मूत्रं अधिक तीक्ष्ण होता है, पर औषधि उपयोगिता में कम
नहीं है, क्योंकि प्रजाति तो एक ही है। बैलों का मूत्र सूंघने से ही बंध्या (बाँझ) को सन्तान प्राप्त होती है। कहा है :
___ "ऋषभांष्चापि, जानामि राजन् पूजितलक्षणान्। .. येषां मूत्रामुपाघ्राय, अपि बन्ध्या प्रसूयते।।"
(संदर्भ-महाभारत विराटपर्व) . अर्थ : उत्तम लक्षण वाले उन बैलों की भी मुझे पहचान है, जिनके मूत्र को सूंघ
. लेने मात्र से बंध्या स्त्री गर्भ धारण करने योग्य हो जाती है। प्रश्न 4. : गौमूत्र को किस पात्र में रखना चाहिए? उत्तर - गौमूत्र को ताँबे या पीतल के पात्रा में न रखें। मिट्टी, काँच, चीनी मिट्टी का
पात्र हो एवं स्टील का पात्र भी उपयोगी है। . प्रश्न 5 : कब तक संग्रह किया जा सकता है ? उत्तर - गौमूत्र आजीवन चिर गुणकारी होता है। धूल न गिरे, ठीक तरह से ढंका -
हुआ हो, गुणों में कभी खराब नहीं होता है। रंग कुछ लाल, काला ताँबा .. व लोहा के कारण हो जाता है। गौमूत्र में गंगा ने वास किया है। गंगाजल
भी कभी खराब नहीं होता है। पवित्र ही रहता है। किसी प्रकार के .
हानिकारक कीटाणु नहीं होते हैं। प्रश्न 6 : जर्सी गाय के वंश का गौमूत्र लिया जाना चाहिए या नहीं? उत्तर - नहीं लेना चाहिए। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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आधुनिक रसायन शास्त्र के अनुसार गौमूत्र के रासायनिक तत्वों का रोगों पर प्रभाव विवरण
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यूरिया
क्र.सं. रासायनिक
- रोगों पर तत्त्वों के प्रभाव तत्त्वों के नाम . नाइट्रोजन .. मूत्रल, वृक्क का प्राकृतिक उत्तेजक, रक्त विषमयता
'को निकालता है। - गंधक (सल्फर) बड़ी आँत की पुरःसरण क्रिया को बल मिलता है।
रक्त शोधक है। अमोनिया यह शरीर धातुओं और रक्त संगठन को स्थिर करता है। . 4. . अमोनिया गैस - फेफड़ों व श्वसन अंगों को संक्रमण से बचाता है। तांबा (कॉपर) . अनुचित मेद. (चर्बी) को बनने से रोकता है। शरीर
की जीवाणुओं से रक्षा करता है। ___6. आयरन . रक्त में उचित लाल कणों का निर्माण बनाये रखता
है। कार्य शक्ति स्थिर रखता है।
मूत्र उत्सर्ग पर प्रभाव करता है। कीटाणु नाशक है। यूरिक एसिड हृदय शोथ नाशक, मूत्रल होने से विषशोधक है। 9. . . फॉस्फेट मूत्रवाही संस्थान से सिकता कण (पथरी कण)
निकालने में सहायक है। !0. . . सोडियम रक्त शोधक, अम्लता नाशक है। . in. पोटेशियम - आमवात नाशक क्षुधा कारक है। मांसपेशी दौर्बल्य,
आलस्य मिटाता है।...... 12. मैंगनीज़ : कीटाणुनाशक, कीटाणु बनने से रोकता है, गैंगरीन
सड़ांध से बचाता है। ............... 13. कार्बोलिक एसिड कीटाणु नाशक, कीटाणु बनने से रोकना, गैंगरीन, :: ::: संडाघ से बचाता है।
. 14. कैल्सियम रक्त शोधक, अस्थि पोषक, जन्तुघ्न, रक्त,स्कन्दक है। 15. लवण (नमक) दूषित व्रण, नाड़ी व्रण, मधुमेह जन्य संन्यास,
विषमयता, अम्लरक्तता. नाशक, जन्तुघ्न। 16. .... विटामिन ए,बी, ... विटामिन-बी जीवनीय तत्व, उत्साहस्फूर्ति बनाये रखना, . . सी,डी,ई. रखना, घबराहट, प्यास से बचाता है। अस्थि पोषक
प्रजनन शक्ति दाता है। 17. अन्य मिनरल्स रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा .... ...... .....67
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जल..
दुग्ध शर्करा
तृप्ति रहती है। मुख शोष, हृदय को ताकत देता
है, स्वस्थ करता है। प्यास, घबराहट को मिटाता है। एन्जाइम्स पाँचक रस बनाते हैं। रोग प्रतिरोधक शक्ति
(आरोग्यकारक तत्व) बढ़ाते हैं। जीवनदाता है, रक्त को तरल बनाए रखता
है। तापक्रम को स्थिर रखता है। हिप्युरिक एसिड मूत्र के व्दारा विषों को बाहर निकालता है। क्रियाटिनिन जन्तुघ्न है। हार्मोन्स . आठ मास की गर्भवती गाय के गौमूत्र में हारमोन्स
ही होते हैं। जो स्वास्थ्यवर्धक है। 24.. स्वर्ण क्षार जन्तुघ्न रोग निरोधक शक्ति बढ़ाता है।
.
आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र के गुण
आयुर्वेद, वेदों से लिया गया चिकित्सा का अंग है। वेद ब्रह्म वाक्य जनार्दनम् हैं। इसलिए आप्तोपदेश कहे गए हैं। गौमूत्र प्रभाव से भी निरोग करता है। “अचिन्त्य शक्ति'' इति प्रभाव कहा है। जिस शक्ति का चिन्तन (वर्णन) नहीं किया जा सकता है। गौमूत्र के आयुर्वेद में गुण बताए हैं।
. आयुर्वेद के अनुसार वर्णन - रस: कटु, तिक्त, कषाय, मधुर, लवण है। पंचरस युक्त है। गुण : पवित्र, विषनाशक, जीवाणुनाशक, त्रिदोषनाशक, तांत्रिक, मेधशक्तिवर्धक अकेला ही पीने से सभी रोग नाशक है। पूरे गुण आगे वर्णित हैं। वीर्य : उष्ण वीर्य है। विपाक : कटु है। प्रभाव : तांत्रिक, सर्वरोग नाशक है। यह कायिक, मानसिक रोगों का नाश करता है। यह योगियों का दिव्य पान है, जिससे वे दिव्य शक्ति पाते थे। गौमूत्र में गंगा ने वास किया है। सर्वपाप (रोग) नाशक है। अमेरिका में भी अनुसंधान से सिद्ध हो गया है कि विटामिन 'बी' तो गौ के पेट में सदा ही रहता है।
. यह सतोगुण वाला है। विचारों में सात्विकता लाता है। 6 मास लगातार पीने से आदर्मी की प्रकृति सतोगुणी हो जाती है। रजोगुण, तमोगुण का नाशक है। शरीरगत विष भी पूर्ण रूप से भूत्र, पसीना, मलाश के द्वारा बाहर निकालता है। मनोरोग नाशक है। आयुर्वेद में कहा गया है :
सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान के 45 वें अध्याय में गौमूत्र के पूरे गुण लिखे गये हैं। सुश्रुत संहिता 5000 वर्ष पुराना आयुर्वेद का ग्रंथ है। आयुर्वेद वेदों से लिया गया है। चरक संहिता, राजनिघंटु, वृद्धवागभट्ट, अमृतसागर में वर्णन आया है। 'अष्टांग संग्रह के अनुसार
___ “गव्यं सुमधुरं किन्चिद् दोषघ्नं कृमी कुष्ठनुत् . . . गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
. . . : 68
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कण्डुन्घ्न, शमयेत, पीतं सम्यक् दोषोदरे हितम्।"
(चरक सु. अ 1 श्लोक 100) सुश्रुत संहिता में निम्न रूप से फिर वर्णन है कि तीक्ष्णान्युष्णानि, कटुनी, तिक्तानी, लवणानुरसानी, लघुनि, शोधनानि, कफवातघ्न, कृमि, मेदो, विष, गुल्मार्श, उदर, कुष्ठं, शोफारोचक, पाण्डुरोग, हृद्यांनी दिपनानिच सामान्यः। (सूत्रा अ. 45 श्लोक 217)
- सुश्रुत सू. अ. 45 श्लोक 217 का पुन: इसी आर्ष ग्रंथ में वर्णन है। गौमूत्रं कटु तीक्ष्णोष्णं सक्षारस्नान वातलम् लघ्वाग्नि, दिपनं, मध्यं, पित्तल, कफवात, शुलं, गुल्मोदरानाहविरे कास्थापनादिषु, मूत्र प्रयोग साध्येषु गव्यं, मूत्र प्रयोजयेत सु.अ. 220-221 गौमूत्र कड़वा, चरका, कषैला, तीक्ष्ण, उष्ण, शीघ्र पाँचक, मस्तिष्क के लिए शक्तिवर्धक, कफ वात हरने वाला, शूल (Colic) गुल्म, उदर, आनाह, कुण्डु (Itching Pain) खुजली, मुखरोग नाशक है। यह किलास (Lucodermo) कुष्ठ, आम, बस्तिरोग नाशक है। नेत्र रोग नाशक है। इससे अतिसार (Amebiasis) वायु के सब विकार, कास, शोथ, उदररोग, कृमि, पाण्डु, तिल्ली, कर्णरोग, श्वास, मलावरोध, कामला, बिल्कुल ठीक होते हैं।
चिकित्सा में गौमूत्र का ही प्रयोग करना चाहिए। सभी मूत्रों में गौमूत्र में गुण अधिक है। अत: गौमूत्र का ही प्रयोग करना चाहिए। आयुर्वेद के अति प्रचलित ग्रंथ भाव प्रकाश संग्रह में भाव मिश्र ने निम्नलिखित गुण लिखे हैं।
गौमूत्रं, कटु, तीक्षोष्ण, क्षार तिक्त कषायकम्। लघ्वाग्नि दीपनं, पित्त कृत्कफ वात नुत।।।
शुल, गुल्म, उदर, आनाह, कण्डु अक्षि मुखरोगजित्।
किलासगद्वातम् वस्ति कुष्ठ नाशकम्।। कास, स्वासापहम् शोथ, कामला पाण्डु रोगहरत्। कण्डु विलास गद्, शूलं, मुख अक्षिरोगान्।।।
' गुल्म, अतिसार, मरुदामय, मुखरोधान्। कास, सकुष्ठ जठर, कृमि, पाण्डुरोगान।।
अध्याय 19 श्लोक 1 से 6 भावप्रकाश पूर्वखंड नि.ध. अर्थ: गौमूत्र चरका, तेज, गरम, क्षार, कड़वा, कषैला, लवण अनुरस, लघु अग्नि दीपक, मस्तिष्क के ज्ञान तन्तुओं को बढ़ाने वाला, वात कफ नाशक पित्त करने वाला है। पेट में दर्द, वायुगोला, पेट के अन्य रोग, खुजली, नेत्र रोग मुख के सभी रोगों को नष्ट करता है। श्वित्र (सफेद दाग) (लिकोडरमा), रक्त विकार, सभी कुष्ठ ठीक हो जाते हैं। कास, श्वास, शोथ, पीलिया (कामला), रक्त की कमी, दस्त लगना (अतिसार), वायु के सभी रोग, सभी कीटाणु नष्ट करता है। गौमूत्र एक (अकेला) ही पीने से विकार नष्ट कर देता है। सभी प्रकार के मूत्रों से गोमूत्र में गुण अधिक है। लीवर, तिल्ली, उदर रोग, सूजन, दस्त साफ न आना, बवासीर, कर्ण में डालने से कान के रोग नष्ट होते हैं।
'आम वृद्धि, मूत्र रोग, स्नायु विकार, अस्सी प्रकार के वात रोग नष्ट होते हैं। सारांश है कि सम्पूर्ण रोगों पर एक अकेला गौमूत्र ही पूर्ण सक्षम है। फारसी ग्रन्थ, 'अजायबुल्मखलुकात' में अनेक असाध्य रोगों की गौमूत्र से चिकित्सा का वर्णन है।
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.. रोग क्यों होते हैं ?
रोग होने के निम्न कारण हैं। विभिन्न जीवाणुओं के किसी प्रकार से शरीर में विभिन्न अंगों पर आक्रमण करने के कारण। . शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति की कमी के कारण. दोषों (त्रिदोष) के विषम हो जाने के कारण। . आरोग्यदायक तत्त्वों (जींस) की किसी प्रकार की कमी के कारण। कुछ खनिज तत्वों की कमी के कारण। मानसिक विषाद के कारण। किसी भी औषधि के अति प्रयोग के कारण। विद्युत तरंगों की कमी के कारण। . वृद्धापकाल में ऊपरोक्त किन्हीं के कारण। .. आहार में पौष्टिक तत्त्वों की कमी के कारण। आत्मा की आवाज के विरुद्ध काम करने के कारण! पूर्वजन्मों के पापों के कारण। (जिन्हें कर्मज व्याधियाँ कहते हैं) भूतों के शरीर में प्रवेश से भूताभिष्यंग रोग हो जाते हैं। माता पिता के वंश परम्परा से भी रोग होते हैं। विषों के द्वारा रोग होते हैं।
13.
.
15.
गौमूत्र रोगों पर कैसे विजयी होता है?
गौमूत्र में किसी भी प्रकार के कीटाणु नष्ट करने की चमत्कारी शक्ति है। सभी कीटाणुजन्य व्याधियाँ नष्ट होती हैं। गौमूत्र दोषों (त्रिदोष) को समान बनाता है। अतएव रोग नष्ट हो जाते हैं। . गौमूत्र शरीर में यकृत (लिवर) को सही कर स्वच्छ खून बनाकर किसी भी रोग का विरोध करने की शक्ति प्रदान करता है। गौमूत्र में सभी तत्त्व ऐसे हैं, जो हमारे शरीर के आरोग्यदायक तत्त्वों की.. कमी की पूर्ति करते हैं। गौमूत्र में कई खनिज, खासकर ताम्र होता है, जिसकी पूर्ति से शरीर के खनिज तत्त्व पूर्ण हो जाते हैं। स्वर्ण क्षार भी होने से रोगों से बचने की यह शक्ति देता है। मानसिक क्षोभ से स्नायु तंत्र (नर्वस सिस्टम) को आघात होता है।
माता पंचगव्य चिकित्सा
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7.
गौमूत्र को मेध्य और हृद्य कहा गया है। यानी मस्तिष्क एवं हृदय को शक्ति प्रदान करता है। अतएव मानसिक कारणों से होने वाले आघात से हृदय की रक्षा करता है और इन अंगों को होने वाले रोगों से बचाता है। किसी भी प्रकार की औषधियों की मात्रा का अतिप्रयोग हो जाने से जो तत्त्व शरीर में रहकर किसी प्रकार से उपद्रव पैदा करते हैं उनको गौमूत्र अपनी विषनाशक शक्ति से नष्ट कर रोगी को निरोग करता है। विद्युत तरंगें हमारे शरीर को स्वस्थ रखती हैं। ये वातावरण में विद्यमान हैं। सूक्ष्मातिसूक्ष्म रूप से तरंगें हमारे शरीर में गौमूत्र से प्राप्त ताम्र के रहने से ताम्र के अपने विद्युतीय आकर्षक गुण के कारण शरीर से आकर्षित होकर स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। गौमूत्र रसायन है। यह बुढ़ापा रोकता है। व्याधियों को नष्ट करता है। आहार में जो पोषक तत्त्व कम प्राप्त होते हैं उनकी पूर्ति गौमूत्र में विद्यमान तत्त्वों से होकर स्वास्थ्य लाभ होता है।
आत्मा के विरुद्ध कर्म करने से हृदय और मस्तिष्क संकुचित होता है, जिससे शरीर में क्रिया कलापों पर प्रभाव पड़कर रोग हो जाते हैं। गौमूत्र. सात्विक बुद्धि प्रदान कर, सही कार्य कराकर इस तरह के रोगों से बचाता है। शास्त्रों में पूर्व कर्मज व्याधियाँ भी कही गयी हैं जो हमें भुगतनी पड़ती हैं। गौमूत्र में गंगा ने निवास किया है। गंगा पाप नाशिनी है, अतएव गौमूत्र पान से पूर्व जन्म के पाप क्षय होकर इस प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार भूतों के शरीर प्रवेश के कारण होने वाले रोगों पर गौमूत्र इसलिए प्रभाव करता है कि भूतों के अधिपति भगवान शंकर हैं। शंकर के शीश पर गंगा है। गौमूत्र में गंगा है, अतएवगौमूत्र पान से भूतगण अपने अधिपति के मस्तक पर गंगा के दर्शन कर, शान्त हो जाते हैं। और इस शरीर को नहीं सताते हैं। इस तरह भूताभिष्यंगता रोग नहीं होता है। जो रोगी वंश परंपरा से रोगी हो, रोग के पहले ही गोमूत्र कुछ समय पान करने से रोगी के शरीर में इतनी विरोधी शक्ति हो जाती है कि रोग नष्ट हो जाते हैं। विषों के द्वारा रोग होने के कारणों पर गौमूत्र विषनाशक होने के चमत्कार . के कारण ही रोग नाश करता है। बड़ी-बड़ी विषैली औषधियाँ गौमूत्र से शुद्ध होती हैं। गौमूत्र, मानव शरीर की रोग प्रतिरोधनी शक्ति को बढ़ाकर, रोगों को नाश करने की क्षमता देता है। Immunity Power देता है। निर्विष होते हुए यह विषनाशक है। Anti-Toxic है।
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पंचगव्य गौ दूध, गौ दही, गौ घी (धृत) गौमूत्र और गोमय, से ___बनने वाले कुछ स्वास्थ्यरक्षक योग एवं बनाने की विधियां
1. गौमूत्र अर्क . . 15. त्रिफलादि घृत 2. गौमूत्र घनवटी
16. अष्टमंगल घृत 3. गौमूत्र हरड़े चूर्ण .
