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टेक्नोलॉजी।
अब युरोप वालों ने क्या किया उन्होंने बनाया हैं एक मशीन। हाँ जो खींच लेता है सबको अपने अंदर। देखा है डस्ट खींच लेता है कहते- तो उसको डस्टक्लिनर है लेकिन वो डस्टक्लिनर नहीं हैं डस्टसकर है। डस्ट को खींचता है. और डस्ट के साथ चींटी को भी खींच लेता है और कॉकरोच को भी और सबको खल्लास करता है। यह है टेक्नोलॉजी। अब हम इसी में फंसे हुए है हम तो पिछड़े हुए हैं। झाडू बनाया हैं। वो तो बहुत आगे है। फॉर्वड हैं क्योंकि उन्होंने डस्टसकर बनाया हैं यह हमारी मुर्खता है। कोई अगला पिछला नहीं होता है। दुनिया में हर देश अपनी सभ्यता और अपनी मान्यता के हिसाब से आगे बढ़ता है।
हमारी सभ्यता हैं पुर्नजन्म वाली इसलिए हम जो भी करेंगे उसको ध्यान में रखकर करेंगे। हर जगह आप यही देखेंगे हिन्दुस्तान में जो भी स्वदेशी टेक्नोलॉजी बनेगी आगे बढ़ेगी उसमें हर जगह आप यही पायेगें। अगर यह टेक्नोलॉजी किसी ऐसे व्यक्ति ने बनायी हैं जो खरा हिन्दुस्तानी है। अमेरीका रिर्टन हैं तो कबाड़ा करेगा इस देश का। हाँ- क्योंकि वहाँ जो देख के आया है ना कचरा, वो सब यहाँ चालू कर देगा। कहेगा क्या फालतू काम करते हो। झाडू लगाते हो डस्टसकर लेकर आओ उसको थोड़ी देर बिजली लगाओ। पूँ-पूँ करे उसको खींच लो सब। अब उसमें कितनी चींटी मरी, कितने मच्छर कितनी मख्खी, उसको कोई चिंता नहीं क्योंकि उसको पुर्नजन्म में कोई मतलब नहीं है जो है वो इसी जन्म में है। फिर हम क्या करें। उसकी नकल कर करके हमारे घर में लेके आएं। और अपने को कहें हाँ हम तो बहुत स्मार्ट हैं। हम तो बहुत फॉवर्ड हैं। हम तो बहुत इंटेलिजेन्ट हैं। हमसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं हैं।
बिना अपनी सभ्यता को समझे कोई बिना अपनी संस्कृति को जाने हुए दूसरों पर टिप्पणी करना और अपनों को उससे नीचे मान लेना यही मुर्खता हैं। हम तो इसी में फंसे हैं। जब भी यह बात खड़ी होती है ना गांधीजी के सामने हो या आपके सामने गाय कट रही हैं भैंस कट रही हैं तो जो भारतीयता के लोग हैं जो पुर्नजन्म में मानते हैं जो सनातनी हिन्दु हैं। भले किसी भी संप्रदाय के हैं उनके दिल में कसक उठती है। यह गाय क्यूँ कटती है कुछ कर नहीं पाते वो अलग बात है। कसक तो हैं दिल में और इतनी तीव्र कसक है कि आप जरा खुलकर बात करलो तो इतना फट पडते हैं कि गाय बचाने के लिए मुझे मेरी जान देनी पड़े तो मैं तैयार हूँ। क्यूँ आती हैं हमें इतना तीव्र उद्वेग। यह जो हमारे मंच पर थोड़ी देर पहले जो विलास भाई बैठे थे ना 74 साल की उम्र में उनके मन में इतना उद्वेग क्यूँ है। इसलिए है कि पुर्नजन्म की मान्यता है और हम सब इस मान्यता से बंधे हुए है। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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