________________
है, खाज-खुजली मिटाता है, त्वचा में छिपे कीटाणुओं का नाश करता है। विशेष : शरीर पर लगाने से पहले आधे-एक मिनिट के लिए बट्टी. को पानी से नम कर दें।
26. गौमय दंतमंजन घटक : . 1. गोबर के कंडों 500 ग्राम अ. स. 261-62
का कोयला 2. सादा कपूर
10 ग्राम . व. चं. .. 57 3. अजवायन का सत 10 ग्राम भा. प्र. नि. हरीतक्यादिवर्ग: 15 . 4. लौंग
___40 ग्राम . भा. प्र. नि. कपूरादिवर्ग: 21 5. नीलगिरी का तेल 20 ग्राम .. 6. सेंधा नमक 100 ग्राम भा. प्र. नि. हरीतक्यादिवर्ग: 86 . निर्माण विधि : गोबर के कण्डों को पहले साफ-सुथरी जगह या कढ़ाई मे रखकर । जलायें। जब धुंआ निकलना बंद हो जाय तो एक साफ तगारी से ढंक दें और उसकी . आसपास की हवा बंद करने के लिए टाट का कपड़ा किनारों पर दबा दें। लगभग आधे घंटे के बाद खोलकर काला मजबूत कोयला निकाल लें। कच्चा कंडा या जली सफेद राख काम में नहीं लें। बड़ी मात्रा में बनाना हो तो जमीन में गड्डा खोदकर ईट सीमेंट से प्लास्टर कर उसमें कोयला बनाया जा सकता है। ऊपर से किसी बड़े लोहे के बर्तन से ढककर हवा बंद की जा सकती है। इस तरह बने कोयले को खरल में बारीक करके सूती कपड़े में रगड़कर छानकर सूक्ष्म चूर्ण बना लें। • अब सेंधा नमक के बारीक चूरे को 300 ग्राम पानी में मिलाकर अच्छी तरह घोल लें। इसे कोयले के चूरे पर धीरे-धीरे छिड़ककर अच्छी तरह मिलाते जायें। इसे तीन-चार घंटे तक ऐसे ही पड़ा रहने दें, जिससे सम मात्रा में नमी फैल जाय। इसी समय कपूर और अजवायन के सत को एक शीशी में मिलाकर एक घंटे रखें। यह अपने आप घुलकर तेल बन जायेगा और लौंग को खरल में एकदम बारीक कर लें। अंत में नीलगिरी के तेल और कपूर-अजवायन के सत के तेल व लौंग के चूर्ण को गोबर कोयले के चूर्ण पर छिड़ककर अच्छी तरह मिलायें और तुरंत पैक कर दें। गुणधर्म : दाँत का दर्द, दाँत से खून आना, मुँह की दुर्गध, दाँतों में कीड़ा लगना, दाँतों का मैल, दाँतों की कमजोरी आदि में अत्यंत लाभदायक। मात्रा : आवश्यकतानुसार।
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
87