17. ब्राह्मी घृत 4. गौमूत्र हरितकी वटी
18. अर्जुन घृत 5. गौमूत्रासव
19. जात्यादि घृत 6. बालपाल रस
20. गौमय वातनाशक तेल . 7. नारी संजीवनी
21. गोपाल नस्य 8. गौमूत्र पुनर्नवादि अर्क
22. गौमय मलहम 9. गौमूत्र पुनर्नवादि वटी
23. गौमय दादनाशक बट्टी 10. गौमूत्र गुड़मारादि अर्क ___24. अंगराग चूर्ण (गौमय उबटन). 11. गौमूत्र मधुमेहारी वटी
25. अंगराग बट्टी (गौमय साबुन) 12. गौतक्रासव
26. गौमयदंतमंजन 13. गौतक्रारिष्ट
27. गौमय नवग्रह धूप 14. पंचगव्य घृत
___ 1. गौमूत्र अर्क ...... (मेदोहर अर्क - रसतंत्रसार व सिद्ध प्रयोग). घटक : 1. गौमूत्र 1 लीटर
2: केसर 0.6 ग्राम · निर्माण विधि : काँच के आसवन यंत्र (अर्क बनाने के पात्र - Distillation plant) में गौमूत्र को भरकर उसका 1/2 लीटर अर्क खींच लें। अर्क निकलने के मुँह पर केसर को पतले कपड़े की शिथिल पोटली में बाँधकर रखें जिससे अर्क में केसर मिश्रित हो जाये। केसर का प्रयोग लाभदायक है लेकिन अनिवार्य नहीं। गुणधर्म : यह अर्क पूर्वोक्त सभी बीमारियों में उपयुक्त है। विशेषत: कोलेस्ट्रॉल को कम करने और वजन को घटाने के उपयोग में आता है। गौमूत्र घनवटी के साथ लेने से अधिक लाभ होता है। मात्रा : 10 से 20 मि. ली. दिन में दो बार 3-4 गुणे पानी के साथ या गौमूत्र से 1/3 गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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मात्रा में ।
विशेष : यदि कोई शराबी शराब छोड़ने का इच्छुक हो तो केवल 15 दिन संयम रखकर इस अर्क का सेवन करे 16 वें दिन शराब की जगह अर्क का सेवन करने की ही इच्छा होगी । मात्रा 25 से 40 मिली (बिना पानी मिलाये ) जब भी शराब की तलब हो । कम से कम 6 महीने तक इसका सेवन करें जिससे शराब के दुष्प्रभावों का नाश होकर शरीर स्वस्थ होगा।
घटक : गौमूत्र
निर्माण विधि : गौमूत्र को अग्नि पर औटाकर उसका घन बनाया जाता है। घन से आधे-आधे ग्राम की या देशी चने के आकार की गोलियाँ बनाई जाती हैं। नमी से बचाने के लिए गोबर की राख तथा शुद्ध गैरीक ( गेरू) को अनुमान से मिलाकर उसमें गोलियों को लिपटाकर प्लास्टिक की डिब्बी में रख देना चाहिए ।
गुणधर्म : यह घनवटी पूर्वोक्त सभी बीमारियों में उपयुक्त है। इसे गौमूत्र अर्क के साथ लेने से अधिक लाभ होता है !
मात्रा : 1 से 2 गोली दिन में दो बार। छोटे बच्चे को न दें।
घटक :
1. छोटी हरड़े
2. अजवायन 3. काली मिर्च
4. यवक्षार
( जवाखार )
2. गौमूत्र घनवटी
( भाव प्रकाश निघुण्ट - मूत्रवर्गः )
5. काला नमक
6. सेंधा नमक
7. जीरा
8. गौमूत्र
9. हींग
3. गौमूत्र हरड़े चूर्ण
ग्रंथ
अध्याय
भा. प्र. नि. हरीतक्यादिवर्गः
भा. प्र नि.
14
भा. प्र. नि
7
भा. प्र. नि
93.
मात्रा
35 ग्राम
20 ग्राम
5 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
आवश्यकतानुसार
10 ग्राम
भा. प्र. नि
भा. प्र. नि
भा. प्र. नि
भा. प्र. नि
भा. प्र. नि
90
86
19
मूत्रवर्ग
:
10. गाय का घी
निर्माण विधि : सर्वप्रथम तीन दिन तक हरड़े को गौमूत्र में भिगाइये। हर दिन ताजा गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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गौमूत्र लें। हरड़े को धूप में सुखाने के बाद उसे धीमी आँच पर एरण्डी के तेल में भूनिए । · जब सिक जाये, गौमूत्र की चिपचिपाहट मिट जाय तब उतार लें।
10 ग्राम गाय के घी में 10 ग्राम हींग आँच में भून लें। अब भूनी हुई हरड़े और हींग में उपरोक्त सामग्री डालकर कूट पीसकर छलनी से छान लें। अब इस छने हुए चूर्ण को अच्छी तरह खरल में घोटें । बारीक से बारीक रगड़ने से ही गुणकारी होगा। गुणधर्म : पाँचन शक्ति को सुदृढ़ बनाता है, भोजन में रूचि जगाता है, कब्ज, गैस, उदर रोगों में अत्यंत लाभदायक, वात और कफ का नाश करता है। पेट में गड़बड़ी होने पर सिर में दर्द हो तो लाभ होता है । आजकल रासायनिक खाद व कीटनाशकों के कारण भोजन विषैला हो गया है। इस चूर्ण को भोजन के साथ सब्जी, दालों में डाक खाने या नित्य सलाद में लेने से इसका विषैलापन काफी घट जाता है। इसलिए बिना रोग के भी नित्य सेवन करना अत्यंत लाभदायक है।
मात्रा : 1 से 3 ग्राम सुबह-शाम भोजन के बाद गर्म जल से ।
4. गौमूत्र हरीतकी वटी
घटक :
1 लीटर
भा. प्र. नि. भा. प्र. नि.
मूत्रवर्गः हरीतक्यादिवर्गः
50 ग्राम
1. गौमूत्र 2. हरितकी चूर्ण 'निर्माण विधि : कलईदार कढ़ाई में 1 लीटर गौमूत्र में 50 ग्राम हरितकी चूर्ण मिलाकर औटाइये। जब गाढ़ा हो जाय तब उसे चूल्हे से उतारकर अपने आप ठंडा होने देना चाहिए । फिर करछुल की मदद से खुरच कर 1/2 - 1 /2 ग्राम की गोलियाँ बनाना चाहिए। नमी से बचाने के लिए गोबर की राख तथा शुद्ध गैरीक को अनुमान से मिलाकर उसमें गोलियों को लिपटाकर प्लास्टिक की डिब्बी में रखें ।
गुणधर्म : समस्त उदर रोगों में लाभकारी
मात्रा : 2-2 गोली सुबह-शाम पानी से
5. गौमूत्रासव (अष्टांग हृदय )
घटक :
1. चित्रक की जड़ 100 ग्राम
2. सोंठ
3. पीपर
4. मरीच चूर्ण
5. गौमूत्र
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
100 ग्राम
100 ग्राम
100 ग्राम
4 लीटर
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6. शहद या गुड़
1 किलो 7. गौघृतं .
आवश्यकतानुसार . 8. धायटी पुष्प
100 ग्राम निर्माण विधि : पहली विधि : गौमूत्र को पहले उबालें वनस्पति घटकों का चूर्ण गौमूत्र में मिलाइये फिर उसमें शहद अच्छी तरह से मिलाकर घृत सिद्ध मिट्टी के पात्र या wooden wax में छोड़कर धायटी पुष्प संधान विधि से संधान करें और 15-20 दिनों के बाद जब : किण्वन की क्रिया हो जाय तब छानकर बोतल में भर दें। दूसरी विधि : गौमूत्र को पहले उबाल लें ताकि इसकी अमोनिया गैस निकल जाए और गंध नष्ट हो जाये। बर्तन मिट्टी का हो। फिर छानकर गुड़ को गलाकर पुन: गर्म करें। एक बार पुन: गुड़ सहित छानें। आजकल गुड़ बनाते समय रसायनों का उपयोग किया जाता है, ऐसा गुड़ काम में ना लें, यह संधान 15 दिन तक रहना चाहिए। फिर
बिना हिलाये ऊपर से आसव निथार लें ताकि इसका गाद भाग यूरिया तलछट में नीचे रह - जाये और गौमूत्र आसव पतला व पारदर्शक बनें.
गुणधर्म : पाँचन शक्ति को सुदृढ़ बनाता है, भोजन में रूचि जगाता है, यकृत को बल देता है, उदर रोगों का नाश करता है। साँस की तकलीफ, खाँसी, दमा में विशेष लाभदायक, कुष्ठ रोग में भी लाभदायक। जितना पुराना आसव होगा उतना ही अधिक गुणकारी होगा। मात्रा : गौमूत्र से आधी मात्रा, दोनों समय भोजन के बाद पानी के साथ। विशेष : मधुमेह के रोगी पहली विधि से बना आसव ही लें, दूसरी विधि से बना आसव नहीं। .. ..
. . ..
6. बालपाल रस
घटक : 1. ब्राह्मी (मण्डूकपर्णी) 2. अश्वगंधा
250 ग्राम 250 ग्राम
द्र. गु. वि.. व. चं. द्र. गु. वि. द्र. गु. वि
प्रथम अध्याय 1 . भाग। . . नवम अध्याय 343 सप्तम अध्याय 234
3. शतावरी
250 ग्राम
भा. प्र. नि.
मूत्रवर्ग:
4. गौमूत्र 5. शक्कर 6. खाने का रंग
20 लीटर आवश्यकतानुसार
। ग्राम
ENER
गामातापचगव्य चाक
त्सा 22
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7. नींबू का सत
5 ग्राम निर्माण विधि : घटक 1 से 3 तक बारीक पीसकर गौमूत्र में डालकर आसवन यंत्र . से अर्क निकालकर उसमें शक्कर डालें। ठंडा होने के बाद खाने का रंग और नींबू का सत डालकर बोतल भरें। गुणधर्म : बालक के अपचन, अफरा, पेट के कीटाणु (कृमि), दूध फेंकना, उल्टी, दूध का पाँचन न होना, रोग प्रतिरोधक शक्ति की कमी, ग्रोथ फेक्टर की कमी, दाँत निकलने के समय के कष्ट, मानसिक दुर्बलता, अविकसित मस्तिष्क व अन्य बाल रोगों से बचाव व चिकित्सा होती है। यकृत व फेफड़ों के रोगों से भी रक्षा होती है। नित्य देते रहने से बालक स्वस्थ रहता है।. मात्रा : गौमूत्र से आधी मात्रा
7. नारी संजीवनी घटक : 1. शतावरी
250 ग्राम द्र. गु. वि सप्तम अध्याय 234 . 2. अश्वगंधा
250 ग्राम द्र. गु. वि नवम अध्यायः 343 3. अशोक . . . 250 ग्राम द्र. गु. वि सप्तम अध्याय 261 4. गौमूत्र
20 लीटर 5. शक्कर
आवश्यकतानुसार 6. खाने का पीला रंग 1ग्राम 7. नींबू का सत . 5 ग्राम निर्माण विधि : घटक 1 से 3 तक बारीक कूट पीसकर गौमूत्र में डालकर आसवन यंत्र से अर्क निकालकर उसमें शक्कर डालें। ठंडा होने के बाद खाने का रंग और नींबू का सत डालकर बोतल भरें। गुणधर्म : महिलाओं के मासिक धर्म की किसी भी प्रकार की गड़बड़ी (Menstrual Disorder) श्वेत प्रदर (Leucorrhe), रक्त प्रदर तथा इनके द्वारा होनेवाली सब प्रकार की कमजोरी, कमर दर्द, हाथ-पाँव फूलना, सिरदर्द, जी घबराना, चक्कर आना, दिल की कमजोरी, पेट में गैस बनना, हथेली पैर के तलवे जलना, दिमागी गर्मी, क्रोध आना, नींद कम आना, मुहाँसे आदि रोग ठीक होते हैं। हमेशा लेते रहने से महिलाओं के स्वास्थ्य व सुंदरता की रक्षा होती है। । मात्रा : गौमूत्र से आधी मात्रा।
8. गौमूत्र पुनर्नवादि अर्क
घटक :
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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1. पुनर्नवा . . . . 100 ग्राम द्र. गु. वि. अष्टम अध्याय मूत्रलादिवर्ग 2. गोखरू की जड़ 50 ग्राम द्र. गु. वि. 682 3. उपलसरी की 50 ग्राम . द्र. गु. वि. अष्टम अध्याय जड़ (सारिवा)
- रक्त प्रसादन 4. नीम के पत्ते 25 ग्राम . द्र.गु. वि. . 57 द्वितिय अध्याय 5. गुलबेल (गुडूची) 25 ग्राम द्र. गु. वि. नवमअध्याय 342 6. दारूहल्दी 25 ग्राम द्र. गु. वि. षष्ठ अध्याय 222 7. दूर्वा
25 ग्राम द्र. ग. वि. सप्तम अध्याय 242 8. कंकोल - 10 ग्राम द्र. गु. वि. अष्टम अध्याय 274 . १. गौमू. . 3.2 लीटर भा. प्र. नि. मूत्रवर्गः निमार्ण विधिः सभी घटक बारीक कूट पीसकर छानकर गौमूत्र में डालकर आसवन यंत्र द्वारा 1/2 भाग अर्क निकालें। अर्क को छानकर काँच की बोतल में भरकर बोतल को हवाबंद करना चाहिए। गुणधर्म : यकृत व गुर्दे की बीमारियों में विशेष लाभदायक। मूत्र विरेचक, शरीर में आई सूजन को दूर करता है। पुनर्नवादि वटी के साथ लेने पर पूरा लाभ मिलता है। मात्रा : 2-2 चम्मच सुबह-शाम या वैद्यकीय सलाह के अनुसार।
9: गौमूत्र पुनर्नवादि वटी
घटक : 1. पुनर्नवा की जड . 100 ग्राम द्रव्य गुण विज्ञान अष्टम अध्याय 267 2. गोखरू की जड 50 ग्राम द्र. गु. वि 3. उपलसरी की. 50 ग्राम द्र. गु. वि अष्टम. अध्याय 363 • जड़ सारिवा 4. नीम के पत्ते 25 ग्राम
द्वितिय अध्याय 57 5. गुलबेल-गुडूची 25 ग्राम
नवम अध्याय 342 6. दारूहल्दी 25 ग्राम
षष्ठ अध्याय 222 7. दूवा
25 ग्राम द्र. गु. वि सप्तम अध्याय 242 8. कंकोल
10 ग्राम द्र. गु. वि अष्टम अध्याय 274 9. गौमूत्र
1/2लीटर द्र. गु. वि. मूत्रवर्ग : निर्माण विधि : सभी घटक बारीक कूट पीसकर कपड़छान कर गौमूत्र के साथ कढ़ाई मे डालकर मंदाग्नि में औटाकर गाढ़ा बनने दें। फिर अपने आप ठंडा होने पर 1/2 - 1/2 ग्राम की गोलियाँ बनायें। नमी से बचाने के लिए गोबर की राख तथा शुद्ध गैरीक को अनुमान से मिलाकर उसमें गोलियों को लिपटाकर प्लास्टिक की डिब्बी में रख गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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दें।गुणधर्म : यकृत व गुर्दे की बीमारियों में विशेष लाभदायक। मूत्र विरेचक, शरीर में आई सूजन को दूर करता है, पुनर्नवादि अर्क के साथ लेने पर पूरा लाभ मिलता है। मात्रा : सुबह शाम 1-1 गोली या वैद्यकीय सलाह के अनुसार
10 गौमूत्र गुड़मारादि अर्क घटक : 1. आँवला 100 ग्राम . व. चं. .. 127 . 2. हल्दी . . 100 ग्राम
द्वितीय अध्याय,
कुष्ठघ62 3. मेथी .. 100 ग्राम ___4. गुड़मार . . . 50 ग्राम 5. जामुन बीज 50. ग्राम
अष्टम अध्याय, . . ..
. म ग संग्रहणीय 284. 6. करेला . 50 ग्राम द्र. गु. वि. अष्टम अध्याय 298 7. कडु चिरायता 50 ग्राम . 8: गौमूत्र
2 लीटर निर्माण विधि : सभी घटक बारीक कूट पीसकर छानकर गौमूत्र में डालकर आसवन यंत्र द्वारा 1/2 भाग अर्क निकालें। अर्क को छानकर काँच की बोतल में भरकर बोतल को हवाबंद करना चाहिए। गुणधर्म : मधुमेह नियंत्रण हेतु मात्रा : वैद्यकीय सलाह के अनुसार
11. गौमूत्र मधुमेहारी वटी
घटक : 1. आँवला 100 ग्राम ...
2. हल्दी . 100 ग्राम . 3. मेथी 100 ग्राम
4. गुड़मार 50 ग्राम 5. जामुन बीज
___50 ग्राम ..
50 ग्राम - 6. करेला .... 50 ग्राम
7. कडु चिरायता . 50 ग्राम
.
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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8. गौमूत्र 2 लीटर निर्माण विधि : सभी घटक बारीक कट पीसकर कपड़छान कर गौमूत्र के साथ कढ़ाई में डालकर मंदाग्नि में औटाकर गाढ़ा बनने दें। फिर अपने आप ठंडा होने पर 1/2 -1/2 ग्राम की गोलियाँ बनायें। नमी से बचाने के लिए गोबर की राख तथा शुद्ध गैरीक को अनुमान से मिलाकर उसमें गोलियों को लिपटाकर प्लास्टिक की डिब्बी में रख देना चाहिए। गुणधर्म : मधुमेह नियंत्रण हेतु ..
12 -गौतक्रासव घटक :
गाय का मट्ठा 1 लीटर . . (पिसा.) सैंधा नमक 50 ग्राम
राई का चूर्ण-50 ग्राम . . हल्दी चूर्ण -50 ग्राम निर्माण विधि : गाय के मढे में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर, उसमें बाकी तीनों चीजें अच्छी तरह मिलाकर रख देवें। फिर किसी मिट्टी के बर्तन या कांच के मर्तबान में भर कर मुँह बंद रखकर संधान करें। चौथे दिन इसे छानकर बोतलों में भरें। निथार कर छानना चाहिए ताकि राई के छिलके और हल्दी कम आ सके। बाद में बोतलों में भी हल्दी जम जाने के बाद निथारते रहें। गुणधर्म : अर्श (बवासीर) के लिये हर सूरत में लाभकारी। पेट के सब रोग, भूख न लगना, अन्न न पचना, गैस, अजीर्ण ठीक होते हैं। यह पाँचक है। यकृत, प्लीहा को लाभ पहुंचाता है।
सब प्रकार के बवासीर, अजीर्ण, अफारा, गैस, भूख की कमी, घबराहट, कब्ज, सभी प्रकार के पेट रोगों का नाशक है। स्वादिष्ट पाँचक पेय है। . मात्रा : छोटे चार चम्मच भोजन के बाद पानी मिलाकर दो बार पीने से फायदा होता है। सब ऋतु में सबके लिए बराबर मात्रा में रोजाना लेना स्वास्थ्यरक्षक है। आयुवर्धक पेय है। स्वादिष्ट है। निरापद, सरल योग है। गैस नाशक है। .
13. गौ तक्रारिष्ट
(आयुर्वेद सार संग्रह - आसवारिष्ट प्रकरण) घटक : 1. अजवायन
120 ग्राम 2. आंवला
120 ग्राम 3. हरड़े
__120 ग्राम 4. काली मिर्च
120 ग्राम गौमाता पंचगव्य चिकित्सा गामाता 'पचगव्य चिकित............... ... .. ..
79
.
..
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5. पाँचों नमक
40 ग्राम
( सेंधा नमक, बीड नमक, काला नमक, सोवर्चलनमक, समुद्री नमक)
6. गौ तक्र (खट्टी छाछ) 6 लीटर
निर्माण विधि : उपरोक्त प्रमाण में सभी घटक लेकर उनका चूर्ण बनाकर एक पात्र में डाल उसमें तक डाल दें और पात्र का मुख बंदकर, 1 माह बाद छानकर रख लें। गुणधर्म : उत्तम दीपक, पाँचक, रूचिवर्धक, यकृत उत्तेजक, मल को बांधनेवाला ; शोथ, गुल्म, अर्श, कृमि, प्रमेह, संग्रहणी, अतिसार और उदर रोगों को नष्ट करता है । विशेषत : पुरानी संग्रहणी और अतिसार में उपयुक्त ।
मात्रा : 10-15 मिली दिन में दो बार भोजन के बाद पानी के साथ।
14- पंचगव्य घृत
घटक :
गोबर रस - 100 मि.ली. दूध 100 मि.ली.
गौघृत - 100 मि.ली.
निर्माण विधि: सबको एक कढ़ाई में डालकर आग पर चढ़ावें । मंद मंद आँच देवें । सिर्फ घी ही पकने के बाद शेष रहे, तब ठण्डा करके छान लेवें ।
मात्रा : 5 से 10 मिली लीटर दिन में दो बार भोजन के पूर्व तथा दो दो बूंद नाक में रात को सोते समय या तकलीफ के समय
घटक : 1. त्रिफला
2. भांगरे का रस / क्वाथ
गाय का दही
गौमूत्र - 100 मि.ली.
गुण : पुरानी सर्दी, सायनस, मिर्गी, दिमाग की कमजोरी, पागलपन, पाण्डु, शोथ, भयंकर कामला (Jaundice), बवासीर, गुल्म, ग्रह बाधा, विषमज्वर, बुद्धि मन्दता, याददाश्त की कमी पर लाभकारी है।
3. असे का रस / क्वाथ
4. आंवले का रस / क्वाथ
15. त्रिफलादि घृत
(रसतंत्रसार व सिद्धप्रयोग संग्रह भाग 1 घृततैल प्रकरण)
5. शतावर का रस / क्वाथ
6. गिलोय का रस / क्वाथ
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
-
100 मि.ली.
750 ग्राम
750 मिली
750 मिली
750 मिली
750 मिली
750 मिली
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7. बकरी का दूध
750 मिली 8. पीपल
20 ग्राम . 9. मिश्री
20 ग्राम 10. मुनक्का
20 ग्राम . - 11. हरड़े
20 ग्राम 12. बहेड़ा
20 ग्राम 13. आँवला
20 ग्राम 14. नील कमल
20 ग्राम 15. क्षीरकाकोली
20 ग्राम · (अभाव में मुलहठी) -- 16. असगंध की जड़
20 ग्राम 17. कटेली
20 ग्राम 18. गोघृत
750 ग्राम 19. जल
आवश्यकतानुसार निर्माण विधि : त्रिफला 750 ग्राम का 8 गुणा जल में क्वाथ करें। अष्टमांश जल शेष रहने पर छानकर उपयोग में लें। यह क्वाथ और घटक 2 से 7 आपस में मिला दें। अब घटक 8 से 17 को इनमें डाल दें। अब इसे घी में पकायें और तुरंत उतारकर छान ले। गुणधर्म : नेत्र रोग, रतौंधी (रात में न दिखना), मोतियाबिंद, नेत्र की लाली, अंधता, मंददृष्टि, वातज, पित्तज, कफज नेत्र रोग, शारीरिक बल, पाँचन शक्ति और शारीरिक कांति को बढ़ाता है। मस्तिष्क की निर्बलता को दूर करता है, जीर्ण कब्ज से मुक्ति दिलाता है। मात्रा : 5-10 ग्राम दिन में दो बार, सुबह-रात्रि को दूध के साथ या दोपहर और रात्रि को भोजन के प्रारंभ में प्रथम ग्रास के साथ।
।
. 16. अष्टमंगल घृत (रसतंत्रसार व सिद्धप्रयोग - घृततैल प्रकरण)
घटक : 1. बच 2 कुठ 3. ब्राह्मी
4. सफेद सरसों : 5. अनंतमूल
10 ग्राम 10 ग्राम 10 ग्राम 10 ग्राम 10 ग्राम
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
..
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6. सेंधा नमक 10 ग्राम 7. पीपल .. 10 ग्राम 8. गोघृत 280 ग्राम 9. जल
12 लीटर निर्माण विधि : सभी औषधियों को समभाग लेकर कल्क करें, बाद में कल्क के चार गुणा जल मिलाकर यथा विधि घृत सिद्ध करें। गुणधर्म : यह घृत बालकों को रोज चटाने से उनकी बुद्धि बढ़कर धारणशक्ति तीव्र होती है एवं बालक स्वस्थ और पुष्ट बनता है। मात्रा : 1-1 ग्राम सुबह और शाम मिश्री में या भोजन के पहले ग्रास में मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें।
17. ब्राह्मी घृत (रसतंत्रसार व सिद्ध प्रयोग-प्रथम खंड घृततैल प्रकरण) . घटक : • 1. ब्राह्म का स्वरस
4 किलो 2. गोघृत
2 किलो 3. सोंठ
10 ग्राम 4. कालीमिर्च
10 ग्राम 5. सफेद निसोत
10 ग्राम 6. काली निसोत
10 ग्राम 7. शंखाहुली ।
10 ग्राम 8. दन्तीमूल
10 ग्राम 9. पीपल
10 ग्राम 10 वायविडंग
10 ग्राम 11. सातला की छाल
- 10 ग्राम 12. अमलतास फली का गूदा 10 ग्राम 13. जल
.... 8 लीटर . निर्माण विधि : ब्राह्मी का स्वरस 4 किलो और गोघृत 2 किलो लें। घटक 3 से 12 को जल में पीसकर कल्क करें। फिर सबको 8 लीटर जल में मिला मंदाग्नि . पर पकाकर घृत सिद्ध करें। गुणधर्म : यह घृत उन्माद, कुष्ठ, अपस्मार, मगज की निर्बलता और मंदाग्नि को दूर करता है। मलावरोध का नाश करता है। मात्रा : 5-10 ग्राम दिन में दो बार।
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा :
...
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घटक :
1. मूर्च्छित गोघृत
2. अर्जुन की छाल
घटक : 1. चमेली के पत्ते
2. नीम के पत्ते
3. पटोल पत्र
4. मैनसिल
5. हल्दी
6. दारू हल्दी
7. कुटकी
8. मजीठ
18. अर्जुन घृत (आयुर्वेद सार संग्रह घृततैल प्रकरण)
3. जल
निर्माण विधि : सर्वप्रथम अर्जुन की छाल 1 किलो लेकर जौ कूट करें। तत्पश्चात इसमें 16 किलो जल मिलाकर क्वाथ करें। 4 किलो जल शेष रहने पर उतारकर छान लें। बाद में अर्जुन की छाल 100 ग्राम लेकर उसका कल्क बनावें । फिर ऊपरोक्त क्वाथ, घृत और कल्क को मिलाकर घृतपाक विधि से घृतपाक कर लें । घृत सिद्ध हो जाने पर छानकर सुरक्षित भर लें।
गुणधर्म : हृदय रोग और वात की तकलीफ में अत्यंत लाभदायक।
मात्रा : 2.5 से 5 ग्राम मिश्री के साथ चटाकर ऊपर से गर्म गाय का दूध पिलायें । 19. जात्यादि घृत
(रसतंत्रसार व सिद्धप्रयोग संग्रह - घृततैल प्रकरण )
9. मुलहठी
10. करंज के पत्ते
17. नेत्रबाला
1 किलो
2 किलो और अर्जुन कल्क 100 ग्राम 16 किलो
10 ग्रांम
10 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
10 ग्राम
३० ग्राम
10 ग्राम
12. अनंतमूल
13. नीला थोथा
14. गाय का घी
500 ग्राम
निर्माण विधि : घटक़ 1 से 12 तक सभी 1-1 तोला पानी में घोटकर लुगदी बना लें।
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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फिर लुगदी से चार गुणा घी और 16 गुणा जल मिलाकर मंद आँच पर पकाकर घृत . सिद्ध करें। घृत पक जाने पर छान लें, फिर मोम और नीले थोथे का फूला 1-1 तोला मिलाकर मलहम जैसा घृत बना लें। गुणधर्म : पुराना नाड़ी व्रण (नासूर), गंभीर व्रण या फोड़ा और सभी घावों में उपयुक्त। मात्रा : आवश्यकतानुसार केवल बाह्य प्रयोग के लिए
. 20. गौमय वातनाशक तेल घटक: 1. सरसों का तेल
1 लीटर 2. गौमूत्र
500 मिली. भा. प्र. नि मूत्रवर्गः 3. आंबा हल्दी
50 ग्राम द्र. गु. वि. द्वितिय अध्याय (ख) 4. लहसुन / (सोन) 50 ग्राम द्र.गु. वि. प्रथम अध्याय 26 5. निर्गुडी पत्र 50 ग्राम
प्रथम अध्याय 24 6. कपूर
10 ग्राम द्र. गु. वि. तृतिय अध्याय 76 7. अजवायन सत 10 ग्राम द्र. गुं. वि पंचम अध्याय 203 . निर्माण विधि : सरसों का तेल कढ़ाई में डालकर उसे मंदाग्नि पर रख सभी घटक मिला दें, जब केवल तेल शेष रहे तो ठंडा होने पर बोतल में भर लें। गुणधर्म : संधिवात, स्नायुवात, मोच, सूजन पर मालिश हेतु .
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21. गोपाल नस्य घटक : 1. गौवत्स गोबर
100 ग्राम (गाय के तत्काल पैदा हुए बछड़े-बछिया का गोबर जो बछड़े के गर्भ में रहते समय -- ही बना हो) 2. आक का दूध
100 ग्राम 3. काली मिर्च
50 ग्राम निर्माण विधि : ऊपरोक्त गोबर को खरल में डालकर खूब खरल करें। फिर आक का दूध डालकर खूब खरल करें। सूख जाने पर दूध डालते रहें और लगातार
खरल करते रहें। बाद में अच्छी तरह सुखा लें। इस सूखे गोबर से आधा भाग काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर फिर खूब रगड़ें। तत्पश्चात कपड़े से छानकर शीशी में भरकर रखें। गुणधर्म : मिर्गी (Epilepsy), दिमाग में कीड़े (कृमि), नाक का पीनस, हिस्टीरिया, बेहोशी, सायनस, सिर दर्द आदि में एक नली में इस नस्य को रखकर दोनों सुरों में फूंके। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
..
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एक-दो मिर्गी के दौरे में फूँक देने से मिर्गी नष्ट होती है।
22. गौमय मलहम
घटक :
1. गोबर के छाणे का बारीक चूर्ण
2. गेरू मिट्टी
3. गौमूत्र क्षार
4. नीला थोथा
5. पेट्रोलियम जेली
1 किलो
निर्माण विधि : पहले नीला थोथा पीसकर फिर छोटी सी कढ़ाई में मंद आँच पर भून लें। रंग सफेद होने पर उतार लें। फिर सभी चीजों को बारीक रगड़कर पेट्रोलियम जेली में मिलाकर खरल में फिर से ख़ूब रगड़ें। बाद में शीशियों भर लें। कभी कोमल स्थान पर लगाने से जलन हो तो थोड़ा घी मिलाकर हल्का करें ।
घटक :
1. मुलतानी मिट्टी
2. ताजा गोबर
3. बावची के बीज
गुणधर्म : दाद (एक्जिमा), खाज, सिरोसिस, दूषित घाव पर लाभकारी । मात्रा : त्वचा रोग पर गौमूत्र से वह स्थान धोकर दिन में दो-तीन बार मलहम लगायें । सावधानी : आँखों में न लगने पायें ।
23. गौमय दादनाशक बट्टी
घटक :
500 ग्राम
400 ग्राम भा. प्र. नि धात्वादिवर्ग 100 ग्राम भा. प्र. नि.
1 कि. ग्रा.
1 कि. ग्रा.
200 ग्राम
गौमाता
50 ग्राम
4. नीम के पत्तों
का काढ़ा 1 भाव आवश्यकतानुसार द्र. गु. वि.
162
निर्माण विधि : ताजे गोबर में छने हुए नीम के पत्तों के काढ़े को मिलाकर मोटी चलनी से एक बार पुनः छानें। इसमें घटक 2-3 के कपड़छन चूर्ण को अच्छी तरह से मिलाकर साँचे या डाई में दबाकर टिकिया बना लें। और धूप में सुखा दें। गुणधर्म : चर्मरोग पर गुणकारी, विशेषत: दाद, एक्जिमा पर मात्रा : पानी या गौमूत्र के साथ लेप करें।
भा. प्र. नि.
भा. प्र. नि.
द्र.गु.वि. द्वितिय अध्याय 66
24. अंगराग चूर्ण (गौमय उबटन )
• मात्रा
ग्रंथ
अध्याय
पंचगव्य चिकित्सा
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1. ताजा गोबर 1 किलो
भा. प्र. नि. 2. मुलतानी मिट्टी 1 किलो भा. प्र. नि. 3. गेरू का चूर्ण 100 ग्राम भाः प्र. नि. धात्वादिवर्गः 4 हल्दी का चूर्ण 50 ग्राम ।
द्र. गु. वि.
द्वितिय अध्याय
कुष्ठघ्र-62 5 दूध ऐच्छिक व आवश्यकतानुसार (रूखी त्वचा के लिए लाभकारी) निर्माण विधि : 1. घटक 2,3,4 का कपड़छन चूर्ण बनाकर रख लें। इसे ताजे गोबर में अच्छी तरह मिलाकर सुखा लें। सुखने पर इसका पुन: कपड़छन चुर्ण बनाकर भर लें। 2. दूसरी विधि में गोबर के साथ-साथ दूध का भी मिश्रण कर दें। गुणधर्म : चेहरे की चमक बढ़ाता है, मुँहासों से छुटकारा दिलाता है, त्वचा पर पड़े काले दागों को मिटाता है, पसीने की दुर्गध का नाश करता है, त्वचा को पोषण देता है, खाज-खुजली मिटाता है, त्वचा में छिपे कीटाणुओं का नाश करता है, बालों की रूसी से छुटकारा दिलाता है, रक्त चाप को सामान्य करने में मदद करता है, जोड़ों के दर्द में लगाकर धूप में बैठने या.सेक देने से आराम पहुँचाता है। तेज बुखार में सिरदर्द या तेज जुकाम होने पर ललाट पर मोटा लेप लगायें, मिनिटों में आराम मिलेगा, 2-3 घंटों में बुखार भी उतर जायेगा। ... ... . .. . . . . उपयोग की विधि : दूध, दही, छाछ या पानी के साथ प्रयोग करें। रूखी त्वचा वाले दूध . या दही के साथ, तैलीय त्वचावाले. पानी के साथ और बालों में छाछ के साथ प्रयोग करें।
. 25. अंगराग बट्टी (गौमय साबुन) , घटक : मात्रा ग्रंथ . अध्याय 1. ताजा गोबर . 1 किला . भा. प्र. नि. .
. . 2. मुलतानी मिट्टी 1 किलो . . भा. प्र..नि. : 3. गेरू का चूर्ण 100 ग्राम .भा. प्र. नि धात्वादिवर्गः 4. हल्दी का चूर्ण 50 ग्राम द्र. गु. वि. .. द्वितिय अध्याय
। कुष्ठघ्र 62 . - 5 नीम के पत्तों का 500 मि.ली. भा. प्र. नि..
. काढ़ा : निर्माण विधि : ताजे गोबर में छने हुए नीम के पत्तों के काढ़े को मिलाकर मोटी चलनी से एक बार पुनः छानें। इसमें घटक 2,3 और 4 के कपड़छन चूर्ण को अच्छी तरह से मिलाकर साँचे या डाई में दबाकर टिकिया बना लें। और धूप में सुखा दें। गुणधर्म : चेहरे की चमक बढ़ाता है, मुँहासों से छुटकारा दिलाता है, त्वचा पर पड़े काले दागों को मिटाता है, पसीने की दुर्गध का नाश करता है, त्वचा को पोषण देता .
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है, खाज-खुजली मिटाता है, त्वचा में छिपे कीटाणुओं का नाश करता है। विशेष : शरीर पर लगाने से पहले आधे-एक मिनिट के लिए बट्टी. को पानी से नम कर दें।
26. गौमय दंतमंजन घटक : . 1. गोबर के कंडों 500 ग्राम अ. स. 261-62
का कोयला 2. सादा कपूर
10 ग्राम . व. चं. .. 57 3. अजवायन का सत 10 ग्राम भा. प्र. नि. हरीतक्यादिवर्ग: 15 . 4. लौंग
___40 ग्राम . भा. प्र. नि. कपूरादिवर्ग: 21 5. नीलगिरी का तेल 20 ग्राम .. 6. सेंधा नमक 100 ग्राम भा. प्र. नि. हरीतक्यादिवर्ग: 86 . निर्माण विधि : गोबर के कण्डों को पहले साफ-सुथरी जगह या कढ़ाई मे रखकर । जलायें। जब धुंआ निकलना बंद हो जाय तो एक साफ तगारी से ढंक दें और उसकी . आसपास की हवा बंद करने के लिए टाट का कपड़ा किनारों पर दबा दें। लगभग आधे घंटे के बाद खोलकर काला मजबूत कोयला निकाल लें। कच्चा कंडा या जली सफेद राख काम में नहीं लें। बड़ी मात्रा में बनाना हो तो जमीन में गड्डा खोदकर ईट सीमेंट से प्लास्टर कर उसमें कोयला बनाया जा सकता है। ऊपर से किसी बड़े लोहे के बर्तन से ढककर हवा बंद की जा सकती है। इस तरह बने कोयले को खरल में बारीक करके सूती कपड़े में रगड़कर छानकर सूक्ष्म चूर्ण बना लें। • अब सेंधा नमक के बारीक चूरे को 300 ग्राम पानी में मिलाकर अच्छी तरह घोल लें। इसे कोयले के चूरे पर धीरे-धीरे छिड़ककर अच्छी तरह मिलाते जायें। इसे तीन-चार घंटे तक ऐसे ही पड़ा रहने दें, जिससे सम मात्रा में नमी फैल जाय। इसी समय कपूर और अजवायन के सत को एक शीशी में मिलाकर एक घंटे रखें। यह अपने आप घुलकर तेल बन जायेगा और लौंग को खरल में एकदम बारीक कर लें। अंत में नीलगिरी के तेल और कपूर-अजवायन के सत के तेल व लौंग के चूर्ण को गोबर कोयले के चूर्ण पर छिड़ककर अच्छी तरह मिलायें और तुरंत पैक कर दें। गुणधर्म : दाँत का दर्द, दाँत से खून आना, मुँह की दुर्गध, दाँतों में कीड़ा लगना, दाँतों का मैल, दाँतों की कमजोरी आदि में अत्यंत लाभदायक। मात्रा : आवश्यकतानुसार।
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-लं सं o oooo
पीपल.
100 ग्राम
27. गौमय नवग्रह धूप घटक : ताजा गोबर . 2 किलो
200 ग्राम अक्षत (अखंड चावल) 150 ग्राम मैदा लकड़ी
आवश्यकतानुसार आक
100 ग्राम पलाश
100 ग्राम खैर
100 ग्राम अपामार्ग
100 ग्राम
100 ग्राम गूलर
100 ग्राम शमी
100 ग्राम 12. दूर्वा
100 ग्राम : 13. दर्भ 14. लकड़ी का बुरादा 2 किलो .
. निर्माण विधि : सबसे पहले घटक 5 से 13 में घी को अच्छी तरह मिलायें। अब इसमें लकड़ी का बुरादा और ताजे गोबर को डालकर अच्छी तरह मिला लें। इसमें मैदा लकड़ी मिलाकर उंगली के आकर की नली (प्लास्टीक, पीतल या एल्युमिनियम) में डालें और इसी आकर की लकड़ी से धक्का देकर निकालें। बत्ती को धूप में सुखा लें। गुणधर्म : गोबर में लक्ष्मी का वास है। अत: प्रतिदिन गोबर को जलाने से दारिद्रय का नाश होता है। आक-सूर्य, पलाश-चंद्र, खैर-मंगल, अपामार्ग-बुध, पीपल-गुरू, गुलर-शुक्र, शमी-शनी, दूर्वा-राहू, और दर्भ-केतू ग्रहों की समिधा हैं। इनका धूप करने से नवग्रहों की शांति होती है। अत: प्रतिदिन गौमय नवग्रह समिधा को सुबह-शाम . प्रज्ज्वलित करना चाहिए। . इसके धुएँ से मच्छर व कीट भाग जाते है। इसकी भस्म घाव और फोड़ें-फुसीं के ऊपर बहुत ही अच्छी औषधि है। कटी हुई त्वचा पर इस भस्म को लगाने से खून रूखता है. और घाव जल्दी भरता है। इसकी भस्म को शहद के साथ चाटने से खाँसी में आराम मिलता है।
इस अध्याय में जगह-जगह निर्माण विधि में क्वाथ, शोधन, कल्क, स्वरस शब्दों का प्रयोग किया गया है। इनका अर्थ नीचे स्पष्ट किया गया है।
क्वाथ - प्रकरण (आयुर्वेद सारसंग्रह) .. 1 तोला क्वाथ की औषधि को जौकूट (मोटा चूर्ण) करके मिट्टी के पात्र
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अथवा कलईदार बर्तन में सोलह गुणे पानी में मन्द अग्नि पर पकावें। जब चौथाई पानी शेष रहे, तब कपड़े से छान लें। क्वाथ बनाते समय बर्तन का मुँह खुला रहना चाहिए। ढक देने से क्वाथ भारी हो जाता है, ऐसी शास्त्राज्ञा है। क्वाथ मिट्टी के कोरे बर्तन में बनाना चाहिए।
द्रव्य शोधन (रसंतंत्रसार व सिद्धप्रयोग). : आयुर्वेद शास्त्र के नियमानुसार द्रव्यों का शोधन करना अर्थात् निर्दोषकर गुण वर्द्धन करना, अनावश्यक बाधक अंश, विजातीय, द्रव्य अथवा मल को दूर करना या उसमें स्थित दोष को घटाकर गुण की वृद्धि करना आदि हेतुओं में से किसी एक या अनेक हेतुओं की सिद्धी के लिये औषध द्रव्य पर जो संस्कार किया जाता है, उसे शोध न कहते हैं।
कल्क - (रसतंत्रसार व सिद्धप्रयोग - कषाय प्रकरण)
ताजी औषधियों को बिना जल मिलायें और सूखी औषधियों में जल मिलाकर चटनी (लुगदी) तैयार करने को कल्क कहते हैं। यदि कल्क में प्रक्षेप शहद, घृत या तैल मिलाना हो तो कल्क से दो गुणा शक्कर या गुड़ मिलाना हो तो कल्क के समान और कांजी आदि द्रव्य पदार्थ मिलाना हो तो कल्क से चार गुणा मिलाना चाहिये।
स्वरस (रसतंत्रसार व सिद्धप्रयोग) ताजी औषधियों को कूट निचोड़कर रस निकाला जाता है। उसे स्वरस कहते हैं। सूखी औषधियों को कुचल या कूट, दो गुणा जल में 24 घण्टे भीगा, छानकर रस निकाल लेने को भी स्वरस कहते हैं एवं सूरवी औषधियों को 8 गुने जल में पका चतुर्थाश जल शेष रहने पर छान लेने से भी स्वरस का काम निकलता है। .
इस अध्याय में संदर्भ ग्रंथो के लिए संक्षिप्त रूपों का प्रयोग किया गया है। उनका पूरा नाम निम्नानुसार है भा. प्र. नि..
भाव प्रकाश निघण्टु अ. हृ.
अष्टांग हृदय र तं. सा. सि. प्र. रस तंत्रसार व सिद्ध प्रयोग . व. चं.
वनौषधि चंद्रोदय द्र. गु. वि.
द्रव्य गुण विज्ञान आ. सा. सं.
आयुर्वेद सार संग्रह
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गौमूत्र का सामान्य रोगों पर घरेलू प्रयोग
गाय के मूत्र में कार्बोलिक एसिड होता है, जो कीटाणुनाशक है। अत: शुद्धि और स्वच्छता बढ़ाता है। प्राचीन ग्रंथों ने इस दृष्टि से ही गौमूत्र को पवित्र कहा है। आधुनिक दृष्टि से गौमूत्र में नाइट्रोजन, फॉस्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड, पोटेशियम और सोडियम होता है। जिन महीनों में गाय दूध देती है, उस वक्त गौमूत्र में लेक्टोज रहता है, जो हृदय और मस्तिष्क के विकारों में बहुत हितकारी है। स्वर्णक्षार भी मौजूद है, जो रसायन है।
गौमूत्र सेवन के लिए जो गाय रखी जाती है वह निरोगी और युवा होनी चाहिए। जंगल क्षेत्र और चट्टानें जहाँ गायों को प्राकृतिक वनस्पति खाद्य रूप में मिल सके, वहाँ गायों का मूत्र अधिक अच्छा है। गौमूत्र को स्वच्छ वस्त्र से छानकर सुबह में खाली पेट पीना चाहिए। गौमूत्र पान के एक घंटे तक कुछ खाना नहीं चाहिए। स्तन पान करने वाले बच्चों को गौमूत्र देते समय माता को भी गौमूत्र देना चाहिए। मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को गौमूत्र पान से शान्ति और शक्ति मिलती है। सामान्यतः युवा व्यक्ति एक छटाँक से एक पाव मात्रा में गौमूत्र सेवन कर सकते हैं।
गौमूत्र का उपयोग विभिन्न रोगों में कैसे हो सकता है वह हम क्रमश: दे रहे हैं। 1." . कब्ज के रोगी को उदरशुद्धि के लिए गौमूत्र को अधिक बार कपड़े से
'छानकर पीना चाहिए। 2. * गौमूत्र में हरड़े चूर्ण भिगोकर धीमी आँच से गरम करना चाहिए। जलीय
भाग जल जाने पर इसका चूर्ण उपयोग में लिया जाता है। गौमूत्र का सीधा सीधा सेवन जो नहीं कर सकता है उसे इस हरड़े का सेवन करने से गौमूत्र . का लाभ मिल सकता है। जीर्णज्वर, पाण्डु, सूजन आदि में किराततिक्त (चिरायता) के पानी मे गौमूत्र मिलाकर, सात दिन तक सुबह और शाम पीना चाहिए। खाँसी, दमा, जुकाम आदि विकारों में गौमूत्र सीधा ही प्रयोग में लाने से तुरंत ही कफ निकलकर विकार शमन होता है। पाण्डुरोग में हर रोज सुबह खाली पेट ताजा और स्वच्छ गौमूत्र कपड़े से छानकर नियमित पीने से 1 माह में अवश्य लाभ होता है। बच्चों को खोखली खाँसी होने पर गौमूत्र को छानकर उसमें हल्दी का चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए। ... उदर के किसी भी रोग में गौमूत्र पान से लाभ होता है। जलोदर में रोगी केवल गौदूध सेवन करे और साथ साथ गौमूत्र में शहद
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मिलाकर नियमित पीना चाहिए। चरक के मतानुसार लोहे के बारीक चूर्ण को गौमूत्र में भिगोकर इसको दूध के साथ सेवन करने से पाण्डुरोग में जल्दी लाभ होता है। सेवन से पहले खूब छानना जरूरी है।
शरीर की सूजन में केवल दूध पीकर साथ में गौमूत्र का सेवन करना चाहिए। 11. . गौमूत्र में नमक और शक्कर समान भाग में मिलाकर सेवन करने से ..
उदर रोग शमन होता है। गौमूत्र में सैंधव नमक और राई का चूर्ण मिलाकर पीने से उदररोग मिटता है।
आँखों की जलन, कब्ज, शरीर में सुस्ती और अरुचि में गौमूत्र में शक्कर मिलाकर लेना चाहिए। खाज, फुन्सियाँ, विचर्चिका में गौमूत्र में आबाहल्दी चूर्ण मिलाकर पीना .. चाहिए।
प्रसूति के बाद सुवा रोग में स्त्री को गौमूत्र पिलाने से अच्छा लाभ होता है। 16. .
चर्म रोगों में हरताल, बाकुची तथा मालकांगनी को गौमूत्र में मिलाकर सोगठी बनाकर इसे दूषित त्वचा पर लगाना चाहिए। , सफेद कुष्ठ में बाकुची तथा मालकांगनी को गौमूत्र में मिलाकर सोगठी बनाकर इसे दूषित त्वचा पर लगाना चाहिए। सफेद कुष्ठ में बावची के बीज को गौमूत्र में अच्छी तरह पीसकर लेप करना चाहिए। शरीर में खुजली होने पर गौमूत्र से मालिश और स्नान करना चाहिए। कृष्णजीरक को गौमूत्र में पीसकर इसका शरीर पर मालिश और गौमूत्र स्नान करने से चर्म रोग मिटते हैं। ईंट को खूब तपाकर गौमूत्र में इसे बुझाकर, कपड़े में लपेटकर यकृत और प्लीहा (तिल्ली) की सूजन पर सेंक करने से लाभ होता है। बंगला कहावत है - .. लीवराय, पिड़ाय किम्, दुख पावे, मतिहीन वैद्य।
- गौमूत्रेण, सेक, दव, सुख पावे सद्य।।। 22. कृमि रोग में डीकामाली का चूर्ण गौमूत्र के साथ देना चाहिए।
सुवर्ण, लोह वत्सनाभ, कुचला आदि का शोधन करने के लिए और भस्म : बनाने के लिए औषध निर्माण में गौमूत्र का उपयोग होता है। वह विषैले द्रव्यों का विषप्रभाव नष्ट करता है। शिलाजीत की शुद्धि भी गौमूत्र से ।
होती है। 24. चर्मरोगों में उपयोगी महामरिच्यादि तेल और पंचगव्य घृत बनाने में गौमूत्र
उपयोग में लाया जाता है। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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हाथी पाँव (फाइलेरिया) रोग में गौमूत्र सुबह में खाली पेट लेने से यह रोग . मिट जाता है। गौमूत्र का क्षार उदर वेदना में, मूत्ररोध में तथा वायु व अनुलोमन करने के लिए दिया जाता है। गौमूत्र सिर में अच्छी तरह मलकर थोड़ी देर तक लगे रखना चाहिए। सूखने के बाद धोने से बाल सुन्दर होते हैं। . कामला रोग में गौमूत्र अतीव उपयोगी है। गौमूत्र में पुराना गुड़ और हल्दी चूर्ण मिलाकर पीने से दाद, कुष्ठरोग और हाथी पाँव में लाभ होता है। गौमूत्र के साथ एरंड तेल एक मास तक पीने से संधिवात और अन्य वातविकार नष्ट होते हैं। बच्चों को उदर वेदना तथा पेट फूलने पर एक चम्मच गौमूत्र में थोड़ा नमक मिलाकर पिलाना चाहिए। बच्चों को सूखा रोग होने पर एक मास तक, सुबह और शाम गौमूत्र में केशर मिलाकर पिलाना चाहिए। शरीर में खाज-खुजली हो तो गौमूत्र में नीम के पत्ते पीसकर लगाना चाहिए। गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर में स्फूर्ति रहती है, भूख बढ़ती है और रक्त का दबाव स्वाभाविक होने लगता है। - क्षय रोग में गोबर और गौमूत्र की गंध से क्षय के जंतु का नाश होने से अच्छा लाभ होता है। Ring-Worm दाद पर, धतूरे के पत्ते गौमूत्र में पीसकर गौमूत्र में ही उबालें। गाढ़ा होने पर लगावें। टाइफायड की दवाएं खाने से अक्सर सिर या किसी स्थान के बाल उड़ जाते हैं तो इसके इलाज हेतु गौमूत्र में तम्बाकू को खूब पीसकर डाल देवें। 10 दिन बाद पेस्ट टाइप बन जाने पर अच्छा रगड़ कर बाल झड़े स्थान पर लगान से बाल फिर आ जाते हैं। सिर में भी लगा सकते हैं। इसके अलावा विभिन्न रोगों में गोमूत्र के उपयोग की विस्तृत जानकारी आगे दी जा रही
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पंचगव्य चिकित्सा से रोगोपचार करते
समय ध्यान रखने योग्य बातें
.. किसी भी औषधि की सफलता उसकी गुणवत्ता पर आधारित होती है। पंचगव्य चिकित्सा में गाय से ही प्राप्त चीजों का मुख्यत: उपयोग होता है, अतएव गाय कैसी हो यह फिर से दोहराया जा रहा है। 1. गाय देशी नस्ल की हो अर्थात् जिसके ककूद (hump) हो। जर्सी, रेड डेन,
होलस्टाइन फ्रीजियन आदि नहीं। 2. गाय स्वस्थ व सशक्त हो। 3. गाँव में घूमकर प्लास्टिक या कूड़ा-कचरा खानेवाली न हो। 4. गाय जंगल या गोचर में चरने जाती हो तथा हमेशा रसायनमुक्त चारा खाती हो। 5. गाय सेवा से प्रसन्न हो।
- एलोपैथी की जड़ औषधियों की तरह पंचगव्य जड़ नहीं है, वह प्राणवान व चैतन्य है, उसमें देवताओं का वास है। इसलिए उन्हें ग्रहण करते समय उनकी दिव्यता का स्मरण कर ग्रहण करें। जैसे गौमूत्र लेते समय यह विचार करें कि इसमें गंगा का वास है अर्थात् यह सृष्टि पालक भगवान विष्णु का चरणामृत है यह शीघ्र प्रसन्न होनेवाले भगवान शिव के जटा से निकली अमृत की धारा है। गाय में 33 कोटि देवता है इसलिए गौमूत्र तो 33 कोटि तीर्थो का जल है। ऐसे बार-बार नमस्कार कर शरणागति . भाव से गौमूत्र ग्रहण करने पर इसका प्रभाव भी दिव्य ही होता है। इसे सामान्य औषधि मानने पर इसका प्रभाव भी सामान्य होता है। अविश्वास या घृणा भाव से लेने पर इसका परिणाम होता भी है और नहीं भी होता। .
आगे विभिन्न रोगों का उपचार बताया जा रहा है। जब भी आप पंचगव्य का सेवन करें, तब अपनी प्रकृति, ऋतु और अवस्था का ध्यान अवश्य रखें। 1. दूध : दूध वात दोष बढ़ा सकता है, अतएव वात से पीड़ित व्यक्ति गर्म दूध में दो चम्मच घी डालकर और फेंट कर पीयें घी वातनाशक होने से दूध को सुपाँचय बना देता है। जिनकी पाँचन शक्ति बहुत कमजोर हो उन्हें दूध में आधा पानी मिला लेना चाहिए, लेकिन घी की मात्रा कम नहीं करनी चाहिए। 2. दही : दही पित्त दोष बढ़ा सकता है, चांदी के प्याले में जमा ताजा दही लेने से पित्त का शमन हो जाता है। पित्त दोष से पीड़ित व्यक्ति को दही क़ी जगह छाछ का सेवन करना चाहिए क्योंकि छाछ पित्त नाशक है। 3. घी : घी कफ दोष बढ़ा सकता है, गर्म आहार के साथ घी लेने से कफ की प्रधानता कम हो जाती है। घी के ऊपर गर्म पानी अमृत और ठंडा पानी विष के समान है। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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4 गौमूत्र : गौमूत्र कुछ पित्त को बढ़ाता है, लेकिन विरेचन के गुण के कारण पक्वाशय और छोटी आँतों में संचित पित्त को दस्त के माध्यम से निकालकर राहत भी देता है। पित्त दोष से पीड़ित व्यक्ति को गौमूत्र सेवन के दिनों में घी का भी सेवन करना चाहिए। गौमूत्र को बार-बार छानने से भी इसका विरेचन गुण बढ़कर पित्त का नाश करता है।
एक बात को यहाँ फिर से दोहराना आवश्यक है कि इस पुस्तक में जहाँ कहीं भी घी शब्द आया है, उसे देशी गाय के दही को मथकर निकाले गये मक्खन को तपाकर बनाया गया घी ही समजें। आजकल यंत्र से दूध से क्रीम (बंटर) निकाला जाता है, फिर उसे गर्मकर घी बनाया जाता है। यह वास्तव में घी नहीं बटर ऑइल है। इसके
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धर्म बिल्कुल अलग है और यह औषधि के लायक नहीं। आजकल बाजार में शुद्ध गाय के घी के नाम पर भी बटर ऑइल ही बिक रहा है। देशी गाय का घी इससे 2 1/2 -3 गुणा महंगा है। और जैसे-जैसे इसका औषधीय महत्त्व पता चलता जायेगा यह महंगा ही होता जायेगा इसे सस्ता रखने का एक ही उपाय है कि गौरक्षण व गौसंवर्धन किया जायें और उसके गोबर - गौमूत्र का भी पूरा - पूरा उपयोग किया जाए । आगे जहाँ कहीं नस्य घृत ( नाक में घी डालने की बात आयेगी। वहाँ निम्न विधि से ही नाक में घी डालना है ।
लेटकर या कुर्सी पर बैठे हों तो सिर को पीछे की ओर झुकाकर एक-एक नासाछिद्र में दो-दो बूँद घी डालें ! 5 मिनिट इसी तरह रहें। मौन रखें। घी को खीचें नहीं, सामान्य श्वास लेते रहें। घी का तापमान हमेशा शरीर के तापमान से अधिक होना चाहिए। घी को सीधे अग्नि पर गर्म ना करें, घी के पात्र (बोतल ) को तेज गर्म पानी • में रखकर गर्म करें।
इसी प्रकार से आगे जहाँ कहीं भी दूध में घी लेने की बात आये उसे निम्न विधि से ही लें
तेज गर्म दूध में दो चम्मच घी डालकर दो गिलासों में खूब उथल-पुथल करें (फेटें)। इससे दूध में झाग ही झाग हो जायेंगे। गर्म-गर्म दूध-घी का ही सेवन करें।
गौ चिकित्सा के समय मांसाहार, शराब, तंबाकू, सिगरेट, गुटखा आदि व्यसन पूर्णतः वर्जित हैं ।
किसी भी उपचार पद्धति के साथ आप पंचगव्य चिकित्सा ले सकते हैं। इसका किसी भी पद्धति से विरोध नहीं है, बल्कि गौमूत्र अर्क तो अन्य औषधियों की शक्ति (Potency) को बढ़ा देता है। लाभ होने पर आप पहले से चल रही चिकित्सा बंद भी कर सकते है। आयुर्वेद चिकित्सा, होम्योपैथी चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, चुंबक चिकित्सा, योग चिकित्सा आदि पंचगव्य चिकित्सा के साथ लें तो गंभीर रोगों में भी बहुत जल्दी लाभ होता है।
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गौमूत्र सेवन की मात्रा
गौमूत्र का सेवन कितनी मात्रा में करना चाहिए ?
प्रत्येक व्यक्ति को ऋतु, अपनी प्रकृति और अवस्था के अनुसार गौमूत्र का सेवन करना चाहिए। ऋतु : ग्रीष्म ऋतु में अल्प मात्रा में गौमूत्र का सेवन करना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु से शीत ऋतु में 5 से 10 गुणा अधिक मात्रा में गौमूत्र का सेवन किया जा सकता है। प्रकृति : वात प्रकृति के व्यक्तियों को सामान्य मात्रा में, कफ प्रकृति के व्यक्तियों को अधिक मात्रा में और पित्त प्रकृति के व्यक्तियों को कम मात्रा में गौमूत्र का सेवन करना चाहिए। अवस्था : एक वर्ष तक के बच्चों को ग्रीष्म ऋतु में महीने 3 बूंद और तेज सर्दियों में महीने 15 बूंद तक दिया जा सकता है। उदाहरण के लिये 4 महीने के बच्चों को गर्मियों में 4 ग 3 त्र 12 बूंद और सर्दियों में 4 ग 15 व 60 बूंद तक दिया जा सकता है। वैसे दूध पीते बच्चों की माताओं को गौमूत्र देने से अधिक लाभ होता है। उनकी मात्रा वयस्क के अनुसार होनी चाहिए। (1 छोटा चम्मच त्र 5 मि. ली. त्र 125
.
बूंद)
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__ . यहाँ सामान्य मात्रा का वर्णन किया जा रहा है जिसे अपनी प्रकृति और ऋतु के अनुसार कम अधिक मात्रा में लिया जा सकता है। 1 वर्ष से 2 वर्ष के बच्चों को 2 चम्मच
सुबह-शाम खाली पेट या भोजन से :
एक घंटे पूर्व . 2 वर्ष से 5 वर्ष के बच्चों को . 3 चम्मच 5 वर्ष से 10 वष के बच्चों को 4 " 10 वर्ष से बड़ों को ... 5 " . * पित्त प्रधान (गर्म) प्रकृति के व्यक्तियों को खाली पेट गौमूत्र का सेवन नहीं करना चाहिए। * गोमूत्र सेवन प्रारंभ के 5-6 दिन तक दो से अधिक बार भी शौच के लिए जाना पड़ सकता है, जो बहुत ही लाभदायक है, फिर यह सामान्य हो जायेगा। यदि दस्त अधिक हों तो मात्रा आधी कर दें बाद में पूर्ण मात्रा ले सकते हैं। * गर्भवती महिलाओं को चिकित्सक की सलाह के बिना गौमूत्र नहीं लेना चाहिए।
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पाँचन संस्थान के रोग .
1. अग्निमांद्य (भूख न लगना Dyspepsia) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ । परत (विसक) कर छानकर पीयें।
या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. भोजन के बाद छाछ या गौ तक्रारिष्ट या गौमूत्र हरड़े चूर्ण का सेवन करें। 3. त्रिफलादि घृत का सेवन करें। . अपथ्य : तली चीजें, मैदा, मावा, मिठाई, गरिष्ठ आहार पथ्य : अदरक+ सेंधा नमक + नींबू का रस बनाकर तैयार रखें। प्रतिदिन भोजन के पूर्व या साथ सेवन करें। स्वादिष्ट चटनियाँ, पापड़, छौंकी हुई सब्जी विशेष : भूख बढ़ने के बाद भी कम से कम एक माह तक सेवन करें।
.. 2. अजीर्ण (अपच, Indigestion) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें। .
या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2: भोजन के बाद छाछ+सेंधा नमक या गौतक्रासव या गौमूत्र हरड़े चूर्ण का सेवन करें। 3. त्रिफलादि घृत का सेवन करें। अपथ्य : तली चीजें, मैदा, मावा, मिठाई, गरिष्ठ आहार पथ्य : उपवास करें। नींबू+सेंधा नमक गर्म पानी के साथ सेवन करें। विशेष : भोजन के तुरन्त बाद एक गिलास गर्म पानी पीयें।
3. अतिसार (दस्त, Diarrhea) 1. मामूली अतिसार में अल्प मात्रा में ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें।
या गौमूत्र अर्क का सेवन करें, जिससे आँतों का अच्छी तरह शोधन हो जाय। अधिक दस्तें लगने पर 25 मिली गौमूत्र + 25 मिली दूध का सेवन करें। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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2. मामूली दस्त होने पर चावल में ताजा दही व सेंधा नमक डालकर लें। अधिक दस्त होने पर आधा लीटर पानी एक-एक मिनिट में एक-एक चम्मच के माध्यम से लें। धीरे-धीरे पानी की मात्रा बढाते जायें। जब पानी पचने लगे, तब मूंग का पानी, मीठे फलों का रस आदि लें। ठोस आहार सबसे पहले मूंग-चावल की खिचड़ी में दो चम्मच घी डालकर लें। 3. छाछ या गौ तक्रारिष्ट का सेवन करें। अपथ्य : सामान्य भोजन, सामान्य पानी . पथ्य : हल्का भोजन, उबला हुआ पानी ठंडाकर पीयें। फलों का रस (अनार का रस अधिक गुणकारी) विशेष : मामूली अतिसार से छोटी आँतों की सफाई व बढ़े हुए पित्त का शमन होता है। .
4. कब्ज (Constipation) 1. कब्ज की गंभीरता के अनुसार कुछ अधिक मात्रा में ऋतु, प्रकृति और अवस्था । के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें।
. या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. भोजन के बाद गौमूत्र हरड़े चूर्ण गर्म पानी से लें। 3. रात्रि को सोते समय गर्म दूध में त्रिफलादि घृत फेंटकर लें। अपथ्य : आँतों में चिपकनेवाला आहार जैसे (आलू, चावल, मावे की मिठाई, केला, बेसन, मैदा और पाँचन शक्ति को क्षीण करनेवाले आहार जैसे तली चीजें, चाय - कॉफी। पूरे दिन बैठे रहना। पथ्य : रेशेयुक्त पदार्थ जेसे छिलके सहित खाये जानेवाले फल - सब्जी-दाल, चोकर युक्त आटा, दलिया, पपीता . . विशेष : 1. गौमूत्र जितनी अधिक बार छानकर लेंगे उतना ही फायदा करेगा। 2. गाय के घी का प्रतिदिन 25 से 30 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से आँतों में चिकनाई रहती है, जिससे मल आँतों में चिपक नहीं पाता तथा सरलता से मलत्याग होता है।
5. आमाशय व्रण (Peptic Ulcer) पेट में विदग्ध पित्त (एसिड) इकट्ठा होने और उसकी तीक्ष्णता बढ़ जाने से अल्सर (व्रण) हो जाते हैं। मन में क्लेश-संताप होने से यह समस्या अधिक होती है। 1. गौमूत्र क्षारीय होने से एसिड का शामक है। मन को शांति प्रदान करता है, जिससे मनोवेगों की प्रखरता कम होती है। ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी का सेवन करें। .. गौमाता पंचगव्य चिकित्सा ..
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2. गाय के घी का अधिकाधिक सेवन करें। गाय का घी घाव पर मलहम का कार्य करता है, जिससे एसिड का घाव पर प्रभाव नहीं पड़ता और वह धीरे-धीरे भर जाता है। घी पित्त का भी शमन करता है। 3. दूध में घी डालकर पीयें। अपथ्य : खटाई, तली चीजें, मावा, मैदा, बेसन, मिर्च, गरिष्ठ, भोजन पथ्य : दूध, छाछ, मेथी, जामुन, परवल, कुलथी, शहद, पपीता, गेहूँ, मिश्री युक्त जौ का सत्तू, सेंधा नमक विशेष : थोड़ा - थोड़ा खायें, 3-3 घंटे से खायें। अधिक देर तक पेट को खाली न
रखें।
2. रात को सोते समय नाभि पर दो-तीन बूंद घी लगाकर अनामिका उंगली से मंथन करें।
' 6. अम्लपित्त (खट्टी डकारें आना, Acidity) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें।
या
, गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. छाछ या गौतक्रासव या गौमूत्र हरड़े चूर्ण का सेवन करें। 3. दूध में घी डालकर पीयें। इससे पुराने से पुरानी एसिडीटी एक महिने में समूल नष्ट हो जाती है। अपथ्य : फ्रिज की ठंडी चीजें, ठंडा दूध, मिर्च, तेल, खटाई, खमीर वाले आहार, मैदा, बेसन, मावे की मिठाई, चाय-कॉफी। भूखा रहना। पथ्य : सुपाँचय भोजन 'विशेष : 1. भोजन के तुरन्त बाद एक गिलास गर्म पानी पीयें। 2. रात को सोते समय नाभि पर दो-तीन बूंद घी लगाकर अनामिका उंगली से मंथन
करें।
7. पेट में कीड़े (कृमि Worms) - 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें।
. या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. गाय के दूध में शहद डालकर 15 दिन तक पीयें। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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3. वायबिडंग आदि से बनी गौमूत्र कृमिनाशक वटी का सुबह शाम 15 दिन तक सेवन करें। 4. सुबह खाली पेट 3 दिन तक 10 ग्राम गुड़ खाकर आधे घंटे बाद 3 ग्राम अजवायन का चूर्ण खायें। 5. 10 ग्राम गुड़ व 5 ग्राम कच्ची हल्दी का सुबह खाली पेट 3 दिन तक सेवन करें। • अपथ्य : मिठाई, मैदा, बेसन, दूध, हरी सब्जियाँ पथ्य : कड़वी, तीखी, कसैली चीजें, सभी मसाले हींग, हल्दी, मेथी, बिना बीज की लाल मिर्च
8. उदर रोग (पेट के रोग) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें।
या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. प्रतिदिन छाछ या गौतक्रासव या गौ तक्रारिष्ट का सेवन करें। 3. गौमूत्र हरड़े चूर्ण का प्रयोग करें 4. त्रिफलादि घृत का प्रयोग करें। 5. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौंकी का एक गिलास रस निकालकर 5 काली मिर्च । + 5 तुलसी के पत्ते + पौदीने के पत्ते घोंटकर मिलायें। स्वाद के अनुसार अदरक व सेंधा नमक मिलाकर पीयें। अपथ्य : तली चीजें, बेसन, मैदा, मिठाई, गरिष्ठ आहार, भोजन में अनियमितता, भोजन कर तुरन्त सोना, बाजार का खाना, फ्रिज की चीजें पथ्य : सुपाँचय आहार विशेष : भोजन के तुरन्त बाद गर्म पानी पीयें।
.. 9. गैस 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ । परत (विसक) कर छानकर पीयें।
.. या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. प्रतिदिन भोजन के साथ या बाद में गौमूत्र हरड़े चूर्ण का सेवन करें। . . 3. दूध में अदरक या सोंठ उबालकर घी डालकर पीयें। 4. गैस से पीड़ित अंग पर गौमय वातनाशक तेल लगाकर गर्म कपड़े से ढककर रखें
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या सेंक दें।
अपथ्य : फ्रिज की ठंडी चीजें, आलू, प्याज, गोभी, मैदा, बेसन, बासी भोजन, खमीरवाली चीजें, भैंस का घी, रिफाइण्ड तेल । मैथुन ।
पथ्य : घी, फिल्टर्ड तेल, मेथी, हींग, फल
विशेष : 1. प्रतिदिन भोजन के तुरन्त बाद गर्म पानी का सेवन करें।
2. पंखे की तेज हवा से बचें।
10. आँव (चिकना व चिपचिपा मल)
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. प्रतिदिन भोजन के साथ या बाद में गौमूत्र हरड़े चूर्ण का सेवन करें ।
3. प्रतिदिन छाछ + सेंधा नमक या गौतक्रारिष्ट या गौतक्रासव का सेवन करें। अपथ्य : मिठाई, मैदा, बेसन, तली हुई चीजें, फ्रिज की ठंडी चीजें, खमीर वाले पदार्थ, बासी भोजन, दूध
पथ्य : नीबू, अदरक, मेथी, हींग, जौ का सत्तू, जामुन परवल, कुलथी.. विशेष : भोजन के पश्चात् गर्म पानी का सेवन करें।
11. आन्त्रपुच्छ शोध / प्रदाह (Appendicitis) 1. ऋतु; प्रकृति और अवस्था के अनुसार दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परंत (fold) कर छानकर पीयें। या. दिन में तीन बार गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।
2. नाभि के दाहिनी ओर चार अंगुल पर गोबर को गौमूत्र से नरमकर उसकी पुल्टिस बाँध सेक करते रहें ।
3. दर्द बंद होने के बाद छाछ में सेंधा नमक मिलाकर भोजन के साथ लें । अपथ्य : सभी दालें, दूध, दही, आलू, चावल, केला, तली चीजें मना है। भूख लगने पर ही भोजन करें।
पथ्य : पपीता, हरी सब्जियाँ, सुपाँचय भोजन
विशेष : तुरन्त आराम हो जाने के बाद भी एक से आन्त्रपुच्छ शोथ समूल नष्ट हो जाता है।
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दो मास गौमूत्र का सेवन करने
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. 12. अर्श (बवासीर Piles) 1. अधिकाधिक घी का सेवन करें। 2. केले के टुकड़े के बीच 1 ग्राम भीमसेनी कपूर रख उसे निगल लें। ऐसा 5-7 दिन तक करें। 3. विभिन्न गौशालाओं द्वारा निर्मित कासिसादि तेल आदि को बवासीर व गुदामार्ग में लगायें। . अपथ्य : पित्त बढ़ानेवाले आहार यथा गर्म मसाले, चाय, कॉफी, आलू, बैंगन, लहसुन, दही। अधिक बैठना, मैथुन। पथ्य : जमीकंद विशेष लाभ पहुंचाता है। गाय की छाछ, दलिया, सेंधा नमक, पपीता, लौकी, मिश्री, ब्रह्मचर्य। विशेष : 1. गौमूत्र से गुदा को बार-बार धोयें। . 2. व्यायाम - गुदा का 15-20 बार आकुंचन करें। यह व्यायाम दिन में 5-7 बार करें। 3. पैर के तलवों पर घी लगाकर कांसे के बर्तन से काला होने तक रगड़े। 4.2 ग्राम फिटकरी गर्म तवे पर फुलाकर गरम पानी में डालकर टब पर बैठकर 15-20 मिनिट स्थानीय सेंक दें।
13. आँतों में चीरा (Fissure) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
. . या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. अधिकाधिक गाय के घी का सेवन करें। 3. दूध में घी डालकर पीयें। अपथ्य : आँतों में चिपकनेवाले पदार्थ जैसे मैदा, बेसन, आटा, मिठाई, आलू, आदि व पित्त बढ़ानेवाले पदार्थ जैसे गर्म मसाले, मिर्च, बैंगन, लहसुन, चाय-कॉफी . पथ्य : दलिया, पपीता, मिश्री . . विशेष : पैरों के तलवों पर घी लगाकर कांसे के बर्तन से काला होने तक रगड़ें।
14. प्रवाहिका (Dysentery) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परंत (fold) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। जिससे ऐंठन, मरोड़ व बार-बार का दस्त बंद हो जायेगा। जीवाणु नष्ट होकर मल बंधंजायेगा। 2. प्रतिदिन छाछ या गौतक्रारिष्ट का सेवन करें। अपथ्य : मीठा, लाल मिर्च, गर्म मसाले, दूध पथ्य : चावल, दही, ज्वार, गेहूँ, दाल, सब्जियाँ.
15. भगन्दर (नासूर Fistula) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गमित्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. दूध में घी डालकर पीयें। 3. भगन्दर को गौमूत्र से साफ करें जात्यादि घृत का प्रयोग करें। 4. प्रतिदिन गौमूत्र की बस्ति (एनिमा) लें। अपथ्य : दूधा, दूध से बने पदार्थ, मीठे-खट्टे पदार्थ, आलू, चावल तेल, मिर्च, मसाले, सभी प्रकार की हरी सब्जियाँ .. पथ्य : दाना मेथी की सब्जी, सुपाँचय भोजन, सब प्रकार की दालें, फल, पपीता, लौकी
16. भस्मक (बहुत अधिक भूख लगना) 1. भस्मक रोग पित्त बढ़ने से होता है और गौमूत्र पित्त करता है, इसलिए अल्प मात्रा में शुरू कर धीरे-धीरे पूर्ण मात्रा तक ले जाना चाहिए। . 2. गाय के घी का अधिकाधिक सेवन करना चाहिए। अपथ्य : पित्त बढ़ानेवाले पदार्थ जैसे गर्म मसाले, मिर्च बैंगन आलू चाय-कॉफी पथ्य : जौ, नींबू+मिश्री का शर्बत, दूध विशेष : पैरों के तलवे पर घी लगाकर कांसे के बर्तन से काला होने तक रगड़ें। .
या
17. यकृत वृद्धि (Lever Enlargment) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें।
. गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. छाछ या गौतक्रारिष्ट या गौतक्रासव का प्रतिदिन सेवन करें। , . 3. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौकी गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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अपथ्य : खटाई, तेल या घी में तला हुआ, गर्म मसाले, चावल, दही, आलू दालें, गारिष्ठ आहार। मैथुन, तेज धूप, अग्नि के सामने न रहें। पथ्य : दूध (फीका), हरी सब्जियाँ, परवल; सहेजना गेहूँ, पपीता, हल्का भोजन, ब्रह्मचर्य, टहलना, घूमना लाभकारी है। अन्न बिल्कुल त्यागकर गाय का दूध उबालकर पीते रहने से अति शीघ्र लाभ होता है। विशेष : रोग नष्ट हो जाने पर भी कुछ मास गौमूत्र का सेवन करने से रक्त स्वस्थ होता है।
18.. मुख रोग (Oral Infection) .. 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. मुख में चारों ओर पंचगव्य घृत लगाकर 15-20 मिनिट रखें 3. बार-बार गौमूत्र से कुल्ला करने से मुख में हुआ किसी भी प्रकार का संक्रमण नष्ट हो जाता है। 4. रात को सोते समय नाक में दो-दो बूंद गाय का घी डालें। अपथ्य : मीठे-खट्टे पदार्थ, आलू, चूना पथ्य : सुपाँचय भोजन
19. कंठ रोग 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या . गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। . 2. दिन में तीन बार गौमूत्र को थोड़ा गर्म कर गरारे करें। . अपथ्य : मीठे-खट्टे आहार, दूध . पथ्य : पतला दलिया, दाल या सब्जी का सूप, सेंधा नमक, हल्का गर्मजल विशेष : कंठ में अधिक कष्ट होने पर गोबर-गौमूत्र का गर्म लेप लगाकर चौड़े पत्ते से ढक मफलर से बाँधकर रखें।
20. संग्रहणी " इस रोग में भोजन का पूर्ण पाँचन हुए बिना ही वह मल के साथ निकलने लगता है। जठराग्नि के विकृत होने से यह रोग होता है। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या • गौमूत्र अर्क, गौमूत्र धनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. छाछ सेंधा नमक या गौतक्रारिष्ट का प्रतिदिन सेवन करें। अपथ्य : सभी मसाले, सब्जियाँ, दालें, तेल या घी की तली चीजें पथ्य : ज्वार की रोटी+छाछ, चावल या गेहूँ की थुली+दही विशेष : . इस रोग को ठीक होने में दो-तीन महीने का समय लगेगा, रोग के ठीक होने पर भी दो-तीन महीने गौमूत्र का सेवन करते रहें। 2. नाभि पर 2-3 बूंद घी लगाकर अनामिका उंगली से हल्का मंथन करें।
..
।
21. तृषा (प्यास न मिटना) यह रोग क्लोम ग्रंथि की विकृति के कारण होता है। 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। जब तक दस्त साफ न आये, गौमूत्र की मात्रा बढ़ाते रहें। ताकि वायु की तीव्रता के कारण बढ़ रही प्यास नष्ट हो जायें। गौमूत्र में पर्याप्त मात्रा में विटामिन 'बी' है, इसलिए तृप्ति होती है। 2. दूध के साथ घी लें। भोजन में भी अच्छी मात्रा में घी का सेवन करें। अपथ्य : रूखा आहार, तली हुई चीजें, बर्फ का पानी पथ्य : दूध, घी, मिश्री मिला आहार
22. दन्त रोग (Dental Diseases) . दन्त रोगों का संबंध आँत के रोगों से है। आँत में असेन्द्रिय पदार्थ इकट्ठा रहने से
दन्त रोग होते हैं। आम का शोधन करना, आँत साफ रखना व दूषित पदार्थ के संग्रह को निकालना चिकित्सा है। 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. दूध-घी का सेवन करें। 3. गोबर के कोयले से बने गौमय दन्त मंजन से दिन में तीन बार दाँत साफ करें। 4. गौमूत्र से दिन में 4-5 बार कुल्ला करें। अपथ्य : मीठे पदार्थ, खट्टे पदार्थ पथ्य : घी, तेल, दालें, सभी मसाले, लौंग गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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विशेष : सरसों या तिल का तेल मुँह में भर 5-10 मिनिट तक कुल्ला करें।
23. वमन (उल्टी Vomiting)
वमन का मूल कारण, आम विष या असेंद्रिय पदार्थ का बन जाना है। प्रकृति उसे निकालती है। दस्त आ जाने से वमन का वेग समाप्त हो जाता है।
1. थोड़ी-थोड़ी मात्रा में ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
या
गौमूत्र अर्क का सेवन करें।
2. पानी में लौंग डालकर उबालकर पिलायें ।
3. दूध में समान मात्रा में पानी मिलाकर उबालकर ठंडा करके शहद मिलाकर पिलायें । अपथ्य : सभी प्रकार के अन्न, तली चीजें
पथ्य : नींबू + सेंधा नमक + काला नमक चूसना । अजवायन, अनार, मौसन्बी, सौंफ, मुनक्का, आँवला
24. आधमान (अफारा Flatulence )
1. गौमूत्र हरड़े चूर्ण को गर्म पानी के साथ लें।
2. पेट पर गौमय वातनाशक तेल लगायें ।
3. गौतक्रासव का सेवन करें।
अपथ्य : समस्त अन्न, दही, चावल
पथ्य : गर्म पानी में नींबू निचोड़कर पिलाना, सेंधा नमक ।
3
25. हिचकी (Hiccough)
हिचकी अधिक आती हो, तो उसका एक ही उपाय है, घी पीयें और उसके ऊपर गर्म - पानी पीयें या गर्म दूध में घी डालकर पीयें ।
26. सिरोसिस ऑफ द लीवर
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र पुनर्नवादि अर्क, गौमूत्र पुनर्नवादि घनवटी . या गौमूत्र हरीतकी वटी लेने से सिरोसिस ऑफ द लीवर जैसा असाध्य रोग भी ठीक हो जाता है।
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2. छाछ या गौतक्रारिष्ट का सेवन करें। अपथ्य : खटाई, तली चीजें, गर्म मसालें, आलू, बैंगन पथ्य : परवल, सहेजना । विशेष : यह उपचार लगातार छ: महीने तक करें।
27. हेपेटायटिस बी 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को . आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र पुनर्नवादि अर्क, गौमूत्र पुनर्नवादि घनवटी या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौंकी का एक गिलास रस निकाल 5 काली मिर्च + . 5 तुलसी के पत्तें + 5 पौदीने के पत्ते घोंटकर मिलायें 3. 31 पत्ती श्यामा तुलसी का रस एवं उतना ही शहद मिलाकर सेवन करें। अपथ्य : खटाई, तली. चीजें। पथ्य : गेहूं के जवारे, मूली, नारियल, पपीता, अनार।.
. 28. टांसिल्स
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. 7 ग्राम फिटकरी (गर्म तवे पर फूली हुई) एक गिलास गुनगुने पानी में डालकर गरारे
करें। . 3. नाक में गाय के घी की दो-दो बूंदे डालें। 4. दूध में घी या त्रिफलादि घृत डालकर पीयें। अपथ्य : खट्टा, तला, फ्रिज का ठंडा, मिर्च, मसाले पथ्य : घी का हलवा, दलिया, चावल, जौ का पानी, मूंग, सहेजना, करेला.
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श्वसन संस्थान के रोग
1. खाँसी (Cough).
ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ पेरत (fold) कर छानकर पीयें। या
गौमूत्रासव का प्रतिदिन सेवन करें।
2. गौमूत्र में सेंधा नमक मिलाकर थोड़ा गर्म कर गरारे करें।
3. दूध में हल्दी उबालकर लें।
4. खाँसी पुरानी हो तो गर्म दूध में घी डालकर पीयें। नई खाँसी में घी वर्जित है । अपथ्य : खट्टा, तली चीजें, दही, केला, ठंडा पानी, चावल, आलू पथ्य : गेहूँ, हरी सब्जियाँ, सुपाँचय भोजन, गर्म पानी, तुलसी, काली मिर्च विशेष : 1. गौमय धूप की भस्म को शहद के साथ दिन में 3-4 बार चाट
2. सर्दी
1. गौमूत्र / गौमूत्रासव का प्रतिदिन सेवन करें।
2. नाक से गौमूत्र खीचें, तीव्र जलन होगी, लेकिन नासा गुहा का संक्रमण नष्ट हो
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जुकाम (Cold)
जायेगा और श्लेष्मा बाहर निकलकर तुरन्त आराम मिलेगा !
3. नाक में घी डालें। (गौमूत्र खीचतें हैं तो उसके आधे घंटे बाद )
4. गौमूत्र में सेंधा नमक मिलाकर थोड़ा गर्म कर गरारे करें।
5. गोमय दत्तमंजन करें। सुबह दंतमंजन करते समय आऽऽ की ध्वनि करते हुए उंगलियों से जीभ को रगड़ें, ऐसा करते समय वमन हो जाय तो भी अच्छा ही है क्योंकि इससे नासा गुहा से लेकर पेट तक जमा कफ बाहर निकल जायेगा ।
5. दूध में पानी + तुलसी+हल्दी +अदरक + दालचीनी को डालकर काढ़ा बनाकर पीयें । अपंथ्य : खट्टा, तली चीजें, दही, केला, ठंडा पानी, चावल, आलू पथ्य : गेहूँ, हरी सब्जियाँ, सुपाँचय भोजन, गर्म पानी, खजूर, कुम्हड़ा,
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विशेष : शारीरिक श्रम की कमी के कारण पसीना नहीं निकलता, जिससे सर्दीजुकाम के माध्यम से शरीर की गंदगी निकलती है। शारीरिक परिश्रम कर पसीना निकालते रहने से सर्दी जुकाम नहीं होता है।
2. बुखार के साथ जुकाम के कारण नाक बंद व तेज़ सिर दर्द हो तो ललाट पर अंगराग चूर्ण का मोटा लेप लगायें - दो मिनिट में नाक खुल जायेगी, 10 मिनिट में सिरदर्द गायब हो जायेगा, और घंटे भर में बुखार की तीव्रता कम हो जायेगी ।
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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3. सायनस
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. प्रतिदिन नाक में घी डालें।
3. सुबह नाक से ताजा गौमूत्र खीचें ।
अपथ्य : अचार, इमली आदि तेज खटाई । तली चीजें, आलू केला, दही पथ्य : मेथी, चना, लौकी, अनार,
विशेष : सर्दी-जुकाम न होने दें।
4. दमा (Asthma)
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या गौमूत्रासव का सेवन करें।
2. 100 ग्राम कच्चे जमीकंद को 50 ग्राम पुराने देशी गुड़ के साथ कूटकर प्रतिदिन सुबह सेवन करें।
3. नाक में घी डालें। इससे एलर्जी से होनेवाला दमे का आक्रमण नहीं होगा
अपथ्य : फ्रिज की ठंडी चीजें, तेली चीजे, अधिक घी, दूध, दूध से बने पदार्थ दही, कच्ची छाछ उड़द की दाल, दिन में सोना, तेज हवा, गुड़-शक्कर वाले पदार्थ मैथुन पथ्य : रूखे अन्न, चना, गेहूँ, ज्वार, पत्तीवाली सब्जियाँ, कुम्हड़ा, मुनक्का, दालें, लौंग, इलाइची, खजूर, तुलसी, काली मिर्च, सोंठ, सात्विक विचार
विशेष : 1. हमेशा भोजन के बाद गर्म पानी पीयें।
2. कम से कम छः मास तक गौमूत्र का सेवन करें।
5. क्षय रोग (टी. बी. Tuberculosis)
क्षय रोग अधिकतः भय, शोक, क्रोध, काम विचार जैसे मनोविकार के कारण होता है | पंचगव्य सात्विक होने के कारण उससे शरीर के साथ-साथ मन भी स्वस्थ होता है।
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।
2. गाये के दूध में 1-1 चम्मच पंचगव्य घृत डालकर दिन में तीन बार लें।
3. नाक में भी पंचगव्य घृत की दो-दो बूँदें डालें । गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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4. प्रतिदिन आधा ग्राम फूली हुई फिटकरी (गरम तवे पर फुलाएँ) आधा ग्राम मिश्री के साथ सेवन करें। 5. कच्चे लहसुन की कली का सेवन करें। . अपथ्य : खटाई, तली चीजें, हींग, गर्म मसाले, दही, मावे की मिठाइयाँ, श्रम, चिंता, क्रोध, मैथुन .
.. .
. . पथ्य : गाय का दूध, शहद, पपीता, सुपाँचय भोजन, हरी सब्जियाँ, मुनक्का, फल, ब्रह्मचर्य (भगवान का स्मरण, सात्विक विचार) विशेष : गौशाला में सोने से और उसके गोबर-गौमूत्र की गंध फेफड़ों में पहुंचने से क्षय रोग के बैक्टीरिया से बहुत जल्दी मुक्ति मिलती है। नित्य खाली पेट गौमाता को बड़े श्रद्धा भाव से सींग से पूँछ तक सहलाना चाहिए (थकान महसूस न हो तो 15-20 मिनिट तक) इससे रोगी को रोग से लड़ने की शक्ति मिलती है। मन सात्विक हो जाता
6. उरस्तोय ( प्लूरिसी Pleurisy)
फेफड़ों की झिल्ली में पानी भरने से यह रोग होता है। गौमूत्र स्वेदल (पसीना निकालनेवाला) है, गौमूत्र से पसीने व मूत्र के मार्ग से जल निकल जाता है, जिससे फेफड़े रूक्ष होकर स्वस्थ हो जाते हैं। अन्य कोई संक्रमण हो तो वह भी नष्ट हो जाता है। 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासंव या गौमूत्र. हरीतकी वटी का सेवन करें। . अपथ्य : ठंडी हवा, नम हवा, फ्रिज की चीजें, चावल, घी, तेल, दही, ठडे फल पथ्य : दूध -शहद, मूंग, चना, गेहूँ, गर्म पानी
.
7. निमोनिया .. 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ
परत (fold) कर छानकर पीयें। या. - गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।
2. नाक में दो-दो बूंद गाय का घी डालें। . 3. पैर के तलवों पर सरसों के तेल की मालिश करें।
अपथ्य : खटाई, तली चीजें, ठंडी चीजें पथ्य : चोकर, लौंग, तुलसी + काली मिर्च, सौंठ, खजूर
0000 गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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रक्त संस्थान के रोग
।
1. उच्च रक्त चाप (High Blood Pressure) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. रात को सोते समय नाक में घी डालें। साथ ही नाभि पर भी दो बूंद घी लगाकर अनामिका उंगली से पाँच बार उल्टा-सुल्टा मन्थन करें। 3. साबुन की बजाय अंगरागं चूर्ण या अंगराग बट्टी से स्नान करें। 4. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौकी का एक गिलास रस निकाल 5 काली मिर्च + 5 तुलसी के पत्ते + पौदीने के पत्ते घोंटकर मिलायें। स्वाद के अनुसार अदरक व सेंधा नमक मिलाकर पीयें। अपथ्य : खटाई, तली चीजें, नमक, रिफाइन्ड तेल, आलू, कड़ा उपवास, रात्रि में भोजन पथ्य : दूध, छाछ, आंवला, संतरा, लहसुन, घी, तवे पर भूनकर भूरा बनाया नमक, सेंधा नमक, हरी पत्ते वाली सब्जियाँ विशेष : उपचार 1,2,3 लगातार छ: महीने तक करने से रक्तचाप सामान्य हो जाता है।
2. रक्ताल्पता (खून की कमी, Anaemia) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या ___ गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. दूध को लोहे की कढ़ाई में औटाकर (मंद आँच पर काफी देर तक गर्म कर) पीयें। इसमें सर्दी में छुहारे और गर्मी में मुनक्के डालकर औटायें। 3. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौकी का एक गिलास रस निकाल 5 काली मिर्च +5 तुलसी के पत्ते. + पौदीने के पत्ते घोंटकर मिलायें। स्वाद के अनुसार अदरक व सेंधा नमक मिलाकर पीयें। 4. अनार के दानों को लोहे के इमाम दस्ते में कूटकर या लोहे की कढ़ाई में कुचलकर रात्रि में उसी में ढककर रख दें। सुबह उसे पतले कपड़े से छानकर उसका रस पीयें। (एक महीने तक) अपथ्य : खटाई, आलू, रिफाइन्ड तेल, लाल मिर्च, फ्रिज की चीजें पथ्य : पालक, मेथी के पत्ते, बथुआ, खजूर, अंजीर, मुनक्का, गन्ना, काला गुड़, बाजरा, चना ........ गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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3. कौलेस्ट्रोल (Cholesterol)
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें । या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. छाछ में एक चम्मच मीठे नीम की पत्ती ( कड़ी पत्ता) की चटनी डालकर उसका सेवन करें।
3. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौकी का एक गिलास रस निकाल 5 काली मिर्च + 5 तुलसी के पत्ते + पौदीने के पत्ते घोंटकर मिलायें । स्वाद के अनुसार अदरक व सेंधा नमक मिलाकर पीयें। 4. घाणी के तेल का सेवन करें।
अपथ्य : रिफाइन्ड तेल, गाय के घी के अलावा अन्य सभी घी
पथ्य : लहसुन, गेहूँ के जवारे, साग-सब्जी, फल, सलाद, फिल्टर्ड तेल, बिना बीज की लाल मिर्च
विशेष : दो प्रकार के कौलेस्ट्रोल होते हैं। अच्छा कौलेस्ट्रोल और खराब कोलेस्ट्रोल | अच्छे कोलेस्ट्रोल से मस्तिष्क स्वस्थ रहता है, शरीर की नसों, जोड़ों में लचीलापन रहता है। खराब कोलेस्ट्रोल रक्तवाहिनियों में जमकर रुकावट पैदा करता है।
गाय का घी कौलेस्ट्रोल को बढ़ाता है । घाणी का तेल ( तिल, मूँगफली और सरसों का तेल ) खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। सोयाबीन, सूर्यमुखी, पाम तेल दोनों प्रकार के कौलेस्ट्रोल को कम कर शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं।
4. रक्त विकार (Blood Infection)
1. अधिक मात्रा में ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. दूध में हल्दी उबालकर घी डालकर पीयें।
3. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौकी का एक गिलास रस निकाल 5 काली मिर्च + 5 तुलसी के पत्ते + पौदीने के पत्ते घोंटकर मिलायें । स्वाद के अनुसार अदरक व सेंधा नमक मिलाकर पीयें।
4. नीम + तुलसी का सेवन करें।
5. चिरायते को उबालकर पीयें।
अपथ्य : खटाई, तली चीजें, गर्म मसालें, खमीर वाले आहार, फ्रिज की चीजें । पथ्य : लहसुन, करेला, दूध, कुलथी, शहद
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___ज्ञानेन्द्रियों के रोग
नाक के रोगों का श्वसन संस्थान के रोगों में वर्णन आ चुका है।
. . आँख आना (Conjunctivitis) .
आँख आने पर एकदम ताजा गोबर (जो जमीन पर 15-20 मिनिट से अधिक न पा हो) बंद आँख पर रखकर हल्की पट्टी बांधकर लेट जायें। तीन घंटे में आँखें ठीक हो जायेगी। रात को सोते समय लगायें और रात भर रहने दें तो सुबह तक लाली भी मिट जायेगी।
या 1. आँख को बार-बार गौमूत्र से धोयें। . 2. आँख में कच्चे दूध की बूंदें टपकायें और उस पर दूध में भीगा रूई का फाहा रख दें। 3. नाक में घी डालें। अपथ्य : खटाई, मिर्च, टी. वी., कॉम्प्युटर, आँख मसलना, तेज धूप, पढ़ना, किसी से हाथ मिलाना या किसी भी रूमाल, तौलिये से मुँह पौंछना
.. 2. आँखों में दर्द या चुभन 1. नाक में घी डालना इसका सबसे तेज व प्रभावी उपचार है। 2: त्रिफलादि घृत का सेवन करें। 3. आँख में गौमूत्र की बूंदें डालें। अपथ्य : खटाई, टी. वी., कॉम्प्युटर, लेटकर पढ़ना पथ्य : सिर में तेल की मालिश . विशेष : तकलीफ तुरन्त ठीक होने पर भी कम से कम 15 दिन ऊपरोक्त. उपचार
करें।
_ . 3. कमजोर दृष्टि . . 1. रात को सोते समय नाक में दो- दो बूंद घी डालें। 2. प्रतिदिन दोनों समय त्रिफलादि घृत का सेवन करें। 3. रात को सोते समय पैर के तलवों पर घी लगाकर काँसे के बर्तन से तब तक रगड़े, जब तक तलवे काले न हो जायें। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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• 4. दिन में तीन बार दो - दो बूंद गौमूत्र की डालें, साथ ही शहद नींबू, गुलाब जल आदि
की बूंदें भी डालें। 5. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ . परत (fold) कर छानकर पीयें।
. या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 6. प्रतिदिन छाछ या गौ तक्रारिष्ट या गौ तक्रासव का सेवन करें। 7. दूध में मुनक्का या काली मिर्च औटाकर पीयें।। अपथ्य : खटाई, तली चीजें, मैदा, बेसन, गर्म मसाले, टी. वी., कॉम्प्युटर, देर तक .. जागना, सूर्योदय के बाद उठना पथ्य : पालक, गाजर, आँवला, हरा धनिया, बादाम (भिगाकर घिस कर लेने पर ही उपयोगी), सुबह-सुबह हरी घास पर नंगे पैर चलना विशेष : 1. कब्ज न होने दें। 2. चश्मा उतरने के बाद भी तीन महीने तक ऊपरोक्त उपचार करें।
4. रतौंधी (रात को न दिखना)
यह बीमारी विटामिन 'ए' की कमी से होती है। विटामिन 'ए' चिकनाई में घुलकर ही आँखों तक पहुंचता है। चिकनाई की कमी से विटामिन 'ए' का शोषण नहीं हो पाता। घी में खुद में ही विटामिन 'ए' होता है, अत: इस बीमारी में घी का विशेष रूप से सेवन करना चाहिए।
कमजोर दृष्टि के लिए किये जानेवाले सभी उपाय इसमें करने चाहिए। नोट : विटामिन 'ए' का सीधे कैप्सूल रूप में सेवन के कई दुष्परिणाम हो सकते हैं।
5. मोतियाबिंद (Cataract) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. रात को सोते समय नाक में दो - दो बूंद घी डालें। 3. त्रिफलादि घृत का सुबह-शाम सेवन करें। 4. गौमूत्र को तांबे के पात्र में उबालकर ठंडाकर छान लें। प्रतिदिन 4 बार इसकी दो-दो . बूंदें डालें। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा ... .
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5. शहद की एक-एक बूँद आँख में डालें।
6. सफेद प्याज के रस की एक-एक बूँद आँख में डालें।
7. गुलाब जल की दो-दो बूँदें आँख में डालें ।
अपथ्य : खटाई, तली चीजें, धूप, गर्म मसाले, क्रोध, शोक
पथ्य : गाजर, आँवला, शहद, जौ, करेला, पपीता, बादाम ( भिगाकर घिस कर लेने पर ही उपयोगी )
विशेष : 1. ऊपरोक्त उपचार से तीन महीने में मोतियाबिंद कट जायेगा और चश्मा लगा हो तो उसके नंबर भी कम हो जायेंगे।
2. प्रतिदिन छाछ पीनेवालों को मोतियाबिंद ही नहीं होता ।
6. आँख से पानी बहना
आँख से एक वाहिनी निकलकर नाक में जाती है उसमें अवरोध होने पर आँख को नम रखनेवाला पानी बाहर टपकने लगता है।
1. मोतियाबिंद वाले उपचार करें।
2. सुबह गौमय दंतमंजन करें और मंजन करने के बाद आऽऽ आवाज करते हुए उंगलियों से जीभ को रगड़ें इससे न केवल जीभ और कंठ ही साफ होगा बल्कि नाक, आँख, कान आदि की वाहिनियाँ भी साफ हो जाती हैं।
7. कान बहना
•
1. नाक में गाय का घी डालें।
2. दूध में हल्दी उबालकर घी डालकर पीयें ।
3. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold ) कर छानकर पीयें।.
या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 4. गौमूत्र से गरारे करें।
5. मुँह खोलकर कान में गौमय तेल की 2-4 बूँदें डालें ।
गौमय तेल बनाने की विधि - तिल के तेल में गोबर का रस डालकर मंद आँच पर
पकायें, जब केवल तेल ही बचे, तब छानकर शीशी में भर लें ।
अपथ्य : खटाई, तली चीजें, गुड़, मिर्च, गर्म मसाले, तेज हवा, दही, छाछ । 8. कान का दर्द
1. कान का दर्द लंबे समय से हो तो ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। .
या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. नाक में गाय का घी डालें। 3. मुँह खोलकर कान में सरसों या तिल के तेल की दो-चार बूंदें डालें। 4. कान के बाहर वातनाशक तेल लगायें। 5. कान को ढककर रखें और पंखे आदि की तेज हवा से बचें। अपथ्य : गैस करने वाले आहार जैसे आलू, गोभी, प्याज, फ्रिज की चीजें, बासी भोजन, मैदा, बेसन पथ्य : लहसुन
9. ऊँचा सुनना (कम सुनना)
1. नाक में गाय का घी डालें 2. मुँह खोलकर कान में गौमय तेल की दो-चार बूंदें डालें। 3. पंखे आदि की तेज हवा से बचें।
10. तुतलाना प्राय : तुतलाना उम्र बढ़ने के साथ-साथ ठीक हो जाता है। 1. यदि मस्तिष्क की कमजोरी के कारण तुतलाना होता है तो ब्राह्मी घृत को नाक में डालें तथा सुबह-शाम गर्म दूध में डालकर पीयें। 2. वाकेन्द्रिय (जीभ) की कमजोरी के कारण तुतलाना होता है तो सामान्य गाय का घी नाक में डालें और सुबह-शाम गर्म दूध में डालकर पीयें। . 3. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। ..
या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। . 4. सुबह गौमय दंतमंजन करें और मंजन करने के बाद आऽऽ आवाज करते हुए उंगलियों से जीभ को रगड़े, इससे न केवल जीभ और कंठ ही साफ होगा बल्कि नाक, आँख, कान आदि की वाहिनियाँ भी साफ हो जाती हैं। 5. दिन में 4-5 बार जीभ पर काली मिर्च रखकर चूसना। अपथ्य : चॉकलेट, सुपारी, अधिक मीठा
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गौमाता पंचगव्य चिकित्सा ...
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. पथ्य : लौंग, आँवला, बादाम विशेष : बच्चे से तुतलाकर बात न करें, ताकि वह सही उच्चारण सुने और सही उच्चारण करने का प्रयत्न करें।
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II. हकलाना (Stammer)
तुतलाने वाले उपचार करें।
अपथ्य : भय, जल्दबाजी, क्रोध विशेष : 1. गाने का अधिक से अधिक अभ्यास करें। 2. ठहाका मारकर हँसे।
12. सूखी खुजली 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. गौमूत्र और तिल के तेल की बस्ति (एनिमा) लें। . .. 3. घी का अधिकाधिक सेवन करें। रात को सोते समय दूध में घी डालकर पीयें। 4. नाक में घी डालें। 5. त्रिफलादि घृत का सेवन करें। 6. सरसों या तिल के तेल की पूरे शरीर पर मालिश करें। 7. ताजे गोबर से स्नान करें या अंगराग चूर्ण + कच्चा दूध या दही से स्नान करें। इन्हें 15-20 मिनिट शरीर पर लगा रहने दें। साबुन का प्रयोग बिल्कुल ना करें। . अपथ्य : फ्रिज की चीजें, तेज खटाई, आलू, गोभी, प्याज, बासी भोजन, मैदा, बेसन, कच्चा नमक, रूखी चीजें। पंखे की तेज हवा, पाउडर पथ्य : स्निग्ध आहार, मीठा, तुलसी+शहद, लहसुन, करेला, नारियल, नींबू
___13. गीली खुजली (दाद, एक्जिमा....) 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
. या ___ गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव यां गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. ताजे गोबर में गौमूत्र मिलाकर साबुन की जगह लगायें या अंगराग चूर्ण या अंगराग गौमाता पंचगव्य चिकित्सा .
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ट्टी से स्नान करें । साबुन का प्रयोग बिल्कुल ना करें।
3. जहाँ गीली खुजली हो वहाँ गौमय दादनाशक बट्टी या गौमय मलहम का प्रयोग करें। 4. त्रिफलादि घृत का सेवन करें।
5. श्रम या व्यायाम कर शरीर से पसीना निकालें ।
6. खादी के कपड़े व ढीले कपड़े सभी चर्मरोगों में बहुत लाभ पहुँचाते हैं।
अपथ्य : खटाई, तेल, मिर्च, गुड़, आलू, बैंगन, चाय-कॉफी, मावा। कॉस्मेटिक क्रीम, गीले चड्डी-बनियान, तंग कपड़े, जिन्स
पथ्य : भूना हुआ चना, जौ का सत्तू, घी
14. पुराना घाव
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ * परत (fold) कर छानकर पीयें।
या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. घाव को गौमूत्र से धोयें।
3. घाव पर जात्यादि घृत लगायें ।
4. साबुन का प्रयोग ना करें।
5. दूध में हल्दी उबालकर घी डालकर पीयें।
अपथ्य : खटाई, तली चीजें, गुड़, अधिक मीठा, खमीर वाली चीजें, आलू, प्याज,
दही
छाछ
पथ्य : सुपाँचय एवं सादा भोजन, घी .
15. फोड़े-फुन्सी
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. फोड़े पर ताजा गोबर बाँध दें। फोड़े को शीघ्र पकाकर पूरा मवाद खींच लेगा । 3. त्रिफलादि घृत का सेवन करें।
अपथ्य : खटाई, दही, छाछ, तली चीजें, मिर्च, गुड़, आम,
16. त्वचा का कटना या छिलना
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1. गौमय धूप की राख को कटी हुई त्वचा पर लगायें। घाव शीघ्र भरेगा। 2. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
. या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 3. दूध में हल्दी उबालकर घी डालकर पीयें। अपथ्य : साबुन, खटाई, खमीरवाली चीजें। विशेष : त्वचा के कटते ही तुरन्त गर्म पानी पीयें।
17. त्वचा का फटना 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. दूध में घी डालकर पीयें। घी का प्रयोग अधिक करें। 3. नाक में घी डालें। 4. केवल जहाँ त्वचा फटी है वहाँ ही नहीं बल्कि पूरे शरीर पर तिल या सरसों का . (गर्मियों में नारियल का) तेल लगायें, हल्की मालिश करें। 5. साबुन का प्रयोग ना करें। अंगराग चूर्ण + कच्चा दूध या दही से स्नान करें। अपथ्य : रूखा आहार, बासी भोजन, आलू, प्याज, पथ्य : आंवला, नींबू, शहद विशेष : त्वचा का फटना, वात के बढ़ने के कारण होता है, अत: केवल फटी हुई जगह का उपचार न कर, पूरे शरीर का उपचार करना चाहिए।
18. त्वचा की एलर्जी त्वचा को पूरा पोषण न मिलने से या त्वचा के किसी विजातीय तत्व के संपर्क में रहने से उसमें किसी विशेष चीज (धूप, धूल, हवा, पानी), के प्रति विकर्षण (एलर्जी) . पैदा हो जाती है। 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। . 2. दूध में हल्दी उबालकर घी डालकर पीयें। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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3. ताजे गोबर से या अंगराग चूर्ण या अंगराग बट्टी से स्नान करें। साबुन का प्रयोग बिल्कुल ना करें। 4. तेज पंखे की हवा से पसीने को न रोकें। 5. सुबह की धूप का सेवन करें। अपथ्य : तेज खटाई, तली चीजें, कच्चा नमक पथ्य : नींबू, तुलसी+शहद, आँवला, पपीता, करेला, नीम विशेष : त्वचा की एलर्जी किसी भीतरी बिमारी का संकेत हो सकते है। अत: भीतरी बीमारी पर भी ध्यान दें।
19. सिर में रूसी (Dandruff) .. 1. नाक में घी डालने से 40-45 दिन में रूसी बनना बंद हो जाता है।" 2. छोटे बाल हो तो अंगराग चूर्ण + खट्टी छाछ सिर पर कुछ देर लगाकर धोयें। 3. बाल बड़े हों तो गौमूत्र या गौमूत्र में अरीठा, शिकाकाई, आंवला उबालकर उससे बाल धोयें। 4. केवल सिर ही नहीं पूरे शरीर की तेल मालिश करें। अपथ्य : सिर में साबुन लगाना, रूखा भोजन, आलू, प्याज पथ्य : दूध, दही, छाछ, घी
. .
20. श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग Leucoderma) . 1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
. : या • गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।
2. दूध में घी डालकर पीयें। . 3. साबुन का प्रयोग न करें। गोबर या अंगराग चूर्ण और दूध के उबटन से स्नान करें। 4. विभिन्न गौशालाओं द्वारा निर्मित श्वित्र हर टिकिया लगायें और श्वित्र नाशक वटी का सेवन करें। अपथ्य : खटाई, तली चीजें, गर्म मसालें, पथ्य : काले तिल, काला चना, नारियल, गाजर
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मूत्र संस्थान के रोग
1. वृक्क विकार (गुर्दे के रोग Kidney Problems )
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold ) कर छानकर पीयें ।
या
पुनर्नवादि अर्क और पुनर्नवादि वंटी का सेवन करें।
2. अंगराग से स्नान करें।
3. वृक्क के सभी रोगों में शरीर से खूब पसीना निकलने दें, जिससे रक्त साफ होता रहे और गुर्दों पर जोर ना पड़े ।
4. पैरों के तलवों पर घी लगाकर काँसे के बर्तन से तब तक रगडं जब तक तलवे काले न हो जाए।
5. नाक में घी डालें। नाभि पर घी लगाकर अनामिका उंगली से उल्टा-सीधा मंथन करें।
6. गाय का दूध समाना मात्र में पानी मिलाकर उबाले। ठंडा कर मिश्री मिलाकर जौ के दलिये के साथ लें।
अपथ्य : खटाई, तली चीजें, फ्रिज की चीजें, टमाटर, आलू, चावल, दही, केला, उड़द
की दाल, कच्चा नमक, चावल, पंखे की तेज हवा |
पथ्य : जौ का सत्तू, जौ का पानी, नारियल, खजूरं
विशेष : गुर्दे के रोगों पर गौमूत्र परम औषधि सिद्ध हुई है ।
2. पथरी (Kidney Stone)
होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक औषधियों के साथ गौमूत्र पथरी को खत्म करने . में बड़ा प्रभावी सिद्ध हुआ है ।
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें।
या
पुनर्नवादि अर्क और पुनर्नवादि वटी का सेवन करें।
2. खूब पानी पीयें।
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अपथ्य : खटाई, अधिक बीज वाले फल-सब्जी जैसे टमाटर, चवली, अमरूद, भिंडी, बैंगन, पत्तेवाली सब्जियाँ पालक
3. बहुमूत्र (अधिक पेशाब होना)
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ .. .. परत (fold) कर छानकर पीयें।
. पुनर्नवादि अर्क और पुनर्नवादि वटी का सेवन करें।
2. दूध में घी डालकर पीयें। 3. प्रतिदिन दो चम्मच काले तिल चबा-चबाकर खायें। . 4. पंखे की तेज हवा से बचें। 5. प्रतिदिन छिलके सहित 6. मेथी भीगाकर सुबह उसका सेवन करें। ' अपथ्य : रात को देर से भोजन करना, गैस करनेवाली चीजें, जेसे आलू, नये चावल, प्याज, मैदा, फ्रिज की चीजें, रिफाइण्ड तेल खटाई, अधिक मीठा पथ्य : घाणी का तेल (न मिले तो फिल्टर्ड तेल), शाम के भोजन में तरल पदार्थ अधि क ना लें। ब्रह्मचर्य का पालन विशेष : 1. जो बच्चे रात्रि में बिस्तर पर पेशाब करते हों, उन्हें भी यही उपचार दें। 2. बहुमूत्र मधुमेह का एक प्रमुख लक्षणं है यदि मधुमेह हो तो मधुमेह का उपचार करें।
4. मूत्र वाहिनियों मे व्रण (Ulcer in Ureter)
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को . सूती कपड़े को आठ परत. (fold) कर छानकर पीयें।
या1. पुनर्नवादि अर्क और पुनर्नवादि वटी का सेवन करें। 2. गाय के दूध में समान मात्रा में पानी डालकर उबालें। मिश्री मिलाकर जौ की रोटी (दलिया) या चावल के साथ लें। 3. दूध में गाय का घी लें। अपथ्य : मीठे पदार्थ, गरिष्ठ पदार्थ, दिन में सोना, पथ्य : शहद, पपीता गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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विशेष : मूत्र संस्थान में किसी भी प्रकार का व्रण या संक्रमण हो तो उसमें गौमूत्र अत्यन्त लाभकारी है। 5. मूत्र कृच्छ /मूत्राघात (मूत्र रूक-रूककर होना या न होना) ... 1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। .
या पुनर्नवादि अर्क और पुनर्नवादि वटी का सेवन करें। 2. गाय के दूध में समान मात्रा में पानी मिलाकर उबालें। मिश्री मिलाकर जौ की रोटी (दलिया) या चावल के साथ लें। अपथ्य : पित्त बढ़ानेवाले पदार्थ जैसे, तली चीजें, गरम मसालें, आलू, बैंगन, लहसुन, खटाई, फ्रिज की चीजें। . , . पथ्य : पपीता विशेष : शरीर से पसीना निकलता हो तो उसे तेज पंखा चलाकर रोके नहीं!
1000 .
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५. -
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यौन समस्याएँ (Sex Problems) ..
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1. स्वप्नदोष/शीघ्र पतन/ प्रमेह 1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या मेदोहर अर्क (केसर युक्त गौमूत्र अर्क) और गौमूत्र हरितकी वटी का सेवन करें। . 2. दूध में हल्दी उबालकर और घी डालकर पीयें। 3. छाछ या तक्रारिष्ट या तक्रासव का सेवन करें। 4. पैर के तलवों पर घी लगाकर काँसे के बर्तन से तब तक रगड़ें जब तक तलवे काले · न हो जायें। अपथ्य : अश्लील विचार, ग्लानि, गर्म मसाले, तली चीजें, खटाई, गैस करनेवाली चीजें जैस फ्रिज की चीजें, आलू, प्याज, मैदा, खमीरवाली चीजें, रात्रि को देरी से भोजन . करना, चाय-कॉफी, लहसुन /किसी भी प्रकार का व्यसन, अधिक स्त्री-संग। पथ्य : सत्संग, अच्छे विचार, उड़द, तिल, भिण्डी, सिंघाड़ा, खोपरा विशेष : 1. कभी भी कब्ज न होने दें। 2. सोने पूर्व हाथ पैर धोकर बिस्तर पर जायें। 3. रात को सोने से पूर्व टी. वी. न देखें, फालतू पुस्तकें न पढ़ें। ईश्वर का या अपने जीवन के लक्ष्य का चिंतन कर शांत मन से सोयें। 4. वीर्य के नाश से उतनी शक्ति नष्ट नहीं होती जितनी कामुक विचारों से। अत: विचार हमेशा श्रेष्ठ करें। 5. विवाह के प्रारम्भिक दिनों में अधिक उत्तेजना के कारण शीघ्रपतन होना स्वाभाविक है। अत: चिंता नहीं करनी चाहिए।
2. नपुंसकता (संभोग में असमर्थता) ... 1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या
पुनर्नवादि अर्क और पुनर्नवादि वटी का सेवन करें। 2. बादाम (भीगाकर दूध में घिसकर), केसर छुहारा (खजूर) दूध में औटाकर घी डालकर पीयें। अपथ्य : अश्लील विचार, हीन भावना, ग्लानि, भय, जल्दबाजी, हड़बड़ाहट, उत्तेजना, वात दोष बढ़ानेवाली चीजें जैसे पंखे की तेज हवा, फ्रिज की चीजें, आलू, मैदा, खमीरवाली चीजें, खटाई, चाय-कॉफी, रात्रि को देरी से भोजन करना। किसी भी प्रकार गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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का व्यसन, अधिक स्त्री - संग |
पथ्य : पूरे शरीर पर तेल की मालिश करें। व्यायाम करें।
विशेष : 1. कामुक विचारों से शक्ति नष्ट होने से संभोग की शक्ति क्षीण हो जाती है। अतः कामुक विचारों से बचें।
2. संभोग के बाद ऊपरोक्त गर्म दूध का सेवन करने से शक्ति क्षीण नहीं होती । 3. संभोग के बाद पानी कभी ना पीयें।
4. कब्ज न होने दें।
5. तनाव, चिंता, भय, क्रोध, आदि के साथ संभोग में प्रवृत्त न हों।
3. यौन रोग ( Sexual Diseases)
सभी प्रकार के यौन रोगों में निम्नलिखित उपचार करें।
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूत
कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या मेदोहर अर्क (केसर युक्त गौमूत्र अर्क) और गौमूत्र हरितकी वटी का सेवन करें।
2. गाय के दूध में घी डालकर पीयें ।
अपथ्य : अश्लील विचार, किसी भी प्रकार का, व्यसन, मांसाहार, रात को भोज करना, खटाई, नमक, शक्कर, गरिष्ठ भोजन, तली चीजें, मिर्च-मसाले, अधिक मीठा । मैथुन ।
पथ्य : ब्रह्मचर्य, हल्का सात्विक भोजन, जौ, सभी दालें, चावल, मिश्री, मेथी, काली चर्म, हल्का व्यायाम
विशेष : कब्ज बिल्कुल ना होने दें।
4. एच. आई. वी /
एड्स
एच. आइ. वी और एड्स ये एक ही रोग नहीं है। एच. आई. वी का सही ढंग से उपचार न होने पर वह एड्स में बदल सकता है। एड्स का उपचार कठिन है, असंभव नहीं ।
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें । या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।
2. पंचगव्य घृत का सेवन करें
3. पंचगव्य घृत की दो-दो बूंदे नाक में डालें।
4. 31 पत्ती श्यामा तुलसी के रस में उतना ही शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करें।
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5. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौंकी का एक गिलास रस निकाल 5 काली मिर्च + 5 तुलसी के पत्ते + 5 पौदीने के पत्ते घोंटकर मिलायें स्वाद के अनुसार अदरक व सेंधा नमक मिलाकर पीयें।
अपथ्य : तली चीजें, बेसन, मैदा, भोजन में अनिमियतता, भोजन कर तुरन्त सोना, बाजार का खाना, बासी भोजन, फ्रिज की चीजें, खमीरवाला आहार, आलू, बैंगन, प्याज पथ्य : पौष्टिक आहार, घाणी का तेल, दूध, दही, घी सूखे मेवे, पके फल, रसायन मुक्त अनाज, सब्जियाँ गेहूं के जवारे, हल्दी, अनन्नास, अनार, पालक, मेथी, पपीता ।
5. पुरूष ग्रंथि का बढ़ना (Enlargement of Prostate)
1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या
गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. त्रिफलादि घृत में एक चुटकी सेंधा नमक डालकर सेवन करें।
3. छाछ या तक्रारिष्ट या तक्रासव का सेवन करें।
अपथ्य : खटाई, तली चीजें
पथ्य : आँवला, नारियल, दूध, दही, अंगूर, तुलसी
.
स्त्री रोग
1. अनियमित मासिक धर्म / मासिक धर्म कम होना
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold ) कर छानकर पीयें । या
नारी संजीवनी और गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।
2. काली मिर्च 20 ग्राम, गुड़ 10 ग्राम 300 मिली पानी में उबालें। एक चौथाई पानी रह जाने पर छानकर पीयें ।
3. मासिक धर्म के समय गेंद को घी में तलकर फुला लें। अब घी में अजवायन को तले । उसमें गुड़ फुला हुआ गेंद डालकर पाक बनाकर खायें।
4. प्रतिदिन दूध में कालीमिर्च उबालकर घी डालकर पीयें । 5. मसिक धर्म के दिनों में पैर के तलवे पर सरसों का तेल रगड़ें।
गैस करनेवाले आहार
अपथ्य : खटाई, कब्ज करने वाले आहार जैसे मैदा, बेसन, आलू, जैसे फिल की चीजें बासी भोजन रात को देर से खाना गोभी खमीर वाली चीजें - गौमाता पंचगव्य चिकित्सा 125
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पथ्य : मेथी, करेला, हींग, ताजा दही, बाजरा
विशेष : 1. यह वात रोग है अतः रूखे ठंडे आहार-विहार से बचें। कब्ज बिल्कुल ना
होने दें।
2. भोजन के बाद गरम पानी अवश्य पीयें।
3. शरीर को ढक कर रखें। तेज हवा न लगने दें।
2. मासिक धर्म के समय अधिक रक्तस्राव
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती
कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या
नारी संजीवनी और गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।
2. प्रतिदिन दूध में मुनक्का उबालकर घी डालकर पीयें ।
3. मासिक धर्म के दिनों को छोड़कर छाछ या तक्रारिष्ट या तक्रासव का सेवन करें। 4. मासिक धर्म के दिनों में पैर के तलवों पर घी रगड़ें।
अपथ्य : सभी गर्म आहार जैसे, तली चीजें, गर्म मसाले, मिर्च, लहसुन, प्याज, चाय-कॉफी, बैंगन, गुड़, आलू, फ्रिज की चीजें ।
पथ्य : मिश्री, जौ आदि पित्तशामक ठंडी चीजें ।
विशेष : यह पित्त प्रधान रोग है। अतः मासिक धर्म के पाँच दिन पहले अधिक मात्रा में गौमूत्र का सेवन करें, जिससे दस्त लगकर पित्त कम हो जायें । सात दिन पहले से पथ्य-अपथ्य का विशेष ध्यान रखें।
3. श्वेत प्रदर (Leucorrhoea)/
योनि संक्रमण (Vaginal Infection)
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें! या
नारी संजीवनी और गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।
2. प्रतिदिन दूध में हल्दी या सौंठ उबालकर घी डालकर पीयें ।
3. योनि को भीतर से प्रतिदिन गौमूत्र से धोना चाहिए। इसके लिये पिचकारी या मेडीकल स्टोर पर उपलब्धा 'वेजाइनल रबर स्प्रे' (जिसमें एक रबर की बोल लगी होती है और एक प्लास्टिक का नोजल लगा होता है ) का उपयोग करें।
अपथ्य : तेज खटाई, उदर रोगों को बढ़ाने वाले आहार, अनियमितता
पथ्य : सुपाँचय आहार, दूध, दही, घी, छाछ विशेष : भोजन के बाद गर्म पानी पीयें।
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4. गर्भाशय में गाँठ (ovarian Cyst)
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या ' नारी संजीवनी और गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. कांचनार अर्क का सेवन करें। इसकी विधि कैंसर के उपचार में दी गई है। ... 3. दूध में सौंठ उबालकर घी डालकर सेवन करें। अपथ्य : खटाई, मिर्च, गर्म मसाले, तली चीजें। क्रोध, ईर्ष्या, भय, शोक, मन में गाँठ बाँधना पथ्य : जौ, भुने हुए चने, मिश्री, विशेष : सभी महिलाओं के गर्भाशय में गाँठे बनती और खत्म होती रहती हैं। गाँठ का आकार बढ़ता रहे या वह दर्द करें, तभी उपचार करने की आवश्यकता होती है।
5. स्तनों में दूध की कमी 1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें। या नारी संजीवनी और गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। 2. दूधा में छुहारे (खजूर) उबालकर घी डालकर लें।.. 3. पूरे शरीर की तेल से मालिश करें। 4. अधिकाधिक मात्र में घी का सेवन करें। अपथ्य : फ्रिज की ठंडी चीजें, बासी भोजन, आलू, प्याज, मैदा, बेसन, खमीर वाली चीजें, अचार, रिफाइण्ड तेल . पथ्य : अजवायन, मेथी, सौंठ, तिल, देशी गुड़, बाजरा, खाने का गूंद तिल का तेल
6. गर्भावस्था (Pregnancy) . 1. स्त्री की प्रकृति व ऋतु के अनुसार गौमूत्र की जो मात्रा होती है, उससे आधी मात्रा में गौमूत्र या गौमूत्र अर्क और घनवटी का सेवन करना चाहिए। 2. प्रतिदिन चांदी के प्याले में दही जमाकर ताजे दही का सेवन करना चाहिए। इससे बच्चा मेधावी व स्वस्थ होता है - मंदबुद्धि अथवा विकलांग नहीं होता। . 3. छाछ या गौतक्रासव या गौतक्रारिष्ट का सेवन करें। 4. त्रिफलादि घृत का सेवन करें। 5. गर्भवती माता को दूध का खूब पीना चाहिए। दूध को लौहे की कढ़ाई में खूब
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औटाकर और काली मिर्च डालकर लेने से शरीर में रक्त की कमी नहीं होती। 6. खट्टा खाने की इच्छा हो तो आंवला, नींबू, कोकम, छाछ, टमाटर का सेवन करें अचार, इमली, कैरी और राई की खटाई का सेवन ना करें। 7. शरीर में खून की कमी हो तो खून की कमी वाले उपचार करें। 8. शरीर में कैल्शियम की कमी हो तो पान की दुकान से एक रूपये का चूना लाकर उसे एक लीटर पानी में डालकर खूब हिलायें। 6-7 घंटे बाद जब चूना तली में है। जायें, तब पानी को निथार लें। यह पानी दिन में दो बार दो-दो चम्मच लेते रहे .... 9. आटा पीसने की हाथ की चक्की (घट्टी) चलाने से गर्भाशय क्षेत्र की तथा की मास पेशियाँ लचीली व बलशाली होती है। शरीर में सूजन नहीं आती व प्र. सामान्य होता है। घट्टी न हो तो इसी प्रकार का व्यायाम करें। 10. साबुन का ...F. ना करें, अंगराग चूर्ण या अंगराग बट्टी से स्नान करें। अपथ्य : सभी तामसीक चीजें - लहसुन, प्याज, चाय-कॉफी, भैंस का दूध, दह ... बासी भोजन सभी प्रकार के व्यसन। क्रोध, ईर्ष्या, भय, लालच। टी. वी के का व विज्ञापन बहुत ही तामसीक है। टी. वी. से निकलने वाली प्रकाश की किरणे तरंगे भी बहुत नुकसान करती है। टी. वी. पर केवल कुछ संस्कारप्रद कार्यक्रम है देर देखें।
सभी पित्त दोष बढ़ाने वाली चीजें - आलू, बैंगन, दही, गरम मसालें, मित्त. .. चीजें, तेज खटाई, पपीता। इनसे गर्भपात होने का खतरा रहता है। ___ सभी वात दोष बढ़ाने वाली चीजें - पंखे की तेज हवा, फ्रिज का पानी, मैद' रात को जागना। इनसे सूजन आती है और प्रसव वेदना अधिक होती है।
सभी कफ दोष बढ़ानेवाली चीजें - अधिक मीठा, अधिक घी, तेल, आलर' में अधिक सोना। इनसे बच्चे का मोटापा बढ़ता है और प्रसव में समस्या होती है। पथ्य : प्रसन्न रहना, हल्के व्यायाम करना या श्रम करना; सुबह की किरणों का करना, अच्छी पुस्तके पढ़ना, कला के सौन्दर्य का पान करना। विशेष : एक मूर्तिकार पत्थर की मूर्ति को गढ़ते समय एक-एक छेनी संचलाता है। माँ का तो चैतन्य मूर्ति को गढ़ना है, ईश्वर की तरह सृष्टि करनी जितनी ही कुशल होगी पुत्र भी उतना ही श्रेष्ठ होगा।
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________________ आग उगलने वाली आवाज मौन हो गई.... राजीव भाई के प्रखर और ओजस्वी वाणी शांत हो गई। उनकी वाणी में स्वदेश के लिए प्रेम और अगाध श्रद्धा थी।..... राजीव भाई के जाने से देश को बहुत बड़ी क्षति हुई है। उनके असमय निधन से राष्ट्र ने जो खोया है उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता।.... देश में अब दूसरा राजीव पैदा नहीं होगा। उनकी एक आवाज़ करोड़ों आवाजों के बराबर थी।.... उनके स्वदेशी के स्वप्न को साकार करने के लिए हम सच्चे प्रयास करें। यही उस पुण्यात्मा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.... परमपूज्य स्वामी रामदेव जी राजीव भाई का जीवन निरंतर कर्मयोनि का जीवन था। वर्धा से निकलकर हरिद्वार आने पर उनकी यात्रा पूर्ण हो गई थी। भारत स्वाभिमान के लिए उन्होंने जो पृष्ठभूमि बनाई, वह उनके अद्भुद ज्ञान का प्रमाण है। उनके पास जो ज्ञान था। उनकी जो स्मृति थी वह बहुत कम लोगों के पास होती है। पाँच हजार वर्षों का ज्ञान उनके पास था। उनका दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता था। उनका आन्दोलन रूकेगा नहीं, ऐसी परमपिता से प्रार्थना है.... _परम श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या राजीव भाई स्वदेशी ग्राम द्वारा संकल्पित (स्वदेशी शोध केंद्र, सेवाग्राम, वर्धा) भारत को स्वदेशी और स्वावलंबी बनाने के लिए, तथा राजीव भाई के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए राजीव भाई की स्मृति में सेवाग्राम, वर्धा में 23 एकड़ में एक स्वदेशी शोध केंद्र बनाने की योजना है। आपका सहयोग अपेक्षित है। उदेश्य:-स्वदेशी के दर्शन पर आधारित भारत बनाने के लिए जैविक खेती प्रशिक्षण और स्वदेशी बीजों के संरक्षण के लिए स्वदेशी शिक्षा के प्रयोग के लिए गौ संवर्धन और पंचगव्य शोध के लिए स्वदेशी रोजगार उपलब्ध कराने के लिए भारत में स्वदेशी नीतियों को लागु करने के लिए स्वदेशी उद्योगों को बढाने के लिए शोध कार्य अमरत की पारंपरिक ज्ञान को आम जन के बीच फैलाने के लि मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी | मर जाँऊ तो भी मेरा, होवे कफन स्वदेशी स्वदेशी प्रकाशन सेवाग्राम, वर्धा